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जम्मू-कश्मीर : "हमारे साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है, हम लोग क़ैद हैं”

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद घाटी के हालात को लेकर पहली बार कोई गैर सरकारी रिपोर्ट बाहर आई,जिसमें बताने की कोशिश की गई कि जनता इस पूरे मामले पर क्या सोच रही है। 
jammu kshmir

"हमारे साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है, हम लोग कैद हैं, हमारा मुंह बंद किया गया है।"

"पूरे कश्मीर को जेल बनाया हुआ है, हमें बंधक बनाकर धारा 370 को हटाया है।"

"आर्टिकल 370 को हटाना जैसे हमारे शरीर पर हमला है, इसे बचाने के लिए हम अपनी जान भी दे देंगे। अगर यह एकबार खत्म हो गई तो हम इसे दोबारा नहीं पा सकेंगे।"

"कांग्रेस ने पीठ में छुरा घोंपा था, बीजेपी ने सामने से घोंपा है।"

"जितना जुल्म करेंगे हम उतना उभरेंगे, जबतक एक कश्मीरी जिन्दा रहेगा तब तक आज़ादी का नारा रहेगा।" 

ये सभी बातें जम्मू-कश्मीर के आम अवाम ने दिल्ली से गई टीम से कहीं। 


ये सभी लोग सरकार और मुख्यधारा मीडिया के उन सभी दावों को खारिज करते हैं जिसमें दावा किया जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर की जनता 370 को हटाने से खुश है।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद घाटी के हालात को लेकर पहली बार कोई गैर सरकारी रिपोर्ट बाहर आई,जिसमें बताने की कोशिश की गई कि जनता इस पूरे मामले पर क्या सोच रही है। मीडिया रिपोर्ट्स और सरकार जहां घाटी में  शांति का दावा कर रही हैं, वहीं कश्मीर से लौटे एक प्रतिनिधिमंडल ने घाटी में खबरों से अलग स्थिति को बताया। टीम का दावा है कि भारतीय मीडिया में जिस तरह की रिपोर्टिंग हो रही है, घाटी में हालात उससे बिल्कुल अलग हैं।

इस प्रतिनिधिमंडल में अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमन एसोसिएशन (ऐपवा) की कविता कृष्णन, आल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमन्स एसोसिएशन (एडवा) की मैमूना मोल्ला, नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट के विमल भाई शामिल थे।
इस प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में पांच दिनों का कश्मीर दौरा किया है।

प्रतिनिधिमंडल ने आज, बुधवार, 14अगस्त को दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में कॉन्फ्रेंस कर घाटी के हालात का सच सामने लाने की कोशिश की। टीम की ओर से कहा गया था कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में वो अपने दावे के समर्थन में वीडियो, फोटो और अन्य जानकारियां शेयर करेंगे, लेकिन जब 14 अगस्त की दोपहर को प्रेस कॉन्फ्रेंस शुरू हुई तो प्रेस क्लब के अधिकारियों ने इस तरह के किसी भी वीडियो को दिखाने से मना कर दिया।
इस पर पूछे गए एक सवाल पर जवाब देते हुए कविता कृष्णन ने बताया कि "प्रेस क्लब ने हमें बताया कि हम प्रोजेक्टर का उपयोग नहीं कर सकते। निजी तौर पर उन्होंने हमें बताया, कि यहां भी निगरानी है और उन पर भारी दबाव है। कविता ने सवाल किया कि यदि हम क्या हो रहा है, यह प्रेस क्लब में नहीं दिखा सकते हैं, तो हम कहां दिखा सकते हैं?"
टीम ने दावा किया कि कश्मीर में हालात सामान्य हो गये हैं, इससे बड़ा झूठ और कुछ नहीं हो सकता।
इस टीम ने कहा कि जब हम 9 अगस्त को श्रीनगर पहुंचे तो हमने देखा कि शहर कर्फ्यू के चलते खामोश है और उजाड़ जैसा दिख रहा है और भारतीय सेना और अर्द्धसैनिक बलों से भरा पड़ा है। कर्फ्यू पूरी तरह लागू था और यह 5 अगस्त से लागू था। श्रीनगर की गलियां सूनी थीं और शहर की सभी संस्थाएं (दुकानें, स्कूल, पुस्तकालय, पेट्रोल पंप, सरकारी दफ्तर और बैंक) बंद थीं। केवल कुछ एटीएम, दवा की दुकानें और पुलिस स्टेशन खुले हुए थे। लोग अकेले या दो लोग इधर-उधर जा रहे थे लेकिन कोई समूह में नहीं चल रहा था।

रिपोर्ट जारी करते हुए, टीम ने अपने अनुभवों को साझा किया कि वहां के लोगों में सरकार के फैसले के खिलाफ बहुत गुस्सा है और लगभग सभी ने अपने गुस्से का इजाहर किया। घाटी में शांति सुनिश्चित करने के नाम पर क्षेत्र में चार लाख से अधिक अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है। 

“घाटी में हुए घटनाक्रम से पुलिस बल भी खुश नहीं है। IPS रैंक के पुलिस अधिकारियों में से एक ने मुझे बताया कि यह तानाशाही है।” कविता कृष्णन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वहां पर मिलने वाले प्रत्येक व्यक्ति को उन चीजों के बारे में जानते हैं जो राज्य ने उनके साथ की हैं।
आगे उन्होंने बताया कि उन लोगों ने श्रीनगर के भीतर और बाहर काफी यात्रायें कीं। भारतीय मीडिया केवल श्रीनगर के छोटे से इलाके में ही अपने को सीमित रखता है। उस छोटे से इलाके में बीच-बीच में हालात सामान्य जैसे दिखते हैं। इसी आधार पर भारतीय मीडिया यह दावा कर रहा है कि कश्मीर में हालात सामान्य हो गये हैं। इससे बड़ा झूठ और कुछ नहीं हो सकता।
जम्मू-कश्मीर के साथ सरकार के बर्ताव पर जनता की प्रतिक्रिया !
• जब हमारा हवाई जहाज श्रीनगर में उतरा और यात्रियों को बताया गया कि वे अपने मोबाइल फोन चालू कर सकते हैं तो सारे ही यात्री (इनमें ज़्यादातर कश्मीरी थे) मजाक उड़ाते हुए हंस पड़े। लोग कह रहे थे कि ''क्या मजाक है''। यहां 5 अगस्त से ही मोबाइल और लैंड लाइन सेवाओं को बंद कर दिया गया था।
• श्रीनगर में पहुंचने के बाद हमें एक पार्क में कुछ छोटे बच्चे अलग-अलग किरदारों का खेल खेलते हुए मिले। हमने वहां मोदी को लेकर काफी गुस्से का संबोधन सुना। 
• भारत सरकार के निर्णय के बारे में लोगों से सबसे ज़्यादा जो शब्द सुनाई पड़े, वे थे 'ज़ुल्म', 'ज़्यादती' और 'धोखा'। सफकदल (डाउन टाउन, श्रीनगर) में एक आदमी ने कहा कि ''सरकार ने हम कश्‍मीरियों के साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया है। हमें कैद करके हमारी जिंदगी और भविष्‍य के बारे में फैसला कर लिया है। यह हमें बंदी बनाकर, हमारे सिर पर बंदूक तानकर और हमारी आवाज घोंटकर मुंह में जबरन कुछ ठूंस देने जैसा है।''

• हम श्रीनगर की गलियों से लेकर हर कस्‍बे और गांव जहां भी गये हमें आम लोगों ने, यहां तक कि स्‍कूल के बच्‍चों तक ने भी कश्‍मीर विवाद के इतिहास के बारे में विस्‍तार से समझाया। वे भारतीय मीडिया द्वारा इतिहास को पूरी तरह तोड़ने-मरोड़ने से बहुत नाराज दिखे। बहुतों ने कहा कि ''अनुच्‍छेद 370 भारतीय और कश्‍मीरी नेताओं के बीच का करार था। यदि यह करार नहीं हुआ होता तो कश्‍मीर भारत में विलय नहीं करता। अनुच्‍छेद 370 को समाप्‍त करने के बाद भारत के कश्‍मीर पर दावे का कोई आधार नहीं रह गया है।'' 
स्कूल बंद हैं और यहां तक कि कुछ अस्पताल भी बंद हैं। हालांकि सरकार का कहना है कि उन्होंने वहां कर्फ्यू नहीं लगाया है, लोगों को कर्फ्यू पास दिखाए बिना स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ने की अनुमति नहीं है।

मैमुना मोल्ला ने कहा, "जब हमने छात्रों से बात की, तो उन्होंने एक शैक्षणिक वर्ष खोने की आशंका जताई।

मोल्ला ने कहा, "सबसे ऊपर, कश्मीरी अखबारों में से कोई भी समाचार पत्र नहीं मिल रहा है, क्योंकि दिल्ली से समाचार पत्र आते हैं।" 13 अगस्त को श्रीनगर के प्रेस एन्क्लेव में अखबारों के दफ्तरों को भी बंद कर दिया गया है, कुछ सीआईडी के लोगों को छोड़कर यह क्षेत्र वीरान हो गया है। जाहिरा तौर पर पत्रकारों में से एक ने टीम को बताया कि कम से कम 17 अगस्त तक पेपर नहीं छप सकते हैं।

अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ ने कहा कि भारतीय मीडिया सच्चाई की रिपोर्ट करने से डरता है, लेकिन कुछ विदेशी मीडिया अच्छा काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा " रॉयटर्स, बीबीसी, न्यूयॉर्क टाइम्स अच्छी रिपोर्टिंग कर रहे हैं।" विदेशी प्रेस संवाददाताओं, जिनसे टीम ने मुलाकात की थी, ने कहा कि वे अधिकारियों द्वारा उनके काम पर प्रतिबंध का सामना कर रहे हैं। इसके अलावा, इंटरनेट की कमी के कारण, वे अपने स्वयं के मुख्य कार्यालयों के साथ संवाद करने में असमर्थ हैं।
टीम की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह स्पष्ट है कि पैलेट गन को चेहरे और आंखों पर जानबूझकर निशाना बनाया गया है और निहत्थे, शांतिपूर्ण नागरिकों को निशाना बनाया जा सकता है।

सौरा में भी पुलिस बल ने लगभग 10,000 लोगों को गोलियों के दम पर खदेड़ दिया, जो 9 अगस्त को विरोध कर रहे थे। हालांकि टीम ने वहां जाने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें सीआरपीएफ ने रोक दिया था। हालांकि टीम ने श्रीनगर के एसएमएचएस अस्पताल में पेलेट गन की चोट के दो पीड़ितों से मुलाकात की। दो युवकों (वकार अहमद और वाहिद) के चेहरे, बाजुओं पर छर्रे लगे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि “उनकी आंखें खून से लथपथ और अंधी थीं। उनके परिवार के सदस्यों ने दु: ख और रोष के साथ रोते हुए हमें बताया कि दोनों लोग पथराव नहीं कर रहे थे।"

टीम के सभी सदस्यों ने एक बात दोहराई कि जिन  गांव में वे जाते थे, साथ ही श्रीनगर शहर में, वहाँ बहुत  युवा स्कूली बच्चे और किशोर थे जिन्हें पुलिस या सेना / अर्धसैनिक बलों द्वारा मनमाने तरीके से उठाया गया था और उन्हें अवैध रूप से हिरासत में रखा गया था। आधी रात के छापे में सैकड़ों लड़के और किशोर अपने बिस्तर से उठाए जा रहे हैं।
मोल्ला ने घाटी में गंभीर स्थिति की व्याख्या करते हुए कहा“ माता-पिता ने हमसे मिलने और हमारे लड़कों के "गिरफ्तारियों" (अपहरण) के बारे में बताते हुए डरते हुए कहा। इन छापों का एकमात्र उद्देश्य भय पैदा करना है। महिलाओं और लड़कियों ने इन छापों के दौरान सशस्त्र बलों द्वारा छेड़छाड़ के बारे में बताया।"

लोग पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट के मामलों को लेकर डरते हैं और कुछ इस डर से कि "गायब" होने वाले लड़कों को हिरासत में मार दिया जाता था और कश्मीर की सामूहिक कब्रों में फेंक दिया जाता था।

द्रेज़ ने कहा,"निश्चित रूप से, गिरफ्तार लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं है।"

घाटी के राजनीतिक नेता और नागरिक समाज के कार्यकर्ता भी गिरफ्त में हैं। इनमें से कम से कम 600 गिरफ्तारी के अधीन हैं और इनकी गिरफ्तारी के लिए कौन से कानून लागू किए गए हैं, या कहाँ रखे जा रहे हैं, इसकी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और मोहम्मद यूसुफ तारिगामी सहित राजनीतिक नेता नजरबंद हैं। हालांकि टीम ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के एमएलए तारिगामी से मिलने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें श्रीनगर में उनके घर में प्रवेश देने से मना कर दिया गया था, जहाँ उन्हें नज़रबंद किया जा रहा है। 
कविता कृष्णन ने कहा कि अमित शाह ने कहा था कि फारूक अब्दुल्ला घर में नजरबंद नहीं हैं। कुछ ही देर बाद जब उन्होंने प्रेस को संबोधित किया, तो उनके घर पर तैनात बलों को निलंबित कर दिया गया।

टीम के मुताबिक, विरोध प्रदर्शन रुकने की संभावना नहीं है। एक युवक, जिनसे वे सोपोर में मिले थे, उसने कहा: " जितना जुल्म करेंगे, उतने हम संवरेंगे", कई स्थानों पर हमने सुना कि " कोई बात नहीं अगर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। हमें नेताओं की जरूरत नहीं है। जब तक एक भी कश्मीरी बच्चा जीवित है, हम संघर्ष करेंगे।"
 

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