जम्मू-कश्मीर को लेकर लखनऊ का प्रबुद्ध समाज भी चिंतित, सरकार पर सवाल
केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर को लेकर लिए गए फ़ैसले के विरोध में देशभर में स्वर उठ रहे हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के प्रबुद्ध समाज में भी इस बात पर चर्चा बढ़ गई है कि क्या कश्मीर की जनता को विश्वास में लिए बग़ैर इस तरह के बंटवारे और आर्टिकल 370 हटाने के फैसले को असंवैधानिक नहीं कहा जाना चाहिए? क्या केंद्र सरकार भविष्य में किसी और राज्य का भी ऐसे ही विभाजन कर सकती है? इसके अलावा भी मोदी सरकार की मंशा पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
कश्मीर की जनता के साथ धोखा : त्रिपाठी
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि अनुच्छेद 370 को खत्म करना, कश्मीर की जनता के साथ विश्वासघात है। बीबीसी में ब्यूरो चीफ रह चुके त्रिपाठी कहते हैं कि फ़ौज लगाकर कश्मीर का विभाजन करना अप्रजातंत्रवादी है। भारत सरकार द्वारा1947 में कश्मीर की जनता से विशेष राज्य के दर्जे का वादा किया गया था, जिसको मोदी सरकार ने असंवैधानिक तरीके से तोड़ दिया है। त्रिपाठी मानते हैं कि कश्मीर को बड़े जेल में बदलकर राज्य को विभाजित करना कभी भी संवैधानिक नहीं कहा जा सकता हैं। दूसरे राज्यों में भी ऐसे प्रयोग होने की आशंका जताते हुए त्रिपाठी ने कहा कि जैसे कश्मीर में फ़ौज लगाकर उसका विभाजन किया गया है, ऐसे ही भविष्य में अन्य राज्यों में भी किया जा सकता है।
सरकार की नीयत पर सवाल : रूपरेखा वर्मा
समाजसेवी संस्था साझी दुनिया की सचिव प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा कहती हैं की कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने में केंद्र सरकार ने क़ानून का पालन नहीं किया है। लखनऊ विश्वविद्यालय की कुलपति रही प्रोफेसर रूपरेखा कहती हैं कि जिस तरह कश्मीर की जनता को क़ैद कर के विभाजन किया गया है, उस से सरकार की नीयत पर भी प्रश्न उठ रहे हैं। उन्होंने कहा की विपक्ष को कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 A को खत्म करने और राज्य के विभाजन को न्यायालय में चुनौती देना चाहिए क्यों की मोदी सरकार ने जो तरीक़ा अपनाया है वो असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक है और इसमें बहुत सी क़ानूनी त्रुटियाँ भी हैं। विभाजन और अनुच्छेद 370 को खत्म करने को लेकर कश्मीर की विधानसभा में भी चर्चा नहीं हुई है, जबकि यह अनिवार्य था।
भारत में फिलिस्तीन बनाने की कोशिश!
कई दशकों से देश की राजनीति पर नज़र रखने वाले राजनीतिक टिप्पणीकार हुसैन अफसर कहते हैं कि मोदी सरकार भारत में एक फिलिस्तीन बनाना चाहती है। अफसर आगे कहते हैं की औद्योगीकरण के नाम पर कश्मीर की ज़मीनों को सरकार के मित्र उद्योगपतियों को दी जाएगी।
देश के संविधान पर हमला : राम पुनियानी
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए लेखक राम पुनियानी कहते हैं की कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 A ख़त्म करना देश के सविंधान पर हमला करने जैसा है। पुनियानी मानते है की यह क़दम देश के संघीय ढाँचे को कमज़ोर करेगा।
संघीय गणराज्य की धारणा पर हमला : शर्मा
समाजशात्री प्रदीप शर्मा का कहना ही की यह एक सार्वभौमिक सच्चाई है कि भारत का वास उसकी विविधताओं में है। बीजेपी-आरएसएस के शासक नेता किसी भी तरह की विविधता और संविधान के संघीय ढांचे को बर्दाश्त नहीं करते। वे जम्मू कश्मीर के साथ अधिकृत इलाके जैसा बर्ताव कर रहे हैं। संविधान के साथ खिलवाड़ करते हुए वे जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख को दो अलग अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बदल रहे हैं। यह राष्ट्रीय एकता और भारत के राज्यों के संघीय गणराज्य होने की धारणा पर सबसे बड़ा हमला है ।
लखनऊ विश्वविद्यालय से सम्बद्ध एक महाविद्यालय में एक दशक से ज़्यादा प्रोफेसर के रूप में समाजशास्त्र के व्याख्यान देने वाले प्रदीप शर्मा कहते हैं इस तानाशाहीपूर्ण कदम को उठाने के पहले जम्मू काश्मीर में दसियों हजार की तादाद में सैना भेजने,मुख्य राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को गिरफ़्तार करने, जनता की आवाजाही प्रतिबंधित करने जैसे काम किये गए। यही इस बात का सबूत है कि मोदी सरकार बिना जनता की सहमति के जबरदस्ती अपना हुकुम थोप रही है।
क़ानून क्या है?
वरिष्ठ अधिवक्ता मोहम्मद हैदर कहते हैं कि केंद्र सरकार के पास पूरा बहुमत है एवं अनुच्छेद 370 एवं 35A भाजपा के चुनावी घोषणापत्र की महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता थी। परन्तु इस प्रकरण को कश्मीरी जनता को विश्वास में ले कर निष्पादित करने से एक दीर्घकालिक शांतिपूर्ण संवैधानिक प्रक्रिया का पालन किया जाना आवश्यक था।
संविधान और क़ानून विशेषज्ञ हैदर बताते हैं हम सब अवगत हैं कि आजादी के उपरान्त कश्मीर के भारत गणराज्य में विलय के समय हस्ताक्षरित "इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन (विलय पत्र)" दिनांकित 21 अक्टूबर 1947 के अंतर्गत उस संधि पत्र में शामिल विषयों में यदि कोई भी कानून बनाया जाता है तो उस दशा में कश्मीर की विधायिका की सहमति आवश्यक है (जो वर्तमान में सस्पेंडेड एनीमेशन में राष्ट्रपति शासन के अधीन है)।
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है। लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित क़ानून को लागू करवाने के लिये केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिये। इस विधिक स्थिति के तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त अन्य राज्यों जैसे पूर्वोत्तर के राज्य के अलावा भारत में कहीं भी भूमि ख़रीदने का अधिकार है।
इसी प्रकार से भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन की खरीद फरोख्त नहीं कर सकते। इस विधिक के विपरीत भारत सरकार के द्वारा अचानक एक सप्ताह से भी कम समय में उक्त 72 वर्षों से चली आ रही स्थिति को समाप्त करने का प्रयास किया है। हैदर मानते है कि सेना के माध्यम से, इंटरनेट सुविधाएं ससपेंड कर, लोक प्रतिनिधियों को नज़रबंद कर इस प्रयास की कितनी सार्थकता होगी, आने वाला समय ही बता सकेगा।
वामपंथी पार्टियों और नागरिक समाज का प्रदर्शन
सोमवार के बाद मंगलवार को भी राजधानी लखनऊ में विधानसभा के निकट अंबेडकर प्रतिमा पर मोदी सरकार की कश्मीरनीति के खिलाफ वामपंथी पार्टियों और नागरिक समाज ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में शामिल सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि यह समय जम्मू और कश्मीर की जनता के साथ खड़े होने का है और अपील की कि पूरे देश में इंसाफ और लोकतंत्र के समर्थकों को पूरी ताकत से आवाज बुलंद करनी होगी। इसके अलावा प्रदर्शनकारियों ने मांग की है कि धारा-370 और धारा 35-ए को बहाल किया जाये। कश्मीर में सभी विपक्षी नेताओं को रिहा किया जाये। कश्मीर और देश के संविधान से खिलवाड़ बन्द हो।
लखनऊ में हुए इस प्रदर्शन को प्रमुख रूप से भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा माले) के केन्द्रीय कमेटी सदस्य ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा, जिला प्रभारी रमेश सिंह सेंगर, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी- मार्क्सवादी (माकपा) के राज्य कमेटी सदस्य राधेश्याम, लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. रमेश दीक्षित, एडवा से सीमा राना, एपवा से मीना सिंह, रिहाई मंच से राजीव यादव, इप्टा महासचिव राकेश वेदा, माकपा के जिला सचिव मण्डल सदस्य प्रवीन पाण्डेय,किसान सभा से अनुपम यादव, किसान नेता अफरोज़ आलम, राजीव गुप्ता, प्रख्यात समाज सेवी संदीप पाण्डेय, सीटू प्रदेश अध्यक्ष आर.एस. बाजेपेई आदि ने सम्बोधित किया।
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