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जम्मू-कश्मीरः सर्व-शिक्षा अभियान के शिक्षकों का प्रदर्शन, सातवें वेतन आयोग के मुताबिक़ वेतन की मांग

क़रीब एक दशक से अधिक समय से राज्य की सेवा करने वाले शिक्षकों को राज्य के कर्मचारियों के रूप में भी मान्यता नहीं दी गई है और अब वे निरंतर सरकार के दोषपूर्ण निर्णयों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं से पीड़ित हैं।

sarva shiksha

पिछले कुछ महीनों से जम्मू-कश्मीर में नियमित वेतन और सातवें वेतन आयोग के लाभ की मांग को लेकर शिक्षक लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

वेतन के बिना काम करने वाले शिक्षकों ने श्रीनगर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करके गुरुवार 9 अगस्त को गवर्नर से मिलने के लिए प्रयास किया। सर्व शिक्षा अभियान के शिक्षकों के समूह शेर-ए-कश्मीर पार्क में इकट्ठा हुए और लाल चौक की ओर मार्च किया। प्रदर्शनकारी नारा लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे इसी दौरान पुलिस ने उन पर सख्त कार्रवाई की। प्रदर्शनकारियों को सिविल सेक्रेटरिएट तक पहुंचने से रोकने के प्रयास में पुलिस ने शिक्षकों पर पानी की बौछारें मार कर भीड़ को तीतर-बीतर करने की कोशिश की। उन्हें गवर्नर से मिलने से रोका दिया गया और कई को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस के दबाव में न झुकते हुए प्रदर्शनकारी शिक्षक नारे लगाते रहे।

प्रदर्शन करने वाले शिक्षकों को सरकार के प्रमुख कार्यक्रम सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) के तहत नियोजित किया गया था। इस अभियान को शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लिए लागू किया गया था। इस योजना के माध्यम से भर्ती किए गए शिक्षकों को पांच साल के लिए संविदात्मक आधार पर नियोजित किया गया था। इस योजना के अनुसार इस योजना के तहत नियोजित किसी भी शिक्षक को पांच साल की अवधि के लिए भर्ती किया जाना था और वार्षिक वेतन वृद्धि और समय के अनुसार पदोन्नति के साथ नियमित वेतन का वादा किया गया था। इन शिक्षकों को छठे वेतन आयोग के लाभ भी दिए गए थे।

हालांकि 16 साल से अधिक समय तक सेवा देने वाले शिक्षकों को प्रशासनिक कमी के कारण राज्य कर्मचारियों के रूप में मान्यता नहीं दी जा रही है। मास्टर ग्रेड कर्मचारियों या प्रधान शिक्षकों की रिक्तियों को भरने के बजाय एसएसए शिक्षकों की भर्ती के बाद सरकार ने इन-सर्विस एसएसए प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को उच्च प्राथमिक विद्यालय (यूपीएस) स्तर पर पदोन्नति करने का फैसला किया, इस तरह उन्हें राज्य कर्मचारी बना रही है और एसएसए में अपग्रेड किए गए स्कूलों में उनकी सेवाएं ले रही है।

सरकारी की इस नीति में घालमेल के कारण प्रदर्शनकारी शिक्षकों को अब 7 वें वेतन आयोग का लाभ देने का फैसला किया गया है। शिक्षकों से बात करने वाले पत्रकार रिज़वान गिलानी ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, 'सरकार इनकार नहीं कर सकती कि ये राज्य कर्मचारी हैं, लेकिन इससे गलतियां हुईं जो इसे स्वीकार नहीं कर रही हैं।"

यह जम्मू-कश्मीर सरकार की एकमात्र गड़बड़ी नहीं है। सरकार आगे बढ़ते हुए एसएसए शिक्षकों को रेहबर-ए-तालीम शिक्षक के बराबर माना, जिन्हें इस तथ्य के आधार पर संविदात्मक बुनियाद पर नियुक्त किया गया था कि उनके पास किसी विशेष गांव से उच्चतम योग्यता थी। इन शिक्षकों को भी इस वादे के साथ नियुक्त किया गया था कि उन्हें स्थायी शिक्षकों के रूप में विभाग में नियमित कर लिया जाएगा। रेहबर-ए-तलीम के साथ एसएसए नीति की गड़बड़ी जम्मू-कश्मीर सरकार की प्रशासनिक विफलता बन गई।

पीडीपी नेता सैयद अल्ताफ बुखारी द्वारा एसएसए शिक्षकों को 7 वें वेतन आयोग का लाभ देने से इंकार करने के बाद राज्य में विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। इसने गुस्साए शिक्षकों को राज्य भर में विरोध प्रदर्शन शुरू करने के लिए प्रेरित किया, राजनीतिक रूप से इस मुद्दे को उठाने और सभी के लिए समाधान खोजने के लिए समितियां बनाई। न्यूज़़क्लिक से बात करते हुए कुलगाम के विधायक मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने कहा, "प्रदर्शनकारियों की मांग पूरी तरह से वैध हैं, वे दबाए जाने वाले तीन मुद्दों पर राहत की मांग कर रहे हैं, जो कि नियमित वेतन, सातवें वेतन आयोग के लाभ और अन्य शिक्षकों के बराबर वेतन है। लेकिन दुर्भाग्य से उनके मांगों को लगातार अनदेखा किया जा रहा है।"

इस साल जून में लाभ की उचित मांग को लेकर शिक्षकों के लगभग पांच-छह सदस्यों के एक प्रतिनिधिमंडल ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती से मुलाक़ात किया था। मुख्यमंत्री ने शिक्षकों को आश्वासन दिया था कि उनके वेतन सातवें वेतन आयोग के अनुरूप उपलब्ध कराए जाएंगे। उन्होंने इस मुद्दे को हल करने के लिए एक महीने का समय भी मांगा था। जून 2018 में शिक्षकों की परेशानी उस वक्त और बढ़ गई जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। इसके चलते नई वित्तीय बाधाएं उत्पन्न हो गई जो नई मांग को हवा दे रहा है। शिक्षक अब मांग कर रहे हैं कि उनके वेतन केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हटा दिए जाएं और राज्य निधि के माध्यम से दिए जाएं क्योंकि वे राज्य सरकार के कर्मचारी हैं। इस मुद्दे के समाधान के लिए वित्तीय बाधाओं में वृद्धि हुई है। गिलानी ने कहा, 'सरकार ने हाल ही में समग्र शिक्षा अभियान के साथ एसएसए योजना को विलय कर दिया है, जो कि एक व्यापक योजना है जिसके अधीन एसएसए आता है। ये शिक्षकों के भुगतान के लिए वित्त आवंटन में नई समस्याएं पैदा कर रहा है और सवाल खड़े कर रहा है कि शिक्षक अब किस श्रेणी में आएंगे।"

शिक्षकों के वेतन के भुगतान के लिए वित्तीय बाधाएं बहुत बड़ी है। अगर छठे वेतन आयोग को लागू कर दिया जाता है तो सरकार को वर्तमान में लगभग 900 सौ करोड़ रुपए का वेतन देना पड़ेगा। इसके अलावा अगर सातवें वेतन आयोग के लाभ विरोध करने वाले शिक्षकों को दिए जाएंगे तो सरकार को लगभग 1300 करोड़ रुपए देना होगा।

घाटी में महीनों से चल रहे विरोध प्रदर्शन ने शिक्षकों को कोई खास फ़ायदा नहीं पहुंचाया है। यूसुफ तारिगामी कहते हैं, 'ये विरोध प्रदर्शन समान काम के लिए समान वेतन की नज़र में विफलता जैसा दिखाता है क्योंकि इन शिक्षकों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है।'

एक दशक से अधिक समय तक राज्य की सेवा करने वाले शिक्षकों को राज्य के कर्मचारियों के रूप में भी मान्यता नहीं दी गई है और अब वे लगातार सरकार के दोषपूर्ण निर्णयों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं के पीड़ित हैं। राज्य में कर्मचारियों की भर्ती करने वाली एजेंसी सेवा चयन बोर्ड (एसएसबी) के माध्यम से भर्ती होने के बावजूद करीब पांच हज़ार शिक्षकों की आजीविका दांव पर है।

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