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अभिजीत सेन एक जनवादी अर्थशास्त्री थे जिन्होंने हमेशा ग़रीबों के बारे में सोचा

प्रोफेसर सेन ने नीति निर्माण में पूरी तरह हस्तक्षेप किया और आम लोगों को अत्यधिक नवउदारवादी वातावरण में मज़बूती से बातचीत करने में मदद की। प्रोफेसर का निधन हाल ही में हुआ है।
Abhijit

प्रोफेसर अभिजीत सेन नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग (सीईएसपी) में हमारे शिक्षक थे। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरा करने के बाद उन्होंने 1985 में जेएनयू ज्वाइन किया और वहां उन्होंने 30 से अधिक वर्षों तक कृषि, योजना, श्रम अर्थशास्त्र, माइक्रोइकॉनोमिक्स, मैक्रोइकॉनोमिक्स, विकास अर्थशास्त्र, स्नातकोत्तर और एमफिल / पीएचडी स्तरों पर कई विषयों को पढ़ाया।

देश में अर्थशास्त्र के सबसे बेहतर केंद्रों में से एक केंद्र में एक शिक्षक और कक्षा के व्याख्याता के रूप में सेन सीईएसपी में सबसे अच्छे थे और अपने बेहद मधुर और मिलनसार स्वभाव के कारण छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय थे।

एक प्रतिबद्ध नीति निर्माता के रूप में सेन 10 वर्षों तक कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के अध्यक्ष और योजना आयोग के सदस्य और 14वें वित्त आयोग के सदस्य रहे। वह पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के राज्य योजना बोर्डों के सदस्य भी थे।

प्रख्यात अर्थशास्त्री सेन के अनुसंधान का मुख्य क्षेत्र भारत में कृषि, ग्रामीण विकास, बेरोज़गारी, मज़दूरी, खाद्य सुरक्षा, ग़रीबी, असमानता और विकेंद्रीकरण थे। वह एक जन-समर्थक वामपंथी अर्थशास्त्री थे जो हमेशा ग़रीबों, वंचितों और निर्धनों के बारे में सोचते थे। वह निश्चित रूप से अच्छे दिल वाले और सबसे तीव्र बुद्धि वाले थे।

सीएसीपी के अध्यक्ष के रूप में सेन ने फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्याख्या करते समय कृषि में उत्पादन की विभिन्न अप्रत्यक्ष लागतों जैसे बिना वेतन वाले पारिवारिक श्रम, स्वामित्व वाली भूमि पर ब्याज की हानि और किराए से अवसर लागत और पूंजीगत संपत्ति लागत को शामिल करने की सिफारिश की। नतीजतन, राज्य-वार लागत गणना और विभिन्न फसलों के संबंधित एमएसपी में लगभग 50% की वृद्धि हो सकी जो बाद में 'स्वामीनाथन फॉर्मूला' में स्पष्ट तौर पर दिखाई दिया।

इसके साथ ही सेन ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के तहत आधिकारिक ग़रीबी रेखा से ऊपर व्यापक कवरेज की वकालत की और लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) से इतर सार्वभौमिक पीडीएस का समर्थन किया। लक्षित पीडिएस केवल ग़रीबी रेखा से नीचे के परिवारों को कवर करता है।

सेन राष्ट्रीय सेंपल सर्वे (एनएसएस) के आंकड़ों को अन्य लोगों से बेहतर जानते थे। भारतीय ग़रीबी चर्चा में उन्होंने तेंदुलकर समिति की सिफारिशों (इसे पिछले अनुमानों के साथ तुलनीय बनाने के लिए) के आधार पर आधिकारिक राष्ट्रीय ग़रीबी रेखा का समर्थन किया। उसी समय एक नीति निर्माता के रूप में उन्होंने पीडीएस के माध्यम से रियायती क़ीमतों पर खाद्यान्न वितरण के कवरेज को बढ़ाने की आवश्यकता को महसूस किया क्योंकि अनुमान पद्धति को देखते हुए आधिकारिक ग़रीबी रेखा बेहद कम थी।

ज़ाहिर है, अगर पीडीएस में अनाज का कवरेज और उठाव बढ़ता है तो एमएसपी के माध्यम से ख़रीद और इसके कवरेज को भी बढ़ाना होगा। क़ीमतों का आधार निर्धारित करने वाले यदि उच्च एमएसपी के कारण किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिलता है तो कृषि क्षेत्र और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की ओर कुछ धन प्रवाह होगा। सरकार का खाद्य सब्सिडी बिल बढ़ सकता है। हालांकि, सेन को लगा कि यह मौजूदा राजकोषीय अरिवर्तनीयता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

11वीं और 12वीं योजना के दस्तावेज़ों को 'समावेशी विकास' की दृष्टि से तैयार करने के दौरान सेन हमेशा सामान्य रूप से वितरण संबंधी बिंदुओं को लेकर बेहद गंभीर थे। नीति निर्माण क्षेत्र में मुख्य धारा का विकास मॉडल मुख्य रूप से लाभ-आधारित विकास का था। हालांकि, वह लगातार बेरोज़गारी, कम मज़दूरी, ग़रीबी और बढ़ती असमानता के सवाल उठा रहे थे।

जब उच्च विकास दर सुनिश्चित करने के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप, स्पेशल इकॉनोमिक ज़ोन (एसईजेड) और बड़े निवेशकों को विभिन्न तरीक़ों से सुविधा देने पर चर्चा की जा रही थी तो सेन अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक-असंगठित क्षेत्रों, ग्रामीण कृषि और छोटे उत्पादन और मानव विकास के लिए सामाजिक क्षेत्र की ओर अधिक धन प्रवाह के पक्ष में थे।

सेन निश्चित रूप से विकास के विरोधी नहीं थे लेकिन शायद उनके मन में ग़रीबों के पक्ष में सरकारी ख़र्च की संरचना को बदलकर राष्ट्रीय आय के बेहतर वितरण को सुनिश्चित करके गुणकों में सुधार करके वेतन-आधारित वृद्धि का विचार था। यदि अर्थव्यवस्था में खपत प्रवृत्ति बढ़ती है तो सरकारी व्यय या निवेश या निर्यात की समान मात्रा अधिक रोज़गार पैदा करने और समग्र स्तर पर मांग विवश स्थिति के तहत उच्च विकास सुनिश्चित करने में अधिक प्रभावी होगी।

चूंकि, ग़रीब वर्ग के लिए उपभोग की प्रवृत्ति अधिक है तो अमीरों से ग़रीबों को वास्तविक राष्ट्रीय आय का पुनर्वितरण उच्च विकास सुनिश्चित कर सकता है। सेन का विचार था कि एक विशाल अनौपचारिक और असंगठित क्षेत्र की उपस्थिति के कारण भारतीय संदर्भ में विस्तारवादी मौद्रिक नीति स्फीति-विषयक नहीं होगी।

विस्तारवादी मांग प्रबंधन नीतियों को अपनाकर और ग़रीब वर्ग के पक्ष में सरकारी व्यय की संरचना को बदलकर बेरोज़गारी, ग़रीबी और असमानता को कम करने के साथ-साथ उच्च विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।

सेन स्वास्थ्य और शिक्षा में सरकारी ख़र्च बढ़ाने और रोज़गार सृजन और ग़रीबी उन्मूलन के प्रबल समर्थक थे। विकास प्रक्रिया को सही मायने में समावेशी बनाने के लिए योजना आयोग के भीतर वह ग़रीबों और आम लोगों के हित में चर्चा करने वाले प्रमुख व्यक्ति थे।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस), राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम), एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस), सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए), मध्याह्न भोजन योजना (एमडीएमएस), पीडीएस, प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) जैसी विभिन्न केंद्र प्रायोजित प्रमुख योजनाओं की सफलता ने निश्चित रूप से कुछ मानव विकास सुनिश्चित किए हैं।

सेन राजकोषीय संघवाद और विकेंद्रीकरण के पक्ष में एक सशक्त आवाज़ थे। 14वें वित्त आयोग (प्रोफेसर वाईवी रेड्डी की अध्यक्षता में) ने असाधारण रूप से करों के सामान्य हिस्सों में राज्यों के हिस्से को 32% से 42% तक उच्च वृद्धि की सिफारिश की। फिर भी सेन भविष्य में राज्यों को हिस्सों के हस्तांतरण में वृद्धि की राशि के बारे में अनिश्चित थे क्योंकि अनुदान और अन्य हस्तांतरण (कर हस्तांतरण के अलावा) जीडीपी के अनुपात के रूप में कम हो गए।

मेरी समझ से सेन का मानना था कि मानव विकास से संबंधित अधिकांश मुद्दों को क्षेत्रीय और स्थानीय स्तरों पर निपटाया जाए और उस दिशा में सरकारों के निचले स्तरों को सशक्त बनाना नितांत आवश्यक है। वह ठोस अनुभवजन्य साक्ष्य और पूरी तर्क की मदद से अलग राय रखने वाले लोगों को समझाने की कोशिश करते। उनका उद्देश्य विश्लेषण करता है और उनके डेटा के आकलन करने को ख़ारिज नहीं किया जा सकता था। उनके अकादमिक तर्कों ने पूरे मंडल में बहुत सम्मान हासिल किया।

साथ ही, मज़दूरों, किसानों, विशेषकर ग़रीबों सहित आम लोग को सॉफिस्टिकेटेड इकोनॉमिक मॉडलिंग की तकनीकी में कभी नुक़सान नहीं हुआ। नीति निर्धारण के क्षेत्रों में सेन के स्पष्ट हस्तक्षेप ने आम लोगों को चरम नवउदारवादी वातावरण में मज़बूती से बातचीत करने में मदद की।

सेन ने हमेशा नीति निर्धारण के उच्चतम स्तर के भीतर आम लोगों और ग़रीबों के हित के लिए 'कॉन्स्टैंड-ऑप्टिमाजेशन' सुनिश्चित करने का प्रयास किया। ज़ाहिर है, ये सफलताएं और असफलताएं थीं। हालांकि, वह हमेशा सही मायने में लोगों के अर्थशास्त्री थे।

दिल्ली स्थित लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के आर्थिक अध्ययन एवं योजना केंद्र में सहायक प्रोफेसर हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Abhijit Sen: Pro-People Economist who Always Thought About the Poor

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