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झारखण्ड : ‘नए भारत’ के विकास के अँधेरे में जीने को अभिशप्त कुन्दरिया के मल्हार

यहाँ बसने वाले कुल 45 परिवार के लोगों के पास कहने को तो वोटर आईडी, आधार कार्ड तथा कुछ के पास राशन कार्ड ज़रूर हैं लेकिन रहने को एक इंच भी ज़मीन नहीं हैI इन्हें आज तक किसी भी सरकारी योजना का कोई लाभ नहीं मिल सका है।
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22 नवंबर को दिल्ली के इंडिया टुडे स्टेट ऑफ स्टेट्स कॉन्क्लेव के भव्य आयोजन में उपराष्ट्रपति महोदय ने झारखण्ड को मोस्ट इम्प्रूव्ड राज्य का दर्जा दियाI राज्य को यह दर्जा कथित तौर पर आधारभूत संरचना के निर्माण क्षेत्र में किये जा रहे बेहतर कार्य करने वाले राज्यों में अव्वल होने के लिए मिलाI हमेशा की तरह मुख्यमंत्री जी ने फ़ौरन खुद की पीठ ठोकी और राज्य की जनता को बधाई देते हुए कह डाला कि यह उपलब्धि हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में “नए भारत” के निर्माण की देन हैI इसी विकास के लिए राज्य में हम सतत प्रयासरत रहे हैंI

ये थोथी दलील मीडिया के ज़रिये स्थापित हो भी जाती। लेकिन 22 नवम्बर को ही ‘नए भारत के निर्माण’ और ‘मोस्ट इम्प्रूव्ड राज्य झारखण्ड’के विकास की पोल सबके सामने तब खुल गयी, जब एक प्रमुख अखबार के मुख्य पन्ने पर झारखण्ड में रहने वाले भूमिहीन अनुसूचित जाति के गरीबों की अमानवीय जीवन परिस्थितियों पर एक विस्तृत ख़बर छपीI इस खबर ने मोदी जी के “नए भारत के निर्माण” में गाँव के भूमिहीन गरीबों की वास्तविक हैसियत और दिल्ली में राज्य के विकास का पीटे जा रहे ढोल का सच सभी को दिखला दिया। साथ ही यह भी बता दिया कि राजधानी के डिजिटल आयोजनों से सरकार में बैठे लोग जिस विकास की चकाचौंध फैला रहें हैं, वह हक़ीक़त में कितना अंधेरे से भरा है।

खबर थी राजधानी रांची से सटे रामगढ़ शहर के मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर कुजू प्रखण्ड के कुन्दरिया बस्ती में अमानवीय जीवन जी रहे अनुसूचित जाति के मल्हार समुदाय के भूमिहीन गरीबों कीI जो वहाँ पिछले 55 वर्षों से टाट-फूस और प्लास्टिक ढंके झोंपड़ों के अंधेरे में ही रहने को अभिशप्त हैंI यहाँ बसने वाले कुल 45 परिवार के लोगों के पास कहने को तो वोटर आईडी, आधार कार्ड तथा कुछ के पास राशन कार्ड ज़रूर हैं लेकिन रहने को एक इंच भी ज़मीन नहीं हैI सरकार की ओर से गरीबों को मिलने वाला आवास और अनाज का मिलना तो दूर, आज तक किसी भी सरकारी योजना का कोई लाभ नहीं मिल सका हैI इनके कथनानुसार ये लोग पूर्व में 30 वर्षों से कुन्दरिया के ही करमाली टोला के पास बसे हुए थे। लेकिन वहाँ से भगा दिए जाने के कारण गाँव के स्कूल के पीछे की गैरमजरुआ ज़मीन में जाकर बस गएI बाद में वहाँ से भी बेदखल किये जाने के कारण पिछले एक वर्ष से बस्ती के पास की वनभूमि के जंगल के बीच के एक टीले पर आकर बसे हुए हैं। जहाँ उनकी किसी तरह गुजर बसर की ज़िंदगी काट रहें हैं।

हाल ही में सरकार ने इस जिले को भी खुले में शौचमुक्त और पूर्ण विद्युतीकरण वाला विकसित जिला घोषित किया हैI लेकिन जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर बसे कुन्दरिया के मल्हारों के पास शौचालय तो क्या रहने को एक अदद घर तक नहीं है। इनके टप्पर और झोंपड़ों में कैसी बिजली होगी ये भी सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। इस खबर के सामने आते ही मामला कोई राजनीतिक रंग ले इसके पहले ही पूरा प्रशासन हरकत में आ गयाI दूसरे ही दिन जिले के आला अधिकारियों का जत्था वहाँ पहुंच गया और वहाँ का सर्वे करके सबको ठीक ढंग से बसाने तथा अन्य सभी सरकारी सुविधाएं देने की भी घोषणा कर दीI नये भारत के विकास के इस सच का जवाब देने से बचने के लिए रामगढ़ मॉब लिंचिंग काण्ड के अभियुक्तों का स्वागत करके चर्चित हुए क्षेत्र के सांसद और केन्द्रीय मंत्री ने बेख़बर रहना ही ठीक समझा। पिछले 15 वर्षों से इस क्षेत्र के विधायक और राज्य के कद्दावर मंत्री जी ने खबर पढ़कर अपनी ओर से कोई संज्ञान लेने की भी जहमत नहीं उठाई, जबकि सरकार की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दी गयी है।

कुंदरिया गाँव के मल्हारों का मानना है हमारे पूर्वज जैसे बिना घर के कंगाली की मौत मरे, हम भी वैसे ही मर जाएँगे। चंद महीने पहले इसी बस्ती के बुजुर्ग चिंतामन कि मौत भूख से हो गयी थी लेकिन प्रशासन ने मौत की वजह बीमारी बताकर मामला रफा दफा कर दिया। यहाँ रहने वाले मल्हार मिट्टी के बर्तन और रस्सी बनाने के काम के अलावे कुछ लोग जहाँ तहां मजदूरी करके तो कुछ भीख मांगकर और कचरा चुनकर जैसे तैसे अपना व परिवार का पेट पाल रहें हैं। इन्हें पीने का पानी भी एक किलोमीटर दूर से ढोकर लाना पड़ता है। चुनाव के समय प्रायः सभी दलों के नेता आकर इन्हें संकटों से निजात दिलाने का आश्वासन देकर वोट मांगते हैं लेकिन उसके बाद कोई भी झाँकने नहीं आता।   

मीडिया की खबरों के अनुसार 2017 में ही झारखंड सरकार की कैबिनेट के प्रस्ताव में कहा गया कि राज्य के सभी गरीब भूमिहीनों को गृहस्थल या वास भूमि उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिकता है। इसके लिए राजस्व व भूमि सुधार विभाग को अभियान चलाकर भूमिहीन परिवारों को चिह्नित कर भूमि उपलब्ध कराने का जिम्मा देने की बात भी कही गयी। लेकिन जमीनी अमल ये है कि राज्य के कई हिस्सों में कारपोरेट व निजी कंपनियों को कौड़ियों के मोल भूमि उपलब्ध कराने के लिए गरीबों को उजाड़ने में तनिक देर नहीं की गयी। कुंदरिया के भूमिहीन मल्हारों का मामला उजागर होने के बाद फिलहाल तो प्रशासन हरकत में आया है लेकिन क्या इतने भर से “नए भारत” के निर्माण में कुंदरिया के भूमिहीन मल्हार जैसों के लिए कोई स्थान सुनिश्चित होगा?  

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