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कैम्ब्रिज एनालिटिका और इसकी गन्दी चालें

चैनल 4 द्वारा कैम्ब्रिज एनालिटिका के खुलासे ने बहुत से सवाल खड़े कर दिए हैं I
फेसबुक

कचैनल 4 मल्टी-पार्ट द्वारा कैम्ब्रिज एनालिटिका के खुलासे से कईं मुद्दे उठे हैं। जिसमें दो प्रमुख मुद्दे हैं, सबसे पहला, कि कैम्ब्रिज एनालिटिका ने अमेरिका में 5 करोड़ फेसबुक उपयोगकर्ता के डाटा को  "चोरी" करने में सक्षम रहा; दूसरा, उसने इस तरह के आंकड़ों का इस्तेमाल करके ट्रम्प को चुनावों में मदद की, और मतदाताओं को झूठी खबरों के साथ सफलतापूर्वक सूक्ष्म तरीके से लक्षित करते हुए उनके पूर्वाग्रहों को आधार बना यह खेल खेला।

चैनल 4 के खुलासे के बाद, भारत में यह बहस गर्म हो गयी है, कि बीजेपी और कांग्रेस आपस में एक दुसरे के ऊपर  उनके संबंधित चुनाव रणनीतियों में कैंब्रिज एनालिटिका की भूमिका पर आरोप लगा रहे हैं। दिलचस्प यह है, कैंब्रिज एनालिटिका के भारतीय सहयोगी ओव्लेनो बिजनेस इंटेलिजेंस के निदेशकों में से एक ने लिंक्डइन में दावा किया है कि- जिस पर श्रीनिवास जैन ने ट्वीट भी किया है कि उन्होंने भारत में भाजपा को चुनाव जीतने में मदद की या मिशन +272 सीटें जिताने में 2014 के चुनावों में मदद की। भाजपा ने अपने अभियान में फैक न्यूज के जरिए के साथ-साथ बहुत सारे व्हाट्सऐप्प समूह भी इस्तेमाल किया है। प्रतिक सिन्हा की ऑल्टन्यूज’  ने बार-बार इस तरह की नकली खबरों को अपनी साइट पर उजागर किया है। ऐसे खुलासों के बावजूद, भाजपा की आईटी ने सेल उसी रणनीति को जारी रखा। यह रणनीति कितनी उनके विकास के लिए है, और कितना कैंब्रिज एनालिटिका के संरक्षण के कारण है यह देखने की जरूरत है?

चैनल 4 खुलासे में, कैंब्रिज एनालिटिका शीर्ष अधिकारियों में से एक ने बताया कि यह कैसे वह "स्वतंत्र" कंपनियों को स्थापित करता है या दूसरे देशों में ठेकेदारों के साथ काम करता है ताकि वे अपने काम से दूरी बनाए रख सकें। क्या ओवलनो बिजनेस इंटेलिजेंस, जो कि जेडी (यू) के नेता के.सी. त्यागी के बेटे की कम्पनी है, क्या वैसी ही एक समान संस्था हैं? क्या यह चुनाव बोंडों बांडों का सृजन है, और क्या जनता से सभी तरह के राजनैतिक धन को छिपाया जा रहा है, जो बीजेपी के बड़े डेटा को इस्तेमाल के वित्तपोषण का हिस्सा है?

न्यूजक्लेक सूत्रों ने हमें बताया कि भाजपा ने त्रिपुरा में एक बड़ा डेटा प्रोजेक्ट चलाया, जिसमें सभी मतदाताओं के बूथ स्तर के आंकड़ों से उनकी पहचान के साथ सहसंबंधित था। इन पहचानों को सूक्ष्म-लक्षित संदेश के लिए इस्तेमाल किया गया था, मतदाताओं के प्रत्येक प्रोफ़ाइल को एक अलग संदेश देना इसका मकसद था।   चैनल वीडियो में कैम्ब्रिज एनालिटिका द्वारा उल्लिखित सूक्ष्म-लक्ष्यीकरण वाली विधियां बीजेपी की चुनावी रणनीति से मेल खाती हैं। क्या यह एक एक संयोग?

बड़ा सवाल है कि कैसे कैंब्रिज एनालिटिका ने 5 करोड़ फेसबुक प्रोफाइल तक कैसे पहुंच प्राप्त की? फेसबुक ने साइकोमेट्रिक प्रोफाइल बनाने के लिए फेसबुक पर ऐप चलाने के लिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एक शोध परियोजना को अनुमति दी थी। इसमें 2,70,000 ने अपनी प्रश्नावली भरी, ऐप ने कोड छिपा दिया था, जो इसे अपने सभी मित्रों के डेटा का संग्रह करने की अनुमति देता था, जिनके भी पास उनकी गोपनीयता की सेटिंग्स खुली होती थीं। हालांकि यह डेटा हैकिंग नहीं है, और इसलिए गैरकानूनी नहीं, यह सख्ती से बोला जा रहा है,  निश्चित रूप से फेसबुक को मालूम था कि वे क्या कर रहे हैं। क्योंकि उन्होंने न केवल अपने उपयोगकर्ताओं की रक्षा करने का प्रयास किया, बल्कि यह देखने की भी कोशिश नहीं की कि इस डेटा का दुरुपयोग तो नहीं किया गया है। यह मुख्य आंकड़ा था जिसे कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने अमेरिका के मतदाताओं की प्रोफाइल बनाने के लिए उपयोग किया था, जिसे वे अमेरिकी चुनावों में प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल कर सकते थे।

चैनल 4 के खुलासे से पता चलता है कि कैंब्रिज एनालिटिका ने केन्या, पूर्वी यूरोप और नेपाल सहित कई चुनावों में काम किया है। इसके टूलकिट में न केवल लोगों के मनोवैज्ञानिक प्रोफाइल का उपयोग करके माइक्रो-लक्ष्यीकरण शामिल है, बल्कि पुराने जमाने गंदे ट्रिक्स: फंसाने; यूक्रेनी लड़कियों का उपयोग आदि शामिल है।

कैम्ब्रिज एनालिटिका के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, मार्क टर्नबुल, उनकी राजनीतिक विभाग के प्रमुख अलेक्जेंडर निक्स और उनके मुख्य डेटा वैज्ञानिक सिकंदर टेलर हैं जो उनके तरीकों उनके के इस्तेमाल के एक अनुमान को धनी श्रीलंका के सामने कमरे में उजागर हुस। एनिक्स बोर्ड ऑफ एनालिटिका ने जबकि सिकंदर टेलर, जो डेटा विश्लेषिकी और सूक्ष्म लक्ष्यीकरण के पीछे प्रमुख व्यक्ति है को निलंबित कर दिया है - और वे श्रीलंका के चुनावों को तय करने की पेशकश के लिए कैमरे के सामने पकड़ा गया - अब निक से मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में किसी और ने पदभार ग्रहण किया है। तो कर्मियों को तो बदल जा सकता है, लेकिन व्यवस्था वाही जारी है।

इस बीच, ट्विटर पर #फेसबुकडिलीट ट्रेंड हुआ और कैंब्रिज एनालिटिका को 5 कोर्ड अमेरिकी उपयोगकर्ता के प्रोफाइल के नुकसान के लिए फेसबुक को दंडित किया गया। आंशिक रूप से उबरने से पहले - इसके शेयरों में 9 प्रतिशत की कमी आई – 5 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। मार्क जकरबर्ग, इससे उभरने से पहले जो फ्रीबेसिक्स जैसे मुद्दों बोलते नहीं थकते थे इस मामले में हाइबरनेशन में चले गए।

बड़े डेटा और झूठी खबरों का उपयोग करते हुए सूक्ष्म-लक्ष्यीकरण के दीर्घकालिक मुद्दों, चुनाव कानूनों के उल्लंघन के लिए कैम्ब्रिज एनालिटिका को दंडित करने या फेसबुक के अपने निपुण गोपनीयता और डेटा सुरक्षा के दूरदर्शित मुद्दों अब बहुत दूर नहीं जा पाएंगे। समस्याएं बहुत गहरी हैं। साइंस में प्रकाशित अनुसंधान से पता चलता है कि झूठी खबर तेजी से, सच्चे समाचारों की तुलना में फैलती हैं। यह कि, हम जो डेटा उत्पन्न करते हैं, न केवल फेसबुक में बल्कि इंटरनेट पर हमारे डिजिटल पैरों के निशान के माध्यम से, न केवल भविष्य के चुनावों को खतरे में डालते हैं, बल्कि हमारे भविष्य को भी खतरे में डालती हैं यह केवल समय की बात है इससे पहले कि हम अपने गहरे भय और हमारे पूर्वाग्रहों में कैंब्रिज एनालिटिक्स को टैप करते देखते हैं। मोदी और ट्रम्प की सच से परे की दुनिया में और हमारे आधुनिक तकनीक के दिमागों के नेतृत्व में बर्बता की तरफ बढ़ने की मुहिम आपका स्वागत है।

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