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कर्ज़ में डूबता गन्ना किसान आंदोलन को मजबूर, मिल रहीं हैं लाठियां

सरकार, गन्ना विभाग और मिल मालिकों की मिलीभगत के चलते किसानों का अरबों रुपया अभी भी शुगर मिलों पर बकाया है। अपनी ही फसल के बकाया भुगतान के लिए किसान सालों साल आंदोलनरत रह कर लाठियां खा रहा है।
सांकेतिक तस्वीर

बिजनौर। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ और किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने वाली फसल यानी गन्ना इन दिनों किसानों के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा है। इस गन्ने की मिठास अब इन किसानों के लिये कड़वी होती जा रही है। सालभर में तैयार होने वाली गन्ने की फसल को बेचकर जहां किसान अपनी और अपने परिवार की मूलभूत जरूरतों को पूरा करता रहा है, वहीं अब गन्ने की इस फसल से किसानों का मोह भंग होने लगा है। महंगी लागत और दिन रात कड़ी मेहनत के बाद उगाई गयी गन्ने की फसल शुगर मिलों को बेचकर किसान को गन्ने की लागत तक नहीं मिल पा रही है। इसे मिलों तक पहुँचाना भी अपने आप मे टेढ़ी खीर साबित होता जा रहा है। सरकारगन्ना विभाग और मिल मालिकों की मिलीभगत के चलते किसानों का अरबों रुपया अभी भी शुगर मिलों पर बकाया है। अपनी ही गन्ने की फसल के बकाया भुगतान के लिए किसान सालों साल आंदोलनरत रह कर लाठियां खा रहा है। गन्ने का भुगतान समय से न होने के चलते किसान कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है। किसानों ने केंद्र और प्रदेश की सरकार को किसान विरोधी सरकार बताते हुएकिसानों की अनदेखी और उनके साथ वादाखिलाफी का आरोप लगाया है। 

आंकड़े बताते हैं कि किसान को एक एकड़ भूमि में गन्ने की फसल उगाने में खेतों को तैयार करनेबीजखाद,पानी और उसे बीमारी से बचाने के लिए इस्तेमाल होने पेस्टिसाइड की अनुमानित लागत करीब 40 हज़ार से50 हजार रुपये तक आती है। किसानों का कहना है कि इतनी लागत लगाने के बाद भी बड़ी मुश्किल से एक एकड़ जमीन में दो सौ कुन्तल से ढाई सौ कुन्तल तक गन्ने की पैदावार हो पाती है। यानी एक एकड़ में 60हज़ार से 70 हज़ार रुपये तक का गन्ना पैदा होता है।

किसान इस गन्ने की फसल को सरकार द्वारा निर्धारित किये गये गन्ना मूल्य पर शुगर मिलों को उधार में बेचता है। जिसका पैसा भी किसानों को समय पर नहीं मिल पाता है।

पूरे देश की बात करें तो चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का करीब 20 हजार करोड़ रुपये से ऊपर बकाया है। जिसमें अकेले उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर प्रदेश भर के गन्ना किसानों का अनुमानित हजार करोड़ रुपया बकाया शेष है। जिसमें से ज्यादातर बकाया पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर उधार है।

बिजनौर जनपद में नौ शुगर मिल है इन्ही शुगर मिलों को यहां के किसान अपनी गन्ना फसल को बेचते हैं। बिजनौर में चड्ढा ग्रुप की दो शुगर मिलों में से बिजनौर शुगर मिल पर किसानों के गन्ने का बकाया भुगतान पिछले सत्र 2017-2018 का 26.32 करोड़ रुपया और चान्दपुर शुगर मिल पर सत्र 2017 - 2018 का 35.62करोड़ रुपया बकाया है। जो अभी तक भी किसानों को नही मिला है। वहीं गन्ना पेराई के चालू सत्र 2018 - 2019 का बिजनौर की शुगर मिल पर 30.65 करोड़ रुपयेचान्दपुर शुगर मिल पर 55.04 करोड़ रुपयेबजाज ग्रुप की बिलाई शुगर मिल पर 189.80 करोड़ रुपयेधामपुर शुगर मिल पर 61.48 करोड़ रुपयेबिड़ला ग्रुप की स्योहारा शुगर मिल पर 41.38 करोड़ रुपयेउत्तम ग्रुप की बरकातपुर शुगर मिल पर 77.57 करोड़ रुपये,मोरारका ग्रुप की बुंदकी शुगर मिल पर 27.37 करोड़ रुपयेअफजलगढ़ की द्वारिकेश शुगर मिल पर 28.78करोड़ रुपये और नजीबाबाद की किसान सहकारी चीनी मिल पर 11.67 करोड़ रुपये कुल मिलाकर गन्ना किसानों का 523.79 करोड़ रुपया अभी भी चीनी मिलों पर बकाया है। जिसके भुगतान के लिए किसान को आंदोलन करने पड़ रहे हैं।

बकाया मांगने पर मिलीं लाठियां

फरवरी 2019 को सरकार द्वारा निहत्थे किसानों पर बिजनौर कलेक्ट्रेट में लाठीचार्ज किये जाने के मामले में राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार वीएम सिंह का कहना है कि ये किसान अपना पिछले साल का बकाया गन्ना भुगतान न मिलने से आक्रोशित थे और इन्होंने आत्मदाह के लिए प्रशासन को ज्ञापन के माध्यम से सूचित भी किया था। कोई भी किसान अपनी जान नहीं देना चाहता है लेकिन सरकार,गन्ना विभाग और चीनी मिलों ने उनको इतना मजबूर कर दिया कि वो अपनी जान देने को मजबूर हो गए हैं। प्रशासन ने किसानों को पहले तो कलेक्ट्रेट में आने दिया और फिर आत्मदाह का प्रयास करने पर उनको बर्बरतापूर्ण लाठीचार्ज एवं वॉटर कैनन का इस्तेमाल कर वहां से खदेड़ दिया। उन्होंने सरकार के इस तानाशाही रवैये की निंदा करते हुए कहा कि किसानों की बेइज्जती कतई बर्दाश्त नहीं की जाएगीकिसान देश को खिलाता हैसरकार और देश को उसकी इज्जत करनी होगी।

अखिल भारतीय किसान सभा के जिला मंत्री मुन्नवर जलील ने कलेक्ट्रेट परिसर में निहत्थे किसानों पर हुए बर्बरतापूर्ण तरीके से लाठीचार्ज की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए कहा कि एक तरफ तो सरकार किसानों की हितैषी होने का दावा करती है, वहीं दूसरी तरफ अपनी ही फसल का भुगतान मांगने पर किसानों पर लाठियां भांज रही है। सरकार और जिला प्रशासन की मिल मालिकों से मिलीभगत के चलते किसान बेहाल और कर्ज़दार होता जा रहा है।

आज़ाद किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेंद्र सिंह का कहना है कि प्रदेश का गन्ना किसान परेशान है क्योंकि उसको गन्ने का भुगतान समय से नहीं मिलता है। उसे अपनी मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंकों से कर्ज लेना पड़ता है। लेकिन उसकी फसल का भुगतान न मिलने से वो बैंक का कर्ज़ नहीं चुका पता है। जिससे किसान की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होती जाती है। और वो कर्जदार होता चला जाता है। सरकार पर शुगर लॉबी हावी है। प्रदेश सरकारप्रशासन और उद्योगपति किसानों के प्रति गंभीर नही है। फरवरी को वे किसानों के साथ जिलाधिकारी कार्यालय में गन्ने का बकाया भुगतान मांगने के लिए आये थे तो प्रशासन ने सरकार की मंशा के अनुरूप किसानों पर ताबड़तोड़ लाठियां बजाईजिससे कई किसानों को चोटें आई। किसानों पर झूठे मुकदमें दर्ज कर जेल भेजा गया। उनकी मांग है कि किसानों को गन्ने का बकाया भुगतान दिलाया जाए और जिन प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिसकर्मियों ने आन्दोलन कर रहे निहत्थे किसानों पर लाठियां बरसाई है सरकार उन्हें निलंबित कर उनके खिलाफ सख़्त कार्रवाई करें। इसको लेकर दर्जन भर से ज्यादा किसान संगठनों ने 12 फ़रवरी को बिजनौर के रशीदपुर गढ़ी में किसानों की महापंचायत की। जिला प्रशासन ने भी सुरक्षा की दृष्टि से कड़े इंतजाम किये। वहीं किसानों ने फ़रवरी को किसानों पर हुए लाठीचार्ज की निंदा करते हुए मांग कि किसानों के गन्ने का बकाया भुगतान जल्दी से जल्दी कराया जाय। किसानों पर दर्ज मुक़दमे सरकार वापस ले। और किसानों पर हुई लाठीचार्ज के दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई हो।

भारतीय किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष दिगम्बर सिंह का कहना है कि सरकार की किसान विरोधी नीतियों के चलते किसान की दुर्दशा हो रही है। और वो दर दर भटक रहा है। किसान को अपने ही गन्ने के बकाया भुगतान लेने के लिए लाठियां खानी पड़ रही है। ये देश का दुर्भाग्य है कि अन्नदाता को आज सरकार से लाठी मिल रही है। इस देश मे वोटों के लिए नीतियां बनती है, देश की आर्थिक स्थिति सुधारने या किसान की स्थिति सुधारने के लिए नीतियां नही बनती हैं। किसान पहले तो दिन रात कड़ी मेहनत करता है और फिर उसे अपनी फसलों के भुगतान के लिए आंदोलन करने पड़ते हैं और लाठियां खानी पड़ती है।

लाठीचार्ज के विरोध में भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ताओं ने चान्दपुर की भाजपा विधायक कमलेश सैनी के घर पर धरना भी दिया। लाठीचार्ज के विरोध में किसानों को एकजुट होता देख प्रशासन अब बैकफुट पर आया है। हालांकि अभी भी किसानों को बहुत राहत नहीं मिली है। जिला प्रशासन ने किसानों को उनके करीब छह सौ करोड़ रुपये बकाया के बदले केवल 104 करोड़ रुपये का भुगतान मिल मालिकों से कराया है। किसानों की मांग है कि पूरा बकाया दिलाया जाए और लाठीचार्ज के दोषियों पर कार्रवाई की जाए।

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