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कर्नाटक के उत्तरा कन्नड़ में सांप्रदायिक हिंसा क्यों हुई?

आने वाले मई 2018 के महीने में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव हैं, और भाजपा नेताओं ने शायद अपने राजनीतिक उद्देश्यों को हाशिल करने के लिए राज्य में साम्प्रदायिक तनावपूर्ण स्थिति को बढ़ा दिया है.
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कर्नाटक के उत्तरा कन्नड़ जिले के होनवानावार शहर में परेश मेस्ता की रहस्यमय मौत की पृष्ठभूमि में, हिंदुत्व संगठनों के सदस्यों ने जिले में सांप्रदायिक हिंसा को जिन्दा रखा हुआ है. मेस्टा की मौत के इर्द-गिर्द झूठ और अफवाहों का बाज़ार गर्म और यह फैलाया गया कि उनकी मृत्यु काफी क्रूरता के साथ की गयी, लेकिन जांच करने के बाद इस कथन में कोई सत्य नहीं पाया गया जिसकी वजह से हिंसा के वातावरण में इजाफा हो रहा था. आने वाली मई 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के चुनाव होने वाले हैं, और राज्य में बीजेपी नेताओं ने तनावपूर्ण स्थिति को बढ़ा दिया है, वह भी अपने तुच्छ राजनीतिक उद्देश्यों के लिए. यद्दपि स्थिति को सामान्य बनाने की कोशिश जा रही है, लेकिन  मेस्टा को 'हिंदू टाइगर' के रूप में उल्लेखित करते हुए, और उन्हें 'हिंदू शहीद' बताते हुए उत्तर कन्नड़ के गांवों में विभिन्न समूहों द्वारा पोस्टर लगाए जा रहे हैं.

यह सब 1 दिसंबर को होन्नावर के बंदरगाह शहर से शुरू हुआ था. ईद-उल-मिलाद के अवसर पर, कुछ मुस्लिम युवाओं ने शहर में चंदवार सर्कल पर एक हरा झंडा फहराया दिया. जिसके बाद कई हिंदू युवकों ने उस जगह पर पहुंच कर भगवा ध्वज स्थापित किया जिसकी वजह से दो समूहों के बीच संघर्ष हुआ और कम से कम पांच व्यक्ति घायल हो गए. 6 दिसंबर को, शहर में दुर्घटना के दौरान सांप्रदायिक हिंसा की एक और घटना देखी गई जिसमें परेश मेस्ता कथित तौर शामिल था. मेस्ता तब ही से गायब हो गया और उसका मृत शरीर शहर की शेट्टी केरे झील में 8 दिसंबर को तैरता पाया गया. मेस्टा की मौत के बारे में सभी तरह की अफवाह सोशल मीडिया के विभिन्न समूहों में घूमने लगीं और राज्य के बीजेपी नेता इसे अफवाह को फैलाने में सबसे आगे थे. मेस्टा के शरीर के साथ किसी भी क्रूरता बरतने की अफवाहों को प्रारंभिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने इनकार किया है, हालांकि, क्रूरता की अफवाह के सहारे हिंदुत्व संगठनों ने जिले में सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा दिया. मुस्लिम समुदाय भय के वातावरण में जी रहे हैं, अपने ही घरों में वे खुद को ताला मार कर रहते हैं. जिले में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए, कर्नाटक पुलिस ने दंगों में भाग लेने के लिए हिंदुत्व समूहों के कथित रूप से करीब 160 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है. हाल में हुए दंगों में कम से कम 50 लोग घायल हो गए और मुसलमानों की संपत्तियों के साथ तोड़-फोड़ की गयी.

न्यूजक्लिक से बात करते हुए, नागरिक अधिकार कार्यकर्ता एच.एस. अनुपमा, जो जलजा में जनरल और मातृत्व क्लिनिक, होनवाना में डॉक्टर है ने बताया कि हिंसा के कारण मुस्लिम समुदायों के बीच परेशानी का माहौल बन गया है."पिछले दस दिनों से, मेरे मुस्लिम रोगियों ने मेरे क्लिनिक का दौरा तक नहीं किया है. यहाँ आने के बजाय, मेरे कुछ रोगियों ने फोन के माध्यम से मुझसे संपर्क किया है और बताया है कि उनके घरों पर पत्थरों से हमला हो रहा हैं". उन्होंने कहा, "कम से कम पिछले दो दशकों में, हालांकि, राज्य के अन्य हिस्सों में ऐसी स्थिति देखी गयी है लेकिन उत्तर कन्नड़ में आज तक ऐसी कोई सांप्रदायिक हिंसा नहीं देखी गई थी,."

राज्य में भाजपा सांसदों, अनंत कुमार हेगड़े और शोभा करंदलाज ने सांप्रदायिक तनाव के बावजूद नफरत भरे बयान  दिए हैं. शोभा करंडलाजे ने कहा कि मेस्टा भाजपा कार्यकर्ता था और मेस्टा की मौत के लिए जिम्मेदार होने के लिए "जिहादियों" पर आरोप लगाया, हालांकि, यह पता चला है कि मेस्ता के पिता ने अपने बेटे की किसी भी पार्टी की संबद्धता से इनकार कर दिया. दूसरी ओर, हेगड़े ने 19 दिसंबर को दंगों के दौरान गिरफ्तार लोगों की रिहाई की मांग को लेकर पहले 'जेल भरो' का आह्वान किया था. गिरफ्तार लोगों में से जब कुछ लोग 15 दिसंबर को जेल से छूटे तो, हेगड़े ने एक फेसबुक पोस्ट लिखी जिसमें उन्होंने अधिक हिंसा की धमकी दी. उसने कहा कि, "मुख्यमंत्री को एक बड़े मारिकम्बा होब्बा के लिए तैयार हो जाना चाहिए", (मारिकम्बा हाब्बैस एक वार्षिक कार्यक्रम है जहां जानवरों का मंदिर के पास बलिदान किया जाता है).

कर्नाटक में सांप्रदायिक हिंसा का संक्षिप्त इतिहास

यह सोचने की बात है कि राज्य में धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के लिए जाना जाने वाला क्षेत्र कैसे सांप्रदायिक राजनीति का केंद्र बन गया? गौरी लंकेष पत्रीके के लंबे समय से रहे सहयोगी शिवसुंदर ने कर्नाटक राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के इतिहास का पता लगाया. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और संघ परिवार के योजनाबद्ध प्रयास के बाद, उत्तरा कन्नड़ जिला को धीरे-धीरे साम्रदायिक वातावरण में बदल दिया गया.

1985 में कोलार में बीजेपी और आरएसएस द्वारा बड़े पैमाने पर गणेश उत्सव मनाने के निर्णय के बाद जनता में सांप्रदायिक तनाव देखा गया; 1990 में कोलार के ईद-उल-मिलाद समारोह की तैयारी के दौरान दंगा हो गया. आरएसएस के साथ भाजपा ने घर-घर अभियान चला कर कोलार में ईद के जुलूस का विरोध करने के लिए स्थानीय लोगों को इकट्ठा किया.

भाजपा और आरएसएस समर्थकों ने 10 नवंबर 1989 को अयोध्या में राम मंदिर की नींव रखी थी. इसके परिणामस्वरूप अर्शिकेरे, हुबली और धरवाड़ में दंगे हुए. 1990 में भाजपा की रथ यात्रा जहाँ से भी गुजारी वहां सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ; बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद यह तनाव 1992 तक जारी रहा.

1994 में, उर्दू समाचार चैनल के इर्द-गिर्द एक विवाद खडा हो गया. कन्नड़ पैरा संघ (कन्नड़ संगठन) ने राज्य में हिंदू कट्टरपंथी समूहों के साथ हाथ मिला लिया और इस पहल का विरोध किया. इसने फिर से राज्य में सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न किया.

शिवसुंदर ने कहा कि 2004 के बाद से भाजपा मजबूत हो गई है और आरएसएस के सहयोग से राज्य में ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है. बैंगलोर में वैकल्पिक कानून फोरम (ए.एल.एफ.) द्वारा एकत्रित राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के आंकड़े (डेटाबेस) के अनुसार, त्योहारों और सार्वजनिक समारोह की जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा मुख्य रूप से देखने को मिली हैं. 2008 में, येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के तहत चौबीस गिरजाघरों को तोड़ दिया गया था.

शिवसुंदर का कहना है कि  "2017 में भाजपा ने अपने विकास के एजेंडा को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के एजेंडे में तब्दील कर दिया है. दिसंबर 2017 में बाबा बुंदांगिरी मंदिर पर हुए हालिया हमले से यह साबित होता है."

शिवसुंदर ने यह भी बताया कि बीजेपी और आरएसएस ने हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में सांप्रदायिकता को फैलाने के लिए कड़ी मेहनत की है लेकिन अभी तक वे असफल रहे हैं. इस क्षेत्र की सामजस्यपूर्ण प्रकृति ने क्षेत्र में सांप्रदायिक वातावरण को फैलाने के प्रयासों को गंभीर चुनौती पेश की है; जब यहाँ बात नहीं बनी तो इसके बाद, उन्होंने मुंबई कर्नाटक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है. दक्षिण कन्नड़ भी उन क्षेत्रों में से एक है जो अब भाजपा और आरएसएस के सांप्रदायिक एजेंडे के लिए सबसे नाजुक लक्ष्य पर हैं.

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