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कर्णाटक कपड़ा उद्योगः श्रमिकों की मज़दूरी न बढ़ाने को लेकर सरकार पर मैनेजमेंट का दबाव

कर्णाटक में गार्मेंट एंड टेक्स्टाइल मैनेजमेंट ग़लत अनुमानों का इस्तेमाल कर रहा है और इस तरह वह न्यूनतम मज़दूरी का उल्लंघन कर रहा है।
garment wokers

कर्णाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की तरफ से बुलाई बैठक में 18 जून, 2018 को गार्मेंट एंड टेक्स्टाइल वर्कर्स यूनियन (जीएटीडब्ल्यूयू-कर्णाटक) के प्रतिनिधियों ने इस क्षेत्र में प्रबंधन के प्रतिनिधियों से मुलाकात की।

कर्णाटक में सिद्धारमैय्या की नेतृत्त्व वाली कांग्रेस सरकार ने 22 फरवरी, 2018 को एक मसौदा अधिसूचना जारी किया था और उसने 8,500 रुपए प्रति माह से बढ़ाकर 12,250 रुपए प्रति माह मज़दूरी करने का वादा किया था। इस मसौदे अधिसूचना का श्रमिकों द्वारा स्वागत किया गया था। हालांकि प्रबंधन के दबाव में सरकार ने मसौदा अधिसूचना वापस लेते हुए न्यूनतम मज़दूरी को 8,500 रुपए प्रति माह पर ही स्थिर कर दिया था। जीएडब्ल्यूटीयू की प्रतिभा के अनुसार इसने श्रमिकों के गुस्से और बढ़ा दिया है। ये श्रमिक पिछली सरकार के कर्मचारी-विरोधी कदम के ख़िलाफ़ विरोध करते रहे हैं।

18 जून, 2018 को हुई बैठक उन घटनाओं का परिणाम था और इस बैठक में मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को एक समिति गठित करने का निर्देश दिया जिसमें श्रम विभाग के अधिकारियों,वस्त्र निर्माताओं, केंद्रीय व्यापार संघों और श्रमिक शामिल हों। समिति को न्यूनतम मज़दूरी सहित वस्त्र श्रमिकों के लंबे समय से लंबित मुद्दों का अध्ययन करने के लिए कहा गया। सरकार और वस्त्र तथा वस्त्र उद्योग प्रबंधन लॉबी द्वारा न्यूनतम वेतन निर्धारित करने का इंतज़ार करना होगा। न्यूनतम मज़दूरी का निर्धारण न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम द्वारा नियंत्रित किया जाता है। राज्य श्रम विभाग, उद्योग के प्रतिनिधि और ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधि एक साथ मिलकर न्यूनतम मज़दूरी तय करेंगे। हालांकि अधिसूचना तैयार करने की प्रक्रिया या तैयार होने के बाद बढ़ाई गई मज़दूरी को रोकने के लिए सरकार पर दबाव बनाना प्रबंधन के लिए आम बात होती है।

जीएटीडब्ल्यूयू और सेंटर फॉर वर्कर्स मैनेजमेंट (सीडब्ल्यूएम) द्वारा किए गए सर्वेक्षणों के आधार पर बेंगलुरु स्थित द इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन एंड नेशनल लॉ स्कूल ने एक मसौदा संग्रह किया है जिसका शीर्षक है 'क्रिटिकिंग द स्टेच्युटरी मिनिमम वेजः ए केस ऑफ द एक्सपोर्ट गार्मेंट सेक्टर इन इंडिया'। कर्णाटक और एनसीआर में वस्त्र क्षेत्र पर केंद्रित इस व्यापक रिपोर्ट से पता चलता है कि वस्त्र उद्योग जैसे क्षेत्रों में जहां न्यूनतम मज़़दूरी संविदा मज़दूरी के बजाय मज़दूरी निर्धारित करती है वहां नियामकीय प्रक्रिया का उल्लंघन ऐसी जगहों पर आम है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक़ उद्योग में निर्माण का एक बड़ा हिस्सा निर्यात बाजार के लिए है। वस्त्र निर्यात मुख्य रूप से तमिलनाडु में चेन्नई और तिरुपुर तथा कर्णाटक में बेंगलुरू के आसपास शहरी क्षेत्रों में केंद्रित है; और दिल्ली के आसपास राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (हरियाणा में गुरुग्राम और फरीदाबाद तथा उत्तर प्रदेश में नोएडा) में केंद्रित है। विभिन्न राज्यों में वस्त्र श्रमिकों की मज़दूरी में काफी अंतर है। उदाहरणस्वरूप एनसीआर क्षेत्र नोएडा (यूपी) और फरीदाबाद तथा गुरुग्राम (हरियाणा) में दो न्यूनतम मज़दूरी हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ यह अंतर वस्त्र उद्योग में रखा जाता है।

यही कर्णाटक में वस्त्र उद्योग कर रहे हैं। बुलाई गई बैठक की कार्यवाही में प्रबंधन ने तर्क दिया कि कर्णाटक में न्यूनतम मज़दूरी अन्य राज्यों की तुलना में अधिक थी और इसे दोगुना करने पर उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जो पहले से ही कठिन अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है। जीएडब्ल्यूटीयू के जयराम और प्रतिभा ने बताया कि राज्य का प्रबंधन इस उद्योग को तेलंगाना में स्थानांतरित करने की धमकी दे रहा है। उन्होंने कहा, "उन्होंने ऐसा नहीं किया है लेकिन जब मज़दूरी में वृद्धि की मांग उनके सामने लाई जाती है तब ऐसा करते रहे हैं।"

श्रमिकों की मांग और प्रबंधन की प्रतिक्रिया

जीएटीडब्ल्यूयू और श्रमिकों ने मुख्यमंत्री से वस्त्र उद्योग के श्रमिकों, कताई उद्योग और प्रिंटिंग और रंगाई उद्योग को जारी किए गए संशोधित न्यूनतम मज़दूरी की अंतिम अधिसूचना के वापस लेने को लेकर स्पष्टीकरण की मांग की थी। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया था कि न्यूनतम मज़दूरी निर्धारित करने में प्रबंधन महत्वपूर्ण था।

जीएटीडब्ल्यूयू के प्रतिनिधियों ने पूर्व सरकार द्वारा जारी मसौदे अधिसूचना के वापस लेने में शाही एक्सपोर्ट्स, रेमंड्स और अरविंद लिमिटेड की भूमिका का उल्लेख किया था। प्रतिभा ने यह भी कहा कि वर्तमान में राज्य में लगभग 150 नियोक्ता हैं और सभी ने इस मसौदा अधिसूचना जिसके चलते न्यूनतम मज़दूरी को वृद्धि की गई थी इसके ख़िलाफ़ आधिकारिक बयान दर्ज कराने के लिएशक्तिशाली शाही एक्सपोर्ट की तरफ रूख किया है। जिसे कंपनी ने किया और सफल भी रही।

शाही एक्स्पोर्ट्स भारत में रेडीमेड वस्त्र तैयार करने वाली सबसे बड़ी कंपनी है। इस कंपनी का वार्षिक कारोबार क़रीब 5,200 करोड़ रुपए था। इस कंपनी के पास 160 मिलियन वस्त्र वार्षिक तैयार करने की क्षमता है। इसके 51 विनिर्माण कारखाने हैं, जो एनसीआर, कर्णाटक (बेंगलुरू और उपनगर, मैसूर, शिवमोग्गा), तिरुपुर और हैदराबाद के आसपास हैं और इनमें 70,000 श्रमिक काम करते हैं। आईएलओ-एनएलएस रिपोर्ट ने कंपनी के इस आंकड़े और एनसीआर में ओरिएंट क्राफ्ट के जिसमें 32,000 श्रमिक काम करते हैं और जिसका साल 2015 में सालाना कारोबार 1600 करोड़ रुपए था उसे शामिल किया। इस डेटा के आधार पर ये रिपोर्ट प्रति-कर्मचारी उत्पादन मूल्य के इस नतीजे पर पहुंची:

"शाही एक्सपोर्ट्स का प्रति-कर्मचारी उत्पादन मूल्य सालाना 7.4 लाख रुपए है जबकि ओरिएंट क्राफ्ट का अनुमान सालाना 5 लाख रुपए है। अपारेल एक्स्पोर्ट प्रोमोशन कमेटी के आंकड़ों के अनुसार 2016-17 में भारत से रेडीमेड वस्त्र का निर्यात 17,479 मिलियन डॉलर था। अघर हम वस्त्र निर्यात क्षेत्र में औसत प्रति व्यक्ति उत्पादन प्रति कर्मचारी 6 लाख रूपए का अनुमान लगाते हैं तो इस क्षेत्र में कुल श्रमिक लगभग 20 लाख हैं...। इसके अलावा इस क्षेत्र में 1 लाख रुपए प्रति वर्ष मज़़दूरी और श्रमिक उत्पादन 6 लाख रुपए है तो प्रति कर्मचारी मज़दूरी का अंशादान लगभग 16% है।

रिपोर्ट के मुताबिक प्रति-कर्मचारी की ये अनुमानित मज़़दूरी अंशदान यूनियन के अनुमानों के लगभग क़रीब है। इसने यह भी पाया है कि ये अनुमान उच्च अनुमानों से अलग है जो अकसर नियोक्ता द्वारा रोजगार और उत्पादन में मज़दूरी अंशदान से बाहर रखा जाता है। राज्य में गार्मेंट एंड टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज़ का प्रबंधन अपने ग़लत अनुमानों का इस्तेमाल कर रहा है और तर्क दे रहा है कि वह घाटे का सामना कर रहा है और साथ ही यह न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम का भी उल्लंघन कर रहा है।

कर्णाटक में सबसे बड़े अनौपचारिक क्षेत्रों में से एक इस क्षेत्र के श्रमिक अपने न्यूनतम मज़दूरी के संशोधन और निर्धारण का इंतज़ार कर रहे हैं।

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