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'कश्मीरियों की आवाज़ किसी को भी सुनाई नहीं दे रही है'

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के केंद्र के फैसले को लेकर दिल्ली में रहने वाले आम कश्मीरियों से न्यूज़क्लिक ने बातचीत की।
दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन
कश्मीरियों की आवाज़ : इस इबारत को गौर से पढ़िए...

'कश्मीर को अप्रत्याशित बंद का सामना करना पड़ रहा है। इसे लेकर हर आदमी का अपना ओपिनियन है। प्रधानमंत्री बोल रहे हैं, विपक्षी नेता बोल रहे हैं, टीवी चैनल बोल रहे है, हमारे भाग्य का फैसला कर दिया गया है और हम ही नहीं बोल पा रहे हैं और जो बोल भी रहे हैं वह किसी को सुनाई नहीं दे रहा है। इस पूरे मसले में पीड़ित की ही आवाज को कोई जगह नहीं दे रहा है।

यह पीड़ा है दिल्ली में रहने वाले कश्मीरी सलीम की। सलीम यहां पिछले पांच साल से हैं और उन्होंने एक दुकान खोल रखी है। 

वे आगे कहते हैं, 'जिस तरह से सरकार ने यह फैसला किया उससे लोग सदमे में हैं। कई बार लगता है कि मेरे पास बोलने के लिए आखिर है क्या? कुछ भी तो नहीं। मैं बोलूं किसलिए और किससे और क्या बोलूं। यही कि कश्मीर से कर्फ्यू हटा लीजिए और मोबाइल सेवा बहाल कर दीजिए ताकि घरवालों से बात हो सके। इससे क्या सारी बातें खत्म हो जाएंगी। क्या इससे 70 सालों से किया जा रहा भरोसा जो सरकार ने एक झटके में तोड़ दिया वह फिर से वापस आ जाएगा। इस सरकार ने जो हमारे साथ किया है उसे आप धोखा कह सकते हैं।'
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कुछ ऐसी ही बात कुछ दिनों पहले ही जामिया में पढ़ाई के लिए आए हाशिम मकबूल ने की। सोपोर जिले के रहने वाले हाशिम ने बताया, 'जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने और राज्य का बंटवारा करने का फैसला पूरी तरह गैरकानूनी है। यह ऐसे समय लिया गया जब राज्य में चुनी हुई सरकार भी नहीं थी। यह पूरा मामला हमारे लिए बहुत ही पीड़ादायक है। यह हर कश्मीरी के लिए दुखद है। कश्मीरियों के लिए यह उनकी मिट्टी, उनका घर है तो सरकार के लिए वह सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा है जहां बंटवारा कर दिया गया है। इस पूरी लड़ाई में सोशल मीडिया पर कश्मीरियों पर ही निशाना साधा जा रहा है। दु:ख की इस घड़ी में बहुत कम लोग कश्मीरियों के साथ हैं।'

घाटी के अनंतनाग से दिल्ली आए मेवे के व्यापारी तारिक लोन कर्फ्यू को लेकर काफी डरे हुए हैं। आंखों में आंसू लिए कंपकपाती आवाज में उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं पता कि पिछले हफ्ते से मेरे घर क्या हो रहा है। मीडिया से जानकारी मिल रही है कि इलाके में कर्फ्यू लगा हुआ है। बच्चों की दवाइयों से लेकर सब्जी या दूध तक है या नहीं इसकी जानकारी नहीं है। सबसे ज्यादा डर घर की महिलाओं को लेकर है। कर्फ्यू को लेकर मेरा अनुभव अच्छा नहीं रहा है। इसलिए बहुत ही ज्यादा चिंता हो रही है।'

गौरतलब है कि शनिवार को जम्मू-कश्मीर के पांच जिलों जम्मू, कठुआ, सांबा, उधमपुर और रियासी जिलों से सीआरपीसी की धारा-144 के तहत लागू निषेधाज्ञा हटा दी गई है और किश्तवाड़ एवं डोडा जिलों में कर्फ्यू में ढील दी गई है। हालांकि घाटी में यह अब भी जारी है। 

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सारिका भट्ट भी चिंतित नजर आती हैं। सारिका का परिवार 25 साल पहले कश्मीर से दिल्ली आया था। अभी वह आईटी सेक्टर में काम करती हैं। वे कहती हैं,' सोशल मीडिया पर खासकर कथित राष्ट्रवादियों द्वारा जम्मू कश्मीर की महिलाओं को लेकर जिस तरह के कमेंट किए जा रहे हैं, उससे डर लग रहा है। इस पूरे मामले में कुछ बीजेपी के नेता भी भद्दे बयान दे रहे हैं। अभी मेरी एक दोस्त ने कश्मीरी लड़कियों को लेकर बना हरियाणवी में एक भद्दा गाना भी मुझे भेजा है। यह सब बहुत खराब हो रहा है। इसका परिणाम अच्छा नहीं निकलेगा।'  

हालांकि इन सबसे अलग राय रवींद्र पंडित की है। घाटी से लगभग 30 साल पहले दिल्ली आए सिविल इंजीनियर रवींद्र कहते हैं, 'एक भारतीय होने के नाते मैं अनुच्छेद 370 और 35ए हटाए जाने का समर्थन करता हूं। हालांकि मैं इससे खुश नहीं हूं। मेरा मानना है कि कश्मीर में शांति स्थापित करने का यही एकमात्र तरीका नहीं था। दूसरी बात मीडिया में चल रहा है कि 370 हटते ही कश्मीरी पंडित घर वापस जाएगा, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है। कश्मीरी पंडित अनुच्छेद 370 के चलते नहीं हटाए गए थे और न ही इसके हटते ही वापस जाने वाले हैं। इस अनुच्छेद के हट जाने से भी घाटी में कोई बड़ा बदलाव नहीं आने वाला है। अभी इतनी जल्दी घाटी में कोई निवेश भी करने जाने वाला नहीं है। सरकार को पहले घाटी में अमन सुनिश्चित करना होगा। तभी इस क्षेत्र में शांति आ पाएगी।

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