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निपाह-प्रकोप के बाद केरल अब भी हाई अलर्ट पर, शायद बुरा वक़्त निकल गया

कोहरीकोड में निपाह वायरस से संक्रमित एक 12 वर्षीय बालक की मौत के बाद केरल सरकार तेजी से हरकत में आई। हालांकि पूरा राज्य अब भी हाई अलर्ट पर है, लेकिन उस बालक के घनिष्ठ संपर्क में आए सभी लोगों की जांच रिपोर्ट निगेटिव आई है, जो एक उत्साहवर्धक संकेत है। लेकिन सवाल बरकरार है कि राज्य सरकार भविष्य में होने वाले ऐसे संक्रमणों को कैसे रोक पाने में सक्षम होगी। 
निपाह-प्रकोप के बाद केरल अब भी हाई अलर्ट पर, शायद बुरा वक़्त निकल गया

केरल के कोहरीकोड में रविवार की सुबह एक 12 वर्षीय बालक की मौत हो गई। मौत के कुछ ही घंटे पहले आई जांच रिपोर्ट में उसके संघातक निपाह वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी। बालक की मौत ने इस वायरस से निबटने की राज्य की क्षमता पर चिंताएं बढ़ा दी हैं , जो पहले से ही जारी कोविड-19 के प्रकोप से जूझ रहा है। हालांकि निपाह से मौत की खबर के बाद केरल सरकार तत्काल हरकत में आई, उस बालक के संपर्क में आए हुए सभी लोगों की तलाश की गई और उन सब को तत्काल एकांत में रख दिया गया और उन पर सघन निगरानी रखी जाने लगी। यहां तक कि प्रदेश के सभी जिलों को अभी तक हाई अलर्ट पर ही रखा गया है। बालक के माता-पिता एवं रिश्तेदारों समेत उसके करीबी संपर्क में आए सभी 68 लोगों के वायरस से संक्रमित होने के गंभीर खतरे का अनुमान करते हुए उनके खून के नमूने (सेंपल) की जांच की गई, लेकिन शुक्र है कि उन सबकी रिपोर्ट निगेटिव आई। यह इस बात का संकेत है कि घबराने जैसी कोई बात नहीं है। वायरस के प्रकोप में रुकावट के इस सकारात्मक संकेत मिलने के साथ, अब सरकार का ध्यान निपाह के संक्रमण के स्रोत का पता लगाने पर है।

निपाह वायरस 

निपाह वायरस (NiV) एक पशु से पैदा होने वाला (zoonotic) वायरस है, जो अन्य प्रजातियों के संपर्क में आने के बाद मानव में भी फैल सकता है। इससे संक्रमित हुए लोगों में, कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं-वे स्पर्शोन्मुख संक्रमण से लेकर सांसों की तेज बीमारी और घातक मस्तिष्कीय बुखार तक हो सकती हैं। पौरोपोडाइडी परिवार के फ्रूट बैट्स (जो लंबी थूथन और बड़ी आँखों वाला एक प्रकार का चमगादड़ होता है और आहार के लिए मुख्य रूप से फल पर निर्भर होता है। यह मुख्य रूप से पुरानी दुनिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।) निपाह वायरस का स्वाभाविक बसेरा होता है। यह वायरस को अपने से दूसरे पशु-पक्षियों में फैला सकता है। उन जानवरों एवं मानव को भी संक्रमित कर सकता है, जो संक्रमित चमगादड़ के खाए हुए फल को खाते हैं या उसके स्राव के असुरक्षित संपर्क में आते हैं। मानव से मानव में यह संक्रमण परस्पर नजदीकी संपर्क में आने वाले को, प्राथमिक परिवार को और फिर ऐसे मरीजों की देखभाल करने वाले व्यक्ति में भी हो सकता है, जो संक्रमित मरीजों के शरीर से स्रवित होने वाले तरल पदार्थ एवं सांसों की बूंदों के संपर्क में आते हैं। इसके लक्षण दिखने की अवधि 4 से 14 दिनों की होती है, लेकिन कुछ मामले में यह अवधि इससे भी अधिक हो सकती है। फिलहाल, निपाह वायरस से संक्रमित होने वाले व्यक्ति या पशु का कोई इलाज या टीका उपलब्ध नहीं है। मनुष्य के लिए तो प्राथमिक उपचार बस उसकी देखभाल में सहायता देना ही है। इसलिए इसमें मृत्यु दर 46 से 96 फीसदी होने की रिपोर्ट है।

निपाह वायरस की पहचान पहली बार 1998-99 में की गई थी, जब सिंगापुर एवं मलयेशिया में इसका बड़े पैमाने पर प्रकोप हुआ था, उसमें 265 पहचान के मामलों में 105 जानें चली गई थीं। बांग्लादेश में निपाह का प्रकोप तो लगातार ही होता रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने गौर किया कि बांग्लादेश में दर्ज किए गए मर्जो के लगभग आधे मामले मनुष्य से मनुष्य संक्रमण के कारण हुए थे। केरल में पहली बार 2018 में इसका प्रकोप हुआ था। इसके पहले, भारत के पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी एवं नादिया जिलों में उसका प्रकोप क्रमशः 2001 और 2007 में हुआ था, जिनमें 50 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। 

कोहरीकोड में ताजा प्रकोप 

उस संक्रमित बालक को पहली सितम्बर को निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसे बुखार और उल्टियां के दौरे पड़ने लगे और ये दौरे बार-बार आ रहे थे। बालक के ह्रदय की धड़कन भी बढ़ी हुई थी। सारी जांच करने पर उसके दिल, फेफड़े एवं दिमाग में कई बड़ी गड़बड़ियां पाई गई थीं। बालक से लिए तीन नमूनों की जांच पुणे नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में कराने के बाद 4 सितम्बर की देर रात को उसके निपाह वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी। इसके कुछ घंटे बाद उस बालक की मौत हो गई थी। उसके शव को कन्नमपारम्ब कब्रिस्तान में उसके गिने-चुने रिश्तेदारों ने एवं राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) किट्स पहन कर स्वास्थ्य संहिता का पालन करते हुए 12 फीट गहरी कब्र में दफना दिया। 

राज्य सरकार तो इस मौत की खबर के साथ ही सक्रिय हो गई थी। बालक के पंचायत चथामंगलम के तीन वार्ड को पूरी तरह से बंद कर दिया गया और सूक्ष्म स्तर पर पाबंदियां लगा दी गई थीं। बालक की मौत होने के कुछ ही घंटे बाद राज्य के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा निपाह प्रबंधन की एक योजना तैयार कर दी गई थी। इसके साथ ही, इसके मरीज के उपचार और डिस्चार्ज की एक नई मार्गदर्शिका भी बनाई गई। वायरस के प्रसार को प्रभावी तरीके से रोकथाम के लक्ष्य के साथ, इसकी निगरानी, नमूने की जांच, परिणाम प्रबंधन, संपर्कों का पता लगाने, बीमारों को लाने के लिए वाहन, संरचनागत प्रबंधन और डेटा विश्लेषण के लिए 16 कमेटियां बना दी गईं। उस बालक के निजी अस्पताल में भर्ती कराए जाने के पहले उसके ठिकाने एवं उसके संपर्क में आने वाले सभी लोगों की एक सूची तैयार की गई। इनमें जिन्हें गंभीर माना गया, उन्हें अलग रखने के लिए कोहरीकोड के मेडिकल कॉलेज अस्तपताल में रातोंरात एक आइसोलेशन वार्ड बनाया गया।

एक नियंत्रण कक्ष भी बनाया गया था, जो अगले दिन से ही स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा शिनाख्त किए जाने वाले एवं उन्हें अस्पताल पहुंचाने वाली गतिविधियों में समन्वय बिठाने का काम शुरू कर दिया था। इस मकसद के लिए प्रशिक्षित कर्मियों को भर्ती किया था। तब तक, कोझिकोड मेडिकल कॉलेज में निव पुणे एवं निव अलप्पुझा के सहयोग से एक लैब भी काम करने लगा था, जिसमें बालक के संपर्क में आए लोगों  के नमूने की जांच की गई और उनकी रिपोर्ट 3 से 4 घंटे के भीतर ही मिल गई। बालक के घर के आसपास के क्षेत्र में लोगों में जागरूकता अभियान शुरू कर दिया गया था और स्वास्थ्यकर्मियों ने संपर्क में आने की संभावना वाले लोगों या संक्रमण के लक्षण होने की आशंका वाले लोगों के बारे में जानकारियां जमा करने के लिए उनके घरों का दौरा करना शुरू कर दिया था। इस वायरस के और इसके प्रसार के बारे में तमाम जानकारियां इकट्ठी कर उन्हें अन्य जिलों के संबंधित विभागों एवं अधिकारियों को साझा करने के लिए एक ई-हेल्थ सॉफ्टवेयर भी शुरू किया गया। इन सारी गतिविधियों पर नजदीक से नजर रखने के लिए प्रदेश की स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री वीणा जॉर्ज के अलावा, इसी क्षेत्र से अन्य मंत्री एके ससीन्द्रन, पीए मोहम्मद रियाज और अहमद देवरकोविल कोझिकोड में ही कैंप किए रहे थे। 

शुक्रवार तक, संपर्क में आए 274 लोगों की एक सूची स्वास्थ्य विभाग द्वारा तैयार की गई है, जिनमें 149 स्वास्थ्य कर्मी हैं और 47 लोग अन्य जिले के हैं। इन सभी को निगरानी में रखा गया है और इनमें भी अधिक जोखिम वाली कोटि में चिह्नित हुए लोगों को कोहरीकोड मेडिकल कॉलेज अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में रखा गया है। बृहस्पतिवार की रात तक, सभी संपर्क में आए हुए लोगों की जांच रिपोर्ट निगेटिव आ चुकी थी। संपर्क सूची में से केवल 7 लोगों को बुखार एवं सिर दर्द जैसे मामूली लक्षण थे।

2018 एवं 2019 के सबक

कोझिकोड में, निपाह वायरस की मौजूदगी की पहली बार 2018 में पुष्टि हुई थी केरल इसके लिए तैयार नहीं था, क्योंकि उसे ऊच्च मृत्यु दर वाले इतने संघातक वायरस से निबटने का उसे कोई अनुभव नहीं था और इसलिए वह उसके इलाज से वाकिफ नहीं था। यह मर्ज 4 मौतों के बाद पकड़ में आया था, तब सरकार घबड़ा गई थी और उसने आनन-फानन में इबोला वायरस डिजीज (ईवीडी) से निबटने की तरह ही एक प्रोटोकॉल बनाया था, जो प्राथमिक, माध्यमिक संपर्कों की पहचान करता था और उन्हें अलग-थलग करता, और उनकी निगरानी करता था। लगभग 3,000 लोगों को उस समय में क्वारंटाइन किया गया था और इन सभी को स्वास्थ्य विभाग ने आचारसंहिता का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित किया था। उस वायरस के प्रकोप के समय 18 में से 17 संक्रमित मरीजों की मौत हो गई थी। 

लेकिन इस वायरस ने 2019 में जब फिर फैलना शुरू किया, तब तक राज्य इस संक्रमण को लोन इंडेक्स मामले (पहले या शून्य तादाद में मरीज होने के मामले) को रोकने में सक्षम हो गया था और इसलिए तब कोई मौत भी नहीं हुई थी। इसकी वजह यह थी कि राज्य सरकार ने निमोनिया से मिलते-जुलते लक्षण वाले स्वस्थ लोगों के अस्पताल में भर्ती होने एवं दिमागी बुखार (इंस्फेलाइटिस) के कारण हुई मौतों में उनके नमूने लेने तथा उनकी जांच की सतत निगरानी की थी। वायरस के प्रकोप को रोकने में केरल की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा एवं उनके विभाग के काम की व्यापक सराहना हुई थी।

इस समय भी, राज्य को कोविड-19 के प्रोटोकॉल का अस्पतालों में कड़ाई से लागू करने, स्वास्थ्यकर्मियों के ग्लोब्स, मॉस्क एवं पीपीई कीट्स के इस्तेमाल किए जाने के लाभ भी मिले हैं,जिनसे परिणामस्वरूप वायरस के संस्थागत प्रकोप की आशंकाएं न्यून हो गई हैं। इसके अलावा, केरल की आम जनता में मॉस्क लगाने एवं शारीरिक दूरी रखने के कायदों का पालन भी कड़ाई से किया जाता है। सघन संपर्क का पता लगाने एवं निगरानी करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों, जो मार्च 2020 में कोविड-19 के पहले प्रकोप के समय से ही लगातार इस काम में लगे हुए हैं, उनके अनुभवों का भी यही मतलब है कि केरल तुरंत और असरकारी दखल दे सकता है। राज्य की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के मजबूत होने की वजह से अस्पतालों में बिस्तर, गहन चिकित्सा कक्ष (इंटेनसिव केयर यूनिट) और वेंटिलेटर का इंतजाम तेजी से करना संभव हो पाया। यही वजह है कि केरल कोविड-19 के बड़ी तादाद के मामलों के बावजूद हलकान-परेशान नहीं है।

फिर भी बहुत कुछ किया जाना है 

बृहस्पतिवार को मीडिया से मुखातिब जॉर्ज ने इस बात पर राहत महसूस किया कि  जमा किए सभी नमूने जांच में निगेटिव पाए गए हैं। हालांकि उन्होंने जोर दिया कि इसके बावजूद अपनी सतर्कता में कोई ढिलाई नहीं करेगा और वायरस की रोकथाम को लेकर घोषित किए गए सभी निरोधात्मक प्रतिबंध तब तक जारी रहेंगे जब तक कि इसके तीन हफ्ते का विंडो पीरियड खत्म नहीं हो जाता। अब जबकि लोगों में इसे लेकर भय खत्म हो गया है और सरकार ने निपाह वायरस के प्रकोप के चलते कोझिकोड में स्थगित पड़े अपने टीकाकरण अभियान को फिर से शुरू कर दिया है, लेकिन अब उसका फोकस यह सुनिश्चित करने में है कि उस बालक की निपाह से मौत एक इंडेक्स केस था और वह उसके संक्रमण-स्रोत का पता करने पर भी ध्यान दे रही है। संक्रमित बालक के रिहाइश वाले इलाके में घर-घर सर्वें करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को अब तक किसी व्यक्ति के असामान्य बुखार से पीड़ित होने या मौत होने का कोई मामला नहीं मिला है।

स्वास्थ्य विभाग ने उस बालक के घर के आसपास के फलदार वृक्षों एवं मवेशियों के नमूने भी जमा किए हैं। उस इलाके में चमगादड़ों की मौजूदगी से इस समय और इसके पहले के मामलों में भी, उनके ही संक्रमण-स्रोत होने की आशंका को गहरा रही है। इसके पहले, 2018 में जिस इलाके में निपाह का संक्रमण हुआ था, उस इलाके में चमगादड़ों से जमा किए नमूने पॉजिटिव आए थे, जो संक्रमित व्यक्ति में मिले वायरस से मेल खाते थे। आवर्ती प्रकोपों और 2018 के इंडेक्स केस के इलाके से 30 किलोमीटर दूरी पर इस साल मिले पहले केस ने निपाह के और प्रकोप होने की आशंकाएं बढ़ा दी हैं। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार को लेकर भी लोगों की चिंताएं बढ़ गई हैं। यह सवाल भी किया जाने लगा है कि इस संक्रमण का पता पहले क्यों नहीं लगाया जा सका, जबकि उस बालक को आखिरी बार एक निजी अस्पताल में भर्ती कराने के पहले चार अन्य स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज कराया गया था। भविष्य में होने वाले इसके प्रकोप को रोकने की राज्य सरकार कवायद का दारोमदार इन सवालों के जवाब पाने पर निर्भर करेगा। 

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Kerala Still on High Alert After Nipah Outbreak, But The Worst Seems to be Over

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