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लक्षद्वीप के ‘आघात उपचार’ के पीछे केंद्र की भूमि हथियाने वाली नीति है  

टाउन एंड कंट्री पॉलिसी का मसौदा लक्षद्वीप के प्रशासक को मनमानी शक्तियाँ प्रदान करता है और इसमें ऐसे प्रावधान शामिल हैं जो स्थानीय आबादी के बड़े पैमाने पर पलायन का कारण बन सकते हैं।
लक्षद्वीप के ‘आघात उपचार’ के पीछे केंद्र की भूमि हथियाने वाली नीति है  
चित्र साभार: रॉन बैस्टियन 

नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी के बीच में लक्षद्वीप द्वीपसमूह को मिली आघात चिकित्सा के मूल में विवादास्पद टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ड्राफ्ट रेगुलेशन 2021 है। इस मसौदा नीतियों के कुछ हिस्से के तौर पर इन नियमों का उद्देश्य न सिर्फ भारत के सबसे छोटे केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक के हाथों में शक्तियों के केंद्रीकृत करना है, जिस पद पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी विश्वासपात्र प्रफुल खोडाभाई पटेल आसन जमाये हुए हैं, बल्कि इससे स्थानीय आबादी के अपने पारंपरिक भूमि अधिकारों से अलग-थलग पड़ जाने की भी क्षमता है, जिसका वे कई पीढ़ियों से उपभोग कर रहे थे। 

मसौदा नीति पर सार्वजनिक परामर्श को आमंत्रित किये जाने के समय को लेकर संदेह खड़े हो रहे हैं। लक्षद्वीप प्रशासन की वेबसाइट पर इस दस्तावेज को 28 अप्रैल को अपलोड कर दिया गया था, एक ऐसे समय में जब अधिकांश देश महामारी की दूसरी लहर की घातक चपेट में जूझ रहा था, जिसमें दैनिक पॉजिटिव मामलों की संख्या चार लाख के आंकड़े को पार कर रहे थे।

लक्षद्वीप उन पांच केंद्र शासित प्रदेशों में से एक है जिनके पास अपनी खुद की विधान सभाएं नहीं हैं, इसका प्रशासन सीधे एक प्रशासक के जरिये केंद्र सरकार के नियंत्रण के तहत है। प्रस्तावित अधिनियमों के क्रियान्वयन के साथ इस पर केंद्र सरकार का नियंत्रण और अधिक मजबूत हो जाने वाला है।

लक्षद्वीप के मिनिकॉय द्वीप स्थित वकील फसीला इब्राहीम का इस बारे में कहना था “मसौदा नियमों के प्रावधानों के मुताबिक, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से संबंधित सभी मामलों में प्रशासक के पास पूर्ण अधिकार होंगे, जिसमें मुख्य नगर योजनाकार के साथ-साथ योजना और विकास प्राधिकरण के सदस्यों की नियुक्ति और द्वीपों में योजना क्षेत्रों और अप्रचलित क्षेत्रों की घोषणा करना भी शामिल है। प्रशासक को कोई भी कानून बनाने के लिए अधिकार संपन्न बनाया गया है और इन नियमों के तहत उसके पास किसी भी तरह की कार्यवाही करने की पूर्ण शक्तियां भी होंगी।”

प्रशासक के हाथ में शक्तियों का केन्द्रीयकरण 

अधिनियम की धारा 2 (12) स्पष्ट तौर पर घोषित करता है कि “सरकार” का अर्थ है “संविधान के अनुच्छेद 239 के तहत राष्ट्रपति द्वारा केंद्र शासित क्षेत्र के लिए प्रशासक की नियुक्ति।”

योजना एवं विकास प्राधिकरण, एक निकाय जिसे मसौदा नियमों के अनुसार द्वीपसमूह के नियोजित विकास के लिए गठित करने की मांग की गई है, जिसके सरकार के पक्ष में झुके रहने की संभावना है। मसौदा अधिनियम का अध्याय III प्रशासक को इसके अध्यक्ष, इसके मुख्य नगर योजनाकार और इसके बोर्ड में तीन विशेषज्ञ सदस्यों को नियुक्त करने का एकमात्र विवेकाधिकार प्रदान करता है।

जहाँ तक योजना एवं विकास प्राधिकरण में जन प्रतिनिधियों की नियुक्ति का प्रश्न है तो यहाँ पर भी प्रशासक के पास ही सर्वोच्च अधिकार हासिल हैं। ऐसे मामलों में जहाँ एक विशेष क्षेत्र में एक से अधिक स्थानीय स्वशासी निकाय ‘नियोजन क्षेत्र’ के तौर पर निर्दिष्ट हैं, वहां पर प्रशासक के पास यह तय करने का सर्वाधिकार सुरक्षित है कि इनमें से कौन सा निकाय एक सदस्य के तौर पर प्राधिकरण को प्रतिनिधि भेज सकता है।

लक्षद्वीप में ‘नियोजन क्षेत्र’ कौन से होंगे?

प्रशासक के पास छावनी इलाकों को छोड़कर, जो रक्षा मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, द्वीपों के किसी भी हिस्से को ‘योजना क्षेत्र’ के लिए निर्दिष्ट करने की शक्ति है। लेकिन नियमों में बुनियादी ढांचों जैसे कि, आवास, स्कूलों, अस्पतालों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों जो आधारभूत संरचनाओं के भविष्य के बारे में कोई शब्द नहीं कहे गए हैं, जो कि पहले से ही ‘योजना क्षेत्रों’ के भीतर मौजूद हैं। 

अध्याय III की धारा 6 प्रशासक को और भी अधिक शक्तियों से संपन्न करता है, जिसमें अधिसूचित ‘नियोजन क्षेत्र’ से भूमि के किसी भी हिस्से को बाद में लेने का अधिकार हासिल है।

स्थानीय आबादी का पुनर्वासन   

सरकार इन ‘नियोजन क्षेत्रों’ में विकासात्मक गतिविधियों को कैसे अंजाम देने वाली हैं जहाँ स्थानीय आबादी परंपरागत रूप से आबाद है?

योजना एवं विकास प्राधिकरण के जरिये सरकार, द्वीपों के किसी भी हिस्से को ‘अप्रचलित’ या ‘ख़राब लेआउट’ बताकर स्थानीय आबादी को उनके घरों और भू-संपत्तियों से बेदखल कर सकती है। 

धारा 2 (29) के अनुसार: “जनसंख्या का पुनर्वासन” का अर्थ एक ऐसे क्षेत्र से है जिसका ख़राब लेआउट या अप्रचलित विकास या झुग्गी-झोपडी क्षेत्र है, उन्हें उस क्षेत्र में या कहीं और अन्य सुविधाओं के साथ आवास उपलब्ध कराना या व्यवसाय या अन्य गतिविधियों को संचालित करने के लिए समायोजित किया किया जाएगा ताकि उक्त क्षेत्र को लेकर समुचित योजना बनाई जा सके।”

स्थानीय आबादी के अलगाव की प्रक्रिया यहीं पर खत्म नहीं हो जाती है!

धारा 33 में कहा गया है कि, द्वीप में सभी गतिविधियों की पुष्टि द्वीपों के लिए विकास योजना को (जिसे योजना एवं विकास प्राधिकरण द्वारा तय किया जायेगा) उसी तारीख से शुरू किया जाना चाहिए, जिस दिन से इसे अधिसूचित किया गया था। इस योजना के विपरीत किसी भी गतिविधि को – भले ही यह रिहायशी इकाई जैसा प्राथमिक निर्माण कार्य ही क्यों न हो- कोई भी द्वीप वासी उसे योजना एवं विकास प्राधिकरण (पीडीए) से ‘अनुमति’ लेने के बाद ही शुरू कर सकता है। इसके अलावा, ‘अनुमति’ भी सिर्फ तभी दी जायेगी जब एक निश्चित शुल्क का भुगतान चुकता कर दिया गया होगा।

लेकिन कोई द्वीपवासी इसके बाद कभी भी सुख-चैन से जी पायेगा, इसकी उम्मीद नहीं है!

इस ‘अनुमति’ की वैधता को हर तीन साल पर नवीनीकरण कराना होगा। सिर्फ पीडीए के अधिकार क्षेत्र में यह तय करने का विशेषाधिकार है कि वैधता बढ़ाई जाए या नहीं। यह चक्र अनंत काल तक दोहराया जाता रहेगा। धारा 41 पीडीए को यह अधिकार भी प्रदान करती है कि वह जब चाहे इस ‘अनुमति’ को रद्द कर सकती है। 

इसके अलावा, यदि कोई भी व्यक्ति इन नियमों का विचलन करता पाया जायेगा तो उस पर भारी जुर्माने का प्रावधान है। यदि कोई द्वीपवासी विकास की योजना के विपरीत कोई भी गतिविधि करते पाया जाता है तो उस पर 2 लाख रूपये का जुर्माना लगाया जायेगा, और इसके साथ-साथ जब तक इस उल्लंघन को सुधारा नहीं गया तब तक 20,000 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से अतिरिक्त जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

लेकिन किसी द्वीपवासी के लिए शांति की कोई गारंटी नहीं है, भले ही ‘अनुमति’ के बाद की वैधता को बढ़ा दिया गया हो, और जुर्माने का विधिवत भुगतान कर दिया गया हो। धारा 27 में प्रत्येक 10 वर्ष में कम से कम एक बार विकास योजना के सर्वेक्षण की मांग की गई है। सर्वेक्षण करने के बाद यदि सरकार उचित समझे तो वह मूल योजना में बदलाव कर सकती है।

लक्षद्वीप से कांग्रेस के पूर्व सांसद रहे हमदुल्ला सईद का कहना था “मसौदा अधिनियम असंवैधानिक एवं अलोकतांत्रिक हैं, क्योंकि ये सीधे तौर पर स्थानीय आबादी के हितों के लिए बाधक हैं। सरकार का तर्क है कि इन द्वीपों को मालदीव की तरह खूबसूरत बनाया जायेगा, लेकिन यह सब स्थानीय आबादी को विस्थापित करने की कीमत पर नहीं किया जा सकता है।”

फिर भी मसौदा नियमों के एक और खंड में सरकार को मनमाने तरीके से लोगों को उनकी संपत्तियों से बेदखल करने की शक्तियाँ दी गई हैं, यदि उसे लगता है कि ये लोग विकास योजना के तहत संपत्ति पर कब्जा बनाए रखने के हकदार नहीं हैं।

धारा 72 के अनुसार: “जिस दिन से अंतिम योजना लागू होती है, उस दिन या उसके बाद, हर उस व्यक्ति को जो किसी भी भूमि पर अपने कब्जे को जारी रखता है, जिसपर अंतिम योजना के तहत कब्जे का उसका हक़ नहीं है, उसे निर्धारित प्रक्रिया के तहत योजना एवं विकास प्राधिकरण या उसके किसी भी अधिकारियों के द्वारा, प्रशासन की तरफ से वहां से पूरी तरह से बेदखल करने के लिए अधिकृत माना जायेगा।"

यदि इसकी राह में कोई रोड़ा आता है तो जिला प्रशासन को इस बात का अख्तियार है कि “वह ऐसे व्यक्ति को बेदखल करने या योजना एवं विकास प्राधिकरण को भूमि के स्वामित्व की सुरक्षित अदायगी करने को सुनिश्चित करे।”

एक बार फिर से धारा 58 के तहत, पीडीए को यदि लगता है कि द्वीप के नियोजित विकास के लिए – भले ही ‘जबरिया’ करना पड़े – 30 दिनों का नोटिस पीरियड देने के बाद किसी भी भूमि का अधिग्रहण करने का अधिकार हासिल है। लेकिन द्वीपवासियों को अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ पीडीए पर मुकदमा करने का अधिकार नहीं है। मसौदा नियम पीडीए को इसके द्वारा द्वीपों के विकास के लिए “भले मन से” किसी भी कार्य के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही करने की छूट प्रदान करते हैं।

 नियोजित विकास का प्रभाव  

लक्षद्वीप के नियोजित विकास को स्पष्ट तौर पर आर्थिक विकास को ध्यान में रखकर लाया गया है। ये नियम खनन एवं उत्खनन जैसी गतिविधियों की बात करते हैं, जो स्पष्टतया इन द्वीपों के नीचे हजारों वर्षों या उससे भी अधिक समय से न खोजे गए बेशकीमती खनिज संसाधनों को निकालने में परिलक्षित होता है।

धारा 2 (29) के मुताबिक: “’विकास’ अपनी व्याकरणिक विविधताओं एवं सजातीय अभिव्यक्तियों के साथ, जिसका अर्थ है कि भवन, इंजीनियरिंग, खनन, उत्खनन या अन्य कार्यों को करने, भूमि के किसी भी हिस्से पर, उपर या भीतर, एक पहाड़ी की कटाई करने या किसी भवन या भूमि में कोई भौतिक परिवर्तन करने, या किसी भी भूमि के इस्तेमाल में और किसी भूमि का उप-विभाजन करना शामिल है (शब्दों पर जोर हमारा है)।

इसके अलावा, धारा 17 में भविष्य में द्वीपों में राष्ट्रीय राजमार्गों, मुख्य मार्गों, रिंग रोड, प्रमुख सड़कों, रेलवे, ट्रामवे, हवाई अड्डों और नहरों के संभावित विकास का जिक्र करता है। यह आम संज्ञान वाला मुद्दा है कि इस प्रकार की अधिसंरचनात्मक सुविधाओं को सिर्फ बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण के बाद ही विकसित किया जा सकता है, जो बदले में न सिर्फ स्थानीय आबादी का विस्थापन करेगा, बल्कि उनकी आजीविका का भी नुकसान होगा। इसके अलावा, इस विकास का इन द्वीपों के पारस्थितिकी तंत्र पर क्या असर पड़ने वाला है, जिनमें से किसी का भी क्षेत्रफल 4 वर्ग किलोमीटर से अधिक नहीं है?

वन्यजीव एवं पर्यावरण संरक्षण से जुडी एक गैर-लाभकारी संगठन, कंजर्वेशन एक्शन ट्रस्ट की कार्यकारी ट्रस्टी, देबी गोयनका का इस बारे में कहना था “केंद्र शासित लक्षद्वीप को वास्तव में यदि किसी चीज की आवश्यकता है तो वह है इसके पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के साथ-साथ स्थानीय आबादी की आजीविका को सुनिश्चित करने के लिए एक योजना प्रबंधन की। इस प्रकार के नियमों के सेट को सिर्फ अन्य राज्यों के मौजूदा कानूनों से कॉपी-पेस्ट करने का ही काम किया गया है। इसे यहाँ पर बिना कोई दिमाग का इस्तेमाल किये लागू कर दिया गया है।”

गोयनका के विचार में यह सिर्फ ‘कॉपी और पेस्ट वाला काम’ किया गया है, जिसकी पुष्टि मसौदा नियमों के उस खंड को देखने पर हो जाती है जिसमें “कृषि” कार्यों में “पशुओं, घोड़ों, गधों, खच्चरों, सूअरों, मछली, मुर्गी और मधुमक्खियों” के प्रजनन एवं पालने जैसी गतिविधियों के रूप में परिभाषित किया गया है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, इस द्वीप के सदियों पुराने इतिहास में कभी भी घोड़ों, गधों, खच्चरों और मधुमक्खियों को नहीं पाला गया है!

सरकार ने अपनी कार्यवाई का इन तर्कों के आधार पर बचाव किया है कि लक्षद्वीप की पर्यटन क्षमता को कभी खंगाला नहीं गया है, जबकि पड़ोसी देश मालदीव ने खुद की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यटन स्थल के तौर पर पहचान बना ली है। इसलिए सरकार की नजर में यह नीति, लक्षद्वीप को मालदीव की तरह एक पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

लेकिन क्या सरकार ने मालदीव शैली में पर्यटन उद्योग को लक्षद्वीप पर थोपने से पहले इसकी विशिष्ट भौगोलिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक विशिष्टताओं की पृष्ठभूमि में व्यवहार्यता अध्ययन को अमल में लाया है? मालदीव का कुल क्षेत्रफल लगभग 298 वर्ग किलोमीटर है, जबकि इसकी तुलना में लक्षद्वीप का क्षेत्रफल 32 वर्ग किमी है। मालदीव की कुल आबादी 55 लाख है, जबकि इसकी तुलना में लक्षद्वीप में बमुश्किल 64,000 लोग निवास करते हैं।

न्यूज़क्लिक की ओर से अन्य प्रश्नों के साथ एक प्रश्न लक्षद्वीप के प्रशासक के साथ-साथ जिलाधिकारी से पूछा गया था, कि क्या टाउन एंड कंट्री प्लानिंग अधिनियमों को तय करने से पहले एक पूर्व-विधाई विचार-विमर्श या व्यवहार्यता अध्ययन किया गया था। इस लेख के प्रकाशित होने के समय तक इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं मिला था। जब कभी भी प्रतिक्रिया मिलेगी तो लेख को संशोधित कर दिया जायेगा।

इस बीच केरल उच्च न्यायालय में एक जन हित याचिका दायर की गई है, जिसमें इस आरोप के आधार पर मांग की गई है कि मसौदा नियमों को अंतिम रूप देने से पहले नए सार्वजनिक विमर्श की मांग की गई है, कि मसौदा नियमों के लिए पूर्व-विधाई परामर्श को कभी भी आयोजित नहीं किया गया था।

यह देखा जाना अभी शेष है कि लक्षद्वीप में प्रचलित पारंपरिक संबंधों के सदियों पुराने सामाजिक-आर्थिक नेटवर्क के ऊपर से केंद्र सरकार इन व्यापक सुधारों को थोपने में किस हद तक सफल साबित होती है।

कार्यकर्ताओं के मुताबिक, लक्षद्वीप के उपर एक साथ जिन अन्य सुधारों को थोपा जा रहा है, उनमें गुंडा एक्ट (लक्षद्वीप प्रिवेंशन ऑफ़ एंटी-सोशल एक्टिविटी रेगुलेशन, 2021) शामिल है, जो सरकार को मनमानेपूर्ण ढंग से लोगों को 12 महीनों तक हिरासत में रखने के लिए अधिकृत करता है। इसके साथ-साथ प्रस्तावित गौमांस पर प्रतिबन्ध (लक्षद्वीप पशु संरक्षण अधिनियमन, 2021) की आड़ में द्वीप को आसानी से कॉर्पोरेट के लिए अधिग्रहण करने में आसान बना देता है।

उपरोक्त नीतियों को इस साल क्रमशः जनवरी और फरवरी माह में सार्वजनिक विमर्श के लिए एक के बाद एक अधिसूचित किया गया था, जो कि टाउन एंड कंट्री प्लानिंग मसौदा अधिनियमों को पब्लिक डोमेन में अपलोड किये जाने से काफी पहले कर दिया गया था। निःसंदेह, स्थानीय आबादी के बीच में इन सुधारों को लेकर पहले से ही तीव्र आक्रोश बना हुआ है।

नेशनल अलायन्स ऑफ़ पीपुल्स मूवमेंट्स के राष्ट्रीय संयोजक, राजेन्द्र रवि का इस बारे में कहना था कि “लक्षद्वीप के सामाजिक-आर्थिक बदलाव के प्रयास में (नरेंद्र) मोदी सरकार की योजना का उद्देश्य न सिर्फ मुस्लिम बहुल केंद्र शासित क्षेत्र में व्यापक बदलाव लाना है, ताकि राजनीतिक फसल काटने के लिए नीचे दक्षिण में एक नया संघर्ष क्षेत्र बनाया जा सके, बल्कि इससे भी अधिक इस द्वीपसमूह के आदिम द्वीपों को उनके व्यावसायिक शोषण के लिए कॉर्पोरेट संस्थाओं को सुपुर्द कर देने की है।”

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं। 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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