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लवासा बैंकरप्सी : NCLT ने देनदारों को ''संगठित औद्योगिक दिवाला प्रक्रिया'' अपनाने का आदेश दिया

जनवरी तक देनदारों का लवासा और इससे संबंधित कंपनियों पर करीब 7,700 करोड़ रुपये का बकाया था।
Lavasa

26 फरवरी को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) ने लवासा कॉरपोरेशन लिमिटेड (LCL) और इससे संबंधित ''कंपनियों को कॉरपोरेट इंसॉल्वेंसी प्रोसेस (दिवालिया होने की स्थिति में चलाई जाने वाली प्रक्रिया- औद्योगिक दिवाला प्रक्रिया)'' चालू करने का आदेश दिया। 18 महीनों में कंपनी को अपनी बोली लगाने वाले पक्ष नहीं मिल सके हैं।

इस कंपनी को साल 2000 में अजित गुलाबचंद के नेतृत्व वाली ''हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड'' ने बनाया था। लवासा को महाराष्ट्र के पुणे जिले की मुल्शी और वेल्हे तहसील में एक हिल स्टेशन का निर्माण करना था। अब यह प्रोजेक्ट एक भूतिया शहर में बदल चुका है। प्रोजेक्ट पर आदिवासियों से जबरिया भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने जैसे कई आरोप लगे हैं।

इस बीच लवासा अपना उधार चुकाने में लेट-लतीफी करने लगी। जिसके चलते NCLT ने 2018 में LCL के खिलाफ़ ''इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्टसी कोड, 2016'' के तहत ''दिवाला प्रक्रिया'' चालू करने का आदेश दे दिया।जनवरी तक देनदारों का LCL और इसकी सहयोगी कंपनियों पर 7,700 करोड़ रुपये का बकाया है। NCLT के ताजा ऑर्डर के बाद, लवासा की कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स, प्रोजेक्ट से जुड़ी सभी चीजों के लिए नई नीलामी करेगी। इसमें लवासा की सहयोगी ''वारसगांव पॉवर सप्लाई'' और ''दासवे रिटेल'' भी शामिल हैं। शुरू में यह दिवाला प्रक्रिया का हिस्सा नहीं थीं।

NCLT ऑर्डर में लवासा के बारे में कहा गया, ''किसी स्वतंत्र प्रस्ताव की गुंजाईश नज़र नहीं आ रही है। इससे इंसॉल्वेंसी कोड के अधिकतम लाभ का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा।''जब इंसॉल्वेंसी के लिए प्रस्ताव जारी किया जा रहा था, तब लवासा में HCC समूह की 68.7 फ़ीसदी, गौतम थापर के अवंथा समूह की 17.18 फ़ीसदी, वेंकटेश्वर हैचरीज़ की 7.81 फ़ीसदी और विट्ठल मनियार की 6.29 फ़ीसदी हिस्सेदारी थी।

लवासा प्रोजेक्ट करीब 12 हजार एकड़ में फैला है। मोस नदी पर बने वारसगांव बांध के किनारे, लवासा प्रोजेक्ट में 18 गांव शामिल हैं। यह प्रस्तावित किया गया था कि लवासा में रहवासी सुविधाएं और होटल बनाई जाएँगी। इसे एक टूरिस्ट प्लेस की तरह विकसित किया जाएगा।2001 में महाराष्ट्र सरकार ने लवासा को बनाने के लिए दस हजार एकड़ ज़मीन का आवंटन किया था। इसमें केवल पहले स्तर का काम ही पूरा किया गया और कई प्रोजेक्ट अब भी अधूरे हैं।

2017 में लवासा प्रोजेक्ट को गहरा धक्का लगा। उस वक्त देवेंद्र फडणवीस सरकार ने लवासा  का स्पेशल प्लानिंग अथॉरिटी का दर्जा छीन लिया और ''पुणे मेट्रोपॉलिटिन रीजन डिवेल्पमेंट अथॉरिटी'' को इसकी जिम्मेदारी दे दी।

2010 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने लवासा के निर्माण कार्य पर दो साल का प्रतिबंध लगा दिया था। इसका आधार पर्यावरण उल्लंघन बताया गया था। नियामक चेतावनियों के साथा-साथ लवासा का स्थानीय आदिवासियों ने भी विरोध किया है। लवासा के इलाके में आने वाले गांवों के यह आदिवासी जंगल के नुकसान और भूमि अधिग्रहण का विरोध करते रहे हैं।  नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट इन आदिवासियों को उनकी लड़ाई में मदद करता है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Lavasa Bankruptcy: NCLT Orders Lenders to Opt for Consolidated Corporate Insolvency Process

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