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क्यूबा : 61 वर्षों से जारी क्रांति पर एक नज़र

फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में एक राजनैतिक आंदोलन के सामाजिक क्रांति में तब्दील होने की दास्तां। 
Looking at Cuba’s Revolution 61 Years On
चित्र सौजन्य: टेलीसुर इंग्लिश 

आम जनमानस में यह मान्यता चलती आई है कि क्यूबाई क्रांति जो 61 साल पहले घटित हुई थी, उसके पीछे करिश्माई फिदेल कास्त्रो और चे ग्वेरा के नेतृत्व में गुरिल्ला लड़ाकों के एक समूह के वीरतापूर्ण कारनामों का सबसे बड़ा हाथ रहा। इस प्रकार की धारणा क्रांति की ढेर सारी आंतरिक जटिलताओं के साथ पूरी तरह से न्याय नहीं कर पाती है। इसे इस रूप में भी देखा जाता है कि यह कुछ युवा दुस्साहसिक लोगों का एक समूह था जो कि 19वीं शताब्दी में स्पेनिश उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ सशस्त्र संघर्ष की समृद्ध परंपरा से प्रेरित होकर जिसने एक तानाशाह को उखाड़ फेंकने में अपनी भूमिका निभाई थी। इन्हीं सब वजहों से इस क्रांति को अक्सर कम्युनिस्ट क्रांतियों की एक सह-सूची के रूप में वर्गीकृत किया जाता रहा है। और अक्सर ऐसा करने से इसकी कुछ अनूठी विशेषताओं की अनदेखी कर दी जाती रही है।

चूँकि इसकी सम्बद्धता गुरिल्ला युद्ध-रणनीति और चे ग्वेरा की अपार लोकप्रियता के साथ रही है, और इसी वजह से क्यूबाई क्रांति की इसकी आंतरिक पेचीदगियों की अनदेखी कर अक्सर उसके रूमानी स्वरूप को बढ़ा चढ़ा कर देखने की प्रवृत्ति रही है। हाँ यह भी एक वास्तविकता है कि उन दिनों की रूमानी कल्पनाओं को हवा देने के लिए काफ़ी कुछ ऐसी चीज़ें भी हैं, जिनसे इन मान्यताओं को बल मिलता है जैसे: बड़ी-बड़ी दाढ़ियों वाले क्रांतिकारी या कहें बार्बुडोस, 26 जुलाई 1953 को मोनकाडा बैरक पर हुए असफल हमले की घटना, या फिर ख़ुद वकील से विद्रोही नेता के रूप में तब्दील कास्त्रो की गिरफ़्तारी।

जेल के भीतर कास्त्रो ने जो अपना ऐतिहासिक चार घंटे वाला ऐतिहासिक भाषण “इतिहास मुझे अनुपस्थित रखेगा” तैयार किया, जो आख़िरकार 26 जुलाई आंदोलन का घोषणापत्र बन गया। क्यूबाई क्रांति की रोमांटिक छवि की वजहें श्रृंखलाबद्ध उन घटनाओं से भी जुड़ी हुई हैं, और जिस प्रकार से उनका प्रकटीकरण भी हुआ है जैसे: किस प्रकार जर्जर लकड़ी के बने जहाज़ ग्रानमा की ऐतिहासिक साहसिक यात्रा, जो आंधी और तूफ़ान के बीच मैक्सिको के एक सुरक्षित घर से 82 विद्रोहियों को एक छोटे से क्यूबाई द्वीप तक ले जा रहा था, से लेकर कास्त्रो बंधुओं- कैमिलो सियानफ्यूगोस और ग्वेरा के भागने और कुछ अन्य जो उनके साथ भागे थे, की कहानी जो भूख और थकान के मारे हुए थे, लेकिन जिस क्षण वे ओरिएंटे प्रांत की दलदल में दुर्घटनाग्रस्त हुए उनका सामना सरकारी गश्ती और खोजी विमानों से हुआ, इत्यादि।

लेकिन क्यूबाई क्रांति जिसने लैटिन अमेरिकी राजनीतिक परिदृश्य को एक बार फिर से नया आकार देने का काम किया और जिसने विश्व को परमाणु युद्ध की कगार पर धकेल दिया, जैसा कि क्यूबाई मिसाइल संकट के द्वारा उधृत किया जाता है, यह दो साल से चल रहे छापामार युद्ध से कहीं अधिक की बात है। 2006 में इस आंदोलन के सर्वोच्च नेता कास्त्रो के निधन के बाद, शिक्षाविदों और विद्वानों ने इस बात का पता लगाने का प्रयास किया है कि कैरेबियाई समुद्र के इस छोटे से द्वीप राष्ट्र पर एक समाजवादी सरकार किस प्रकार निर्मित हो सका।

अनिवार्य रूप से देखें तो हम पाते हैं कि जिसे हम क्यूबाई क्रांति कहते हैं, उसकी शुरुआत एक बहु-वर्गीय, तानाशाही-विरोधी राजनीतिक आंदोलन के रूप में हुई, जो बाद में जाकर समाजवादी क्रांति में रूपान्तरित हुई। शायद क्यूबाई समाजवादी क्रांति ही पूरे इतिहास में एकमात्र ऐसी क्रांति रही है, जिसका नेतृत्व आरंभ में किसी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता ने सुनिश्चित कार्यक्रम के तहत न किया हो। क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी का गठन जो आज सत्ता पर क़ाबिज़ है, क्रांति के संपन्न होने के छह साल बाद 1965 में हुआ था। 26 जुलाई 1953 को मोनकाडा बैरक में हुए हमले के बाद से समूचा राजनीतिक आंदोलन एक सामाजिक क्रांति में परिवर्तित हो गया, जिसे हम 26 जुलाई आंदोलन के नाम से जानते हैं।

इस आंदोलन की शुरुआत कास्त्रो के नेतृत्व में बेरोज़गार युवाओं, औद्योगिक और कृषि श्रमिकों के एक समूह के रूप में तब हुई, जब उन्हें क्यूबा की अदालत में तत्कालीन राष्ट्रपति फुलगेन्सियो बतिस्ता के तानाशाही शासन की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने में हार का मुँह देखना पड़ा, तब जाकर उन्होंने इसके ख़िलाफ़ सशस्त्र संघर्ष चलाने का फ़ैसला किया। इसके उपरांत क्रांति दो चरणों में उद्घाटित हुई।

पहला चरण विद्रोह का था, जिसमें किसानों ने बुद्धिजीवीयों और कुछ छात्र समूहों के साथ सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उस समय की राजनीतिक अर्थव्यवस्था का संदर्भ था संयुक्त राज्य अमेरिका का बढ़ता साम्राज्यवादी शिकंजा, ख़ासतौर पर चीनी उद्योग निर्माण क्षेत्र में, जो उस समय क्यूबा की अर्थव्यवस्था की रीढ़ थी। यह दौर बतिस्ता के क्रूर शासन के साथ-साथ तुलनात्मक रूप से धीमी आर्थिक वृद्धि के चलते बेरोज़गारी और अमीरी और ग़रीबी की खाई को और चौड़ा करने वाला था। ये वे प्रमुख कारण थे जो क्यूबा के बड़े हिस्से के बीच बढ़ते लोकप्रिय विरोध के कारण बने।

दूसरे चरण की शुरुआत तानाशाही को उखाड़ फेंकने के बाद हुई, जो शीत युद्ध की राजनीति के दायरे के भीतर गुंथी रही। यह चरण विद्रोह काल के चरण की तुलना में कहीं अधिक जटिलता लिए हुए था।

शुरू-शुरू में तो कास्त्रो ने ख़ुद को और अपने आंदोलन को साम्यवाद से दूर रखा। पॉपुलर पार्टी ऑफ़ क्यूबा (1944 से पूर्व की क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी) के साथ उनके जुड़ाव की वजह पार्टी की संगठनात्मक क्षमता से प्रेरित होने के कारण बनी थी। लेकिन दूसरे चरण के दौरान, कास्त्रो धीरे-धीरे निरंतर मार्क्सवाद-लेनिनवाद की ओर खिंचते चले गए।

अब विश्लेषकों का मानना है कि जीत हासिल करने से पूर्व कास्त्रो ने ख़ुद के कभी मार्क्सवादी होने का दावा नहीं किया था, हालाँकि उनके समूह में दो साथी राउल और ग्वेरा ऐसे थे जिन्हें कट्टर और मुखर कम्युनिस्ट नेता कहा जा सकता है।

उस विद्रोह काल में विभिन्न समूहों के बीच गठजोड़ स्थापित करने के लिए भी यह ज़रूरी था कि बतिस्ता की ताक़तों से लड़ने पर ज़ोर दिया जाए, बजाय कि ठोस विचारधारात्मक प्रस्थापनाओं का आधार निर्मित किया जाए। लेकिन दूसरे चरण तक पहुँचते-पहुँचते क्रांति का स्वरूप कहीं अधिक जटिल हो चुका था, क्योंकि ध्यान अब एक ऐसे देश के पुनर्निर्माण पर केंद्रित करने का था जो काफ़ी लम्बे अरसे से अमेरिकी आर्थिक और राजनैतिक साम्राज्यवाद के अधीन रहा था।

कास्त्रो के नेतृत्व में क्यूबा की क्रांति ने जो रास्ता अख्तियार किया वह स्पेन से देश की आज़ादी हासिल करने और निरंतर क्यूबाई राजनीति में बतिस्ता की सैन्य तानाशाही के दौरान अमेरिकी हस्तक्षेप से उपजे सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक विकास से टकरा रहा था। 1963 में न्यू लेफ़्ट रिव्यू के लिए अपने लेख में ब्रिटिश इतिहासकार रोबिन ब्लैकबर्न ने क्रांति के तत्काल बाद के दौर में क्यूबा के समाज की संरचना पर समृद्ध अनुभवजन्य सूचनाएं और डाटा प्रस्तुत किये हैं। उनके अनुसार लगभग 4,00,000 बेहद असंगठित शहरी सर्वहारा, 2,50,000 पेटी बुर्जुआ, क़रीब 5,70,000 ग्रामीण मज़दूर, और 2,50,000 किसान थे। इनमें सबसे बड़ी श्रेणी बेरोज़गार लोगों की थी जो क़रीब 7,00,000 थे, और शहरों में झुग्गियों में अपना जीवन किसी तरह बिता रहे थे।

प्रधानमंत्री का पदभार ग्रहण करने के बाद कास्त्रो ने उद्योगों, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र का व्यापक पैमाने पर राष्ट्रीयकरण किया। उन्होंने भूमि सुधार लागू करने के साथ-साथ ऐसी भूमि योजनाओं को अमल में लाने का काम किया, जिसके चलते सीधे तौर पर 2,00,000 किसान लाभान्वित हुए। उन्होंने उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों की क़ीमत पर निम्न पूंजीवादी कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोत्तरी की। ज़मीन और कारख़ानों के एक बड़े हिस्से पर अमेरिकी पूंजी का क़ब्ज़ा था, और उनके राष्ट्रीयकरण की परियोजना को ‘समाजवादी’ व्यवस्था को लागू करने के रूप में देखा गया, जिसके चलते इस नन्हे से क्रन्तिकारी समाजवादी राज्य ने अमेरिकी ग़ुस्से को अर्जित किया। जो 1961 में कुख्यात पिग्स की खाड़ी आक्रमण के रूप में परिलक्षित हुआ था।

क्रांति के बाद का दूसरा चरण कास्त्रो के नेतृत्व कौशल से प्रभावित रहा। इस चरण ने उनकी शानदार नेतृत्व क्षमता अपने चरम पर निखर कर सामने आई। कास्त्रो ने क्यूबा में मौजूद विभिन्न प्रभावशाली ताक़तों को एकजुट करने वाली योजना पर काम शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप 1961 में एकीकृत क्रांतिकारी संगठन या कहें ओआरआई का गठन हुआ। इसमें जो दल शामिल हुए उसमें कास्त्रो के नेतृत्व में 26 जुलाई आंदोलन में शामिल दल के अलावा पॉपुलर सोशलिस्ट पार्टी और शुरुआती दौर में फूरे चोमोन के नेतृत्व में कम्युनिस्ट विरोधी स्टूडेंट रेवोलुशनरी डायरेक्टरेट शामिल थे। 1962 में जाकर ओआरआई (ORI) की जगह इसका नामकरण यूनाइटेड पार्टी ऑफ़ क्यूबा सोशलिस्ट रेवोलुशन कर दिया गया, जो 1965 में जाकर क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी बन गई।

इस प्रकार से क्यूबा की सत्तारूढ़ पार्टी के इतिहास और विकासक्रम में हम पाते हैं कि यह कितनी गहराई से क्यूबाई  क्रांति के उतार-चढ़ाव से जुड़ा रहा है।

साठ साल बीत चुके हैं, क्यूबा की क्रांति ने ख़ुद को शीत युद्ध के युग से ज़िंदा रखा, उसने कम्युनिस्ट ब्लॉक को ढहते देखा है और संयुक्त राज्य अमेरिका के ज़बरदस्त प्रतिबंधों का भी सामना किया है। क्यूबा उन मात्र चार समाजवादी राज्यों में से एक है, जो मार्क्सवाद-लेनिनवाद के सिद्धांतों पर आज भी लगातार आगे बढ़ रहे हैं। क्यूबा की क्रांति और इसके नेतृत्व ने दुनिया भर के लोगों और आंदोलनों को प्रेरित किया है, और आगे भी करता रहेगा।

लेखक जेएनयू में एक रिसर्च स्कॉलर हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक  पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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