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मोदी शामिल हुए यूरेशियनवाद में !

सच्चाई यह है कि मोदी और शी ने अकेले सीमा समझौते के लिए वार्ता तेज़ करने को लेकर विश्वास दिखाया है क्योंकि रूस-भारत-चीन त्रिकोण बेहद ऊर्जस्वी हो गया है।
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एससीओ शिखर बैठक से इतर 14 जून 2019 को बिश्केक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने शिष्टमंडल के साथ चर्चा करते हुए।

शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक (14-15 जून) के बाद जारी बिश्केक घोषणा में 'चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' की प्रशंसा करते हुए एक वाक्य पर बल दिया है। ये वाक्य है, “कज़ाकिस्तान गणराज्य, किर्गिज़ गणराज्य, इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान, रूसी संघ, ताज़िकिस्तान गणराज्य और उज़्बेकिस्तान गणराज्य ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के लिए अपने समर्थन की पुष्टि करते हैं और सेकंड बेल्ट एंड रोड फ़ोरम फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन (जो 26 अप्रैल को आयोजित किया गया था) के परिणामों की प्रशंसा करते हैं।

भारत को अलग रखा गया। इसमें कोई आश्चर्य? नहीं, बिल्कुल नहीं। खुले तौर पर भारत ऊंचे स्वर में लगातार कह रहा था कि बीआरआई उपयुक्त नहीं था क्योंकि ये क़र्ज़ के जाल में फंसा देगा।

लेकिन समय बदल गया है। न तो भारत ने बिश्केक घोषणा में रुकावट पैदा की और न ही अन्य सदस्य देशों ने चीनी परियोजना को भारत को स्वीकार करने के लिए दबाव डाला। असहमति और सहमति को लेकर उनके पास कोई चारा नहीं था। इस मामले की सच्चाई यह है कि बीआरआई को लेकर भारत की निंदा समय के साथ आलोचना से दब गई और पिछले कुछ वर्षों से दबाने वाली चुप्पी को लेकर नरम पड़ गया। पीएम नरेंद्र मोदी ने एससीओ शिखर सम्मेलन के अपने संबोधन में बीआरआई पर कोई चर्चा नहीं की।

13 जून को बिश्केक में अपने कामयाब बैठक में शी जिनपिंग को संदेश देत हुए मोदी ने वुहान स्पिरिट पर काम करने के बजाय प्राथमिकता दी जो पिछले साल अप्रैल से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच रणनीतिक वार्ता सभी स्तरों पर बेहतर हुई है और इस संदर्भ में काफ़ी समय से लंबित मुद्दों जैसे कि मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी के रूप में घोषित करने के मामले को हल किया जा सकता है।

विशेषकर जब भारतीय मीडिया ने कहा कि यह अमेरिकी ही है जिन्होंने बीजिंग पर सख़्त होते हुए भारत के लिए अज़हर को आतंकवादी घोषित करने के लिए मामले को उछाला है तो मोदी भारत-चीन रणनीतिक वार्ता को श्रेय देते हैं! परिवर्तन की दिशा स्पष्ट है। विदेश सचिव विजय गोखले कहते हैं, "तो हम इसे (बिश्केक में मोदी-शी बैठक) भारत में सरकार के गठन के बाद एक प्रक्रिया की शुरुआत के रूप में देखते हैं। ख़ासकर इस संबंध में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हमारी भूमिका और 21 वीं सदी के एक बड़े संदर्भ में दोनों पक्षों से भारत-चीन संबंधों से निपटने के लिए अहम है।”(ट्रांस्क्रिप्ट)

एससीओ शिखर सम्मेलन आंख खोलने वाला रहा है। शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मोदी के पास दो असाधारण द्विपक्षीय थे और वे इस बात को उजागर करते हैं कि इन दोनों देशों के साथ भारत के संबंधों को अहम स्थान पर रखा गया है। मोदी और शी इस वर्ष के शेष छह महीने की अवधि में तीन बार मुलाक़ात करने वाले हैं। इसके अलावा निश्चित रूप से शी की मोदी के साथ कुछ समय के लिए अपेक्षित अनौपचारिक मुलाक़ात अगले कुछ महीने में (वाराणसी में?) हो सकती है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बिश्केक में 13 जून को हुई मुलाक़ात

समान रूप से मोदी ने सितंबर के शुरू में व्लादिवोस्तोक में पूर्वी आर्थिक मंच में मुख्य अतिथि के रूप में पुतिन के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है और दोनों नेता जी 20 शिखर सम्मेलन और ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ओसाका में एक दूसरे से मिलने वाले हैं। दरअसल पुतिन वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए इस वर्ष भारत आने वाले हैं और एक अन्य अनौपचारिक शिखर सम्मेलन को लेकर भी कुछ चर्चा हो रही है।

निस्संदेह एससीओ शिखर सम्मेलन से इतर कुछ ध्यान देने वाली बात ये है कि रूस, भारत और चीन के नेताओं ने द्विपक्षीय बैठक के अपने शिखर सम्मेलन के साथ-साथ आरआईसी फॉर्मेट पर भी एक त्रिपक्षीय बैठक करने को लेकर सहमति व्यक्त की है। और इस बैठक का स्थान ओसाका होगा जो जी-20 शिखर सम्मेलन से इतर होगा (जिसमें राष्ट्रपति ट्रम्प भाग लेंगे और जहाँ पश्चिमी नेताओं के आने की संभावना है।)

यदि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति प्रतीकवाद में शामिल होती है तो यह हाल के दिनों में विश्व राजनीति में सबसे तीक्ष्ण घटनाओं में से एक होना चाहिए। आरआईसी हमेशा से अमेरिका के लिए द्वेष का कारण रहा है। महान सोवियत रणनीतिक विचारक और क्रेमलिन राजनीतिज्ञ येवगेनी मक्सिमोविच प्रिमकोव ने जब से पहली बार 1999 में चाह जगाने वाला विचार प्रस्तुत किया था। ये अगाध प्रतीकवाद ट्रम्प को लेकर नहीं गंवाया जा सकता है कि भारत दो संशोधनवादी शक्ति (रूस और चीन) के साथ सहमति बना रहा है। अमेरिका के अनुसार ये राष्ट्र विश्व मंच पर शक्ति हासिल करने की दिशा में अपना काम कर रहे हैं।

बिश्केक में एससीओ शिखर सम्मेलन भारत की विदेश नीति में एक निर्णायक क्षण प्रतीत होता है। मोदी ने यूरेशियनवाद की शुरुआत कर दी है। अमेरिका के साथ स्पष्ट साझेदारी की उनकी असहमति केवल आंशिक रूप से हो सकती है। इस मामले का मूल बिंदु यह है कि मोदी भारतीय कूटनीति को भू-राजनीति के प्रति अपने जुनून से दूर ले जा रहे हैं और इसे अपनी राष्ट्रीय नीतियों का हथकंडा बना रहे हैं। शी और पुतिन दोनों इसे समझते हैं।

शी के साथ मोदी की बैठक पर शिन्हुआ की रिपोर्ट जियोइकॉनॉमिक्स पर आधारित है। इसी तरह पुतिन-मोदी बैठक की विशेषताएँ आर्कटिक में सहयोग में शामिल होने के लिए भारत को रूस की तरफ़ से निमंत्रण है। अब चीन भी आर्कटिक सागर में "पोलर सिल्क रोड" बनाने के लिए रूस का एक महत्वपूर्ण भागीदार देश है। बीजिंग ने घोषणा की है कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के एक हिस्से के रूप में रूस के उत्तरी समुद्री मार्ग के माध्यम से वाणिज्यिक गतिविधि को प्रोत्साहित करने के लिए चीन आर्कटिक रूट पर निवेश जारी रखेगा।

यह वास्तव में एक बड़े पैमाने का कार्य है जिसमें खरबों डॉलर का निवेश कार्यक्रम शामिल है जो इन महाद्वीपों के बीच ज़्यादा से ज़्यादा व्यापार को बढ़ावा देने के लिए समुद्र के द्वारा एशिया और यूरोप को जोड़ने की ओर अग्रसर रहेगा। द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने पिछले सप्ताह रिपोर्ट किया कि “चीन प्राकृतिक गैस को साइबेरिया से पश्चिमी तथा एशियाई बाजारों में ले जाने के लिए देश के सबसे बड़े महासागर वाहक कॉस्को शिपिंग होल्डिंग्स कंपनी और अपने रूसी समकक्ष पीएओ सोवकोमफ्लॉट के बीच संयुक्त उद्यम के माध्यम से आर्कटिक ट्रांस्पोर्ट में प्रवेश कर रहा है।"

रिपोर्ट में कहा गया है, "ये नया व्यापार मध्य उत्तरी साइबेरिया के गर्गनतुआन यमल एलएनजी प्रोजेक्ट से गंतव्य स्थानों की लंबी सूची में शामिल उत्तरी यूरोप, जापान, दक्षिण कोरिया और चीन तक प्राकृतिक गैस पहुंचाएगा। ये पहल एक दर्जन से अधिक बर्फ़ तोड़ने वाले टैंकरों के बेड़े के साथ शुरू होगी, और कॉस्को चीन शिपिंग एलएनजी निवेश कंपनी कथित तौर पर अन्य नौ टैंकरों का संचालन करेगी।"

विदेश सचिव गोखले ने मीडिया से बातचीत के दौरान बिश्केक में खुलासा किया कि मोदी ने फ़ैसला किया है कि भारत को रूस के साथ आर्कटिक क्षेत्र के तेल एवं गैस में शामिल होना चाहिए '' और हमलोगों ने इस कार्य की शुरुआत कर दी है।" पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के एक प्रतिनिधिमंडल ने पिछले महीने रूसी पक्ष के साथ पहले ही चर्चा की है और ऐसा ही कुछ है कि इन नेताओं ने महसूस किया कि हमें आगे बढ़ना चाहिए।” रूस के उप प्रधानमंत्री और आर्कटिक क्षेत्र के लिए राष्ट्रपति पुतिन के विशेष प्रतिनिधि यूरी ट्रूटनेव इस संबंध में वार्ता के लिए 18 जून को भारत आ रहे हैं। भारतीय-रूसी सामरिक आर्थिक वार्ता जुलाई में होगी जिसमें हमारी ओर से नीति आयोग के वाइस चेयरमैन नेतृत्व करेंगे।

ये कहने की ज़रूरत नहीं कि इन सभी में एक बड़ी तस्वीर जो उभर रही है वह ये कि मोदी क्रमशः चीन और रूस के साथ भारत के सामरिक वार्ता के बीच मुद्दों को जोड़ रहे हैं और तालमेल बना रहे हैं। यह एक निर्भीक रणनीति है लेकिन असीम संभावनाएँ हैं। नीचे दिए गए अंश को ध्यान से समझिए।

चीन-रूस की संधि तेजी से एक अर्ध-गठबंधन में विकसित हो रहा है। दूसरी ओर रूस के साथ भारत के संबंध न केवल यूपीए काल की उपेक्षा से उबर चुके हैं बल्कि 21वीं सदी के लिए सही मायने में रणनीतिक साझेदारी में पनप रहे हैं। मोदी और पुतिन के बीच स्नेही मित्रता को धन्यवाद। संक्षेप में रूस को विशिष्ट रूप से भारत और चीन के बीच रणनीतिक समझौते को बेहतर बनाने में मदद करने वाले वुहान स्पिरिट के आरंभिक संकेतों को मजबूत करने में मदद करने के लिए रखा गया है।

सच्चाई यह है कि मोदी और शी ने अकेले सीमा समझौते के लिए वार्ता तेज़ करने को लेकर विश्वास दिखाया है क्योंकि रूस-भारत-चीन त्रिकोण बेहद ऊर्जस्वी हो गया है। वास्तव में ओसाका में आरआईसी शिखर सम्मेलन तीन एशियाई शक्तियों के कार्यक्रम के लिए नया आधार प्रदान करता है। यह सच है कि जो कुछ हो रहा है उसे पश्चिम देश पसंद नहीं करेगा।

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