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“मोदी-ट्रंप मार्का साम्राज्यवाद से लड़ने के लिए गाँधी-आंबेडकर-भगत सिंह की साझी विरासत चाहिए”

चार लेखक संगठनों जलेस, दलेस, जसम और एनएसआई का संयुक्त कार्यक्रम ‘देशप्रेम के मायने : संदर्भ भगत सिंह, आंबेडकर और गाँधी’।
देशप्रेम के मायने

प्रगतिशील वही है जो अंतिम जन के लिए सोचता है।

देशप्रेम और राष्ट्रवाद एक नहीं है। पहले में प्रेम की भावना है जबकि दूसरा नफ़रत की जमीन पर पनपता है।

अगर आज गाँधी होते तो वे कश्मीरी नौजवानों के साथ खड़े होते

मोदी-ट्रंप मार्का साम्राज्यवाद से लड़ने के लिए गाँधी-आंबेडकर-भगत सिंह की साझी विरासत चाहिए

ये कुछ स्थापनाएं या मुख्य बातें हैं जो देशप्रेम के मायने समझते और समझाते हुए सामने आईं।

मौका था 27 सितंबर को दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित संत रविदास सभागार में चार लेखक संगठनों जलेस, दलेस, जसम और एनएसआइ के तीसरे संयुक्त कार्यक्रम ‘देशप्रेम के मायने : संदर्भ भगत सिंह, आंबेडकर और गाँधी’ का।

कार्यक्रम में अध्यक्ष मंडल की तरफ से बोलते हुए हीरालाल राजस्थानी ने कहा कि जो देश से प्रेम करेगा वह देश को जगाने का काम करेगा। फाँसी के तख्ते पर चढ़कर भगत सिंह ने यही किया था। गाँधी या आंबेडकर का मूल्यांकन करते समय हमें उन परिस्थितियों को ध्यान में रखना चाहिए जिसके तहत उन्होंने निर्णय लिए होंगे।

गाँधी और आंबेडकर में विचारों का टकराव था लेकिन वे दोनों एक दूसरे को समझते भी थे। आंबेडकर की लड़ाई समानता के लिए थी। वे तो गुलामों के गुलाम दलितों की आज़ादी के लिए लड़ रहे थे। राजस्थानी ने कहा कि हम अपने लिए सुरक्षित माहौल चाहते हैं, यह भगत सिंह का चुनाव नहीं था। उन्होंने कहा कि प्रगतिशील वही है जो अंतिम जन के लिए सोचता है।

इस अवसर पर अध्यक्ष मंडल के दूसरे सदस्य असगर वजाहत ने देशप्रेम पर अपनी लघु कथाएं सुनाईं। ये रचनाएं देशप्रेम के सच अथवा पाखण्ड को ख़ूबसूरती से रख दे रहीं थीं। खचाखच भरे सभागार में यह प्रयोग तालियों की गड़गड़ाहट के बीच खूब सराहा गया।

कार्यक्रम की प्रस्तावना करते हुए संचालक आशुतोष कुमार ने कहा कि देशप्रेम और राष्ट्रवाद एक नहीं है। पहले में प्रेम की भावना है जबकि दूसरा नफ़रत की जमीन पर पनपता है। उन्होंने बताया कि भगत सिंह के जन्मदिन के मौके पर आयोजित इस कार्यक्रम में हमें समझना होगा कि इन तीनों विचारकों के मध्य असहमतियाँ थीं। इन असहमतियों पर आज भी बहस जारी है। भगत सिंह और आंबेडकर ये दोनों ही दिमाग की, विचार की आज़ादी चाहते थे। गाँधी अंतरात्मा की स्वतंत्रता के प्रबल हिमायती थे। हमें सोचना होगा कि हम इनकी विरासत का क्या करें!

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क़ानून की विद्यार्थी और वामपंथी स्टूडेंट लीडर कंवलजीत कौर ने अपने व्याख्यान में रेखांकित किया कि इस सरकार ने हमें जिज्ञासु बनाया है। त्रिपुरा में जब लेनिन की मूर्ति गिराई गई तो लोगों ने गूगल पर लेनिन को ढूंढना, पढ़ना, जानना शुरू किया। उन्होंने कहा कि गाँधी के राष्ट्रवाद में अंगरेजों से ही आज़ादी नहीं थी बल्कि व्यक्ति की आज़ादी की भी चिंता थी।

आंबेडकर का राष्ट्रवाद जाति उन्मूलन से जुड़ा था। उनका सवाल था कि क्या आज़ाद भारत ब्राह्मनिकल नेशन बनकर रह जाएगा? गाँधी न्यूट्रल नहीं, सेकुलर स्टेट चाहते थे। भगत सिंह क्रांति या इंकलाब लाना चाहते थे। आंबेडकर इंक्लूसिव या समावेशी भारत के हिमायती थे। ऐसा भारत जिसमें सबका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो। सेकुलर, समतामूलक और समावेशी समाज यह इन तीनों की मिलीजुली विरासत है। क्या हम इन 70 वर्षों में किसी के सपने का भारत बना सके? कंवलजीत कौर ने कहा कि अगर आज गाँधी होते तो वे कश्मीरी नौजवानों के साथ खड़े होते। वे एअरपोर्ट से वापस न आकर वहीं सत्याग्रह पर बैठ जाते।

आंबेडकर ने धर्मांतरण किया। यह सरकार धर्मांतरण विरोधी बिल लाने वाली है। आज का नेशनलिज्म कम्यूनल है। कंवलजीत ने कहा कि हमें विविधता को समाप्त नहीं करना है, उसका उत्सव मनाना है।

दलित लेखक संघ से जुड़े वक्ता कर्मशील भारती ने कहा कि भगत सिंह ने देश की आज़ादी के साथ समाज परिवर्तन की लड़ाई लड़ी। समाज ने उनके विचारों की कद्र नहीं की। समाजवादियों के पास जाति के सवाल पर चिंतन करने का समय नहीं है।

भगत सिंह समाजवादी क्रांति के लिए राजनीतिक क्रांति को जरूरी मान रहे थे। गाँधी केवल राजनीतिक आज़ादी के लिए लड़े। गाँधी हिंदू थे और हिंदू धर्म की जड़ वर्णव्यवस्था के घोर समर्थक थे। वे इसके खिलाफ कभी नहीं बोले। उनके कारण आज तक भेदभाव, छुआछूत बना हुआ है। कर्मशील भारती ने आंबेडकर को डॉ. आंबेडकर लिखना/कहना अनिवार्य बताया क्योंकि यह डिग्री उन्होंने कठिन संघर्ष से अर्जित की थी।

भौतिकशास्त्री और विचारक संजय कुमार ने अपने वक्तव्य के आरंभ में सैमुअल जॉनसन को याद किया जिन्होंने कहा था कि देशभक्ति बदमाशों की अंतिम शरणस्थली है। उन्होंने कहा कि गाँधी और भगत सिंह ने देशप्रेम पर बहुत कम लिखा है। सत्रह वर्ष की उम्र में भगत सिंह ने जो लेख लिखा था वह विश्वप्रेम पर था। गाँधी भी विश्वप्रेम की बात करते थे।

इन दोनों ने अपनी राजनीति को परिभाषित करने के लिए देशप्रेम का इस्तेमाल नहीं किया। गाँधी की राजनीति का मूल नैतिकता थी। नैतिकता से आप प्रेम नहीं करते, दायित्व निभाते हैं। दायित्व निभाना प्रायः असंतोषकारक होता है। भगत सिंह इंकलाबी थे। आमूल परिवर्तन चाहते थे। वे इसीलिए मार्क्सवाद-लेनिनवाद की तरफ गए। उन्होंने देशप्रेम को नकारा नहीं लेकिन इसमें सीमित होना उन्हें स्वीकार्य न था। आंबेडकर ने गाँधी से कहा था, ‘मेरा कोई होमलैंड नहीं है।’

दूसरी तरफ गाँधी उन्हें देशभक्त बता रहे थे। आज भी 80% जनता के साथ यही स्थिति है। उनका कोई देश नहीं है। संजय कुमार ने कहा कि देशप्रेम के प्रत्यय में ही अंतर्विरोध है। प्रेम की भावना ‘स्व’ से जुड़ी हुई है। जो अंतरंग है उससे आप प्रेम करते हैं। इस प्रेम का देश से क्या नाता! हम समानता की, तर्क-विवेक की बात करें। ये संविधान के मूल्य हैं।

प्रसिद्ध गाँधीवादी विचारक कुमार प्रशांत ने बताया कि सावरकर के बारे में सच्ची बात कह देने से उन पर 6 एफआइआर हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि भगत सिंह को याद करने का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि उन्होंने अपने सपने के लिए अपनी जान दे दी। उनका जन्मदिन हम सबका जन्मदिन होना चाहिए। कुमार प्रशांत ने आगे कहा कि कही गई बातों को दुहराने से बचना चाहिए। हम 2019 के संकटों को सामने रखकर विचार करें। अगर अभी कश्मीर पर नहीं बोल सकते तो कभी नहीं बोल सकोगे।

कश्मीर पर बोलने का मतलब है गाँधी से संदर्भित होना। सत्तर साल की उम्र में कश्मीर पहुँचे गाँधी ने कहा था कि कश्मीर के लोग ही फैसला करें कि वे कहाँ जाएंगे। कश्मीरी कौन हैं- इस प्रश्न पर गाँधी ने कहा था कि मुस्लिम, सिख, डोगरा और पंडित ही कश्मीरी हैं। फैसला शांत माहौल में होता है। जब कश्मीर जल रहा है तब यह संभव नहीं। गाँधी ने शेख अब्दुल्ला की रिहाई की मांग करते हुए डेमोक्रेसी का तर्क दिया था। गाँधी की भाषा अलग है इसलिए हमें उन्हें समझने में दिक्कत होती है।

कुमार प्रशांत ने कहा कि मोदी-ट्रंप मार्का साम्राज्यवाद से लड़ने के लिए गाँधी-आंबेडकर-भगत सिंह की साझी विरासत चाहिए। उन्होंने कहा कि संविधान से बाहर जाएंगे तो देश नहीं बचेगा। जब ‘वाद’ की मजबूती होगी तो ‘राष्ट्र’ कमजोर पड़ेगा। राष्ट्रीयता जमीन से नहीं, लोगों से जुड़ती है। हम कश्मीर की जमीन से नहीं, लोगों से प्रेम करें। उन्होंने आगे कहा कि हर बेरोजगार संभावित आतंकवादी है। स्टेट ऐसी ही पीढ़ी तैयार कर रहा है। राज्य प्रायोजित आतंकवाद से लड़ना होगा। इन लोगों ने देश को छोटा करने का अभियान चलाया हुआ है। हमें यह नहीं होने देना है।

वक्ताओं के विचारोत्तेजक वक्तव्यों के बाद प्रश्न-सत्र रखा गया। इसमें तीखे सवाल पूछे गए और सार्थक संवाद हुआ। इस सत्र में गीतकार सत्यनारायण, कथाकार और दलित आलोचक शीलबोधि, बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता अश्विनी कुमार सहित तमाम विद्यार्थियों, शोधार्थियों और लेखकों ने शिरकत की।

धन्यवाद ज्ञापन में सुप्रसिद्ध दलित स्त्रीवादी रचनाकार अनिता भारती ने कहा कि इतने लेखक संगठनों का एकजुट होना बहुत महत्त्वपूर्ण है। देशप्रेम को हमने कुछ प्रतीकों में सीमित कर दिया है। उससे बाहर आना होगा। निबंधकार रामचंद्र शुक्ल को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि देश को ठीक से जानने के बाद ही उससे प्रेम किया जा सकता है।

(बजरंग बिहारी की रपट पर आधारित) 

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