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मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के लिए क्या इतनी बड़ी क़ीमत चुकाना जायज़ है?

जैश ए मुहम्म्द के संस्थापक को वैश्विक आतंकवादी के रूप में सूची में शामिल करने में भारत ने पाकिस्तान और चीन पर जो कूट-नीतिक जीत हासिल की है, उसकी क़ीमत ईरान से तेल आयात को रोकने के मुक़ाबले में बहुत अधिक है।
मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के लिए क्या इतनी बड़ी क़ीमत चुकाना जायज़ है?

भारतीय कूटनीति अपनी पीठ इस बात के लिए थपथपा सकती है कि वह मौलाना मसूद अज़हर को "वैश्विक आतंकवादी" के रूप में सूचीबद्ध करने के लिए चीन से उसकी "तकनीकी जकड़" को हटाने में कामयाब रही। एक बार चीन ने संकेत दिया था कि वह नहीं चाहता है कि यह मामला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में वोट के लिए आए, जहाँ उसे संभावित अलगाव का सामना करना पड़ सकता था, इसलिए भारतीय राजनीतिक नेतृत्व ने पुलवामा हमला, कश्मीर या पाकिस्तान के संदर्भ चीन के नाम को छोड़ने की रियायत देने की इच्छा जताई जिससे यह सूचीकरण संभव हो गया। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के लिए, यह उसके चुनाव अभियान के लिए एक उत्साहित करने वाली घटना है। हालांकि, इस कूट-नीतिक लाभ पर क़रीब से ग़ौर किया जाना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र का बयान कहता है कि "मोहम्मद मसूद अज़हर अल्वी को 1 मई 2019 को 2368 (2017) के पैराग्राफ़ 2 और 4 के अनुसार सूचीबद्ध किया गया है, जिसमें उसे आतंकवादी गतिविधियों के लिए अल क़ायदा से जुड़ा बताया गया है।" प्रस्ताव संख्या 2368 (2017) जोकि दैश और अलक़ायदा से संबंधित है और जो मुख्य रूप से अपने सदस्यों को स्वतंत्र रूप से उन्हें संचालन करने से रोकता है। बयान सूचीबद्ध व्यक्ति पर मुक़दमा चलाने या उसे लाने के लिए संबंधित सरकार को अधिकार नहीं देता है। इसे संबंधित सरकारों के विवेक पर छोड़ दिया गया है।

फिर इस सूचीकरण का क्या मतलब है? यह सूची प्रतीकात्मक है और पिछ्ले प्रस्तावों ने कभी भी लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) को पाकिस्तान में स्वतंत्र रूप से काम करने से नहीं रोका है। उदाहरण के लिए, जेईएम को अक्टूबर 2001 में सूचीबद्ध किया गया था क्योंकि अमेरिका ने इस पर अलक़ायदा से जुड़े होने का आरोप लगाया था। दरअसल, यूएनएससी द्वारा सूचीबद्ध होने के बावजूद, जेईएम और लश्कर ने पाकिस्तान में खुले तौर पर काम करना जारी रखा हुआ है। इसका कारण यह है कि पाकिस्तान में सेना उन्हें "संपत्ति" के रूप देखती है, जबकि दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर हमले मे जेईएम के जुड़े होने और नवंबर 2008 में लश्कर द्वारा मुंबई हमले करने के बावजूद वे उन्हें खुले रूप से काम करने देते हैं। यानी जब तक पाकिस्तानी सेना को इसका एहसास नहीं हो ज़्यादा कुछ नहीं किया जा सकता है। इसे दूसरे नज़रिए से देखने की ज़रूरत है, यदि मौजूदा सरकार भारत में पनपे आतंकवादियों के ख़िलाफ़ जघन्य अपराधों का आरोप नहीं लगाना चाहती है और इसकी एजेंसियाँ ​​यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि अपराधियों को मुक्ति दिलाने के लिए पर्याप्त रूप से मामलों को कमज़ोर किया जाए, जैसा कि हमने समझौता एक्सप्रेस बम विस्फ़ोट, मक्का मस्जिद बम विस्फ़ोट के साथ-साथ मालेगांव मामले में देखा है कि कोई बाहरी ताक़त इसमें कुछ नहीं कर सकती है।

संयुक्त राष्ट्र की सूची केवल मेज़बान सरकार पाकिस्तान को इस मामले में यह सुनिश्चित करने के लिए कहती है कि ऐसे व्यक्तियों या संगठनों को भड़काऊ गतिविधियाँ करने से रोका जाए। यह प्रस्ताव संबंधित सरकार पर इस मामले को छोड़ देता है। इस लिस्टिंग का मतलब यह नहीं है कि उस व्यक्ति या किसी और को भारत सज़ा देना चाहता है, और उसे भारत को सौंप दिया जाएगा या यहाँ तक कि उनके अपराधों के लिए उन पर मुक़दमा चलाया जाएगा। केवल एक बात होगी कि उसकी संपत्ति को जाम कर दिया जाएगा, उसकी यात्रा पर प्रतिबंध लग जाएगा और उसके द्वारा हथियारों की ख़रीद नहीं की जा सकती। दूसरे शब्दों में, यह प्रतीकात्मक है लेकिन मूल प्रतिबन्ध नहीं है।
आप सब जानते हैं कि, हाफ़िज़ सईद को भी वर्षों पहले "वैश्विक आतंकवादी" के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन इसके बावजूद, भारत सरकार लगातार शिकायत करती रही है कि पाकिस्तान सरकार ने उसकी गतिविधियों पर कोई रोक नहीं लगायी है। याद कीजिए हाफ़िज़ सईद को भारतीय अधिकारियों ने मुंबई में 26/11/2008 के हमले के लिए आरोपी बताया था, जिसमें 169 लोग मारे गए थे। इसलिए, बड़ा मुद्दा यह है कि हालांकि, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अक्टूबर 2001 में जैश को अलक़ायदा, एक वैश्विक आतंकवादी समूह से जुड़े होने के लिए सूचीबद्ध किया था। लेकिन वह अभी भी अपनी आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रहा है, फिर बीमार अज़हर को इस सूची में डालने से क्या सही होगा?

सवाल यह भी है कि जम्मू-कश्मीर में फ़िदायीन हमले और नागरिकों पर हमले के ज़िम्मेदार इस व्यक्ति को उसके अपराधों के लिए सज़ा नहीं मिलेगी या उस पर मुक़दमा भी नहीं चलाया जाएगा, ज़्यादा से ज़्यादा उसे किसी भी मामले में कोई भी गतिविधियाँ करने से रोका जाएगा। वैसे भी वह यह सब अपने ख़राब स्वास्थ्य के कारण नहीं कर सकता है।
इसलिए, भारत के लिए अज़हर को वैश्विक आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध करना और उसकी लिस्टिंग करना इतना अधिक क्यों महत्वपूर्ण था, जबकि कहा जाए तो आज की स्थिति में इसका ज़्यादा महत्व नहीं हो सकता है। वैसे भी, पुलवामा आत्मघाती विस्फ़ोट के तुरंत बाद पाकिस्तान ने अज़हर को भावलपुर के मरकज़ सुभान अल्लाह में नज़रबंद कर दिया था और बाद में आई रिपोर्ट से पता चलता है कि उसे कहीं और ले जाया गया है।

अज़हर को सूचीबद्ध करने के लिए इतना ऊँचा दांव लगाने के लिए निम्न बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। अमेरिकी विदेश मंत्री ने लिस्टिंग का सारा श्रेय ख़ुद ले लिया और मामले को यूएनएससी में ले जाकर चीन को अपना रुख अपनाने के लिए मजबूर करने के लिए अमेरिकी राजनायिकों की प्रशंसा की।

उन्होंने भारत के आम चुनाव के बाद निर्णय सुनाने की चीनी सरकार की दलील को भी ख़ारिज कर दिया था, जिसमें 15 मई के बाद की तारीख़ का सुझाव दिया गया था, इसलिए अमेरिका और भारत ने 'अच्छे पुलिस वाले' बनाम 'बुरे पुलिस वाले' का खेल खेला और इस तरह चीन को 1267 समिति द्वारा पछाड़ने में कामयाब रहे। क्या यह कूट-नीतिक लाभ वास्तविक है, लेन-देन के संबंध में, जहाँ हर "लेन" के लिए "देने" की आवश्यकता होती है, भारतीय कूट-नीतिक प्रयास के लिए अमेरिका के समर्थन के लिए एक क़ीमत चुकाई जानी है।

यह वह बात है जिससे सामने का रास्ता साफ़ नज़र आता है। दो अमेरिकी अधिकारियों, राज्य के प्रमुख उप सहायक सचिव एलिस वेल्स और रक्षा सहायक सचिव रैंडल जी श्राइवर ने हाल ही में अपने भारतीय समकक्षों को सूचित करने के लिए भारत की यात्रा की और बताया कि ईरानी तेल ख़रीदने के लिए भारत को अब अधिक छूट नहीं दी जा सकती है। उन्होंने न केवल अज़हर को सूचीबद्ध करने के लिए अमेरिकी कूट-नीतिक प्रयासों का उल्लेख किया, बल्कि भारत को उस "बड़ी तस्वीर" पर नज़र डालने को भी कहा, जिसमें उसे चीन से चुनौती मिलती है, और भारत की आर्थिक और सैन्य ताकत को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका की उत्सुकता के बारे में बताया।
1 मई को हुई लिस्टिंग की वजह से 2 मई से भारत द्वारा ईरान से तेल आयात पर रोक इसकी तस्दीक़ करती है। भारतीय उपभोक्ता को अब तेल की उच्च क़ीमतों का भुगतान करना होगा, और भारत ईरान से एक सल्फ़र क्रूड को खो देगा जो रिफ़ाइनरियों के लिए अधिक आकर्षक है, यह उस ईरानी तेल को खो देगा जो रियायती मूल्य, मुफ़्त बीमा और माल ढुलाई और 60 दिन तक के उधार पर आता है। जो अधिक महंगे कच्चे तेल के साथ आएगा। वास्तव में, यह और भी हास्यास्पद है कि भारत अब सऊदी और अमेरिकी क्रूड ईरानी क्रूड की जगह पर लेगा, जिससे बाद में इनका भाड़ा काफ़ी ऊँचा हो जाएगा और तेल की क़ीमतें आसमान छूने लगेंगी।

इस रोशनी से पता चलता है कि एक जाने माने अपराधी को सूचीबद्ध करने के प्रतीकात्मक प्रस्ताव से के लिए इतना बड़ा दांव लगाना सही नहीं है। लेकिन यह केवल पाकिस्तान और चीन से कूट-नीतिक जीत हासिल करने के मुक़ाबले ईरान से तेल आयात को रोकने की क़ीमत बहुत अधिक है। भारत ने जो पाया है, वास्तव में वह ईरानी तेल की क़ुर्बानी के मुक़ाबले बहुत कम है। इसका अर्थ यह है कि एक ठोस नुक़सान के बदले में हम एक अमूर्त लाभ पा रहे हैं।

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