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मेंडेल की आनुवांशिक क्रांति और उससे जुड़ी वैज्ञानिक नस्लवाद की विरासत 

वैज्ञानिक क्षेत्र में प्रगति हमेशा रैखिक नहीं होती हैं: इसमें कई बार अप्रत्याशित रूप से टेढ़े-मेढ़े रास्ते तय करने पड़ते हैं। खासतौर पर अनुवांशिकी के बारे में यह सच है, जिसका संतति एवं नस्लीय विज्ञान में शामिल होने का काला इतिहास रहा है।
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चित्र साभार: क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर 

इस वर्ष जुलाई में विश्व ग्रेगोर मेंडेल के जन्म के 200 वर्ष पूरे हो जाने को धूमधाम से मनाया जा रहा है, जिन्हें वंशानुक्रम के नियमों की खोज के लिए अनुवांशिकी के पितामह के रूप में व्यापक रूप से स्वीकृति प्राप्त है। मटर के साथ उनके प्रयोगों को जिसे 1866 में पादप संकरण में प्रयोग के तौर पर प्रकाशित किया गया था, ने प्रमुख एवं पुनरावर्ती लक्षणों की पहचान की थी और बताया था कि किस प्रकार से भावी पीढ़ियों में किस अनुपात में पुनरावर्ती लक्षण फिर से प्रकट हो सकते हैं। इस तथ्य को तब तक अस्वीकार्य और अनदेखा किया जाता रहा जब तक कि तीन अन्य जीवविज्ञानियों ने 1900 में उनके काम को दोहरा नहीं लिया था। 

जहाँ एक तरफ मेंडेल का काम आधुनिक अनुवांशिकी के लिए केंद्रीय बना हुआ है, और विज्ञान के लिए प्रयोगात्मक विधियों एवं पर्यवेक्षण हेतु मॉडल के तौर पर इस्तेमाल में लिया जाता है, इसके साथ ही इसका काला पक्ष भी मौजूद है जिसके साथ अनुवांशिकी अन्यानोश्रित रूप से सम्बद्ध है: जो कि संतति विज्ञान और नस्लवाद है। किंतु संतति विज्ञान नस्लीय “विज्ञान” से कहीं अधिक था। इसका इस्तेमाल अभिजात्य, प्रभुत्वशाली नस्लों की श्रेष्ठता के लिए भी तर्क के तौर पर पेश किया जाता रहा है और भारत में देखें तो इसे जातीय व्यवस्था के लिए भी एक “वैज्ञानिक” औचित्य के तौर पर पेश किया जाता रहा है।

उन लोगों के लिए जो यह मानते हैं कि विज्ञान के क्षत्र में संतति विज्ञान एक अस्थायी विचलन मात्र था और नाज़ी जर्मनी के साथ इसका खात्मा हो गया है, वे यह जानकर अचंभित हो जायेंगे कि उन प्रमुख संस्थानों और पत्र-पत्रिकाओं तक ने, जिन्होंने इसे उसके नामों से पहचान दी थी, ने इनके नामों में फेरबदल कर इसे आज भी जारी रखा है। एनल्स ऑफ़ यूजीनिक्स के स्थान पर इसे एनल्स ऑफ़ ह्यूमन जेनेटिक्स कर दिया गया है। इसी प्रकार यूजीनिक्स रिव्यू ने अपने नाम में फेरबदल कर इसे द जर्नल ऑफ़ बायोसोशल साइंस, यूजीनिक्स क्वार्टरली से सोशल बायोलॉजी कर दिया है। इसी प्रकार एनल्स ऑफ़ यूजीनिक्स का प्रकाशन करने वाले संस्थान ने अपने नाम को बदलकर यूजीनिक सोसाइटी से गेलटन इंस्टीट्यूट कर दिया। कई प्रमुख विश्वविद्यालयों में कई विभागों को जिन्हें पूर्व में यूजीनिक्स विभाग कहा जाता था, उनके नामों में बदलाव कर अब उन्हें डिपार्टमेंट ऑफ़ ह्यूमन जेनेटिक्स या सामाजिक जीव विज्ञान विभाग बना दिया गया है। 

इन सभी ने बाहरी तौर पर अपने संतति विज्ञान के अतीत से नाता तोड़ लिया है, लेकिन नस्ल और आई क्यू बहस की पुनरावृत्ति, समाजजैविकी, श्वेत प्रतिस्थापन सिद्धांत और श्वेत राष्ट्रवाद के उभार जैसी चीजें, ये सभी इस बात के संकेत हैं कि संतति विज्ञान के सिद्धांत आज भी पूरी तरह से अपने वजूद में हैं। भारत में, नस्लीय सिद्धांत को आर्यों के “श्रेष्ठतर” होने और गोरा होने को आर्यन पूर्वज के चिन्ह के तौर पर नकल की जाती है। 

जबकि हिटलर के गैस चैम्बर और नाज़ी जर्मनी के द्वारा यहूदियों और रोमाओं के नरसंहार ने कुछ जातियों की नस्लीय श्रेष्ठता के बारे में बात करने को मुश्किल बना दिया है, इसके बावजूद विज्ञान के भीतर आज भी वैज्ञानिक नस्लवाद बरकरार है। यह तर्कसंगतता का वह पहलू है जिसे अभिजात्य वर्ग के द्वारा अपनी अनुवांशिकी की श्रेष्ठता की स्थिति को तर्कसंगत साबित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है, न कि यह कि उन्होंने इस संपत्ति को विरासत में हासिल किया है या चुराया है। यह पश्चिमी यूरोप के कुछ मुट्ठीभर देशों के द्वारा दुनिया के औपनिवेशीकरण के साथ लूट, दासता और नरसंहार के इतिहास को छुपाने का एक तरीका है। 

ऐसा क्यों है कि जब कभी भी हम आनुवंशिकी और इतिहास के बारे में बात करते हैं, तो जो एकमात्र कहानी हर बार दुहराई जाती है वह ल्यसेंको के बारे में होती है, और कैसे सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी ने विज्ञान से उपर विचारधारा को प्रतिष्ठापित कर रखा था? ऐसा क्यों है कि लोकप्रिय साहित्य में संतति विज्ञान का जिर्क सिर्फ नाज़ी जर्मनी के संदर्भ में किया जाता है और इस बात का कोई उल्लेख नहीं किया जाता है कि जर्मनी का संतति कानून प्रत्यक्ष रूप से अमेरिका से लिया गया था? या यह कि कैसे जर्मनी और अमेरिका में संतति विज्ञान एक दूसरे के साथ गहराई से जुड़े हुए थे? कैसे मेंडेल की आनुवंशिकी की विरासत नस्लभेदी राष्ट्रों, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन भी शामिल थे, के हाथों में एक औजार बन कर रह गये थे? ऐसा क्यों है कि श्वेत जातियों की श्रेष्ठता के सिद्धांतों का समर्थन करने के लिए अनुवांशिकी का बारम्बार इस्तेमाल किया जाता रहा है?

मेंडेल ने इस बात को दर्शाया था कि ऐसे कुछ लक्षण थे जो विरासत में हासिल हुए थे, और इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हमारे पास ऐसे जीन थे जो कतिपय चिन्हों को अपने साथ ले जाते हैं जिन्हें मापा जा सकता है, जैसे कि फूल का रंग और पौधे की ऊंचाई। जीवविज्ञान के पास तब इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि हमारे पास कितने प्रकार के जीन हैं, उनमें से कौन-कौन से लक्षण हमें वंशानुगत क्रम में मिले हैं, मानव आबादी किस अनुपात में आनुवंशिक तौर पर मिश्रित है, इत्यादि। मेंडेल को खुद तब तक इस बात का कोई इल्हाम नहीं था कि जीन खुद में वंशानुक्रम के वाहक के रूप में होते हैं। 

आनुवंशिकी से समाज तक यह एक लंबी छलांग थी जिसे किसी भी अनुभवजन्य वैज्ञानिक सबूतों से समर्थित नहीं किया गया था। सारी कोशिशें कतिपय नस्लों की श्रेष्ठता को प्रदर्शित करने के साथ शुरू हुई, जिसमें पहले से इस बात को मान लिया गया कि कुछ नस्ल अन्य से श्रेष्ठतर हैं और फिर इसके बाद इस सिद्धांत को पुष्ट करने के लिए सुबूतों को चुनने का प्रयास किया गया। अधिकांश आईक्यू बहस और समाजजैविकी का बहुत सा हिस्सा विज्ञान के इस दृष्टिकोण से आया। बॉब हर्बेर्ट के द्वारा कुख्यात निबंध द बेल कर्व में लिखा है कि लेखक चार्ल्स मरे और रिचर्ड हर्न्सटीन ने “नस्लीय अश्लील साहित्य” का एक अंश लिखा था, जिससे कि “...विश्व के सबसे विक्षिप्त नस्लवादी लोगों की अश्लील और काफी अर्से से -ख़ारिज दृष्टिकोणों को ढककर उसे सम्मानित लबादा डालने का काम।” 

यहाँ पर विज्ञान के इतिहास के बारे में थोडा सा जिक्र करना महत्वपूर्ण होगा। बीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों के दौरान संतति विज्ञान मुख्यधारा में बड़े स्तर पर बना हुआ था। यूके और अमेरिका में उसे सभी प्रमुख दलों और राजनीतिक हस्तियों का समर्थन प्राप्त था। कोई आश्चर्य की बात नहीं कि विंस्टन चर्चिल भी नस्लीय विज्ञान के प्रमुख समर्थकों में से एक थे। हालाँकि प्रगतिशील हलकों के बीच में भी संतति विज्ञान के कुछ समर्थक मौजूद थे।

ग्रेट ब्रिटेन में फ्रांसिस गैल्टन संतति विज्ञान के संस्थापक थे, जो चार्ल्स डार्विन के चचेरे भाई थे। गैलटन ने ह्रास और सामान्य वितरण जैसे सांख्यकीय सिद्धांतों में उसी प्रकार से बीड़ा उठा रखा था, जैसा कि यूजीनिक्स सोसाइटी में उनके घनिष्ठ सहयोगी और उत्तराधिकारियों कार्ल पियर्सन और आर ए फिशर थे। नस्ल और विज्ञान के बीच में संबंध को लेकर ऑब्रे क्लेटन ने नॉटिलस में एक निबंध में लिखा है, “जिसे हम अब सांख्यिकी के रूप में समझते हैं वह मुख्यतया गेलटन, पियर्सन और फिशर के काम से आता है, जिनके नाम “पीयर्सन कोरिलेशन कोएफिसियेंट” और “फिशर इनफार्मेशन” के रूप में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।” खासकर, कई दशकों से “सांख्यकीय महत्व” की संकटग्रस्त अवधारणा जिस अनुभवजन्य शोध प्रकाशन योग्य है अथवा नहीं, का पता प्रत्यक्ष तौर पर इस तिकड़ी के माध्यम से लगाया जा सकता है।” 

यह गेलटन ही था, जिसने वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर अफ्रीकी एवं अन्य देशज निवासियों के उपर बर्तानवी श्रेष्ठता का तर्क रखा था, और यह कि श्रेष्ठतर नस्लों को कमतर नस्लों की जगह ले लेनी चाहिए। पियर्सन ने नरसंहार के लिए अपना औचित्य बताते हुए कहा था, “इतिहास मुझे एक रास्ता और एकमात्र रास्ता दिखाता है, जिसमें एक उच्चतर सभ्यता का निर्माण किया गया है, अर्थात नस्ल का नस्ल के साथ संघर्ष में, और शारीरिक और मानसिक तौर पर ज्यादा माकूल नस्ल का अस्तित्व।”

प्रजनन विज्ञान कार्यक्रम के दो पहलू थे: इसमें एक था कि राज्य को आबादी की स्थिति में बेहतरी लाने के लिए चुनिंदा प्रजनन को प्रोत्साहित करने का प्रयास करना चाहिए। राज्य के लिए दूसरी जिम्मेदारी यह थी कि वह अवांछित आबादी में “कांट-छांट” करने के लिए सक्रिय कदम उठाये। “अवांछित लोगों” का बंध्याकरण करना प्रजनन समाजों में उतना ही अनिवार्य हिस्सा था जितना कि लोगों को चयनात्मक प्रजजन के लिए प्रोत्साहित करने का।

अमेरिका में, प्रजनन विज्ञान कोल्ड स्प्रिंग हार्बर के यूजीनिक्स रिकॉर्ड ऑफिस में केंद्रित था। जबकि कोल्ड स्प्रिंग प्रयोगशाला और इसके शोध प्रकाशनों का अभी भी समकालीन जीवन विज्ञान में महत्वपूर्ण स्थान बना हुआ है, लेकिन इसका बुनियादी महत्व यूजीनिक्स रिकॉर्ड ऑफिस से आता है, जो कि प्रजनन विज्ञान और नस्ल विज्ञान के बौद्धिक केंद्र के तौर पर संचालित होता है। इसे रॉकफेलर फेमिली, कार्नेगी संस्थान एवं अन्य से मिलने वाले दान के पैसे से संचालित किया जाता था। अमेरिका में कई राजकीय कानूनों को पारित कराने वालों में चार्ल्स डेवेनपोर्ट और उनके सहयोगी हैरी लाफलिन सबसे महत्वपूर्ण शक्सियतों में से एक थे, ज्जिनके चलते “अयोग्य” आबादी के लिए जबरन नसबंदी कराई गई। उन्होंने 1924 आव्रजन प्रतिबन्ध अधिनियम में भी सक्रिय तौर पर अपना योगदान दिया था जिसने विभिन्न नस्लों के लिए कोटा निर्धारित किया। इसमें नोर्डिक नस्लों को वरीयता दी गई थी, जबकि पूर्वी यूरोपीय (स्लाव नस्ल), चीनी, अफ्रीकी, भारतीय और यहूदियों को देश के भीतर प्रवेश करने पर लगभग पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया था।

अमेरिका में उस दौरान नसबंदी कानून राजकीय कानून थे। न्यायमूर्ति वेन्डेल होम्स जो कि अमेरिका में उदार न्यायशास्त्र के प्रवर्तक थे, ने नसबंदी को न्यायोचित ठहराते हुए अपना कुख्यात फैसला सुनाया था, “कमअकलों की तीन पीढियां ही काफी हैं।” कैर्री बक और उनकी बेटी जड़ बुद्धि नहीं थी; उन्हें अश्वेत और गरीब होने के “अपराध” की सजा दी गई थी। एक बार फिर से, यूजीनिक्स रिसर्च ऑफिस और लाफलीन ने “अयोग्य” लोगों के बंध्याकरण के लिए “वैज्ञानिक साक्ष्य” प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।  

जहाँ एक तरफ नाज़ी जर्मनी के नस्लवादी कानूनों की हिटलर के गैस चैम्बरों के आधार पर व्यापक स्तर पर निंदा की जाती है, वहीँ हिटलर ने खुद इस बात को कहा था कि जर्मनी के नस्लीय कानूनों के लिए उसे अमेरिका के कानूनों में बंध्याकरण और आव्रजन कानूनों से प्रेरणा प्राप्त हुई थी। अमेरिकी संततिशास्त्रियों और नाज़ी जर्मनी के बीच के प्रगाढ़ संबंध व्यापक रूप से ज्ञात और दर्ज हैं (एडविन ब्लैक: हिटलर पर अमेरिका का कर्ज, 6 फरवरी, 2004)। हेइडलबर्ग विश्वविद्यालय ने लाफलीन को “नस्लीय सफाए के विज्ञान” में उनके काम के लिए उन्हें मानद उपाधि से सम्मानित किया था। 

नाज़ी जर्मनी के पतन के साथ प्रजनन शास्त्र भी बदनाम हो गया था। इसकी प्रतिक्रिया में विभिन्न संस्थानों, विभागों और पत्रिकाओं के नामों को दूसरे नामों से स्थानापन्न कर दिया गया, लेकिन उनके काम को बदस्तूर जारी रखा गया। मानव आनुवांशिकी और सामाजिक जीव विज्ञान अब नए नाम हो गये थे। 90 के दशक में बेल कर्व ने नस्लवाद को सही ठहराया और न्यूयॉर्क टाइम्स के पूर्व विज्ञान संवाददाता निकोलस वेड के द्वारा हालिया बेस्ट-सेलर में उन सभी बेफिजूल के सिद्धांतों को पेश किया गया है जिन्हें वैज्ञानिक आधार पर काफी अर्से पहले ही ख़ारिज कर दिया गया था। पचास साल पहले रिचर्ड लेवोनटीन ने दर्शाया था कि तथाकथित नस्लीय समूहों में बीच में सिर्फ 6-7% मानव आनुवंशिकी भिन्नता है; जबकि बाकी का 93-94% हिस्सा इन समूहों के बीच में ही रहता है। उस समय आनुवंशिकी अपनी शैशवावस्था में था। बाद में जो आंकड़े आये उन्होंने लेवोंटिन के शोध को और भी मजबूत करने का काम किया। 

ऐसा क्यों है कि जब कभी हम सामाजिक मुद्दों के बारे में चर्चा करते हैं तो आनुवंशिकी और नस्लभेद की बात, यहाँ तक कि वर्ग एवं जातीयता का मुद्दा अचानक से सामने आ जाता है? समाजशास्त्र, जिसकी जडें काफी हद तक प्रजनन शास्त्र के समान हैं, के प्रति आज भी सम्मान का भाव क्यों बरकारर है? ऐसा क्यों है कि 80 वर्ष पूर्व सोवियत विज्ञान और उसके ल्यसेंको के पाप की आलोचना करने वालों को भी अभी भी विज्ञान की अस्वीकृति के रूप में माना जाता है? जबकि प्रजनन शास्त्र और “नस्लीय विज्ञान” आज भी विज्ञान के रूप में छद्म वेश धारण किये हुए विद्यमान है? 

इसका उत्तर बेहद आसान है। विज्ञान को कुचलने वाली विचारधारा के उदहारण के रूप में सोवियत विज्ञान पर हमला करना आसान है। यह सोवियत विज्ञान के रूप में ल्यसेंको को आदर्श बनाता है, भले ही सोवियत विज्ञान ने अपनी इस एक गलती को सुधार लिया हो। अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी में नस्लीय विज्ञान को जिस रूप में निरुपित किया गया, उसके सोवियत संघ में भी अनुयायी थे। ल्यसेंको ने अपने कैरियर को आगे बढ़ाने के लिए ऐसे विभाजनों का इस्तेमाल किया और इसने सोवियत विज्ञान को नुकसान पहुँचाया। लेकिन प्रजनन शास्त्र का इतिहास, और इसके विनाशकारी इतिहास और यूरोप और अमेरिका में इसकी निरंतर उपस्थिति को लगातार नजरअंदाज क्यों किया जाता आ रहा है? भले ही यह पिछले 100 वर्षों से अधिक समय से कायम है? और इसे आईक्यू बहस या समाजजैविकी की आधुनिक आड़ के तहत जारी रखा जा रहा है?

इसकी वजह यह है कि यह विज्ञान के भीतर नस्लवाद को स्थान मुहैया कराता है: प्रजनन शास्त्र से समाजजैविकी नामकरण करने से यह सम्मानजनक विज्ञान प्रतीत होता है। विचारधारा की ताकत इसके विचार में नहीं बल्कि यह हमारे समाज के ढांचे में निहित होती है, जहाँ पर धनी और शक्तिशाली वर्ग को अपनी हैसियत को यथोचित ठहराने की आवश्यकता पड़ती है। यही वजह है कि एक विचारधारा के तौर पर नस्लीय विज्ञान को पूंजीवाद और धनी देशों के क्लब जी7, जो “एक नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को खड़ा करने” की इच्छुक है, के रूप में एक स्वाभाविक मित्र मिला हुआ है। समाजजैविकी के रूप में नस्लीय विज्ञान के पास एक बेहतर शिष्ट औचित्य प्राप्त हो गया है जो अपने देश और पूर्व-औपनिवेशिक एवं औपनिवेशिक-बसाहट वाले देशों में पूंजी के शासन को कायम रखने के लिए प्रजनन शास्त्र की तुलना में बेहतर आधार प्रदान कराने में कारगर बनाता है। अनुवांशिकी में विज्ञान के लिए संघर्ष करने हेतु विज्ञान के भीतर और बाहर दोनों जगह से लड़ना होगा। ये दोनों एक दूसरे से बेहद घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Mendel’s Genetic Revolution and the Legacy of Scientific Racism

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