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नैरेटिव की ताकत: हिन्दुओं का गलत यकीन कि उन्होंने मुस्लिमों से ज्यादा झेला

शिव विहार के निवासी टीवी और व्हाट्सएप्प के कुप्रचार का शिकार हैं। इन कुप्रचारों ने हकीकत और तथ्यों की जगह ले रखी है।
shiv vihar

शिव विहार के फेज 6 या 7 में चलते चले जाइये और वहाँ पर आपको जो भी कहानी सुनने को मिलेगी वह हिन्दुओं की ओर से ही होगी। उत्तर-पूर्वी दिल्ली के इस शहरी क्षेत्र से आपको एक भी मुस्लिम कहानी सुनने को नहीं मिलेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि कोई मुसलमान वहाँ पर मौजूद ही नहीं हैं। सारे मुस्लिम शिव विहार से पलायन कर चुके हैं। कहीं और शरण लिए हुए हैं।

शिव विहार के इन इलाकों में यदि आप इस तलाश में हैं कि हिन्दुओं की कौन-कौन सी संपत्ति बर्बाद हुई है? तो आपको एक राशन की दुकान, एक मकान और आलू व्यापारी की दुकान सहित कुल तीन जगहों पर इसकी शिनाख्त मिलेगी।

इसके ठीक उल्टे मुस्लिमों की ढेर सारी संपत्तियों को या तो लूटा गया है या जलाकर राख कर दिया गया है। लेकिन इसके बावजूद हिन्दुओं की ओर से आपको सुनने को मिलेगा कि 24 और 25 फरवरी को यहाँ पर “मुसलमानों की भीड़” घुस आई और भारी मात्रा में यहाँ पर नुकसान कर डाला।

गली मोहल्ले में हिन्दू लोग यह कहते पाए जायेंगे कि मुस्लिम हमलावर उनके इलाके में चौड़े बजबजाते नाले पार से आये थे। यह नाला शिव विहार के ठीक सामने है जो इस इलाके को बाबरपुर और पुराने मुस्तफाबाद से अलग करता है। यहाँ पर आकर मुस्लिमों ने हमारे घरों, दुकानों और धार्मिक स्थलों पर हमले किये। हिन्दू इतना डर गए थे कि उन्होंने खुद को अपने घरों के अंदर पिछले चार दिनों से बंद कर रखा था। अब शनिवार से वे इस झटके से उबरने की कोशिश कर रहे हैं।

शिव विहार में हिन्दुओं की संपत्तियों के हुए नुकसान को समझने की शुरुआत प्रीति से होती है, जिनका मकान फेज 7 की गली नंबर 3 में गंदे नाले के साथ लगा है। जब से यहाँ पर हिंसा भड़की है, उनके दोनों बच्चे स्कूल नहीं जा सके हैं। शिव विहार के उत्तर की ओर  बावली है। इस तरफ इशारा करते हुए वे बोल पड़ती हैं “उस तरफ के हिन्दुओं के घर जला दिए गए हैं और लूटपाट हुई है।” उत्तर-पूर्वी दिल्ली के इस इलाके के आगे जाकर इसकी सीमा उत्तरप्रदेश के लोनी इलाके से जा लगती है।

पड़ोस में स्थित अन्य हिन्दू परिवार ने भी प्रीति की तरह खौफ के भाव को साझा करती हैं। वे कहती हैं कि भीड़ “मस्जिद से निकल कर आई” और हिन्दुओं  पर उन्होंने कहर बरपा डाला। जिस मस्जिद का जिक्र महिला कर रही थीं, वो नाले के उस पार एक बड़ी-सी, हरी और सफेद इमारत है। यही वह जगह है जहां पर बाबरपुर और पुराना मुस्तफाबाद का इलाका आमने-सामने पड़ता है और शिव विहार के फेज 6 और 7 से अलग-थलग हो जाता है।


यहाँ की महिलाएँ और अन्य दूसरे हिन्दुओं में भी यह बात घर कर गई है कि बाबरपुर में जो हनुमान मंदिर था, उसे दंगों में नुकसान पहुँचाया गया है। जब उन्हें 15 मिनट पहले की ली गई मंदिर की तस्वीर दिखाई जाती है, जो कि पूरी तरह से अपनी पूर्व स्थिति में बरक़रार है तो अपनी कहानी में वे जोड़ते हुए कहती हैं कि “मंदिर में जो एक हिन्दू बुढ़िया औरत रहती थी, उसे भीड़ द्वारा मारा गया है [‘ख़तम ही कर दिया’]।

मंदिर को अपवित्र किये जाने की यह चर्चा दूर-दूर तक पसरी पड़ी है, और इस इलाके में जिस किसी से भी आप मिलेंगे वह इस कहानी को जरुर दोहराएगा। जबकि सच्चाई यह है कि यह बात गलत पाई गई। और अगर आप प्रीति या वहाँ पर रहने वाले अन्य हिन्दुओं से वहाँ की सड़कों और गलियों के बारे में जानकारी लेते हुए अंदर घुसते हैं तो वाकई में आपको वहाँ पर ख़ाक हो चुके घरों और दुकानों का नजारा देखने को मिलेगा। उदहारण के लिए वहाँ पर ढेर सारी मुस्लिम समुदाय की बेकरीयां हुआ करती थीं, जिन्हें लूटा गया था। ये वे कारखाने थे, जहाँ से सड़कों के किनारे चाय की दुकानों को चाय नाश्ते के लिए सस्ते रस्क और 'फैन' बनाई जाती थी। सड़कों पर तैयार माल बिखरे पड़े हैं, जो कि हाल में हुए आतंक की याद ताजा कराते हैं।

इन बेकरियों तक पहुँचने के लिए आपको शिव विहार के हिंदुओं द्वारा ढेर लगाए हुए बिस्तरों, मोटरसाइकिलों, हाथ-गाड़ियों, साइकिलों और लकड़ी के तख्तों से बने बैरिकेड्स को पार करने के लिए या तो कूद कर जाना होगा या रेंगना पड़ेगा। यहाँ के हिन्दुओं का कहना है कि उन्होंने ये बैरिकेड्स "अपनी सुरक्षा के लिए" खड़े किये हैं।

कागजों में आप पायेंगे कि शिव विहार एक "मिली जुली आबादी" वाला इलाका है। जबकि हकीकत में मुस्लिम-बहुल गलियों में आपको कुछ ही हिन्दू घर मिलेंगे, और ऐसा ही कुछ हिन्दू-बहुल गलियों में भी है। कई हिन्दुओं का कहना है कि हिंसा के दौरान शिव विहार के इस हिस्से से वे भी भाग गए थे, लेकिन अब वे लोग धीरे-धीरे वापस आ रहे हैं।

हालाँकि मुसलमानों के साथ ऐसा नहीं है। उनमें से कुछ ने अपनी संपत्ति को दोबारा हासिल करने की कोशिश की, लेकिन उनका कहना है कि उन्हें शिव विहार में प्रवेश से रोक दिया गया था। वे बताते हैं कि उनके स्टोर और घरों को लूटा जा चुका है। ऐसा उस क्षेत्र में यदि आप मुआयना करें तो साफ़ नजर आता है, जिसे बाड़ बनाकर घेर लिया गया है।

फेज 7 के अंदरूनी हिस्सों में सुरक्षा कर्मियों की एक बड़ी टुकड़ी भी मौजूद है, लेकिन उनकी चहलकदमी केवल उसी ओर है, जहाँ पर एक समय मुसलमान रहा करते थे। वे मुसलमानों को उस पुल को पार करने से भी रोकने का काम कर रहे हैं, जो नाले के दोनों तरफ के हिन्दू-बाहुल्य और मुस्लिम-बाहुल्य कालोनियों को आपस में जोड़ते हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि शिव विहार में मुसलमानों को काफी कुछ झेलना पड़ा है। उनके दोबारा यहाँ पर आ सकने और एक बार फिर से अपने घरों पर काबिज हो पाने की संभावना भी काफी हद तक कम नजर आती है।इसके बावजूद यहाँ के जो हिन्दू निवासी हैं वे जोर देकर कहते हैं कि ये वे हैं जिन्हें हाल के सांप्रदायिक झगड़ों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण सोच अगर यहीं पर खत्म हो जाती तब भी गनीमत होती।

यहाँ की मेन रोड पर रहने वाले हिंदुओं का दावा है कि उनकी धार्मिक बिरादरी के लोग जो शिव विहार की तंग गलियों में रहते हैं, को काफी नुकसान झेलना पड़ा है। वहीँ दूसरी ओर शिव विहार के भीतरी इलाकों में रहने वालों का कहना है कि मुख्य सड़क के पास, कॉलोनी के बाहरी इलाके में रहने वाले हिंदुओं पर भीषण हमले हुए हैं और उनके साथ लूटपाट की गई है। इस तरह से आप एक छोर से दूसरे छोर पर पटक दिए जाते हैं, जबकि इसी बीच राह में आपको मुस्लिम संपत्तियों की बर्बादी देखने को नजर आयेगी।  

इसे आप नैरेटिव की ताकत कह सकते हैं, जिसे थोड़े से मीडिया की मदद से भारतीय जनता पार्टी ने रचा है। या इसे हिन्दुओं की मनोवैज्ञानिक जरूरत कह सकते  हैं, जो इसलिए बनाई गयी है ताकि मुसलमानों को बेदर्दी से निशाना भी बना दिया जाए और अपराध भावना से छुटकारा भी पा लिया जाए। दोनों ही स्थिति में ये नैरेटिव हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की खाई को चौड़ा करने की काम करती है और इसे स्थायी बनाने का ही काम करती हैं।
 
नैरेटिव की ताकत क्या होती है यह तब समझ आती है जब जले हुए मकानों को यह बता दिया जाता है कि ये हिन्दुओं के वे घर थे, जिन्हें फूंक दिया गया। जरा और करीब से मुआयना करेंगे, तो इन मकानों के मालिकों की धार्मिक पहचान के चिन्ह अभी भी अपनी कहानी बयाँ करते दिख जायेंगे। वे घर मुसलमानों के थे। इस बारे में कोई संदेह नहीं रह जाता।

अब उदाहरणों के साथ बताते चलते हैं कि एक निर्जन से पड़े डिजिटल सेवा केंद्र के बारे में बताया गया कि ये भी एक हिन्दू प्रतिष्ठान था। टूटे-फूटे हालात में पड़े इसके साइनबोर्ड पर प्रोप्राइटर का नाम फरीद और वसीम खान दर्शा रहा है। ठीक इसी तरह इसरार अहमद का जला घर और ऑटो-गैराज और परवेज आलम का ख़ाक हो चुका मेडिकल स्टोर इसी प्रकार की कहानी बयाँ करते हैं।

'हिन्दुओं को झेलना पड़ा है' जैसे  नैरेटिव ने उन्हें हकीकत की ओर निगाह डालने नहीं दिया है। उन्हें अँधा बना डाला है। और शायद जल्द ही इन संकेतों के नामोनिशान मिट जायेंगे और शायद यकीन करने के लिए बनाई गयी हकीकत से ही काम चलाना पड़े।

हालाँकि एक हिन्दू घर ऐसा भी मिला जिसे भारी पैमाने पर नुकसान पँहुचा है। इसकी दीवार मदीना मस्जिद के साथ साझा होती है। जहां तोड़-फोड़ हुई थी। पता चला कि यह घर एक बीमा एजेंट के नाम है, लेकिन यह नहीं पता चल सका कि यह बर्बाद कब हुआ, मस्जिद पर हमले से पहले या बाद में? इस बारे में इसके नौजवान मालिक से सवाल करने पर वे मुहँ में ही बुदबुदाते रहे और कोई साफ़ जवाब नहीं दिया।

एक बार जब आपको इन दावों की हकीकत पता लग जाती है तो आप यह जानना चाहते हैं कि शिव विहार के वे मुसलमान आखिर हैं कहाँ? क्या वे मारे जा चुके हैं या दफन कर दिए गए?नहीं ऐसा नहीं है। वे नाले के पार पुराने मुस्तफाबाद और चांद बाग या लोनी की ओर जान बचाकर भाग गए थे। उदाहरण के लिए शिव विहार के बेकरी वाले लोग अपने चाँद बाग़ के रिश्तेदारों के घरों में शरण लिए हुए हैं। वे भी बेकरी का ही काम करते हैं। उन्हीं के साथ शिव विहार के अन्य मस्जिदों के साथ बर्बाद किये गए अक्सा मस्जिद के मौलाना फारूक भी पनाह लिए हुए हैं।

करीब 15 मुस्लिम महिलाएं, बच्चे और पुरुषों ने छह दिनों के लिए खुद को चाँद बाग़ की एक बेकरी की एक संकरी सीढ़ियों के ऊपर बने छोटे से कमरे में समेट रखा था। फारूक का कहना है कि मदीना मस्जिद के पास रहने वाले हिन्दुओं ने ही यह बर्बरता की थी।यह ठीक वही जगह है जहाँ के लिए प्रीति ने बताया था कि यहाँ पर हिन्दुओं में से जो पीड़ित हैं, वे मिल जाएंगे। इस नैरेटिव के बारें आप फारूक से चर्चा करेंगे तो वे कहेंगे कि "अगर मुसलमानों ने ऐसा कुछ [हिंसक कृत्य] किया भी होगा शिव विहार खाली करने से पहले तो वो हमने आत्मरक्षा में या अपनी संपत्तियो की रक्षा के लिए किया होगा।"

इसमें कोई शक नहीं है कि 24 फरवरी से  शिव विहार में मुसलमानों और हिंदुओं के बीच जमकर संघर्ष हुआ होगा। हिन्दुओं की ओर से गलियों के छोर पर बैरिकेड्स खड़ा करने के पीछे भी यही वजह है। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि शिव विहार के हिंदू और मुसलमान दोनों का ही यह मानना है कि इस लड़ाई में "बाहरी लोगों" ने भी हिस्सा लिया था। यहाँ पर गोलियाँ चलीं, ईंट-पत्थर फेंके गए और दोनों धर्मों के सदस्यों की इसमें जानें गईं।

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हो सकता है कि इस जोरदार युद्ध के दर्दनाक अनुभव के चलते यह नैरेटिव अपना स्वरुप लेने में सफल हो सका हो कि मुसलमानों की तुलना में हिन्दुओं को कहीं ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा है। इसके ऊपर टीवी चैनलों ने जिस तरह से अपनी ओर से मिर्च मसाला डालने का काम किया है, उसने हिन्दुओं के लिए इस नैरेटिव को ही निर्विवाद सत्य मानने में मदद ही की है, ताकि भविष्य में उन्हें न तो कोई अपराध बोध रहे और ना ही उन्हें इसको लेकर कोई पछतावा हो।

हालाँकि इन दंगों के दौरान भी हिंदू और मुसलमानों के बीच की दीवार पिघलती नजर आई है। कम से कम गली नं. 4 में तो ऐसा हुआ है, जहाँ उन्होंने एकजुट होकर लुटेरी भीड़ का सामना किया था।दंगे के करीब एक हफ्ते बाद, शनिवार 29 फरवरी को, कुछ हिंदू पुरुष अपने मुस्लिम पड़ोसियों को उनके घरों से सामान निकालने में मदद करते देखे गए। रईस अपने बंद पड़े घर में से कुछ जरुरी सामान लेने आये हुए हैं। वे बताते हैं कि कई अन्य मुसलमानों के घरों और दुकानों को लूटा और जला दिया गया है। बढ़ई का काम करने वाले इस अधेड़ का कहना है कि “हमारे पास जो कुछ भी बचा है वह हमारे हिंदू पड़ोसियों की वजह से है, जिन्होंने हमारी मदद की है।"

गली नंबर 14, जहाँ 12 मुस्लिम परिवार और आठ हिन्दू परिवार रहते हैं। यहां  के हरीश पाल का कहना है “दो दिनों तक यदि हमने भीड़ को जय श्री राम के नारे लगाते सुना, तो हम हिन्दू आगे आये और भीड़ को समझाया कि यहाँ पर कोई मुसलमान नहीं है। उसी तरह यदि हमने ‘आजादी’ के नारे सुने तो हिन्दू अंदर छुप गए और मुसलमानों ने भीड़ को समझाया कि यहाँ पर कोई हिन्दू नहीं रहता।”

उन्होंने इस प्रकार भीड़ को काबू में रखा, जब तक कि वह बेकाबू न हो गई। सौभाग्य से उसी दौरान इलाके में प्रशासन भी हरकत में आ गया था।यहीं के एक और निवासी रियासुल भी अपने कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेजों को लेने आये हैं। और बताते हैं कि उन्होंने यहाँ से भागने का फैसला इसलिये लिया क्योंकि आस पास की गलियों में रहने वाले सभी मुस्लिम भाग चुके थे। उनके अल -थलग पड़ जाने ने उनकी स्थिति को कहीं और असहाय बना दिया था, जिसके चलते पूर्ण पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा।

पाल का कहना है कि पिछले कुछ दिनों से वे टीवी खूब देख रहे हैं, क्योंकि वे अपने दोस्तों के साथ लुटेरों से गली की रखवाली का काम कर रहे हैं। वे गलियाँ जहाँ मुस्लिम और हिंदू लगभग समान अनुपात में रहते हैं, उन्हें इस लड़ाई से कोई लेना-देना नहीं था, वे बताते हैं। "लेकिन टीवी की खबरों में दिखाया जा रहा था कि मुसलमानों की ओर से भारी तैयारी की गई थी" वे बोल पड़ते हैं। उनके अनुसार, शिव विहार के कुछ हिस्सों में जो हिंदू-बाहुल्य के इलाके हैं, वहाँ पर बाहरी तत्वों के साथ मिलकर मुसलमानों के साथ झगड़े हुए थे।

गली नंबर 14 अभी भी उम्मीद की एक किरण के रूप में है। लेकिन हमें यह स्वीकार करना होगा कि शिव विहार में जो हिंसा देखने को मिली, वह एकतरफा थी। जब तक इस हकीकत को स्वीकार नहीं किया जाता है, तब तक यह झूठा नैरेटिव किसी भी मेल-मिलाप की संभावना को बनने नहीं देने जा रहा।
 
तस्वीरें: प्रणिता द्वारा

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