निशंक की ताजपोशी : क्या शिक्षा के भगवाकरण की मुहिम तेज़ होगी?
मोदी सरकार 2.O में रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ देश के नए शिक्षा मंत्री यानी मानव संसाधन विकास (HRD) मंत्री बनाए गए हैं। उन्होंने शुक्रवार को अपना कार्यभार संभाल लिया। कार्यभार संभालते ही उन्होंने पिछले कई सालों से लटकी हुई नई शिक्षा नीति को लेकर ड्राफ्ट जारी किया और सभी से अपील की कि वे इसमें सुधार के लिए सुझाव दें।
लेकिन इस ड्राफ्ट को लेकर पहले भी विवाद रहा है। मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में भी कई शिक्षाविदों ने मोदी सरकार पर शिक्षा का भगवाकरण करने और आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया था।
निशंक के शिक्षा मंत्री बनने के बाद इसकी आशंका और बढ़ गई है। इसका एक कारण है उनके पूर्व के बयान, जिसमें वह धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिष को विज्ञान और अनुसंधान से ऊपर रखते हैं। उनके मुताबिक विज्ञान अभी तक भूकंप के बारे में भविष्यवाणी नहीं कर सकता है लेकिन ज्योतिषी ये कर सकता है।
इसके अलावा वे हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में बताई गई बातों को आज के समय में सत्य के रूप स्थापित करते हैं। जैसा की प्रधानमंत्री समेत कई अन्य भाजपा नेताओं ने समय-समय पर कहा है कि गणेश का सर कट जाने के बाद हाथी का सर लगाना विज्ञान था। जबकि हम समय जानते हैं कि वो केवल एक धार्मिक मान्यता है उसका विज्ञान से कोई लेना देना नहीं है। कई लोग कह रहे हैं की निशंक जैसे व्यक्ति का शिक्षा मंत्री बनाना देश के वैज्ञानिक तार्किक ज्ञान के लिए खतरनाक है।
2019 में मोदी और भाजपा को एक बार फिर जनादेश मिला है। इसलिए समझा जा रहा है कि अब वो अपने शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक कार्यक्रमों को तेज़ी से लागू करेगी जिसे उसने अब तक उतनी आक्रमकता से नहीं किया है। इसमें भाजपा और आरएसएस का काफी समय से मानना रहा है कि छात्रों को विद्यालय में हिन्दू धर्म में वर्णित कथाओं को पढ़ना चाहिए। आरएसएस इन्हीं मान्यताओं को लेकर शिक्षा के क्षेत्र में काफी लंबे समय से काम कर रहा है। इसमें हिन्दू धर्म की मान्यताओं को न सिर्फ विज्ञान के कसौटी पर सही साबित करना है, बल्कि संघ के राष्ट्रवाद को भी स्थापित करना है, जो भारतीय राष्ट्रवाद से पूरी तरह से भिन्न है।
संघ अपनी इन्हीं अवधारणा को स्थापित करने के लिए सरस्वती विद्या मंदिर, एकल स्कूल और शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाली विद्याभारती जैसी संस्थाए काम करती रही हैं। इसके अलावा पिछले समय देखा गया है कि संघ ने देश के तमाम बड़े शिक्षण संस्थानों में संघ समर्थको की नियुक्ति के लिए अभियान चलाया जिसमें उसे पिछली भाजपा सरकार का भरपूर साथ मिला था।
इसके अलावा पिछली सरकार में शिक्षा का भगवाकरण शुरू किया था। कई भाजपा शासित राज्यों ने पाठ्यक्रम में पुरोहित और कर्मकांड जैसे विषयों में पढ़ाई शुरू की। इसके साथ ही भाजपा ने इस दौरान प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक भारत के इतिहास में संघ का नजरिया छात्रों पर थोपने का प्रयास किया। उसमें उसने कुछ हद तक कामयाबी भी हासिल की, लेकिन संघ के लोगों का मानना है कि भारत के इतिहास में केवल मुगलों को पढ़ाया जाता है जबकि हिन्दू शासकों के शौर्य को कम करके आंका गया है, जबकि वे हमारा गौरव हैं। लेकिन इस पर लोग सवाल करते हैं कि क्या आज भी संघ जौहर और सती प्रथा जैसी कुरुतियों पर गर्व करता है।
इसके लिए आरएसएस ने कई बार सरकार को खुले तौर पर लिखा भी है कि वो भारत की शिक्षा में आमूल चूल परिवर्तन चाहता है।
छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष विकास ने नई शिक्षा नीति पर कहा कि अभी जिस तरह की नई शिक्षा नीति तैयार की गई है, उसका उद्देश्य शिक्षा का बाज़ारीकरण, निजीकरण तो है ही साथ ही उसे मनुवाद के हिन्दुत्वादी एजंडे के अनुरूप बनाना है।
आगे विकास कहते हैं कि जिस तरह की शिक्षा नीति है उसका अंतिम लक्ष्य जो दिखता है वो यह है कि आने वाली पीढ़ी के सोचने के तरीके को बदलना है। इसका उद्देश्य हिन्दू बाह्मणवादी सोच को स्थापित कर समाज को लड़ाना , वैज्ञानिक सोच को कम करना,तार्किकता को खत्म करना और प्राचीन और मध्यकालीन रूढ़िवादी मानसिकता को बढाना है।
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