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नमामि गंगे : आत्मबोधानन्द को दिये आश्वासन में कितनी सच्चाई है?

नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा की ओर से मातृसदन को सौंपे पत्र में गंगा और सहायक नदियों पर निर्माणाधीन बांध परियोजनाओं को पूर्ण रूप से बंद करने का आश्वासन दिया है। क्या एनएमसीजी के इस आश्वासन पर वाक़ई भरोसा किया जा सकता है कि सरकार गंगा पर निर्माणाधीन बांधों को बंद करेगी।
आत्मबोधानन्द

नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा यानी एनएमसीजी ने हरिद्वार के मातृसदन को अपने लिखित आश्वासन में कहा है कि “जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने गंगा और उसकी सहायक नदियों पर बन रहे बांधों का निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट सौंपी है। इस रिपोर्ट में रखी गई बातों के आधार पर राज्य में जल विद्युत परियोजनाओं के भविष्य पर फ़ैसला होगा।” एनएमसीजी के मुताबिक़ ये बांध बंद किये जाएंगे।

इस लिखित आश्वासन के बाद 194 दिनों से अनशन कर रहे और जल त्यागने का इरादा जता चुके, स्वामी आत्मबोधानंद ने अपने अनशन को विराम दिया। इसके अलावा हरिद्वार में गंगा में खनन रोकने के लिए भी एनएमसीजी ने 26 अप्रैल को आदेश जारी किये।

सवाल है कि क्या केंद्र या राज्य की सरकारें चाहेंगी कि उत्तराखण्ड में जल विद्युत परियोजनाएँ रोकी जाएँ? मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पिछले कुछ समय में राज्य में रुकी पड़ी जल विद्युत परियोजनाओं को शुरू करने के लिए दिल्ली के चक्कर काटे और सफ़ल भी हुए हैं। जैसे केदारनाथ आपदा के बाद से बंद पड़ी लखवाड़ और किसाऊ बहुद्देश्यीय परियोजना को केंद्र से हरी झंडी मिल गई। इसके अलावा भी अन्य परियोजनाएँ हैं जिन्हें शुरू करने के लिए तेज़ी से कार्य किया जा रहा है।

गंगा पर बांध बंद करने के आश्वासन में कितनी सच्चाई

मातृसदन के स्वामी शिवानंद ने बताया कि नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा की ओर से मातृसदन को सौंपे पत्र में गंगा और सहायक नदियों पर निर्माणाधीन फाटा-ब्योंगगाड, सिंगोली-भटवाड़ी, तपोवन-विष्णुगाड और विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजनाओं को पूर्ण रूप से बंद करने का आश्वासन दिया है। क्या एनएमसीजी के इस आश्वासन पर वाक़ई भरोसा किया जा सकता है कि सरकार गंगा पर निर्माणाधीन बांधों को बंद करेगी।

उत्तरकाशी में हिमालय पर्यावरण शिक्षा संस्थान से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश भाई कहते हैं कि एनएमसीजी को गंगा की सफ़ाई की ज़िम्मेदारी दी गई है, बांधों पर फ़ैसला करना उनकी शक्ति के बाहर है। वे नहीं तय कर सकते किस नदी पर कौन सा बांध बनेगा, या नहीं बनेगा। वे कहते हैं कि चूंकि चुनाव का समय है, इसलिए राजनीतिक दबाव में केंद्र की सरकार ने एमएमसीजी के महानिदेशक को मातृसदन भेजा। जिससे वे जल त्याग न करें और ये मामला चुनावी मुद्दा न बन जाए। ऐसा होता तो ज़ाहिर तौर पर भाजपा को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ता।

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता मथुरा दत्त जोशी कहते हैं कि ऐसी कोई सूरत नहीं लगती कि सरकार गंगा पर निर्माणाधीन बांधों को बंद करे। यही बात सामाजिक कार्यकर्ता राजीव नयन बहुगुणा दोहराते हैं। उन्हें शक है कि सरकार का ये आश्वासन शायद ही खरा उतरे।

एनएमसीजी के आश्वासन

नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने अपने लिखित आश्वासन में कहा है कि एनएमसीजी और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड-सीपीसीबीराज्य सरकार और हरिद्वार प्रशासन को समय समय पर अवैध खनन रोकने के लिए निर्देश देती है। मातृ सदन में बातचीत के बाद 25 अप्रैल को नए दिशानिर्देश जारी किए गये। जिसमें गंगा किनारे अवैध खनन के निरीक्षण के लिए विशेष टीम के गठन की बात कही गई। साथ ही राज्य के मुख्य सचिव से भी ये सुनिश्चित कराने को कहा गया है कि गंगा में अवैध खनन न हो।

गंगा और उसकी सहायक नदियों पर बन रहे बांधों को लेकर कहा गया कि चूंकि इसमें अन्य स्टेक होल्डर भी शामिल हैं, इसलिए इस पर तत्काल फ़ैसला नहीं लिया जा सकता। जल संसाधन मंत्रालय की टीम ने परियोजनाओं का स्थलीय निरीक्षण किया है और वे जल्द इस पर फ़ैसला लेंगे।

एनएमसीजी के महानिदेशक ने लिखा है कि केंद्र सरकार गंगा की निर्मलता और अविरलता को लेकर समर्पित है। मिशन ने गंगा के ई-फ्लो (पर्यावरणीय प्रवाह) बनाए रखने की अधिसूचना पहले ही जारी की है।

गंगा के प्रति केंद्र की भाजपा सरकार के समर्पण का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि नमामि गंगे के तहत दी गई धनराशि ख़र्च ही नहीं की जा सकी। पांच साल बाद इस बहुप्रचारित परियोजना पर वैसे ही प्रश्नचिन्ह लग गए, जैसे इससे पहले की गंगा परियोजनाओं पर।

उत्तराखंड में गंगा क़रीब 250 किलोमीटर का सफ़र तय करती है। नमामि गंगे के तहत गंगा किनारे 15 कस्बों को गंगा टाउन के रूप में विकसित करने का लक्ष्य रखा गया था। जिसमें हरिद्वार और ऋषिकेश प्रमुख थे। यहाँ 31 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट प्रस्तावित थे, लेकिन सिर्फ़ 16 ही लगाए जा सके। 65 नालों को गंदा पानी सीधे गंगा में गिरने से टैप किया जाना था, लेकिन सिर्फ़ 26 नाले ही टैप किये जा सके। इसके अलावा गंगा किनारे और बांधों के किनारे हो रहे निर्माण से गंगा का प्राकृतिक प्रवाह प्रभावित हो रहा है।

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मातृसदन में हरिद्वार प्रशासन का आतंक!

अनशन पर बैठे और जल त्याग का फ़ैसला कर चुके आत्मबोधानंद को जबरन अस्पताल ले जाने के लिए हरिद्वार प्रशासन के अधिकारी तीन-चार दिनों से चक्कर लगा रहे थे। 2 मई को भी प्रशासनिक अधिकारी पुलिस के साथ आश्रम में पहुँचे थे, उस समय एनएमसीजी के डीजी के साथ फ़ोन पर हुई बातचीत के बाद, जल त्याग का फ़ैसला दो दिन के लिए आगे बढ़ा दिया गया और पुलिस लौट गई। इसके बाद चार मई को भी एसडीएम कुसुम चौहान के नेतृत्व में पुलिस टीम मातृ सदन आश्रम में पहुँच गई थी। वे आत्मबोधानंद को अस्पताल ले जाने के लिए आए थे ताकि उनके लिए गले की हड्डी बन गए इस अनशन को ख़त्म किया जा सके। मातृ सदन आशंकित था कि इससे पहले गंगा के लिए अनशनरत जो भी संत अस्पताल पहुँचे, उनकी मृत्यु हुई।

इससे पहले कि हरिद्वार प्रशासन जबरन आत्मबोधानंद को ले जाता, एनएमसीजी के कार्यकारी निदेशक रोज़ी अग्रवाल और देहरादून में मिशन यूनिट के प्रभात राज लिखित आश्वासन लेकर पहुँच गए।

चुनाव का समय होने की वजह से ये मामला और भी अधिक संवेदनशील हो गया था। एनएमसीजी के लिखित आश्वासन को संतोष जनक पाकर आत्मबोधानंद ने अनशन समाप्त करने का फ़ैसला किया। अधिकारियों ने उऩ्हें जूस पिलाया।

मातृ सदन की इस लड़ाई में साथ दे रहे माटु जनसंगठन के विमल भाई कहते हैं कि गंगा की लड़ाई बड़ी है, आश्वासनों के साथ उसको ज़मीन पर उतारने के लिए, गंगा के मायके से लेकर गंगा के तिरोहण, गंगासागर तक वह अपनी तरह बहती रहे। इसके लिए देश के तमाम साथियों को काम करना ही होगा। 

स्वामी सानंद ने शुरू की थी तपस्या 

22 जून 2018 को प्रोफ़ेसर जीडी अग्रवाल उर्फ़ स्वामी सानंद ने अविरल-निर्मल गंगा और गंगा एक्ट समेत कई मांगों को लेकर मातृ-सदन में अनशन शुरू किया था। 111 दिनों के अनशन के बाद ऋषिकेश के एम्स में 11 अक्टूबर को उनकी मृत्यु हो गई थी। उस समय चुनाव भी नहीं थे। सरकार को किसी तरह का कोई ख़तरा नहीं था। इसके बाद आत्मबोधानंद ने अनशन को आगे बढ़ाया। इतने दिनों तक आत्मबोधानंद से मिलने कोई नहीं गया। उनके अनशन की किसी को परवाह नहीं थी। लेकिन चुनाव के समय में उनके जल त्याग का फ़ैसला थोड़ा संवेदनशील ज़रूर हो गया।

इससे पहले प्रोफ़ेसर जीडी अग्रवाल ने यूपीए सरकार के समय में भागीरथी नदी पर बन रही लोहारीनाग पाला जल विद्युत परियोजना के ख़िलाफ़ अनशन किया था। अनशन के 38वें दिन उनकी हालत बिगड़ने पर यूपीए सरकार ने इस परियोजना का काम रोक दिया था। वर्ष 2010 में इसे निरस्त कर दिया गया। केंद्र सरकार का कहना था कि इस पर 600 करोड़ से अधिक रक़म ख़र्च हो चुकी है। लेकिन प्रोफ़ेसर जीडी अग्रवाल के अनशन के आगे उन्हें झुकना पड़ा। इसके साथ ही उत्तरकाशी से गंगोत्री तक भागीरथी के किनारे 125 किलोमीटर के क्षेत्र को इको सेंसेटिव ज़ोन घोषित कर दिया गया। जिसके चलते राज्य सरकार के दो भैरोघाटी और मनेरीभाली प्रोजेक्ट बंद हुए। साथ ही सरकार ने राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण भी बनाया।

दरअसल उत्तराखंड के पास अपनी आर्थिकी मज़बूत करने के दो ही साधन हैं, जल विद्युत परियोजना और पर्यटन। छोटे-छोटे बांध और चेकडैम राज्य की पारिस्थितकीय के लिहाज से अनुकूल माने गए। लेकिन बड़े बांध अपने साथ बड़ी मुश्किलें लेकर आते हैं। पूरा उत्तराखंड भूस्खलन के लिहाज़ से बेहद संवेदनशील है। फिर टिहरी डैम से राज्य को महज 12 फ़ीसदी बिजली मिलती है। जबकि इसके लिए टिहरी के हज़ारों लोग अपनी जड़ों से उखड़ गए। राज्य में सत्ता में आने वाली सरकारें बांधों के सहारे राज्य की आर्थिकी को मज़बूत बनाना चाहती हैं लेकिन वे पर्यावरणीय सवालों को दरकिनार कर देती हैं। वर्ष 2013 की आपदा की भयावहता के पीछे जलविद्युत परियोजनाएँ ही वजह मानी गई थीं।

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