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नोटबंदी - भारत में आज तक का सबसे बड़ा घोटाला

इसका शिकार कौन बना? देश 125 करोड़ आम आदमी जिन्होंने एक शासक के फ़ितूर का समर्थन करने की कोशिश की
नोटबंदी

आगामी 8 नवम्बर 2017 को नोटबंदी को पूरा एक वर्ष हो जाएगा, जिसकी ‘शानदार’ घोषणा प्रधानमंत्री ने ठीक एक वर्ष पहले ‘शानदार’ ढंग से की थी और अर्थव्यवस्था से 84 प्रतिशत मुद्रा वापस जमा करने का आदेश दे दिया था. मोदी की सभी ‘शानदार’ घोषणाओं पर अगर नज़र डालें तो यह सबसे ऊपर के स्थान पर आएगी – बहादुराना भावनाओं से सराबोर, और 125 करोड़ भारतीय नागरिकों को राष्ट्र के लिए अपनी सुविधाओं का त्याग करने का आह्वान से भरपूर थी ये घोषणा. नागरिकों को कहा गया कुछ कुर्बानी कर देने से अगर देश को बर्बाद करने वाली समस्याएँ जैसे, काला-धन, भ्रष्टाचार, बेनामी लेन-देन, आतंकवाद और नकली मुद्रा ख़त्म हो जायेंगी, तो ऐसी कुर्बानी दी जानी चाहिए.

इस घोषणा के एक वर्ष बाद, देश को ही नहीं बल्कि मोदी को भी अब यह स्पष्ट हो गया है कि नोटबंदी बड़ी ही निराशाजनक ढंग से विफल हो गयी है - एक ऐसी असफलता जिसने न केवल प्रधानमंत्री के प्रकांड/अंधे घमंड का पर्दाफाश किया, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के कामकाज के प्रति उनकी नासमझी को भी उजागर किया.

नोटबंदी की मुख्य असफलताओं पर फिर से नज़र डालने से हम एक अच्छा सबक सीख सकते हैं मोदी जी के निर्णय में कई त्रुटियां है.

पहली, यह सोच कि नोटबंदी के जरिए वे भारत की कई समस्याओं का इलाज कर लेंगे. यह भी कि इस संकट से पैदा हुई कठिनाइयाँ अगले दो महीने में दूर हो जायेंगी.

बहुत कुछ कहा गया उसमें यह भी कि कैसे, गद्दे के नीचे, आंगन में और अन्य ऐसे अंधेरे स्थानों में छिपा काला धन नोटबंदी के बाद बेकार हो जाएगा. जनता को कहा गया कि 3-4 लाख करोड़ के काले धन का अनुमान है जो आर.बी.आई. को नहीं लौटाया जाएगा, बल्कि वह सीधे सरकारी जन धन खाते में जमा हो जाएगा. नोटबंदी की शुरुवात में बड़ी हेडलाइन्स में कहा गया कि जमाखोर काले धन को नालों-नदियों में फेंकेंगे या फिर आग के हवाले कर देंगे.

लेकिन अफ़सोस, एक महीने की इस निर्दयी कसरत के बाद लगभग सभी बंद नोट आर.बी.आई. के खज़ाने में वापस आ गए. दिसंबर 15 को, जबकि अभी वक्त पूरा होने में 15 दिन बाकी थे, आर.बी.आई. की झोली में 15.44 लाख करोड़ में से 12.44 लाख करोड़ वापस आ चुके थे. जनता को पेश किये गए जुमले के मुताबिक़ जिसमें 3 करोड़ काले धन का पर्दाफ़ाश करने की बात कही गयी थी वह अब असंभव-सा दिखने लगा था. अर्थशास्त्रियों की बड़ी तादाद यह कह रही थी कि देश की मुद्रा (और सरकार ने अपने अनुमान भी) का केवल 4% ही कैश में उपलब्ध है इसलिए ज्यादातर मुद्रा बैंक में आ जायेगी.

और जब ऐसा हो गया तो, मोदी ने बड़े राजनीतिक खिलाड़ी की तरह अपना पासा पलट दिया. अब जंग काले धन के विरुद्ध नहीं, बल्कि नकदी के ही विरुद्ध बना दी गयी. अगले 15 दिन तक मोदी और उनकी टीम आम जनता को नकदी रखने, उससे इतेमाल करने या नकद के बारे में सोचने भर तक के लिए दोषी होने का एहसास कराती रही. अब उस काले धन की बात बहुत नीचे दब गयी थी, जिसे वे जड़ से उखाड़ना चाहते थे.

नकदी विरोध की कवायद भी एक अंधी गली में जाकर खो गयी. ज़्यादातर देश के हिस्से में विश्वसनीय इन्टरनेट सेवा न होने की वजह से और कम स्मार्टफोन तथा फुटकर दुकानों पर काफी संख्या में पॉइंट ऑफ़ सेल मशीन न होने की वजह से भारतीयों ने इलेक्ट्रॉनिक पैसे का इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया. इसके परिणामस्वरुप अर्थव्यवस्था गिर कर तीन वर्ष के सबसे निचले पायदान पर आ गयी. अच्छी फसल होने के बावजूद ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर सबसे भारी मार पडी. माँग की कमी के चलते हज़ारों भारतीय को रोज़गार देने वाले छोटे व्यवसायिक ईकाइयाँ/उद्योग ठन्डे पड़ गए. बहुत से प्रवासी मजदूर काम की कमी के चलते अपने गाँवो वापस लौट गए.

मोदी ने नकदी के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था से उसको जीवित रखने वाले लहू को भी निकाल लिया. नई नकदी इतनी धीमी गति से आई कि आज तक अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है. यहाँ तक कि एक वर्ष बाद भी नकद पूरी तरह से अर्थव्यवस्था में लौटी नहीं है. नोटबंदी के पहले दिन के मुकाबले अर्थव्यवस्था आज भी 2 लाख करोड़ कम हैं.

उस हवाबाजी की भी फूंक निकल गयी जिसमें कहा गया कि भारतीय लोग नकद से इलेक्ट्रॉनिक स्थानातरण की तरफ बढ़ रहे है. हाल में जो ताज़ा आंकड़े उपलब्ध हुए हैं उनके मुताबिक़, नोटबंदी के महीने के बाद से अभी तक नकदी से इलेक्ट्रॉनिक्स, पी.ओ.एस. मशीने या मोबाइल वालेट के जरिए लेन-देन में मात्र 19 हज़ार करोड़ की बढ़ोतरी हुई है. 19 हज़ार करोड़ की यह बढ़ोतरी २ लाख करोड़ की कमी को कैसे पूरा कर पाएगी. इस कैशलेस ट्रांजेक्शन के द्वारा इस तरह की थोड़ी-थोड़ी बढ़ोतरी नोटबंदी से पहले भी हो ही रही थी. और प्रधान मंत्री देश से इस पागलपन के लिए थोक में बलिदान की मांग कर रहे थे.

इसके जरिए आतंकवाद को उखाड़ फैंकने के वायदे की बात न करें तो ही बेहतर. नोटबंदी के साथ, प्रधानमंत्री ने आतंकियों के नृशंस कारनामों को खत्म करने की कसम खाई, जो पाकिस्तान में मुद्रित नकली मुद्रा के बंडलों के साथ भारत में आते थे और यहाँ आतंक मचाते थे. बड़ा निराश होकर कहना पड़ता है कि आतंकी हमलों में भी कोई कमी नहीं आई है. 2016 के पूरे वर्ष में 382 व्यक्ति, इसमें नागरिक और सुरक्षा जवान भी शामिल हैं आतंकी हमलों या उससे जुडी हिंसा में मारे गए हैं. इस वर्ष में जबकि अभी वर्ष पूरा होने में 2 महीने बाकी हैं इस तरह की हिंसा में 315 लोग मारे चुके हैं.

साधारण तथ्य यह है कि आतंकवाद से संबंधित मौतें वर्ष 1995 में 2200 से गिरकर 2005 में 1650 हो गयी, और फिर 2015 में 336 मौतें हुईं – यह सब नोटबंदी से पहले के आंकड़े हैं- इससे यह इशारा मिलता है कि आतंकवाद से निबटने के लिए कई और बेहतर रस्ते मौजूद हैं. आतंकवाद की कठिन समस्या को एक अकेले नकली नोट की समस्या से जोड़कर मोदी ने अपनी शुरुवात एक असफल चाल से की.

जैसा कि पता चला है, आरबीआई को लौटाए गए 15.28 लाख करोड़ रुपये में केवल 0.0027% नकली नोट थे. मात्र 0.0027% नकली नोट के लिए 100 लोग मारे गए और पूरा देश तकलीफ झेलता रहा सो अलग.

घाव पर नमक छिड़कना तो तब लगा जब नोटबंदी का समय ख़त्म होने से पहले, देश में नए नोटों के नकली नोट बाज़ार में घूमने लगे. नोटबंदी के दो हफ्ते के भीतर-भीतर जम्मू-कश्मीर में मारे गये आतंकवादियों के पास 2000 रूपए के नकली नोट बरामद हुए.

इसका नतीजा क्या हुआ?

आर.बी.आई. में 98.96% मुद्रा वापस आ गयी. यह स्वीकार करना कतई मुश्किल नहीं कि 16 हज़ार करोड़ रुपया जो बैंक में वापस नहीं आया वह मुमकिन तौर पर आम-गरीब मेहनतकश जनता का होगा – उनका, जो लोग अपने पैसे को बैंक में नहीं लौटा पाए क्योंकि मोदी ने 31 दिसम्बर को मुद्रा लौटाने की अवधि को बंद कर दिया था. उन्होंने तो  यहाँ तक वादा किया था कि हर कोई 31 मार्च तक भारतीय रिजर्व बैंक शाखाओं में अपनी मुद्रा का आदान-प्रदान कर सकता है. इसके लिए देश ने नई मुद्रा छपवाने में 21,000 करोड़ रुपए रुपये फूंक दिए और आय और रोजगार और व्यवसाय अलग से नष्ट हुए.

अन्य लोगों के अलावा जिन भाजपा के लोगों के पास काला धन था, उन भाजपा नेताओं ने चुपचाप अपने माध्यम से विभिन्न माध्यमों से नई मुद्रा में परिवर्तित कर लिया. अमित शाह के बेटे जय शाह की तरह कुछ लोग, नोटबंदी के समय तरक्की कर गए. कोयला घोटाले और बिजली उपकरणों के घोटाले में अदानी को दिए गए हालिया डील से यह साबित हो गया कि हर हालात में क्रोनी पूँजीपतियों और भ्रष्ट राजनेताओं के लिए व्यापार हमेशा की तरह आम होता है, यानी कुछ भी हो या कितना भी संकट हो, उनकी बढ़ोतरी पर कोई असर नहीं पड़ता.

भारत ने अपने इतिहास में आज तक नोटबंदी जैसे बड़ा घोटाला नहीं देखा होगा, जिसकी कमान सीधे प्रधानमंत्री के हाथ में है. और इसके शिकार कोई और नहीं 130 करोड़ भारतीय जनता ही हुई

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