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आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता? बेहतर सुरक्षा? चौकीदार साहब, इतनी भी क्या जल्दी है!

प्रधानमंत्री मोदी दावा कर रहे हैं कि उनकी नज़र में आतंकवादी गतिविधि के प्रति शून्य सहिष्णुता और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति अधिक सतर्कता है। लेकिन चौकीदार साहब का रिकॉर्ड कुछ और ही कहता है।
आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता? बेहतर सुरक्षा? चौकीदार साहब, इतनी भी क्या जल्दी है!

देश भर में अपनी धुआँधार रैलियों में, पीएम मोदी बार-बार दावा कर रहे हैं कि चौकीदार के रूप में उन्होंने अपनी भूमिका में, नागरिकों के लिए बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित की है। उनकी सरकार ने आतंकवाद के प्रति "शून्य सहिष्णुता" को अपनाया है। उन्होंने बार-बार दावा किया है कि पाकिस्तान के बालाकोट पर किए गए हवाई हमलों के ज़रिये आतंकवाद के प्रति कड़ी प्रतिक्रिया दिखाई है।

एक हिंदी समाचार पत्र के अनुमान के अनुसार, इन विषयों ने पिछले 15 दिन में हुईं 42 में से 35 रैलियों में उनके भाषणों पर वर्चस्व बनाए रखा है। ज़ाहिर तौर पर, मोदी और भाजपा ने अब राष्ट्रीय सुरक्षा को अपने अभियान की आधारशिला बना लिया है। स्पष्ट रूप से, यह पुलवामा और बालाकोट हवाई हमलों की त्रासदी का पूर्ण उपयोग करने का एक प्रयास है।

लेकिन क्या ये दावे सही हैं? नहीं, यदि आप पिछले पांच वर्षों के आतंकवादी या चरमपंथी हमलों के आंकड़ों को देखें तो तस्वीर कुछ ओर ही निकल कर सामने आती है। राज्य के गृह मंत्री द्वारा 5 फ़रवरी, 2019 को 31 दिसंबर 2018 तक विवरण के लिए पूछे गए एक प्रश्न के जवाब के अनुसार, और 2019 के लिए डेटा (दक्षिण एशिया आतंकवाद पोर्टल से) को जोड़ने पर पता चलता है कि 2014 और अप्रैल 2019 के बीच देश में आतंकवादी या चरमपंथी हिंसा की 13,000 से अधिक घटनाएँ हुईं हैं। इनमें से 9,000 से अधिक घटनाओं में मौतें भी हुई हैं।

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कुल मिलाकर, इस अवधि के दौरान कुल 4,596 लोग मारे गए, जिनमें 1.517 नागरिक, 883 सुरक्षा बल और 2,196 आतंकवादी/चरमपंथी शामिल थे।
यह आतंकवाद/अतिवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की तस्वीर शायद ही पेश करता है! वास्तव में, इसके उलट यह लगभग हर दिन सात हिंसक घटनाओं और दो से अधिक लोगों की मौत की एक ख़तरनाक स्थिति को दर्शाता है।

यह सोचा जा सकता है कि यह सब शायद जम्मू-कश्मीर या इस तरह के कुछ संकट से जूझ रहे स्थानों को संदर्भित करता है। लेकिन यह सही नहीं है।
यह सच है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद या उग्रवाद संबंधी घटनाएँ सबसे अधिक होती हैं, जिससे लगभग एक तिहाई मौतें और लगभग एक चौथाई घटनाओं में मौतें होती हैं। लेकिन शेष घटनाएँ (कुछ 7000+ से ज़्यादा) अन्य 20 राज्यों में फैली हुई हैं। अधिकांश उत्तर-पूर्वी राज्यों से हैं जहाँ इस तरह की घटनाएँ (सरकारी भाषा में 'अतिवादी' क़रार दी गईं) हुईं और परिणामस्वरूप उनके ज़रिये मौतें भी हुई हैं। इनके अलावा, देश के कई अन्य हिस्सों में नक्सली गतिविधियों (सरकारी भाषा में जिन्हे उग्रवामपंथी घटनाएँ कहा जाता है) से ऐसी घटनाएँ हुई हैं। कुल मिलाकर, 20 से अधिक राज्यों में हर साल मोदी के शासन के दौरान ऐसी घटनाओं को देखा गया है।

नया 'आतंकवाद’

मोदी के शासन के दौरान हिंसा के एक नए रूप का उदय देखा गया, जिसे केवल आतंकवाद के रूप में ही वर्गीकृत किया जा सकता है - क्योंकि इसे समाज के विशेष वर्गों को आतंकित करने के लिए इस्तेमाल किया गया है। यह भीड़ हिंसा(मॉब लिंचिंग) के ज़रिये बर्बर हत्याओं की घटनाएँ हैं। इंडियास्पेंड द्वारा संकलित आंकड़ों के मुताबिक़, 2014 से 2019 के बीच हिंसक भीड़ के ज़रिये 46 लोगों को मौत के घाट उतारा गया और 46 लोगों के घायल होने की 123 घटनाएँ हुईं। ज़्यादातर पीड़ित या तो मुस्लिम या फिर दलित थे। गायों की रक्षा के बहाने या गोमांस के सेवन की अफ़वाहों के आधार पर ज़्यादातर मामले गौ-रक्षकों द्वारा अंजाम दिए गए। कुछ मामलों में, अपरिचित बच्चों के अपहरण करने के संदेह को लेकर हमले किए गए, या यहाँ तक कि बिना किसी आपराधिक इरादे वाले लोगों को भी इसका निशाना बनाया गया, सिर्फ़ और सिर्फ़ अफ़वाहों के आधार पर। निश्चित रूप से, यह भी आतंकवाद है, क्योंकि इसके ज़रिये वे, आबादी के बड़े वर्गों के बीच डर पैदा करते हैं।

मोदी शासन के तहत अन्य जानलेवा आतंक का दूसरा रूप धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ बोलने वाली जानी-मानी हस्तियों की हत्या करना है। यह मुख्य रूप से कर्नाटक और महाराष्ट्र में हुआ है जहाँ गौरी लंकेश, दाभोलकर, पानसरे और कलबुर्गी की हत्या हिंदू आतंकवादी संगठन सनातन संस्था या उसके नेटवर्क से जुड़े लोगों द्वारा की गई थी। यह संगठन प्रशिक्षण शिविर चला रहा था, उनके पास हथियार, जिनकी हत्या की जानी है उनकी सूची थी और उनके अनुयायियों का एक पूरा नेटवर्क ऐसी गतिविधियों के लिए प्रतिबद्ध था। अगर इंडियन मुजाहिदीन या ऐसे अन्य संगठनों को इस्लामिक आतंकवादी कहा जा सकता है तो सनातन संस्था और उनके परिजनों को क्या कहा जाना चाहिए?

और निश्चित रूप से, यह भी नहीं भुलाया जा सकता है कि धार्मिक त्योहारों और विशेष रूप से भड़काऊ नारे लगाने वाले सशस्त्र धार्मिक जुलूस भी आतंक फैलाते हैं - क्योंकि अक्सर हिन्दू समूहों द्वारा आयोजित ताक़त के ऐसे प्रदर्शन से सांप्रदायिक हिंसा, आगज़नी और हत्याएँ होती हैं। मोदी के पहले चार वर्षों के शासन (2014-17) के दौरान, 3,000 से अधिक ऐसी घटनाएँ हुई हैं जिनमें 400 से अधिक लोग मारे गए और केवल 2017 के अंत तक उपलब्ध आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 9,000 से अधिक घायल हुए हैं।

इसलिए, मोदी शासन के पूरे पाँच वर्ष आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता से काफ़ी दूर हैं। इस अवधि को इतिहास में, अल्पसंख्यकों और दलितों/आदिवासियों के ख़िलाफ़ आतंक के आधिकारिक समर्थन के लिए और भारतीय लोगों की एकता को सबसे गंभीर तनावों में डालने के लिए याद रखा जाएगा। और जैसा कि हमने पहले देखा, यह एक ऐसा समय भी है कि जब जम्मू-कश्मीर में हिंसा बढ़ी है, और उत्तर-पूर्व और अन्य जगहों में यह हिंसा बदस्तूर जारी है।

इसलिए मोदी की शक्तिपूर्ण प्रतिक्रियाओं और शून्य सहिष्णुता के हताश दावे आगे की हारने वाली लड़ाई के रूप में अधिक स्पष्ट रुप से दिखाई दे रहे हैं।

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