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नाम नहीं लेने का, बात नहीं करने का

"नाम क्यों नहीं लेना है? क्या किसी देशभक्त का नाम भी नहीं ले सकते हैं। वह देशभक्त है।"
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फोटो साभार : Getty image

इसी पंद्रह फरवरी को पार्क में मोर्निंग वाक करते हुए गुप्ता जी मिल गए। दिख तो कई बार जाते हैं पर पंद्रह को बाकायदा मिले। मिलते तभी हैं जब कोई बात कहनी हो अन्यथा कन्नी काट कर चले जाते हैं। वे नहीं तो मैं ही कन्नी काट कर चला जाता हूं। 

मिलते ही मुझे पकड़ कर जबरन किनारे पर बिछी बेंच पर ले जाकर बिठा दिया। मैंने कहा भी, " मुझे अभी चार चक्कर और लगाने हैं।" परन्तु मुझे खींच कर बेंच पर बैठाते हुए वे बोले, "और कैसा कटा तुम्हारा वेलेंटाइन डे।" मैं कुछ जवाब देता, उससे पहले स्वयं ही बोलने लगे, "हमारा-तुम्हारा इस बुढ़ापे में जैसा भी कटा हो, पर बीबीसी की तो वाट लगा दी सरकार जी ने, ठीक वेलेंटाइन डे के दिन ही। इन अंग्रेजों को इनके दिन ही सबक सिखा दिया। बड़े आए हम लोगों से वेलेंटाइन डे मनवाने वाले। इनकम टैक्स वालों को भेज दिया बीबीसी के ऑफिस वेलेंटाइन डे मनाने। छापा पड़वा दिया, इनकम टैक्स का छापा।"

"छापा वापा कुछ नहीं था, वह तो सिर्फ सर्वे था। इनकम टैक्स का सर्वे। सरकार जी के लोग और डिपार्टमेंट भी यही कह रहा है" मैंने प्रतिवाद किया।

"नहीं, नहीं, छापा ही था। पूरी की पूरी टीम गई थी रेड करने। सबके मोबाइल रखवा लिए गए थे। लैपटॉप भी खुलवा कर उनके पासवर्ड पूछ लिए गए थे। सर्वे में तो बस फोर्म वगैरह भरवाए जाते हैं, यह सब कुछ नहीं होता है। यह तो इनकम टैक्स की पूरी की पूरी रेड थी। बीबीसी पर।"  

"तो क्या 'उसी' डोक्युमेंट्री की वजह से छापा पड़ा था, रेड हुई थी?", मैंने जिज्ञासा प्रकट की। 

"मैं तुम्हें एक राज़ की बात बताता हूं। सरकार जी और उनकी पार्टी तो चाहती यही है कि यह जो गुजरात के दंगों की बात है ना, वह लोगों को याद रहे, हिंदुओ को याद रहे, और हमेशा याद रहे। चुनावों में तो ये लोग इसकी स्वयं याद दिलाते फिरते हैं, जिक्र करते रहते हैं। बस यह नहीं चाहते हैं कि सरकार जी की इमेज विश्व में खराब हो। और यह जो बीबीसी की डाक्यूमेंट्री को बैन किया गया था ना, इसीलिए तो किया गया था क्योंकि देश में कोई देख ही नहीं रहा था। किसी को पता ही नहीं था कि बीबीसी ने ऐसी कोई डाक्यूमेंट्री भी बनाई है। बैन इसीलिए किया गया कि लोगों को पता चले कि ऐसी डोकूमेंटरी बनी है। लोगों में उत्सुकता जगे और लोग उसे देखें।" फिर एक और रहस्योद्घाटन सा करते हुए फुसफुसाते हुए बोले, "यह बीबीसी भी है ना, अब बिकने ही वाली है।"

बिकने वाली है? बीबीसी बिकने वाली है? यह क्या कह रहे हो तुम। मुझे तो तुम्हारी बात कुछ समझ नहीं आ रही है। और कौन खरीदेगा बीबीसी को? "  मुझे बात कुछ समझ में नहीं आई।

"हां, हां बीबीसी बिकेगी। सरकार जी काम ऐसे ही करते हैं। यही उनका 'मोड्स ओपरेंडाई' है, काम करने का तरीका है। जो कंपनी सरकार जी को पसंद नहीं आती है, या फिर सरकार जी के दोस्त को खरीदनी होती है, सरकार जी पहले उस पर छापे पड़वाते हैं। इनकम टैक्स का छापा, ईडी का छापा, सीबीआई का छापा। फिर सरकार जी का दोस्त सामने आता है कंपनी खरीदने का प्रस्ताव लेकर। तरह तरह के छापों से घिरी कंपनी बिकने में ही अपनी भलाई समझती है। कहते हैं इसी तरह मुम्बई एयरपोर्ट बिका। और भी बहुत सी कंपनियां बिकीं। और जहां तक बीबीसी के खरीदने की बात है तो और कौन खरीदेगा, सरकार जी का कोई दोस्त ही खरीद लेगा। वही खरीद लेगा जिसने एनडीटीवी खरीदा है।"

"क्यों, क्या, अ...।" गुप्ता जी ने बीच में ही मेरे मुंह पर हाथ रख दिया। "नाम नहीं लेने का। नाम नहीं लेने का। उसका नाम लेने से उसकी मानहानि हो जाती है। हम तुम क्या चीज़ हैं, उसका नाम लेने से तो सरकार जी भी डरते हैं। सरकार जी ने भी कहीं नाम लिया उसका? लोकसभा में? राज्यसभा में? या फिर कहीं और भी? नहीं ना। तो ठीक से समझ लो। उसका नाम नहीं लेते हैं। उसके बारे में बात नहीं करते हैं।"

"नाम क्यों नहीं लेना है? क्या किसी देशभक्त का नाम भी नहीं ले सकते हैं। वह देशभक्त है। वह देश की जीडीपी बढ़ा रहा है। वह बाहर का पैसा देश में ला रहा है। चाहे शैल कम्पनियों के जरिए ही ला रहा हो। देश का ही पैसा देश से बाहर ले जा कर वापस ला रहा हो। पर काम तो कर रहा है ना। सरकार जी भी उसके भरोसे ही देश को पांच ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाना चाहते हैं। ऐसे ही नहीं बनेगा हमारा देश विश्व में तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी।... मैं आगे भी कुछ कहता पर गुप्ता जी यह कह कर उठ कर चले गए। "शर्मा, तू अपने आप भी फंसेगा और मुझे भी फंसवाएगा। कितनी बार कहा है उसका नाम नहीं लेने का। उसकी बात नहीं करने का। पर तू है कि मानता ही नहीं है।"

खैर, गुप्ता जी उठ कर चले गए। और मैं भी उठ कर बचे हुए चार चक्कर लगाने लगा।

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