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ख़बर भी—नज़र भी: एक लोककल्याणकारी राज्य में कुछ भी मुफ़्त नहीं होता

कोई भी सरकार अपनी जनता को कुछ भी मुफ़्त नहीं देती। जो देती है वो जनता का ही पैसा होता है, जिसे वो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर के रूप में वसूल कर जनता को ही लौटाती है।

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कोई भी सरकार अपनी जनता को कुछ भी मुफ़्त नहीं देती। जो देती है वो जनता का ही पैसा होता है, जिसे वो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर (Direct and Indirect Taxes) के रूप में वसूल कर जनता को ही लौटाती है। और अगर कमज़ोर वर्ग को कुछ विशेष सहायता भी दी जाती है तो वो भी मुफ़्त नहीं कहलाएगी बल्कि एक राज्य की ज़िम्मेदारी है कि वो अपने नागरिकों को हर क़ीमत पर बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराए। एक लोक कल्याणकारी राज्य में तो ये सरकार की पहला और आवश्यक दायित्व है। इससे वह पल्ला नहीं झाड़ सकती। यही वजह है कि हमारे देश में भोजन का अधिकार जैसी नीतियां बनीं। लेकिन अब सरकार भी संसद में कहने लगी है कि वो भूखी जनता को फ्री में खाना खिला रही है।

लोकसभा में सत्तारूढ़ दल भाजपा के सांसद निशीकांत दुबे कहते हैं कि हमें अपने प्रधानमंत्री को धन्यवाद देना चाहिए क्योंकि वे 80 करोड़ जनता को फ्री फंड का खाना खिला रहे हैं। इससे पहले मुफ़्त कोविड वैक्सीन का एहसान जताया गया था।

इसी कड़ी में अब विवाद चुनाव के दौरान किए जा रहे मुफ़्त के वादों का है। हालांकि ये सभी दल करते हैं, लेकिन हमें देखना होगा कि उन वादों की प्रकृति क्या है। ख़ैर अभी इसी विषय को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका है। आज इस याचिका पर सीजेआई एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई की और कहा कि एक पैनल को मुफ्त के फायदे और नुकसान का निर्धारण करने की आवश्यकता है क्योंकि इनका "अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव" पड़ता है।

प्रस्तावित संस्था इस बात की जांच करेगी कि मुफ्त उपहारों को कैसे विनियमित किया जाए और केंद्रचुनाव आयोग (ईसी) और सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मामले से जुड़े सभी पक्ष लॉ कमीशननीति आयोगसभी दल अपने सुझाव दें। सभी पक्ष उस संस्था के गठन पर विचार देंजो हल निकाल सके।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रचुनाव आयोगवरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल और याचिकाकर्ताओं से एक एक्सपर्ट कमेटी के गठन पर अपने सुझाव 7 दिनों के भीतर प्रस्तुत करने को कहा है।

 ‘मुफ़्तखोरी की संस्कृति’ पर चर्चा क्यों न सांसदों की पेंशनअन्य सुविधाएं खत्म करने से शुरू हो: वरुण

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद वरुण गांधी ने बुधवार को कहा कि आम जनता को मिलने वाले मुफ्त की सुविधाओं पर सवाल उठाने से पहले क्यों न चर्चा की शुरुआत सांसदों को मिलने वाली पेंशन और अन्य सभी सुविधाओं को खत्म करने से हो।

भाजपा नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी द्वारा ‘‘मुफ्तखोरी की संस्कृति’’ समाप्त किए जाने के बारे में राज्यसभा में चर्चा की मांग किए जाने संबंधी नोटिस का उल्लेख करते हुए वरुण ने एक ट्वीट में कहा कि जनता को मिलने वाली राहत पर उंगली उठाने से पहले ‘‘हमें अपने गिरेबां’’ में जरूर झांक लेना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘क्यों न चर्चा की शुरुआत सांसदों को मिलने वाली पेंशन समेत अन्य सभी सुविधाएं खत्म करने से हो?’’

एक ट्वीट में वरुण गांधी ने पिछले पांच सालों में बड़ी संख्या में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के लाभार्थियों द्वारा सिलेंडर दोबारा न भरवाने का मुद्दा उठाया और कहा कि पिछले पांच सालों में 4.13 करोड़ लोग सिलेंडर को दुबारा भरवाने का खर्च एक बार भी नहीं उठा सकेजबकि 7.67 करोड़ ने इसे केवल एक बार भरवाया।

उन्होंने कहा, ‘‘घरेलू गैस की बढ़ती कीमतें और नगण्य सब्सिडी के साथ गरीबों के 'उज्जवला के चूल्हेबुझ रहे हैं। स्वच्छ ईंधनबेहतर जीवन देने के वादे क्या ऐसे पूरे होंगे?’’

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस राज्यमंत्री रामेश्वर तेली ने एक अगस्त को राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में बताया था कि पिछले पांच सालों में पीएमयूवाई के 4.13 करोड़ लाभार्थियों ने एक बार भी सिलेंडर रिफिल नहीं कराया जबकि 7.67 करोड़ लाभार्थियों ने एक ही बार सिलेंडर भरवाया।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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