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पूरे भारत में NRC होने पर दस करोड़ लोग हो सकते हैं बाहर

भारत भर में एनआरसी लागू होने पर समझिए इसका सांख्यकीय विश्लेषण। जानिए इसमें कितनी सामाजिक और आर्थिक निधि का होगा निवेश।
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नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन बनाते वक्त देश के एक नागरिक को अवैध प्रवासी या गैर नागरिक घोषित किया जा सकता है। एनआरसी में सांख्यकीय भाषा की बात करें तो असली नागरिक को अवैध प्रवासी बताना ''गलत-सकारात्मक(False Positive)'' और एक गैर नागरिक या अवैध प्रवासी की पहचान न कर पाना ''गलत-नकारात्मक(False Negative) कहलाता है। एक तरफ गलत-नकारात्मक(False Negative) से एनआरसी का उद्देश्य ही खारिज़ होता है, तो दूसरी तरफ गलत-सकारात्मक (False Positive) असली नागरिकों के लिए बेहद दर्दनाक है। इसके जितने ज़्यादा मामले सामने आएंगे, उतना ही अविश्वास बढ़ता जाएगा।

असम का मामला

असम में करीब तीन करोड़ तीस लाख लोगों ने एनआरसी में शामिल किए जाने के लिए आवेदन किया। एनआरसी ड्रॉफ्ट के दौरान चालीस लाख लोगों के आवेदन को ख़ारिज कर दिया गया। लेकिन अगली कुछ पड़तालों के बाद यह आंकड़ा 18 लाख पर आ गया। एनआरसी से इन लोगों को बाहर रखे जाने के अलावा, करीब दो लाख दूसरे लोगों को एनआरसी में शामिल किए जाने पर भी आपत्ति थी। तब आगे और जांच हुई। इन दो लाख में एक लाख लोगों को बाहर कर दिया गया। इस तरह 31 अगस्त, 2019 को जो अंतिम लिस्ट आई, उसमें 19,06,657 लोगों को बाहर रखा गया। तब गलत-सकारात्मक(False Positive) और गलत-नकारात्मक(False Negative) की बात निकलकर सामने आती है।

False Positive: एनआरसी में शुरू में चालीस लाख लोगों को बाहर रखा गया था। इनमें से 18 लाख को अंतिम तौर पर बाहर रखा गया। इस तरह कुल तीन करोड़ तीस लाख की आबादी में करीब 22 लाख लोगों को शुरू में गलत तरीके से बाहर रखा गया था। यहां ''गलत-सकारात्मक (False Positive)'' 6.8 फ़ीसदी है।

False Negative: एनआरसी की शुरूआत में एक लाख गैर नागरिकों की पहचान करने में नाकामयाबी मिली थी। इस तरह गलत-नकारात्मक(False Negative) दर 0.3 फ़ीसदी है। मतलब हर हजार में करीब तीन गैर नागरिकों की पहचान नहीं हो पाई। ज़्यादा अहम बात है कि प्रति हजार में 6 लोगों को शामिल किए जाने पर (0.6 फ़ीसदी) आपत्ति जताई गई।

गलत-सकारात्मक और गलत-नकारात्मक की जो दर सामने आई हैं, उनका रुझान मेडिकल टेस्ट की दरों जैसा ही है। मतलब इनकी गलतियों को और ज्यादा घटाने की गुंजाइश कम ही है। क्योंकि यह दर पहले ही बहुत कम है। 

ध्यान दें कि गलत-नकारात्मक की दर लगभग शून्य के पास है। तो कहा जा सकता है कि सिर्फ गलत-सकारात्मक दरों में ही सुधार मुमकिन है। लेकिन इसके लिए एनआरसी में शामिल होने की शर्तों में ढील देनी होगी। ढीली शर्तों से कुछ गैर-नागरिकों के एनआरसी में शामिल होने के मौके बढ़ जाएँगे और गलत-नकारात्मक के बढ़ने का खतरा होगा। अगर ऐसा होता है तो एनआरसी की एक्सरसाइज़ का मुख्य उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। 

पूरे भारत में एनआरसी के लिए गलत-सकारात्मक और नकारात्मक

अगर पूरे भारत में एनआरसी होती है, तो उसमें ''गलती करने की दर(Error Rate)'' कितनी होगी, कोई नहीं जानता। असम की एनआरसी में जो गलत-सकारात्मक और गलत-नकारात्मक दरें आईं, वो काफी कम हैं। जब तक कोई बहुत ठोस योजना नहीं बनाई जाती, पूरे भारत में एनआरसी होने की स्थिति में दोनों दरों का और नीचे जाना मुश्किल है।

इस तरह पूरे भारत की एनआरसी का नतीज़ा कुछ इस तरह होगा।शुरूआत में करीब 11 करोड़ आवेदनों को ख़ारिज किया जा सकता है। इस शुरूआती संख्या में गलत-सकारात्मक और अवैध प्रवासियों की संख्या शामिल होगी। इस तरह दो फ़ीसदी अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए कुल 8.8 फ़ीसदी लोगों के आवेदन को ख़ारिज कर दिया जाएगा। देश की कुल जनसंख्या अगर 125 करोड़ मानें, तो करीब 11 करोड़ लोगों को शुरूआती स्तर पर एनआरसी से बाहर कर दिया जाएगा।

अगर अवैध प्रवासियों की संख्या एक फ़ीसदी होती है, तो 9.75 करोड़ लोगों को बाहर रखा जाएगा, अगर प्रवासियों की संख्या तीन फ़ीसदी हो तो 12.25 करोड़ लोगों को बाहर रखा जाएगा।स्वाभाविक है कि रिव्यू सिस्टम के तहत लाखों दावे किए जाएँगे, जिससे इसपर काफी भार पड़ेगा। ऊपर से एक भी नागरिक के आवेदन को ख़ारिज किए जाने से पूरा परिवार प्रभावित होगा। तो कुल-मिलाकर आवेदन ख़ारिज होने वालों की संख्या से कहीं ज्यादा लोग प्रताड़ित होंगे

शुरूआत में 88 फ़ीसदी खारिज दावे गलत साबित हो सकते हैं: अगर अवैध प्रवासियों की वास्तविक संख्या एक फ़ीसदी है, तो एक करोड़ पच्चीस लाख दावे खारिज होने चाहिए। लेकिन गलत-सकारात्मक दर  के मुताबिक यह संख्या 9.75 करोड़ होगी। इस तरह शुरूआत में जिन 100 दावों को ख़ारिज किया जाएगा, उनमें से 88 गलत होंगे। अगर अवैध प्रवासियों की संख्या तीन फ़ीसदी भी है, तो भी खारिज आवेदनों में 70 फ़ीसदी गलत होंगे। इतने बड़े स्तर पर अन्यायपूर्ण तरीके से आवेदन खारिज होने पर आमजन का राज्य व्यवस्था में विश्वास हिल जाएगा।

जरूरी संसाधन और वक्त: असम में तीन करोड़ तीस लाख लोगों के लिए एनआरसी की गई। इसमें चार साल और करीब 52,000 सरकारी कर्मचारी लगे। इन तीन करोड़ तीस लाख आवेदनों को शुरूआत में 35 महीनों में ही पूरा कर लिया गया था। लेकिन इन पर लगी 38 लाख आपत्तियों को निपटाने में 13 महीने और लग गए। इसी तरह अगर पूरे भारत में एनआरसी होती है, तो 125 करोड़ लोगों के आवेदनों, बाहर रखे गए लोगों के नौ करोड़ आपत्ति आवेदनों औऱ 75 लाख लोगों को एनआरसी में शामिल किए जाने के खिलाफ लगने वाली आपत्तियों पर काम करना होगा। बिना बेहद ठोस योजना और नियंत्रण के इस प्रोजेक्ट में वक्त और पैसे की बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी। इसका अंदाजा हमें बहुत सारी दूसरी योजनाओं के ज़रिए भी लग चुका है।

एक बेहद ज़ोखिम भरा काम

पूरे भारत में एनआरसी करवाना बेहद जोख़िम भरा और महंगा काम है। शुरूआत में 11 करोड़ आवेदन खारिज़ होने की संभावना है। इनमें से 80 फ़ीसदी अन्यायपूर्ण हो सकते हैं। इस तरह करीब आठ करोड़ असली नागरिक और उनके परिवारों पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। यह बुरा दौर एक साल तक चल सकता है। ऊपर से अवैध प्रवासियों को शामिल किए जाने से आम आदमी का राज्य व्यवस्था पर भरोसा कम होगा। सत्तर लाख आपत्ति दावों के लगाए जाने से नागरिकों में आपस में भी बहुत अविश्वास बढ़ेगा।

इस काम की जटिलता प्रोजेक्ट में बहुत देरी भी कर सकती है। महंगा होने के अलावा, इस प्रोजेक्ट में होने वाली देरी से करोड़ों लोगों को बाहर होने के डर से ऊपजी प्रताड़ना का शिकार होना पड़ेगा। इस प्रोजेक्ट में लाखों कर्मचारियों की जरूरत होगी। इससे राजकोष पर बहुत भार पड़ेगा। इतने बड़े स्तर पर कर्मचारियों को काम पर लगाना और उनका प्रबंध करना बेहद चुनौती भरा काम है। इसमें गलतियां और देर होने की बहुत संभावना है।

(लेखक कोलकाता के स्टेटिसटिकल क्वालिटी कंट्रोल एंड ऑपरेशन रिसर्च डिवीज़न में सीनियर टेक्नीकल ऑफिसर हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)
 
 

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