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उत्तर प्रदेश शासन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की क़ीमत चुकाते कार्यकर्ता

एक भ्रष्टाचार-विरोधी कार्यकर्ता से हेरिटेज कंज़र्वेटर (जो लोग ऐतिहासिक या कुदरती धरोहर को संजोने का काम करते हैं) बने विनीत नारायण उत्तर प्रदेश शासन का मुकाबला कर रहे हैं।
brij yamuna

उत्तर प्रदेश के लोग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली से भलीभांति परिचित हैं। उनके सपाट-झूठ वाले दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप, कुछ लोग उनके खिलाफ टक्कर लेना चाहेंगे। विनीत नारायण जो एक भ्रष्टाचार-विरोधी कार्यकर्ता से हेरिटेज कंजरवेटर बने हैं, उनको तब इस बात का एहसास हुआ, जब उन्होंने मुख्यमंत्री द्वारा नियुक्त कुछ लोगों की सार्वजनिक रूप से आलोचना की। नारायण के अनुसार, उन्होंने जल संरक्षण से संबंधित एक परियोजना की वास्तविक लागत से कहीं अधिक बजट अनुमान पेश किए थे। नारायण, लगभग दो दशकों से उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में तालाबों/कुंडों, या जल निकायों को पुनर्जीवित करने के लिए काम कर रहे हैं, जिन्हें हिंदू पवित्र स्थान भी माना जाता हैं।

वृंदावन, यमुना नदी के तट पर यानि ब्रज क्षेत्र में पड़ता है, और यह कभी हरे-भरे जंगलों और तालाबों/कुंडों के लिए जाना जाता था, जो कई सदियों से यहां पर मौजूद रहे हैं। सुखी/शुष्क गर्मी के महीनों के दौरान सभी के लिए ये जल निकाय महत्वपूर्ण जल स्रोतों का काम करते थे। बरसाना, नंदगाँव, गोवर्धन, गोकुल और मथुरा सहित पूरा क्षेत्र वृहद ब्रजभूमि का हिस्सा है।

इतिहासकारों और धार्मिक ग्रंथों में यहां 1,000 से अधिक कुंडों/तालाबों का जिक्र किया गया है, जो सिंचाई सहित मवेशियों और घरेलू इस्तेमाल के लिए पानी उपलब्ध कराते थे। आज़ादी के बाद तेजी से हुए शहरीकरण और लापरवाही के कारण इनमें से अधिकांश जल स्रोत सूख गए हैं और गांवों में कचरे का ढेर बन गए हैं। कई सूखे तालाबों पर स्थानीय लोगों ने कब्जा कर लिया है। नतीजतन, गर्मी के महीनों में ग्रामीणों को अब पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ता है।

इस सँवारने के लिए पहला कदम उठाया गया जिसके तहत 20025 में ब्रज फाउंडेशन की स्थापना की गई जो एक गैर-लाभकारी संगठन है – जिसने युवा आईआईटी स्नातकों की मदद ली और इन जल निकायों को पुनर्जीवित करने पर ध्यान केंद्रित किया, जिन्होंने उनके वास्तविक स्थान की पहचान करने में भी मदद की। उनका अगला कदम, एक ऐसी विकास योजना तैयार करना था जो काम कर सके और इसके लिए उन्हे वास्तुकारों, सिविल इंजीनियरों और ग्राफिक और लैंडस्केप डिजाइनरों की एक टीम बनानी पड़ी। यह सब ग्राम प्रधानों और स्थानीय प्रशासन के साथ परामर्श करने के बाद किया गया था। नारायण के मुताबिक, हमें सिर्फ एक लिखित आश्वासन देना था कि इन तालाबों के जीर्णोद्धार का काम पूरा करने के बाद, तालाब को ग्राम सभा को वापस सौंप दिया जाएगा।” 

पहला तालाब/कुंड जिस पर काम शुरू हुआ, वह वृंदावन के हृदयस्थल में ब्रह्म कुंड था। जल निकाय को कवर करने वाले कचरे और गाद को हटाने के लिए अर्थमूवर लाए गए। एक बार जब गाद निकालने की प्रक्रिया पूरी हो गई, तो इस गहरे कुएँ का पानी सतह पर आ गया। लैंडस्केप डिजाइनरों ने इसके अष्टकोणीय घाटों को जल निकाय तक जाने वाली सीढ़ियों के साथ डिजाइन किया, और इसके लिए ब्रह्मा की आठ फुट ऊंची मूर्ति को केंद्र में रखा गया। ब्रज फाउंडेशन ने फंड के लिए राज्य सरकार से संपर्क नहीं किया। पीरामल फाउंडेशन ने इस बहाली परियोजना के लिए धन दान किया था।

एक अन्य तालाब जिसे बहाल किया गया वह जय कुंड था, जो जैत गांव के अधिकार क्षेत्र में आता है और मुख्य दिल्ली-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। ग्रामीणों का मानना है कि यहीं पर कृष्ण ने पौराणिक अजगर अघासुर का वध किया था और इसलिए इस स्थान का सम्मान किया जाता है। जमनालाल बजाज फाउंडेशन और मोरारका फाउंडेशन ने इस तालाब की बहाली के लिए धन दान किया था।

ब्रज फाउंडेशन द्वारा किए गए कार्यों के बारे में जानने के बाद, ग्राम प्रधान मुकेश सिंह के नेतृत्व में अनौर के ग्रामीणों ने मथुरा में गोवर्धन की तलहटी में स्थित संकर्षण कुंड को पुनर्जीवित करने करने के लिए श्री नारायण से संपर्क किया। सिंह कहते हैं की, “तालाब को पुनर्जीवित करने का कार्य इतना सफल रहा कि लाखों तीर्थयात्री कुंड देखने आने लगे। प्रधान ने कहा कि, अंदाज़ा लागाइए कि पूरे गांव को तब कितना गर्व हुआ होगा जब तेलंगाना के लोगों ने हमें श्रीसंकर्षण की 34 फुट ऊंची काले ग्रेनाइट की मूर्ति भेंट की थी।” 

50 जल निकायों को पुनर्जीवित करने के अलावा, ब्रज फाउंडेशन ने एक स्थानीय जंगल को भी बहाल करने और उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के लिए एक पर्यटन मास्टर प्लान तैयार करने में मदद की है। नारायण कहते हैं, 'प्रत्येक तालाब/कुंड के आकार के आधार पर मरम्मत की औसत लागत 4 लाख रुपये से 4 करोड़ रुपये के बीच आंकी गई है।'

इसलिए उन्हें झटका तब लगा जब 2017 में सत्ता में आने के एक हफ्ते के भीतर ही मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की सरकार ने 67 करोड़ रुपये में सिर्फ नौ तालाबों/कुंडों को पुनर्जीवित करने का ठेका दे दिया। नारायण कहते हैं, "मैंने राज्य सरकार को सूचित किया कि हम इसके मुक़ाबले  एक चौथाई लागत में यह काम कर सकते हैं।" उनकी खुली आलोचना के कारण अनुबंध रद्द कर दिया गया।

दूसरी बार नारायण का राज्य सरकार के साथ तब टकराव हुआ, जब राज्य सरकार ने मथुरा के पर्यटन के बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए जयपुर के एक व्यवसायी को हजारों करोड़ रुपये का ठेका दे दिया। नारायण कहते हैं, "एक बार फिर, मैंने सार्वजनिक रूप से सवाल किया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा धन की हेराफेरी के मामले में  जांच के दायरे में आए किसी व्यक्ति को यह अनुबंध क्यों दिया जा रहा है।"

उत्तर प्रदेश सरकार को इसे भी वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा। इस तरह की खुली आलोचना राज्य सरकार को रास नहीं आई और उसने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के सामने एक शिकायत दर्ज़ कराई, जिसमें कहा गया कि किसी निजी संगठन यानि ब्रज फाउंडेशन को स्थानीय बागों को फिर से हरा-भरा करने और तालाबों की मरम्मत का काम नहीं सौंपा जा सकता है। फिर, 2018 में, एनजीटी ने एक आदेश पारित किया जिसमें कहा गया कि ब्रज फाउंडेशन द्वारा किए गए सभी कार्यों को "ध्वस्त" कर दिया जाए। इस आदेश से भविष्य में राज्य सरकार को तालाबों/कुंडों पर को पुनर्जीवित करने काम मिल गया और कहा गया कि  वन विभाग ही जंगलों को फिर से हरा-भरा करने का काम करेगा। 

नारायण इस फैसले के खिलाफ अदालत गए और और सुप्रीम कोर्ट से स्थगनादेश हासिल  किया और कहा कि बहाली को पूर्ववत नहीं किया जा सकता है। तब राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद का गठन किया और क्षेत्र में सभी विकास गतिविधियों की निगरानी के लिए सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी शैलजा के मिश्रा को नियुक्त किया। इसका मतलब था कि ब्रज फाउंडेशन को काम से बाहर करना। राज्य के एक सेवानिवृत्त नौकरशाह का आरोप है कि, “ब्रज फाउंडेशन को इसलिए बाहर कर दिया गया क्योंकि योगी सरकार ने विनीत नारायण को उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का करीबी पाया था।

लेकिन ब्रज के ग्रामीणों के लिए, उनके गांव परिसर के भीतर एक सुंदर बाग और तालाब होने का उनका आनंद और गर्व अब नुकसान की गहरी भावना पीड़ित हो गया है। 50 पुनर्जीवित तालाब/कुंड एक बार फिर कचरे के ढेर से कुछ अधिक ही बन कर रह गए हैं।

जब तालाब को पुनर्जीवित करने का काम हुआ तब जैत गांव के प्रधान दलवीर सिंह ने अपनी बात रखते हुए जरा भी कोताही नहीं बरती कि, “राज्य सरकार ने हमारे तालाबों/कुंडों के रखरखाव या सफाई में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। ब्रज फाउंडेशन ने अतिक्रमण को रोकने के लिए चारदीवारी बनाई और एक सुरक्षा गार्ड को काम पर रखा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बदमाश इस जगह को खराब न करें। प्रत्येक तालाब/कुंड के चारों ओर बनाए गए उद्यानों की देखभाल के लिए माली नियुक्त किए गए थे। ग्राम निकायों के पास इन स्थानों को बनाए रखने के लिए धन नहीं है।

घटनाओं के इस मोड़ पर प्रधान मुकेश सिंह भी सरकार के प्रति उतने ही कटु हैं। वर्तमान स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ ग्रामीण अपने सीवेज के कचरे को संकर्षण तालाब/कुंड में फेंक रहे हैं। हमने स्थानीय नौकरशाहों से शिकायत की है जिन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की है। नारायण इस बात से शर्मिंदा महसूस करते हैं कि उनकी टीम के काम को आधिकारिक एजेंसियों द्वारा कैसे पलटा जा रहा है, जो ब्रज की धरोहर को संजोने के काम में बहुत कम रुचि रखते हैं, खासकर तब-जब यह इलाका पाने की गंभीर कमी के संकट का सामना कर रहा है। लेकिन उन्होंने लड़ाई नहीं छोड़ी है। जब ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने मथुरा और वृंदावन के बीच एक मेट्रो लिंक का विचार रखा, जिसकी लागत कई सौ करोड़ रुपये होगी, तो उन्होंने इसके खिलाफ एक अभियान चलाया। सौभाग्य से, केंद्रीय रेल मंत्रालय ने भी परियोजना को अव्यवहार्य पाया है।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Paying the Price for Crossing Swords With Uttar Pradesh Regime

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