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बनारस: ‘टेंट सिटी’ पर बढ़ा विवाद; एनजीटी ने की ज़मीनी जांच, कंपनी से मांगा जवाब!

एनजीटी की ओर से गठित सात सदस्यीय जांच कमेटी ने 03 मई 2023 को गंगा नदी और पर्यावरण को होने वाले नुक़सान का जाइज़ा लिया। इसके अलावा टेंट सिटी के संचालकों से 20 बिंदुओं पर जवाब मांगा गया।
tent city

उत्तर प्रदेश के बनारस में गंगा पार टेंट सिटी बसाकर भाजपा सरकार अपने ही जाल में बुरी तरह फंस गई है। बनारस के उन अफसरों पर भी सवालिया निशान है जिन्होंने इस योजना को लागू करने से पहले गंगा संरक्षण मिशन-नमामि गंगे से अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं समझी। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) की ओर से गठित सात सदस्यीय जांच कमेटी ने 03 मई 2023 को गंगा नदी और पर्यावरण को होने वाले नुक़सान का जायज़ा लिया और जब टेंट सिटी के संचालकों से नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) का ‘नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट’ मांगा गया तो वो बगलें झांकने लगे। टेंट सिटी की वजह से जलीय जीवों को होने वाले नुक़सान से बचाने की भी तरकीब पूछी गई तो वो निरुत्तर नज़र आए।

एनजीटी की जांच टीम ने गंगा के किनारे रेत पर बनी टेंट सिटी से कार्बन फुटप्रिंट, प्रदूषण, गंगा जल जीवों और गंगा इको सिस्टम पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का बेहद गहराई से आकलन किया। जांच कमेटी के सामने पेश हुए टेंट सिटी के संचालकों से 20 बिंदुओं पर जवाब मांगा गया। उन्होंने जांच टीम को बताया कि "वाराणसी में गंगा की रेती पर बनी लग्जरियस टेंट सिटी डेढ़ महीने बाद हटा ली जाएगी, क्योंकि, गंगा का जलस्तर बढ़ जाएगा। बारिश खत्म होते ही दोबारा से टेंट सिटी बसा दी जाएगी। यह करार पांच साल तक के लिए है।"

एनजीटी की जांच टीम ने टेंट सिटी के सामने गंगा के किनारे जमी काई की तस्वीरें लीं और गंगा जल के कई सैंपल भी लिए। साथ ही क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों से सवाल-जवाब भी किया। गंगा जल की सूक्ष्म जांच के लिए क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण विभाग के साथ-साथ सिंचाई और जल संसाधन विभाग को ज़िम्मेदारी सौंपी गई। बनारस में गंगा जल की स्थिति की जांच रिपोर्ट भी एनजीटी के समक्ष रखी जाएगी। टेंटी सिटी की जांच-पड़ताल से पहले एनजीटी की जांच टीम भेलूपुर स्थित क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय पहुंची और वहां बैठक की। टेंट सिटी के चलते पैदा होने वाले दुष्प्रभावों को लेकर विशेषज्ञों संग चर्चा की गई। लगभग दो घंटे के बाद अधिकारियों का दल टेंट सिटी पहुंचा। वहां टेंट सिटी का संचालन करने वाली अहमदाबाद की कंपनी 'प्रवेग' और कटेसर रामनगर की 'निरान' के अफसरों से पूछताछ की गई।

टेंट सिटी का मौका-मुआयना करते अफसर

भोग-विलास के लिए है टेंट सिटी : याचिकाकर्ता

बनारस के एक गंगा प्रेमी तुषार गोस्वामी ने मार्च 2023 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) में एक याचिका दायर दायर करते हुए कहा था कि बनारस की गंगा में टेंट सिटी भोग-विलास के लिए बसाई गई है। 17 मार्च 2023 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुई सुनवाई में तुषार गोस्वामी के अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था, "टेंट सिटी को गंगा तल में बसाना पर्यावरण और पर्यावरणीय कानून के खिलाफ है। इस टेंट सिटी को उस जगह बसाया गया है जहां पहले कछुआ सेंक्चुअरी हुआ करती थी। अब इसे शिफ्ट कर दिया गया है। तंबुओं के शहर को बसाते समय गंगा और पर्यावरण संरक्षण कानून के मानकों का तनिक भी ध्यान नहीं रखी गया। टेंट सिटी को भोग-विलास के लिए गंगा नदी के किनारे बसाया गया है। इसकी गंदगी सीधे तौर पर गंगा में जाती है। इससे जलीय जीव मर रहे हैं। जल जीव खत्म हो जाएंगे तो गंगा में स्नान लायक पानी नहीं बचेगा।"

इसके अलावा सौरभ कहते हैं, "वाराणसी में गंगा किनारे दो निजी कंपनियों निरान और प्रवेग ने टेंट सिटी स्थापित किया है। यहां पर एक कॉटेज के 10 हज़ार से लेकर 25-30 हज़ार रुपये तक वसूले जा रहे हैं। कायदे-कानून को ताक पर रखकर टेंट सिटी के आयोजक रोजाना शादियां करा रहे हैं। देश की तमाम कंपनियां भी वहां पार्टी करने लगी हैं। टेंट सिटी की समूची गंदगी सीधे गंगा में जा रही है। इससे पवित्र नदी गंगा की अस्मिता तार-तार हो रही है। टेंट सिटी जैसी परियोजनाएं भूजल पुनर्भरण, नदी की जैव विविधता और वन्यजीव संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिक कार्यों को ख़राब करती हैं। गंगा और यमुना जैसी नदियों की प्राचीनता और पवित्रता को सबसे पहले उनकी रक्षा और सुरक्षा करके ही संरक्षित किया जा सकता है, न कि उनके अस्तित्व के साथ छेड़छाड़ करके।"

अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने एनजीटी में तुषार गोस्वामी का पक्ष रखते हुए कहा था, "माघ महीने में प्रयागराज में होने वाला कल्पवास पूरी तरह से धार्मिक क्रियाकलाप है। गंगा किनारे बसाया गया तंबुओं का शहर रसूखदारों का लग्जरियस होटल है। प्रयागराज के माघ मेले में गंदगी को गंगा में बहाने के बजाय उसे पाइप लाइन से निकालकर काफी दूर डंप किया जाता है। बनारस की टेंट सिटी में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। गंगा में घाटों के किनारे अब रेत और गाद जमने लगी है। हरिश्चंद्र घाट से लेकर अस्सी घाट तक की स्थिति बेहद चिंताजनक है। लोगों को घाटों पर स्नान करने में बड़ी समस्याएं हो रहीं हैं। कई घाट पोपले हो गए हैं और स्नानार्थियों की मौतें हो रही हैं। इसके बावजूद नमामि गंगे योजना से जुड़े अफसर आंख बंद किए हुए हैं। गंगा की बदहाली के लिए बनारस के पर्यावरणविदों और प्रबुद्ध नागरिकों ने गंगा पार बने टेंट सिटी को ज़िम्मेदार माना है।"

नियमों की अनदेखी क्यों?

एनजीटी के चेयरमैन न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने टेंट सिटी मामले को गंभीरता से लिया और कहा, "अगर आरोप सही हैं, तो यह पर्यावरण नियमों के गंभीर उल्लंघन को दर्शाता है। किसी भी आदेश को पारित करने से पहले राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी), केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) जैसी संस्थाओं की सात सदस्यीय संयुक्त समिति से तथ्यात्मक रिपोर्ट लेना ज़रूरी था।"

पीठ में शामिल न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल ने जांच समिति को एक हफ्ते के अंदर टेंट सिटी का ज़ीरो ग्राउंड लेवल पर निरीक्षण व जांच शुरू करने और दो महीने के भीतर न्यायाधिकरण को अपनी रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। अफसरों की जांच कमेटी टेंट सिटी परियोजना की वैधता, कछुआ वन्यजीव अभयारण्य और गंगा पर परियोजना के प्रभाव का पता लगा सकती है। जांच टीम में एनएमसीजी और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समन्वय और अनुपालन के लिए नोडल एजेंसी होंगी। समिति, साइट पर जाने और संबंधित अधिकारियों और हितधारकों के साथ बातचीत करने के लिए ऑनलाइन या ऑफलाइन कार्रवाई करने के लिए खुली रहेगी।

टेंट सिटी मामले की जांच के लिए एनजीटी ने जो सात सदस्यीय जांच कमेटी गठित की है, उसमें बनारस के जिलाधिकारी एस राजलिंगम और सिटी मजिस्ट्रेट गुलाबचंद के अलावा सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता दिनेश कुमार पोडवाल, भारत सरकार के वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की तरफ से अपर निदेशक डॉ. एके गुप्ता, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन से सीनियर वेस्ट मैनेजमेंट स्पेशलिस्ट रजत कुमार गुप्ता, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक डॉ. ऐसी शुक्ल और मुख्य वन्य जीव संरक्षक को शामिल किया गया है। जांच कमेटी के गठन के करीब डेढ़ महीने गुज़र गए, फिर भी कई सदस्य जांच में 'हीला-हवाली' करते रहे। काफी जद्दोजहद के बाद अफसर बनारस में गंगा रेत पर बने टेंट सिटी का ज़ीरो ग्राउंड लेवल पर निरीक्षण के लिए तैयार हुए।

टेंट सिटी के संचालकों से पूछताछ करती एनजीटी जांच टीम

26 मई को होगी सुनवाई

एनजीटी की जांच टीम इस बात का विस्तार से अध्ययन कर रही है कि गंगा पार रेत में करीब 100 हेक्टेयर में बनी टेंट सिटी से नदी के इकोसिस्टम को कितना खतरा है और अभी तक क्या नुक़सान हुए हैं? हालांकि जांच-पड़ताल के दौरान टेंट सिटी के संचालकों ने दावा किया कि उन्होंने सीवेज निस्तारण के लिए अलग से पाइपलाइन बिछाई है। जांच-पड़ताल करने वाली कमेटी को समूचे मामले की विस्तृत रिपोर्ट शीघ्र पेश करनी है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल में इस मामले की सुनवाई 26 मई 2023 को होनी है।

आपको बता दें, वाराणसी में टेंट सिटी परियोजना का उद्घाटन जनवरी 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। गंगा पार रेत पर बनी टेंट सिटी में पांच सितारा होटलों जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं। गंगा नदी के किनारे अस्सी घाट के सामने 100 हेक्टेयर में टेंट सिटी बसाई गई है। प्रवेग कम्युनिकेशन ने 400 और लल्लूजी एंड संस की कंपनी निरान ने करीब 200 तंबुओं को खड़ा किया है। गंगा की रेत पर बनी लग्जरियस टेंट सिटी अब डेढ़ महीने बाद विदा हो जाएगी। गंगा का जलस्तर बढ़ना शुरू होगा, तभी तंबुओं का शहर उखड़ जाएगा। अनुबंध के मुताबिक टेंट सिटी लगातार पांच साल तक बसाई जाएगी। बारिश खत्म होते ही अगले सीज़न में तंबुओं का शहर फिर गुलज़ार हो जाएगा। माना जा रहा है कि एनजीटी के कड़े रुख के चलते टेंट सिटी के संचालकों की मुश्किलें इसी साल बढ़ने वाली हैं। ख़बरें हैं कि एनजीटी इसके संचालन पर हमेशा के लिए ब्रेक लगा सकता है।

बनारस में पर्यावरण संरक्षण के लिए मुहिम चला रहे अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने एनजीटी के समक्ष कई गंभीर सवालों को उठाया है। ‘न्यूजक्लिक’ के लिए बातचीत में वह कहते हैं, "गंगा में तंबुओं का शहर बसाकर भोग-विलास को बढ़ावा देना कानूनी और पर्यावरणीय दोनों रूप से अनुचित है। टेंट सिटी से गंगा के जलचर को नुक़सान हुआ है। नदी में कई स्थानों पर काई भी जम गई है। टेंट सिटी के संचालकों को तंबुओं का शहर उखाड़ना पड़ेगा। इसके संचालकों पर एनजीटी तगड़ी फाइन लगा सकती है। पर्यावरण को नुक़सान पहुंचाने वालों को इसकी भरपाई करनी पड़ेगी। टेंट सिटी बनने से गंगा पार के रेत और गाद नहीं हटाए जा रहे हैं। इस वजह से एक्स्ट्रा रेत अब घाटों के किनारे पर जमने लगी है।"

क्यों हटा दी कछुआ सेंक्चुअरी?

अधिवक्ता सौरभ तिवारी यह भी कहते हैं, "टेंट सिटी की वजह से घाटों की स्थिति खराब हो रही है। कुछ साल पहले तक इसी क्षेत्र में कछुआ सेंक्चुअरी हुआ करती थी। शवदाह के बाद होने वाले प्रदूषण से गंगा को बचाने के लिए वन विभाग ने 1987 में रामनगर से लेकर राजघाट तक कछुआ अभयारण्य बनाया था। तब से यहां मांसाहारी कछुओं को छोड़ा जा रहा था। गंगा में बढ़ती इंसानी गतिविधियों और बड़े पैमाने पर क्रूजों की आवाजाही बढ़ने के बाद कछुआ अभ्यारण्य को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया। तंबुओं का शहर बसाने में नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा से अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं समझी गई। बनारस में जमे कुछ अफसरों की अनुमति लेकर गंगा की रेत पर टेंट सिटी बसा दी गई।"

वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "उत्तर भारत में करीब ढाई हज़ार किमी में फैली गंगा नदी के किनारे शहरों के चलते हर रोज़ हज़ारों मीट्रिक टन कचरा और लाखों लीटर मल-जल सीधे गंगा में गिर रहा है। नमामि गंगे योजना अपने लक्ष्य से भटक गई है। यही वजह है कि बनारस की पुरानी नदी असी और वरुणा बदहाल हैं। योजना के मुताबिक, गंगा से जुड़ने वाली ऐसी नदियों को नमामि गंगे योजना के तहत संरक्षित करने का नियम है। साल 2014 में बनारस से चुनाव लड़ने आए नरेंद्र मोदी ने बनारसियों को गंगा सफाई का भरोसा दिलाया था, लेकिन हालात जस के तस हैं। मोदी सरकार ने बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी की, लेकिन गंगा में गंदगी अब भी जगह-जगह फैली हुई है। असी और वरुणा नदियां तो आज भी बनारस शहर का मल-जल ढो रही हैं।"

आगे वह कहते हैं, "14 जनवरी, 1986 में ‘गंगा एक्शन प्लान’ बनाया गया, जिसका मकसद गंगा में मिलने वाले वाले सीवेज और औद्योगिक प्रदूषण को रोकना था। साल 2009 में ‘मिशन क्लीन गंगा’ शुरू किया गया। इसके तहत गंगा को साल 2020 तक सीवर और औद्योगिक कचरे से निजात देने का लक्ष्य रखा गया। इस पर 15 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने की योजनाएं तैयार हुईं, लेकिन स्थिति जस की तस है। गंगा नदी मनुष्य के शरीर की तरह है। इस पवित्र नदी को टेंट सिटी जैसा विष पिलाया जा रहा है। गंगा की सेहत सुधारने के लिए कभी धन और योजनाओं की कमी नहीं रही, लेकिन अमल में लाने की इच्छाशक्ति आज भी नहीं दिखी। गंगा के मैली होने की कहानी आज भी वही है, जैसी दस बरस पहले थी।"

प्रदीप यह भी कहते हैं, "भारत सरकार ने गंगा को पुनर्जीवित करने के लिए नमामि गंगे नाम से एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन की शुरुआत की थी। गंगा करीब 405 किमी का सफर तय करती है। यह नदी अपने किनारे बसे 15 शहरों और 132 गांवों की लाइफलाइन है जो शहरों से निकलने वाले कूड़ा-करकट से लेकर करोड़ों लीटर सीवरेज सोख रही है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना कर दिया था, लेकिन हालात जस के तस हैं। गंगा नदी में होने वाला प्रदूषण पिछले कई सालों से भारत सरकार और जनता के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। यह नदी उत्तर भारत की सभ्यता और संस्कृति की सबसे मजबूत आधार है। नमामि गंगे योजना का मकसद नदी के प्रदूषण को खत्म करना, सहायक नदियों को पुनर्जीवित करना और स्वच्छ जल का लाभ देशवासियों तक पहुंचाना है। गंगा का सिर्फ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व ही नहीं है, बल्कि देश की 40 फीसदी आबादी इसी नदी पर निर्भर है। तंबुओं का शहर बसाकर सरकार ने गंगा के साथ खिलवाड़ करने के साथ ही बनारसियों के 'बहरी अलंग' की सदियों पुरानी रवायत को तार-तार किया है।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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