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फिर मॉरल पुलिसिंग : छात्राओं को घुटने से लंबा कुर्ता पहनने का आदेश, विरोध के बाद  सर्कुलर वापस

हैदराबाद के सेंट फ़्रांसिस कॉलेज के प्रशासन ने छात्राओं से कहा है कि वो घुटने से ऊपर कुर्ते न पहन कर आएँ, क्योंकि इससे मर्द शिक्षकों का ध्यान भटकता है। ये फ़ैसला ऐसे वक़्त में आया, जब छात्राओं के संघर्ष के बाद बीएचयू में एक शिक्षक को यौन उत्पीड़न का आरोपित होने की वजह से 'लंबी छुट्टी' पर भेज दिया गया है।
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Image courtesy:News State

देश के अलग-अलग विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में समय-समय पर 'ड्रेस कोड' के नाम पर महिलाओं पर नियंत्रण रखने का सिलसिला कई वक़्त से जारी है और इस समय ये और भी तेज़ हो रहा है। हमने देखा है कि दिल्ली, बनारस से लेकर हैदराबाद तक कैसे छात्राओं को तथाकथित शिष्ट कपड़े पहनने के लिए कहा जाता रहा है। इसी सिलसिले में एक और घटना सामने आई हैदराबाद से। हैदराबाद के सेंट फ़्रांसिस कॉलेज का एक वीडियो दो दिन से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें छात्राओं के कपड़े चेक किए जा रहे हैं, और जिनके कुर्ते घुटने से ऊपर हैं, उनको क्लास में जाने की इजाज़त नहीं दी जा रही है।

आपको बता दें, कि कुछ दिनों पहले सेंट फ़्रांसिस कॉलेज की छात्राओं के बीच एक व्हाट्सऐप मैसेज फैलाया गया था, जिसमें कहा गया था कि जो छात्रा घुटने से ऊपर कुर्ता पहन कर कॉलेज आएगी, उसे कॉलेज में घुसने की इजाज़त नहीं दी जाएगी। इसके मुताल्लिक़ एक सर्कुलर (Circular) भी कॉलेज की तरफ़ से लाया गया था। इसकी तमाम ख़राब वजहात में से एक वजह ये बताई गई है कि ऐसे कपड़ों से मर्द टीचरों का ध्यान भटकता है और ये कपड़े शालीन नहीं हैं।

कॉलेज प्रशासन के इस फ़ैसले का सोशल मीडिया पर देशभर में विरोध किया गया और कॉलेज की छात्राओं ने इस फ़रमान को महिला-विरोधी और पितृसत्तात्मक बताया है।

विरोध प्रदर्शन के बाद फ़ैसला वापस

इस फ़ैसले का विरोध करते हुए सोमवार को छात्राओं ने कैम्पस में विरोध प्रदर्शन किया और जिस समय जब ये ख़बर लिखी जा रही है, कॉलेज की सड़कों पर 150 से ज़्यादा छात्राएँ प्लेकार्ड (Placard) लिए खड़ी हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ कॉलेज की प्रिंसिपल सिस्टर सैंड्रा ने छात्राओं से मुलाक़ात की है और अब प्रशासन ने इस सर्कुलर को वापस लेने का फ़ैसला लिया है। आपको बता दें कि कॉलेज में पहले से एक ड्रेस कोड लागू है जो कि अपने आप में आपत्तिजनक है लेकिन छात्राएँ इसका पालन करती थीं। कॉलेज के प्रोस्पेक्टस में ये बात लिखी है कि छात्राओं को लंबी शर्ट, पैंट ही पहन कर आना है और छोटे कपड़े जैसे शॉर्ट्स या बिना बाज़ू के कपड़े प्रतिबंधित हैं। इस ड्रेस कोड के बाद साल के बीच में एक अन्य ड्रेस कोड लेकर आना और उसके ऐसे महिला-विरोधी कारण बताने की वजह से छात्राओं में ग़ुस्सा पैदा हो गया था।

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सेंट फ़्रांसिस कॉलेज की पूर्व छात्रा ज़ैनोबिया तुम्बी (Zanobia Tumbi) ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "कॉलेज की छात्राएँ पहले से ही ड्रेस कोड के नियमों का पालन करती थीं लेकिन सिस्टर सैंड्रा साल के बीच में एक नया नियम ले कर आई हैं, और आप वीडियो में देख सकते हैं कि जिनकी कुर्ती घुटनों से ऊपर थी, उनको कॉलेज में घुसने नहीं दिया गया और घर भेज दिया गया। ऐसे माहौल में कोई कैसे पढ़ाई कर सकता है? जिन छात्राओं के पास नए कपड़े ख़रीदने के पैसे नहीं हैं, वो क्या करेंगी?"

आपको बता दें कि सेंट फ़्रांसिस के कॉलेज प्रशासन ने छात्राओं के कपड़े चेक करने के लिए सेक्युर्टी गार्ड भी रखे हैं, आप वीडियो में देख सकते हैं कि कैसे छात्राओं को और उनके माँ-बाप का भी निरादर किया जा रहा है।

ये अकेली घटना नहीं है कि किसी कॉलेज ने शिष्टाचार के नाम पर ख़ास तरह के पितृसत्तात्मक संस्कार छात्राओं पर थोपने का काम किया है। इसके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालयों के कई कॉलेजों में ऐसी घटनाएँ सामने आई हैं, जिसमें छात्राओं को एक तरह का ड्रेस कोड पालन करने के निर्देश दिये गए हैं। 4 साल पहले इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, दिल्ली के एक कॉलेज विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ़ प्रोफ़ेशनल स्टडीज़ में भी ऐसा ही फ़रमान लागू हुआ था जब छात्र-छात्राओं दोनों के लिए ही विशेष ड्रेस कोड निर्धारित किए गए थे। छात्रों ने तब भी विरोध किया था।

इस तस्वीर को थोड़ा ज़ूम आउट करके देखने की ज़रूरत है। आप उस वजह को देखिये जो लंबे कुर्ते पहनने के लिए दी गई है। सेंट फ़्रांसिस के प्रशासन ने कहा था कि छात्राओं के 'ऐसे' कपड़ों से मर्द टीचरों का ध्यान भटकता है। आज, जब हैदराबाद की इस घटना की बात हो रही है, उसी समय छात्राओं के संघर्ष के बाद बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से एक शिक्षक को लंबी छुट्टी पर भेज दिया गया है। इस शिक्षक पर यौन उत्पीड़न का आरोप है। जिसकी शिकायत कई छात्राओं ने की है।

ये सिर्फ़ बीएचयू ही नहीं, जामिया, डीयू, जेएनयू, Symbiosis, जैसे बड़े विश्वविद्यालयों से पिछले समय में ऐसी कई घटनाएँ सामने आई हैं, जब शिक्षकों पर छात्राओं द्वारा यौन उत्पीड़न के तमाम आरोप लगे हैं।

ऐसे में सेंट फ़्रांसिस कॉलेज के प्रशासन को किस पर नियंत्रण रखना चाहिए? छात्राओं पर या शिक्षकों पर?

पितृसत्ता की इसी सोच के तहत कभी ड्रेस कोड, कभी हॉस्टल में आने-जाने का वक़्त नियंत्रित करके छात्राओं को 'संस्कारी' बनाने के नाम पर उन पर क़ाबू पाने की कोशिशें अलग-अलग शैक्षणिक संस्थानों ने समय-समय पर की हैं। और दूसरी तरफ़ यहीं प्रशासन यौन उत्पीड़न करने वाले शिक्षकों को बचाने की भी भरपूर कोशिशें करता दिखता है।

इसका दूसरा पहलू ये भी देखने को मिलता है कि छात्राएँ लगातार इन हरकतों का विरोध करती रही हैं। जैसा कि आज सोमवार को ही हैदराबाद में हुआ है, कि छात्राओं के विरोध के बाद कॉलेज प्रशासन उनके आगे झुकने को मजबूर हो गया है।

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