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महिलाओं को अर्थव्यवस्था में बराबर की भागीदारी और क़ानूनी समानता के लिए करना पड़ेगा लंबा इंतजार

विश्व बैंक के मुताबिक आज लगभग 2.4 बिलियन कामकाजी उम्र की महिलाएं उन अर्थव्यवस्थाओं में रहती हैं जहां उनके पास पुरुषों के समान अधिकार नहीं हैं।
gender discrimination
फ़ोटो साभार: OMFIF

देश-दुनिया में आप अक्सर तरक्की और विकास के नए समाचार पढ़ते होंगे। अर्थव्यवस्थाओं में उतार-चढ़ाव के साथ ही कामगारों के कानून और तमाम अदालतों के फैसलों पर भी आपकी निश्चित ही नज़र होगी लेकिन क्या इन सब के बीच आपने कभी ये सोचा है कि बिज़नेस और लॉ यानी व्यापार और कानून के क्षेत्र में भारी जेंडर गैप है। ये गैप आधी आबादी को न सिर्फ उसके हक़ों से महरूम कर रहा है बल्कि इकॉनमी में उनकी भागीदारी को भी सीमित कर रहा है। विश्व बैंक की हालिया जारी रिपोर्ट भी इस सच्चाई की तस्दीक करती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक आज लगभग 2.4 बिलियन कामकाजी उम्र की महिलाएं उन अर्थव्यवस्थाओं में रहती हैं जहां उनके पास पुरुषों के समान अधिकार नहीं हैं। समानता के अधिकार तक पहुंचने के लिए अभी भी लगभग 50 साल का समय लगेगा।

बता दें कि वुमन, बिज़नेस एंड लॉ 2023 नाम से जारी ये रिपोर्ट दुनिया की 190 अर्थव्यवस्थाओं में महिलाओं के आर्थिक अवसर को प्रभावित करने वाले कानूनों को मापने का वार्षिक अध्ययन है। यह महिलाओं की आर्थिक भागीदारी को प्रभावित करने वाले आठ क्षेत्रों – गतिशीलता, कार्यस्थल, वेतन, विवाह, पितृत्व, उद्यमिता, संपत्ति और पेंशन को प्रभावित करने वाले कानूनों और विनियमों को मापता है। साथ ही महिलाओं की आर्थिक भागीदारी में बाधाओं की पहचान कर भेदभावपूर्ण कानूनों के सुधार को प्रोत्साहित करता है। इस साल मार्च 2023 में आई ये रिपोर्ट यह इस श्रृंखला का नौवां अध्ययन है।

क्या ख़ास है इस अध्ययन में?

विश्व बैंक का ये अध्ययन महिलाओं द्वारा अपने पूरे कामकाजी जीवन में किए गए आर्थिक निर्णयों की जांच के साथ ही पिछले 53 सालों में लैंगिक समानता की दिशा में हुई प्रगति, अनुसंधान और नीतिगत चर्चाओं की महत्ता को आगे बढ़ाते हुए भविष्य की संभावनाओं को दर्शाता है। ये रिपोर्ट कानूनी लैंगिक समानता और महिलाओं की उद्यमशीलता तथा रोज़गार के बीच संबंध के प्रमाण के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है।

साल 2023 में आई इसी रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों की तुलना में दुनियाभर में केवल 77% महिलाओं के पास कानूनी अधिकार हैं, जो कि 20 साल के निचले स्तर पर हैं। यह महिलाओं के समान उपचार की दिशा में सुधारों की वैश्विक गति है। इसका मतलब है कि कामकाजी उम्र की 2.4 अरब महिलाओं के पास समान आर्थिक अवसर नहीं हैं। दुनिया की 176 अर्थव्यवस्थाएं ऐसी कानूनी बाधाओं को बनाए हुए हैं जो औरतों की पूर्ण आर्थिक भागीदारी को रोकती है।

रिपोर्ट के अनुसार करीब 90 करोड़ कामकाजी उम्र की महिलाओं ने पिछले एक दशक में कानूनी समानता हासिल की। 86 देशों में महिलाओं को नौकरी में कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ा है और 95 देशों में महिलाओं को पुरुषों के बराबर आय नहीं मिलती है। इस रिपोर्ट के अनुसार, आज के समय में सिर्फ 14 अर्थव्यवस्थाओं, जिसमें बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, आइसलैंड, आयरलैंड, लातविया, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, पुर्तगाल, स्पेन और स्वीडन है, केवल वहीं महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिए गए हैं।

रिपोर्ट की मानें, तो पुरुषों की तुलना में दुनियाभर में केवल 77% महिलाओं के पास कानूनी अधिकार हैं, जो कि 20 साल के निचले स्तर पर हैं। यह महिलाओं के समान उपचार की दिशा में सुधारों की वैश्विक गति है। इसका मतलब यह है कि कामकाजी उम्र की 2.4 अरब महिलाओं के पास समान आर्थिक अवसर नहीं हैं। उदाहरण के तौर पर 65 देशों में महिलाओं के कुछ कार्यों को करने पर रोक लगाई गई है। जैसे, थाईलैंड में 10 मीटर से अधिक ऊंचे मचान (स्कैफफोल्डिंग) पर काम करना। रूस में तेल और गैस के कुओं की खोजपूर्ण ड्रिलिंग। कैमरून में खानों, खदानों और दीर्घाओं में भूमिगत कार्य। ताजिकिस्तान में रेलवे या सड़क परिवहन रोजगार और नागरिक उड्डयन में कार्य करना। तुर्की में भूमिगत या पानी के नीचे काम, केबल बिछाने, सीवरेज काम और सुरंग निर्माण आदि का काम।

रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि महिलाओं को बांधकर या उन पर शर्तें लागू कर अर्थव्यवस्था को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। महिलाओं को पुरुषों के सामान ही हर चीज़ में बराबर की भागीदारी और अवसर देने होंगे। तभी सभी देश संकट का सामना करने के लिए अपनी पूरी उत्पादक क्षमता को जुटा पाएंगे।

भारत कहां है इस रिपोर्ट में?

हमारे देश भारत को इस स्टडी में निम्न मध्य आय वाले देश के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका वर्ल्ड बिज़नेस और लॉ इंडेक्स स्कोर 100 में से 74.4 है। ये दक्षिण एशिया के लिये समग्र स्कोर क्षेत्रीय औसत (63.7) से अधिक है। नेपाल पूरे दक्षिण एशिया में 80.6 स्कोर के साथ सबसे आगे है।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में एक संपन्न नागरिक समाज ने भी अंतराल की पहचान करने, कानून का मसौदा तैयार करने और अभियानों, चर्चाओं तथा विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से जनमत को व्यवस्थित करने में मदद की है, जिसके चलते साल 2005 में घरेलू हिंसा अधिनियम के पारित होने का मार्ग प्रशस्त हुआ। हालांकि भारतीय कामकाजी महिलाओं के वेतन तथा पेंशन को प्रभावित करने वाले कानून, विरासत और संपत्ति के अधिकारों को प्रभावित करने वाले कानून भारतीय पुरुषों के साथ महिलाओं को समानता प्रदान करने के अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो पा रहे।

भारतीय महिलाओं को अनुकूल वातावरण मुहैया करवाने के लिए सरकार को सवैतनिक संकेतकों में सुधार करना होगा। समान गुणवत्ता के काम के लिये समान पारिश्रमिक अनिवार्य करने के साथ ही महिलाओं को रात्रि में काम करने की अनुमति देनी होगी। इसके अलावा औरतों को भी मर्दों के बराबर ही हर क्षेत्र में हर स्तर पर काम करने की अनुमति प्रदान करनी होगी।

कार्यस्थल पर हिंसा से जुड़े कानून को सख्ती से लागी करना भी इस बराबरी में एक अहम रोल अदा करेगा। इसके साथ ही कंपनियों में मेटरनीटी लीव बेनिफिट के साथ काम पर वापसी करने वाली महिलाओं के साथ समान व्यवहार भी एक महत्वपूर्ण कारक है। ज्यादातर महिलाएं मातृत्व के बाद काम पर वापसी नहीं कर पाती या जो करती हैं, उन्हें खुद बहुत पीछे होने का एहसास होने लगता है।

गौरतलब है कि कोई भी देश तब तक पूर्ण विकास नहीं कर सकता, जब तक उस तरक्की में महिलाओं की भागिदारी पूरी ना हो। विश्व बैंक की रिपोर्ट भी यही कहती है कि देश की अर्थव्यवस्थाएं विकास की दौड़ से बाहर हो जाएंगी यदि वे अपनी महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार नहीं देती हैं। लैंगिक समानता न केवल महिलाओं के लिए अच्छी है, बल्कि यह समाज और अर्थव्यवस्था के लिए भी अच्छी है। यह उन्हें अधिक गतिशील और अधिक लचीला बनाती है।

श्रम बल में बड़ी संख्या में महिलाओं का प्रवेश और बना रहना आज की तारीख में सबसे जरूरी इसलिए भी हो जाता है क्योंकि ये एक तरीके से सशक्तिकरण की पहचान के साथ ही आत्मनिर्भरता भी है, जो उन्हें हर ज़ोर और जुल्म के शिलाफ आवाज़ उठाने का साहस देती है। जब महिलाएं आर्थिक तौर पर स्वतंत्र होंगी तभी वो अन्य सभी परतंत्रताओं को चुनौती दे पाएंगी।

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