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साक्षी मलिक के कुश्ती छोड़ने और अनिता श्योराण के चुनाव हारने के मायने क्या हैं?

पुरुषों के वर्चस्व वाली इस दुनिया में महिलाओं की स्वीकार्यता शायद आज भी लोगों के हाज़मे से बाहर है। साक्षी ओलंपिक मेडल लाने वाली इकलौती महिला पहलवान हैं, जबकि अनिता श्योराण की उपलब्धियां संजय सिंह से कहीं ज्यादा हैं।
Sakshi Malik

"अगर प्रेसिडेंट बृजभूषण जैसा आदमी ही रहता है, जो उसका सहयोगी है, उसका बिजनेस पार्टनर है। वो अगर इस फेडरेशन में रहेगा तो मैं अपनी कुश्ती को त्यागती हूं। मैं आज के बाद आपको कभी भी वहां नहीं दिखूंगी।"

आंखों में आंसू और भरे गले से निकले ये दर्द भरे शब्द कुश्ती में ओलंपिक मेडल लाने वाली इकलौती महिला पहलवान साक्षी मलिक के हैं। पहलवान साक्षी ने गुरुवार, 21 दिसंबर को कुश्ती छोड़ने का ऐलान कर दिया। उनका ये फैसला बृजभूषण शरण सिंह के करीबी संजय सिंह के भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने की खबर के ठीक बाद सामने आया। उन्होंने अपने साथी पहलवानों के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपने कुश्ती के जूतों को टेबल पर रखते हुए नम आंखों से इस खेल को अलविदा कह दिया।

साक्षी मलिक ने पूर्व अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण सिंह के खिलाफ अपने संघर्ष को याद करते हुए कहा, "हमने लड़ाई लड़ी, पूरे दिल से लड़ी... हम 40 दिनों तक सड़कों पर सोए और देश के कई हिस्सों से बहुत सारे लोग हमारा समर्थन करने आए। सभी देशवासियों को धन्यवाद जिन्होंने आज तक मेरा इतना सपोर्ट किया और मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया।"

ध्यान रहे कि बृजभूषण शरण सिंह के ऊपर महिला खिलाड़ियों की ओर से यौन उत्पीड़न समेत कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इस मामले में उनके ख़िलाफ़ दर्ज की गयी एफ़आईआर में भारतीय दंड संहिता की 354, 354-ए, 354-डी और 506(1) जैसी धाराएं लगाई गयी हैं। बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ़्तारी की मांग करते हुए साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया सहित तमाम खिलाड़ियों ने कई हफ़्तों तक दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया था। इस दौरान महिला संगठन और नागरिक समाज सहित छात्र संगठनों का भी उन्हें पूरा समर्थन मिला था। फिलहाल ये मामला अदालत में है और दिल्ली की राउज़ एवेन्यू कोर्ट ने बृजभूषण सिंह और उनके सहयोगी विनोद तोमर को सशर्त जमानत दी है।

कौन हैं संजय सिंह और अनीता श्योराण, जिनके बीच अध्यक्ष पद की जंग थी?

संजय सिंह को लोग बबलू के नाम से भी जानते हैं और उनका नाता बनारस के पास राजनाथ सिंह के क्षेत्र चंदौली से है। हालांकि वे अक्सर अपने आप को पीएम मोदी के क्षेत्र बनारस का ही वासी बताते हैं। उन्हें बृजभूषण शरण सिंह की परछाई कहा जाता है। उनका प्रत्यक्ष तौर पर बीजेपी से कोई जुड़ाव नहीं है, लेकिन उनका अप्रत्यक्ष जुड़ाव किसी से छिपा भी नहीं है। संजय सिंह वाराणसी कुश्ती संघ के अध्यक्ष भी रहे हैं। खबरों के मुताबिक पिछले चार सालों से वो भारतीय कुश्ती संघ के संयुक्त सचिव थे।

संजय सिंह को कई मौकों पर खुलकर बृजभूषण सिंह की तारीफ करते हुए देखा गया है। उन्होंने कई बार मीडिया के सामने इस बात को साफ शब्दों में कहा है कि बृजभूषण शरण सिंह और उनके पारिवारिक ताल्लुकात हैं और वो दोनों पिछले तीन दशक से एक दूसरे के क़रीबी हैं। संजय सिंह की जीत के बाद बृजभूषण शरण सिंह के बेटे और गोंडा से बीजेपी विधायक प्रतीक भूषण सिंह की एक फोटो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इस फोटो में प्रतीक भूषण के हाथ में एक पोस्टर है, जिस पर बृजभूषण सिंह की तस्वीर के साथ लिखा है- "दबदबा तो है दबदबा तो रहेगा, यह तो भगवान ने दे रखा है।"

इस चुनावी मैदान में संजय सिंह को चुनौती देने वाली पहलवान अनिता श्योराण भले ही हार गई हों, लेकिन उनकी उपलब्धियां इस खेल में संजय सिंह से कहीं ज्यादा हैं। अनिता 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में गोल्ड मेडल वीजेता रही हैं। उन्होंने एशियन चैंपियनशिप में दो बार कांस्य पदक जीता है, साथ ही वो आठ से ज़्यादा बार नेशनल चैंपियन रहने के अलावा कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अनेक पदक अपने नाम कर चुकी हैं।

अनिता श्योराण की उपलब्धियां संजय सिंह से कहीं ज्यादा

अनिता हरियाणा के भिवानी ज़िले के छोटे से गांव ढ़ाणी माहू से आती हैं। और वो बृजभूषण सिंह के ख़िलाफ़ लगे यौन उत्पीड़न के आरोप में गवाह भी थीं। फिलहाल अनिता श्योराण राज्य पुलिस सेवा में कार्यरत हैं लेकिन उन्होंने अपना नामांकन ओडिशा इकाई के प्रतिनिधि के तौर पर भरा था। अगर अनिता श्योराण कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद का चुनाव जीत जातीं, तो इस पद पर पहुंचने वाली वह पहली महिला होतीं।

खैर, चुनाव में हार के बाद अनिता ने कहा कि इतनी बड़ी लड़ाई लड़ी, इतना मुश्किल लग रहा था, उम्मीदें तो सबकी थी, लेकिन हम बच्चियों के लिए लड़ रहे थे। उन्होंने बताया कि फ़ेडरेशन को बदलाव मंज़ूर नहीं था लेकिन वो अपनी लड़ाई जारी रखेंगी। क्योंकि अन्याय के ख़िलाफ़ चुप तो नहीं बैठा जाएगा। पर उन्हें अब सुधार की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आती।

गौरतलब है कि कुश्ती महासंघ के चुनाव में सभी राज्य इकाइयों के वोटों की गिनती होती है, जिसमें हर इकाई के दो वोट माने जाते हैं, जिसमें बृजभूषण शरण सिंह ने पहले ही 20 राज्य इकाइयों के साथ होने का दावा कर दिया था। ऐसे में जानकार पहले ही इस चुनाव को एकतरफा मान रहे थे। क्योंकि पुरुषों के वर्चस्व वाली इस दुनिया में एक महिला अध्यक्ष की स्वीकार्यता शायद आज भी लोगों के हाज़मे से बाहर है।

बहरहाल, ये सिर्फ भारतीय कुश्ती महासंघ का हाल नहीं बल्कि देश के अधिकांश खेल संघों की सच्चाई है। इन सब की कमान या तो दबंग राजनेताओं के पास है, या ताक़तवर नौकरशाहों के पास या फिर अमीर कारोबारी पुरुषों के हाथों में है। खेल मंत्रालय में भी इन्हीं लोगों की धाक है, ऐसे में महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा और उनकी सुनवाई की क्या स्थिति होगी, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है।

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