Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

ख़बरों के आगे-पीछे : प्रधानमंत्री का धमकी भरा चुनाव प्रचार

हिमाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नौ नवंबर की रैली के बाद सवाल खड़ा हो गया है कि क्या सहकारी संघवाद का यही मॉडल है कि अगर किसी राज्य में डबल इंजन की सरकार नहीं बनेगी तो वहां विकास नहीं होगा?
pm modi himachal

हिमाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नौ नवंबर की रैली के बाद सवाल खड़ा हो गया है कि क्या सहकारी संघवाद का यही मॉडल है कि अगर किसी राज्य में डबल इंजन की सरकार नहीं बनेगी तो वहां विकास नहीं होगा? प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि हिमाचल में अगर कांग्रेस की सरकार आ गई तो कांग्रेस वाले हिमाचल में विकास के काम रोक देंगे और वे केंद्र सरकार को भी हिमाचल का विकास नहीं करने देंगे। कैसी हैरानी की बात है कि प्रधानमंत्री ऐसा कह रहे हैं। कोई राज्य सरकार कैसे केंद्र को किसी राज्य में या केंद्र सरकार किसी राज्य सरकार को विकास का कोई काम करने से रोक सकती है? राज्यों के विकास के लिए डबल इंजन की सरकार अनिवार्य होती तो तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में कभी विकास नहीं हो पाता क्योंकि कई दशक से राज्य में क्षेत्रीय पार्टियों की सरकार बनती रही हैं। केरल में भी हर पांच साल पर वामपंथी मोर्चा सत्ता में आता रहा है, जिसका केंद्र की लगभग हर सरकार से टकराव रहा है। खुद नरेंद्र मोदी 13 साल गुजरात में मुख्यमंत्री रहे और इस अवधि में 10 साल केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। इसके बावजूद उनका दावा है कि उन्होंने गुजरात में अभूतपूर्व विकास किया है। जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद उन्होंने गुजरात का विकास किया, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह ने बहुत विकास किया तो हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का मुख्यमंत्री कैसे विकास का काम नहीं कर पाएगा या वह कैसे केंद्र को काम करने से रोक देगा? प्रधानमंत्री मोदी 13 नवंबर को तेलंगाना में दो बड़ी केंद्रीय परियोजनाओं का उद्घाटन करने जा रहे हैं। वहां उनके घनघोर विरोधी के चंद्रशेखर राव की सरकार है लेकिन उसने तो विकास का काम करने से केंद्र को नही रोका! असल में यह कहना कि डबल इंजन की सरकार होगी तभी विकास होगा, एक तरह से जनता को धमकी है और इससे लोकतंत्र और संघवाद की अवधारणा पर सवाल खडा होता है।

महाराष्ट्र में नोटा ही भाजपा उम्मीदवार था! 

महाराष्ट्र की अंधेरी ईस्ट विधानसभा के उपचुनाव में नामांकन से लेकर नतीजे तक कई बहुत दिलचस्प चीजें हुईं। चुनाव की घोषणा के बाद भाजपा ने इस सीट के लिए शिव सेना के दिवंगत विधायक रमेश लटके की पत्नी रुतुजा लटके को अपना उम्मीदवार बनाना चाहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उन्हें शिव सेना ने उम्मीदवार बनाया तो उनको चुनाव लड़ने से रोकने के लिए बीएमसी की कर्मचारी के तौर पर उनके इस्तीफ़े को रोक दिया गया। अंत में हाई कोर्ट के आदेश से उनका इस्तीफा मंजूर हुआ और आखिरी दिन उन्होंने नामांकन दाखिल किया। इसके बाद जब भाजपा के घोषित सहयोगी एकनाथ शिंदे और राज ठाकरे के दबाव में भाजपा भाजपा ने अपने प्रत्याशी का नामांकन वापस करा दिया। हालांकि छह और उम्मीदवार मैदान में थे लेकिन भाजपा के हटते ही तय हो गया कि रुतुजा लटके भारी अंतर से जीतेगी। उद्धव ठाकरे की शिव सेना ने दावा किया कि उन्हें 90 फीसदी से ज्यादा वोट मिलेंगे। उसके बाद ही भाजपा इस दावे को गलत साबित करने मे जुट गई। इसके लिए भाजपा ने नोटा यानी 'इनमें से कोई नहीं’ को अपना उम्मीदवार बना लिया। खुद उद्धव ठाकरे ने प्रचार के दौरान कहा कि भाजपा पैसे बांट कर लोगों को नोटा पर वोट देने के लिए कह रही है। चुनाव नतीजे से साबित हुआ कि यहां नोटा ही भाजपा का उम्मीदवार था। नोटा को करीब 15 फीसदी यानी करीब 18 हजार वोट मिले। बाकी छह उम्मीदवारों को सात फीसदी वोट मिले। शिव सेना उम्मीदवार को 77 फीसदी के करीब वोट मिले। अगर नोटा के लिए मेहनत नहीं की गई होती तो शिव सेना का 90 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करने का दावा सही साबित होता।

प्रधान न्यायाधीश की शपथ में प्रधानमंत्री की ग़ैरहाज़िरी

नरेंद्र मोदी संभवत: देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो किसी भी जरूरी काम से ज्यादा महत्व चुनाव प्रचार को देते हैं। देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के शपथ ग्रहण समारोह में भी वे इसीलिए शामिल नहीं हुए। राष्ट्रपति की ओर से प्रधान न्यायाधीश के शपथ समारोह में शामिल होने का न्योता उनको गया था लेकिन वे शामिल नहीं हुए। नौ नवंबर की सुबह राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस चंद्रचूड़ को प्रधान न्यायाधीश पद की शपथ दिलाई। इस मौके पर उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ मौजूद थे। आमतौर पर प्रधान न्यायाधीश के शपथ समारोह में प्रधानमंत्री शामिल होते हैं। लेकिन मोदी अपने सभी पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों से अलग हैं। उन्होंने कई स्थापित और मान्य परंपराओं को तोडा है। उन्होंने नौ नवंबर को हिमाचल प्रदेश में दो चुनावी सभाओं को संबोधित किया। शपथ समारोह चूंकि सुबह में होता है इसलिए वे इसमें शामिल होने के बाद भी चुनावी कार्यक्रम के लिए जा सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसलिए इसे जान बूझकर किया गया फैसला माना जा रहा है। इस बारे में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्विट करके सवाल उठाया। उनके ट्विट से ही चली बहस में किसी ने यह भी कहा कि जस्टिस चंद्रचूड़ हार्वर्ड से पढ़े हैं और प्रधानमंत्री को हार्वर्ड वालों की बजाय हार्डवर्क करने वाले ज्यादा पसंद हैं। 

दिल्ली की फ्लॉप योजना की भी गुजरात में मार्केटिंग

आम आदमी पार्टी गुजरात के चुनाव में सिर्फ कामयाब योजनाओं को लागू करने का वादा ही नहीं कर रही है, बल्कि जो योजना दिल्ली में असफल रही है उसका भी प्रचार कर रही है। ऐसी ही एक योजना व्हाट्सऐप नंबर से भ्रष्टाचार रोकने की है। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में भ्रष्टाचार रोकने के रामबाण इलाज के तौर पर इसका प्रचार किया था। उसने दिल्ली के लोगों से कहा था कि अगर कोई अधिकारी या कर्मचारी उनसे रिश्वत मांगे तो वे उसका वीडियो बना ले और उसे दिल्ली की केजरीवाल सरकार की ओर से जारी नंबर पर भेज दे। सरकार फौरन कार्रवाई करेगी। इक्का-दुक्का अपवाद को छोड़ दें तो किसी ने इस तरह से शिकायत नहीं की और संभवत: एक भी अधिकारी के खिलाफ इस आधार पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। लेकिन गुजरात में आम आदमी पार्टी इसका प्रचार कर रही है। आप ने कहा है कि सरकार बनते ही एक व्हाट्सऐप नंबर जारी किया जाएगा, जिसके जरिए लोग भ्रष्टाचार की शिकायत कर पाएंगे। वैसे इसमें नया कुछ नहीं है, क्योंकि हर राज्य में शिकायत दर्ज कराने की सुविधा होती है। सरकार के निगरानी विभाग की ओर से अखबारो में विज्ञापन देकर फोन नंबर लोगों को बताए जाते हैं, जिन पर वे शिकायत दर्ज करा सकते हैं। उनकी पहचान गोपनीय रखी जाती है। उसी में व्हाट्सऐप नंबर जोड़ कर आम आदमी पार्टी एक नई चीज की तरह गुजरात में इसका प्रचार कर रही है।

ईडी का नया मुखिया कौन होगा?

यह लाख टके का सवाल है, जिस पर राजनेताओ से लेकर नौकरशाहों, न्यायपालिका और मीडिया सहित सबकी नजर है कि ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय के मुखिया के तौर पर संजय मिश्रा को फिर सेवा विस्तार मिलेगा या नया ईडी नियुक्ति होगा। मिश्रा को मिला एक साल का दूसरा सेवा विस्तार 19 नवंबर को समाप्त हो रहा है और उससे एक दिन पहले 18 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में उनके मामले की सुनवाई होनी है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में संजय मिश्रा को नवंबर 2021 में दिए गए सेवा विस्तार को चुनौती दी गई है और उनको फिर से सेवा विस्तार पर रोक लगाने की मांग की गई है। ध्यान रहे सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को साफ कहा था कि वह संजय मिश्रा को सेवा विस्तार न दे। लेकिन सरकार ने उनको सेवा विस्तार देने के लिए कानून ही बदल दिया। नए कानून के मुताबिक केंद्र सरकार सीबीआई और ईडी के प्रमुख को रिटायर होने के बाद एक-एक साल के तीन सेवा विस्तार दे सकती है। यानी दो साल के निर्धारित कार्यकाल के बाद तीन सेवा विस्तार से उनका कार्यकाल अधिकतम पांच साल तक किया जा सकता है। यह तो सबको पता है कि सेवा विस्तार पर काम करने वाले अधिकारी किस तरह से काम करते हैं। संजय मिश्रा नवंबर 2018 से ईडी हैं। उनका दो साल का फिक्स्ड कार्यकाल नवंबर 2020 में पूरा हुआ और उसके बाद उनको एक-एक साल के दो सेवा विस्तार मिले। अब अगर सरकार उनको एक और सेवा विस्तार देती है तो अगले साल नवंबर में उनके कार्यकाल के पांच साल पूरे हो जाएंगे और नए कानून के मुताबिक भी उनको अनिवार्य रूप से रिटायर होना होगा। उसके तुरंत बाद लोकसभा के चुनाव होने हैं। इसलिए उस समय नया ईडी नियुक्त करने की बजाय संभव है कि सरकार अभी ही अपने भरोसे के किसी नए अधिकारी को नियुक्त करे। हालांकि दो साल के फिक्स्ड कार्यकाल वाले अधिकारी से मनमाफिक काम लेना थोड़ा मुश्किल होता है। ध्यान रहे ईडी के दुरुपयोग के कई आरोप पिछले कुछ सालों में लगे हैं, जिन पर मुंबई की पीएमएलए कोर्ट ने संजय राउत वाले मामले में मुहर भी लगा दी। 

मायावती और ओवैसी भाजपा के बड़े मददगार

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने परोक्ष रूप से भाजपा की बड़ी मदद की थी। उन्होंने ऐसे उम्मीदवार खड़े किए थे, जिनसे समाजवादी पार्टी के वोट कटे। वैसे भी बसपा और मायावती के बारे में माना जाता है कि उत्तर प्रदेश में उनका प्राथमिक लक्ष्य समाजवादी पार्टी को कमजोर करना रहा है। लेकिन यह अंदाजा नहीं था कि उत्तर प्रदेश से बाहर भी वे भाजपा के काम आ सकती हैं। बिहार की गोपालगंज सीट पर उनके उम्मीदवार की वजह से भाजपा की जीत सुनिश्चित हुई। उन्होंने लालू प्रसाद के साले साधु यादव की पत्नी इंदिरा यादव को उम्मीदवार बनाया था, जिन्हें 8800 से ज्यादा वोट आए, जबकि राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार मोहन गुप्ता करीब 18 सौ वोट से हारे। बसपा के अलावा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी भाजपा की मदद की। गोपालगंज में एआईएमआईएम के उम्मीदवार अब्दुल सलाम को 12 हजार से कुछ ज्यादा वोट आए। इस तरह राजद के मुस्लिम-यादव समीकरण के दो उम्मीदवारों को 21 हजार वोट मिले और राजद उम्मीदवार 18 सौ वोट हारा। अगर ये दोनो उम्मीदवार नहीं होते तो राजद को बड़ी जीत मिलती। कहा जा रहा है कि ओवैसी ने उनकी पार्टी के चार विधायकों को राजद में शामिल कराने का बदला लिया है। लेकिन ऐसा नही है। अगर वहां बदला लिया तो दिल्ली नगर निगम के चुनाव में 40 उम्मीदवार उतारने का फैसला क्यों किया? दरअसल बसपा और ओवैसी बदला लेने के लिए नहीं बल्कि विपक्ष को कमजोर करने के लिए काम कर रहे हैं। विपक्ष के साथ जाने वाले संभावित वोट का एक हिस्सा ये दोनों पार्टियां निश्चित रूप से काटेगी, जिसका सीधा फायदा भाजपा को होगा।

दिल्ली की समस्या अब पूरे उत्तर भारत की!

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गोलपोस्ट शिफ्ट करने में माहिर खिलाड़ी हैं। जब पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी और उनकी पार्टी विपक्ष में थी तब दिल्ली के मुख्यमंत्री के नाते वे दिल्ली में वायु गुणवत्ता खराब होने का सारा दोष पंजाब और हरियाणा पर डालते थे। साथ ही वे दावा भी करते थे कि उनके पास पराली जलाने की समस्या का समाधान है। अगर उनकी सरकार आ गई तो वे चुटकियों में इसका समाधान कर देंगे। ध्यान रहे दिल्ली में पिछले करीब आठ साल से उनकी सरकार है और वे जानते हैं कि नवंबर-दिसंबर में दिल्ली के क्या हालात होते है और दिल्ली कैसे गैस चैम्बर बनती है। लेकिन उन्होंने दिल्ली में प्रदूषण कम करने का कोई उपाय नहीं किया। एक स्मॉग टावर लगाया गया और उसकी कीमत से कई गुना ज्यादा उसके प्रचार पर खर्च किया गया। इस बीच मार्च में पंजाब में उनकी सरकार बन गई। तब उम्मीद थी कि सर्दी आने में सात-आठ महीने का समय है और पंजाब सरकार पराली जलाने की समस्या का हल निकाल लेगी क्योंकि केजरीवाल कई बार विस्तार से बता चुके थे कि उनके पास क्या हल है। लेकिन उलटा हो गया। इस बार पहले से 50 फीसदी ज्यादा पराली जलाई जा रही है कि दिल्ली के लोगों के दिवाली पर बहुत कम पटाखे चलाने के बावजूद दिल्ली की हवा पहले से ज्यादा प्रदूषित हो गई। जब ऐसा हुआ तो इससे बचाव का उपाय करने की बजाय केजरीवाल बताने लगे कि यह दिल्ली की नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत की समस्या है और केंद्र सरकार इसे सुलझाए।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest