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ख़बरों के आगे-पीछे: वाई सुरक्षा की रेवड़ी और बेटी के मामले में अकेली पड़ीं स्मृति!

रोज़ की भागदौड़ में कुछ ख़बरें आपसे छूट जाती हैं। कुछ ख़बरें मिलती भी हैं तो उनके भीतर की असल ख़बर आपको नहीं मिल पाती। इसलिए हम हर सप्ताहांत इतवार को लाते हैं आपके लिए वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन का कॉलम ख़बरों के आगे-पीछे।
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वाई सुरक्षा की रेवड़ी बांट रहा है केंद्र

पहले कभी-कभार सुनने को मिलता था कि किसी नेता को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली है। आमतौर पर बड़े और चर्चित नेताओं को यह सुरक्षा मिलती थी। इससे नेता के कद का अंदाजा होता था। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि हर उस नेता को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिल रही हैजो किसी विरोधी पार्टी से दलबदल करके भाजपा के साथ आया हो या आने वाला हो। ताजा मिसाल ओमप्रकाश राजभर की हैजो अभी भाजपा में शामिल भी नहीं हुए हैं। उन्होंने सिर्फ समाजवादी पार्टी का विरोध किया है और राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया। जैसे ही उन्होंने मुर्मू का समर्थन किया उनको वाई श्रेणी की सुरक्षा मिल गई। ऐसा भी नहीं है कि वे किसी विरोधी पार्टी की सरकार वाले राज्य के नेता है। वे उत्तर प्रदेश के नेता हैजां भाजपा की ही सरकार है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि उनकी हैसियत बढ़ाने और खुश करने के लिए वाई श्रेणी की सुरक्षा दे दी गई।

इसी तरह महाराष्ट्र में भाजपा ने शिव सेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे को सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं बनायाबल्कि उनके साथ शिव सेना से बगावत करने वाले विधायकों को वाई श्रेणी की सुरक्षा भी दे दी है।

पश्चिम बंगाल में तो केंद्र सरकार ने कमाल ही किया है। वहां भाजपा के सभी 70 विधायकों को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है। हैरान करने वाली बात है कि एक तरफ वीआईपी कल्चर खत्म करने का दावा किया जा रहा है और दूसरी ओर वाई श्रेणी की सुरक्षा रेवड़ी की तरह बांटी जा रही है। केंद्रीय सुरक्षा बलों में जवानों की कमी के बावजूद नेताओं को उनकी सुरक्षा दी जा रही है। इससे राज्य पुलिस और केंद्रीय बलों के बीच अविश्वास बढ़ रहा है और टकराव की आशंका भी पैदा हो रही है।

दिल्ली से चल रही है महाराष्ट्र सरकार

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री शिव सेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे हैं लेकिन सरकार पूरी तरह भाजपा के एजेंडे पर काम कर रही है। दिल्ली से राज्य सरकार का एजेंडा तय हो रहा है और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस उस पर अमल कराने काम कर रहे है। अब वे सारे काम फिर शुरू हो गए हैंजो उन्होंने मुख्यमंत्री रहते शुरू किए थे और जिन्हें महा विकास अघाड़ी की उद्धव ठाकरे सरकार ने रोक दिया था या उसमें बदलाव किया था। एकनाथ शिंदे का काम सिर्फ उनके फैसलों को मंजूरी देना रह गया है। अभी तक न तो उनकी पार्टी का फैसला हो पा रहा है और न सरकार में उनके समर्थक विधायकों को को जगह मिल पा रही है। इसलिए भी वे बैकफुट पर हैं। वैसे भी उनके पास 40 विधायक हैंजबकि भाजपा के अपने 10विधायक हैं। सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायक भी भाजपा के साथ ही हैं। शिंदे-फड़णवीस सरकार बनने के बाद पिछले एक महीने में दोनों नेताओं के दिल्ली के कई चक्कर लग चुके है। कहा जा रहा है कि मंत्रियों की सूची दिल्ली में भाजपा के आला नेताओं के पास अटकी है। दोनों नेता उसके बारे में बात करने दिल्ली आते हैं और फिर कामकाज का एजेंडा लेकर लौटते हैं। सरकार बनते ही बुलेट ट्रेन परियोजना को फिर से मंजूरी देने का काम मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार के इशारे पर किया। इसी तरह मेट्रो ट्रेन के लिए आरे के जंगल काट कर वहां शेड बनाने का फैसला भी भाजपा के कहने पर हुआ है। फड़णवीस सरकार में हुई फोन टेपिंग मामला और भाजपा नेता गिरीश महाजन के खिलाफ चल रहा मामला सीबीआई के पास जाना भी भाजपा का ही फैसला है।

बेटी के मामले में अकेली पड़ गईं स्मृति!

संसद में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से उलझने के मामले को लेकर भाजपा भले ही केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का बचाव कर रही होमगर उनकी बेटी के गैरकानूनी बार चलाने के विवाद में पार्टी का कोई नेता उनके पक्ष में सामने नहीं आया है। इस मामले में स्मृति को अकेले ही कांग्रेस के हमलों का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा के किसी नेता या प्रवक्ता ने उनके समर्थन में न तो कोई बयान दिया न ही ट्विटर पर कोई अभियान चला। स्मृति ईरानी ने इस विवाद को राजनीतिक रंग देने की कोशिश भी की। उन्होंने कहा कि चूंकि उन्होंने राहुल गांधी को चुनाव हराया और नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया-राहुल के खिलाफ प्रेस कांफ्रेन्स की इसलिए उनकी बेटी को निशाना बनाया जा रहा है। इसके बावजूद भाजपा का कोई नेता उनके बचाव में नहीं उतरा। बाद में ईरानी ने कांग्रेस नेताओं को कानूनी नोटिस भेजा लेकिन कांग्रेस नेताओं ने उसे कोई तवज्जो नहीं दी।

उधर गोवा में कांग्रेस कार्यकर्ता उस बार तक प्रदर्शन करने पहुंच गएजिसे स्मृति ईरानी की बेटी का बताया जा रहा है। उन्होंने वहां पहुंच कर डिस्प्ले बोर्ड पर चिपकाया गया काला कागज उखाड़ कर दिखाया कि विवाद शुरू होने के बाद डिस्प्ले बोर्ड पर लिखे गए बार शब्द को ढक दिया गया था। कांग्रेस कार्यकर्ताओं के इस प्रदर्शन के जवाब में भी गोवा भाजपा के नेता सड़क पर नहीं उतरेजबकि वहां भाजपा की सरकार है। इस पूरे विवाद में राजनीतिक पहलू होने के बावजूद ऐसा लग रहा है कि स्मृति ईरानी को यह लड़ाई अकेले ही लड़नी होगी।

बेरोज़गार बैठे हैं हटाए गए मंत्री

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक एक साल पहले अपनी मंत्रिपरिषद में बड़ा फ़ेरबदल करते हुए कई पुराने मंत्रियों को हटा कर नए चेहरों को मंत्री बनाया था। चूंकि हटाए गए मंत्रियों में ज्यादातर संघ की पृष्ठभूमि वाले बड़े नेता थेइसलिए तब ऐसा लग रहा था कि इन नेताओं को संगठन के काम में लगाया जाएगा। हटाए गए सारे नेता संगठन में पहले काम कर चुके थे और उसका लंबा अनुभव था। इसके बावजूद पिछले एक साल में किसी भी पूर्व केंद्रीय मंत्री को संगठन में कोई जिम्मेदारी नहीं मिली है। वे सांसद हैं लेकिन उनके पास पार्टी या संगठन का कोई काम नहीं है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले दस साल तक जब भाजपा विपक्ष में थी तब पार्टी की ओर से हमले की कमान संभालने वाले दो महत्वपूर्ण प्रवक्ताओं में प्रकाश जावडेकर और रविशंकर प्रसाद का नाम था। मोदी प्रधानमंत्री बने तो इन दोनों को अहम मंत्रालय मिले। पिछले साल सात जुलाई को हुए फ़ेरबदल में ये दोनों मंत्री हटा दिए गए। उसके बाद से दोनों के पास कोई काम नहीं है। दूसरी पार्टियों से आए नेता प्रवक्ता की जिम्मेदारी निभा रहे हैं और पार्टी के पुराने प्रवक्ता टाइमपास कर रहे हैं।

इसी तरह उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी केंद्र में मंत्री पद से हटाए जाने के बाद खाली बैठे हैं। डॉक्टर हर्षवर्धन एक समय दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष रहे और पार्टी उनके चेहरे पर विधानसभा का चुनाव लड़ कर बहुत शानदार प्रदर्शन कर चुकी है। अभी दिल्ली में पार्टी नेता की तलाश भी कर रही है। लेकिन हर्षवर्धन पर उसकी नजर नही जा रही है। वे दिल्ली प्रदेश की राजनीति में भी हाशिए पर पड़े हैं।

हाल ही में राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद मुख्तार अब्बास नकवी को भी मंत्री पद छोड़ना पड़ा है। उनके पास भी कोई काम नहीं है। इसी तरह उमा भारतीराजीव प्रताप रूडीमेनका गांधीसंतोष गंगवारराज्यवर्धन राठौड़जयंत सिन्हासुरेश प्रभु आदि नेताओं को भी कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई। ये सारे नेता पिछले दो-तीन दशक से भाजपा की राजनीति मे अहम रोल निभा रहे थे पर अब इनकी जगह नए नेताओं ने ले ली है।

अग्निवीरों का छला जाना तय है

सेना में बहाली की नई योजना अग्निपथ के तहत चार साल के लिए बहाल होने वाले अग्निवीरों के लिए बड़ा सबक है। केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते संसद में बताया कि पिछले सात साल से रिटायर सैनिकों की सरकारी नौकरी में बहाली में कमी आ रही है और सात साल पहले के मुकाबले अब उनकी बहाली एक-चौथाई रह गई है। ध्यान रहे जब अग्निपथ योजना का विरोध हुआ तो केंद्र सरकार के कई मंत्रालयों ने और कई राज्यों ने कहा कि वे चार साल बाद रिटायर होने वाले अग्निवीरों को अपने यहां नौकरी देंगे। इसका बहुत प्रचार भी किया गया लेकिन हकीकत कुछ और है।

सरकार ने खुद यह हकीकत बताई है कि 2015 से लेकर 2021 तक रिटायर सैनिकों को नौकरी देने में लगातार गिरावट आई है। केंद्र में जिस साल 2014 भाजपा की सरकार बनी थी उसके अगले साल यानी 2015 में 10,982 रिटायर सैनिकों को सरकारी नौकरी मिली थी और पिछले साल यानी 2021 में महज 2,983 रिटायर सैनिकों को नौकरी मिली। यानी 2015 के मुकाबले करीब एक चौथाई लोगों को नौकरी मिली। यह आंकड़ा खुद केंद्र सरकार ने संसद में दिया है। 2015 के बाद से लगातार इसमें कमी आई। 2016 मे 9,086 रिटायर सैनिकों को नौकरी मिली। उसके अगले साल 2017 में 5,638 और 2018 में 4,175 रिटायर सैनिकों को नौकरी मिली। कोरोना की महामारी शुरू होने से ठीक पहले 2019 में 2,968 रिटायर सैनिकों को नौकरी मिली। कोरोना के पहले साल यानी 2020 में 2,584 और पिछले साल 2021 में 2,983 रिटायर सैनिकों को सरकारी नौकरी मिली। वैसे भी पिछले कुछ सालों से सरकारी नौकरियां लगातार कम होती जा रही हैं। सोचार साल में सेना से रिटायर होने वाले अग्निवीरों का क्या होगाअच्छी तरह समझा जा सकता है।

कुमार विश्वास पर दांव लगाएगी भाजपा!

दिल्ली में नगर निगम चुनाव और आगामी विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा अपने लिए एक नया चेहरा तलाश रही है। डॉक्टर हर्षवर्धन और किरण बेदी से लेकर मनोज तिवारी तक को आजमाने के बाद अब पार्टी कवि और आम आदमी पार्टी के पुराने नेता कुमार विश्वास से बात कर रही है। वे किसी जमाने में केजरीवाल के बहुत करीब रहे हैं और पिछले कई दिनों से केजरीवाल व आम आदमी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। पंजाब के चुनाव में उन्होंने आम आदमी पार्टी की खालिस्तानियों से साठगांठ का आरोप लगा कर सनसनी मचाई थी। अब दिल्ली की शराब नीति को सबसे पहले उन्होंने चुनौती दी और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का नाम लिए बगैर उनके एक रिश्तेदार पर बड़ा आरोप लगाया। इस मामले की जांच उप राज्यपाल ने सीबीआई को सौंप दी है। सीबीआई जांच के इस फैसले के बाद कुमार विश्वास के भाजपा के साथ जुड़ने की अटकलें तेज हो गई है।

भाजपा में माना जा रहा है कि अब भी आम आदमी पार्टी में कुमार विश्वास को मानने वाले लोगों की बड़ी संख्या है। वे तटस्थ होंगे या भाजपा के साथ जुड़ेंगे। कुमार विश्वास ब्राह्मण हैं और उत्तर प्रदेश के हैं। इस नाते प्रवासी वोट भी भाजपा के साथ जुड़ सकता है। कविता और रामकथा ने उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ाई है। सोभाजपा एक दांव उनके चेहरे पर लगाने की सोच रही है।

दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के नेता उनके ट्विटर टाइमलाइन को खंगाल रहे हैं और भाजपा व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना में किए गए ट्विट खोज कर निकाल रहे हैं।

कोई नई खिचड़ी पका रही हैं ममता

पश्चिम बंगाल सरकार में नंबर दो की हैसियत के मंत्री रहे पार्थ चटर्जी पूरी तरह से अलग थलग पड़ गए है। उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त करते हुए ममता बनर्जी ने दो टूक कहा कि अगर उन्होंने गलत किया है तो उनको सजा मिलनी चाहिए। इससे पहले ममता बनर्जी के कई मंत्री इस किस्म के विवादों में फंसे और हिरासत में लिए गए या गिरफ्तार किए गए पर ममता ने कभी उनका साथ नहीं छोड़ा। कुछ समय पहले सीबीआई ने उनके कुछ मंत्रियों को हिरासत में लिया था तब वे सीबीआई के कार्यालय पहुंच गई थी और कई घंटों तक वहां बैठी रही थीं। उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर प्रदर्शन किया लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ है। पार्थ चटर्जी को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया और तृणमूल कांग्रेस ने इस गिरफ्तारी पर कोई ऐतराज नहीं जताया। इसलिए सवाल है कि ऐसा क्यों हुआ?

बताया जा रहा है कि ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को बचाने के प्रयास के तहत पार्थ चटर्जी की बलि हुई है। हालांकि उनकी गिरफ्तारी इस बात की गारंटी नहीं है कि कोयले की तस्करी या धन शोधन के मामले में अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी को क्लिन चिट मिल जाएगी। लेकिन इतना जरूर है कि पश्चिम बंगाल में कुछ असामान्य सी राजनीति हो रही है। उप राष्ट्रपति चुनाव से अलग रहने का तृणमूल कांग्रेस का फैसला भी इसी राजनीति का हिस्सा माना जा रहा है। 

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