Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

राजस्थानः चरवाहे बोले ‘अनचाहे’ ऊंटों के लिए ऊंटशाला एक बुरा विचार  

राज्य की नीतियां प्रायः ऊंट के चरवाहों से बिना उनकी राय लिए ही बना ली जाती हैं और ये ऐसे समय में नफा से ज्यादा नुकसान कर रही हैं, जब राज्य में ऊंटों की तादाद घट रही है। 
Rajasthan

राजस्थान के कृषि मंत्री लाल चंद कटारिया ने हाल ही में कहा है कि सरकार गोशाला की तर्ज पर अवांछित ऊंटों के लिए भी एक “ऊंटशाला” खोलने पर विचार करेगी। हालांकि ऊंट के चरवाहों ने सरकार से ऐसे आश्रयस्थलों के निर्माण की कभी कोई मांग नहीं की है। 

हनवंत सिंह राठौर– जो पाली जिले में एक गैर सरकारी संस्था लोकहित पशुपालक संस्थान (एलपीपीएस) चलाते हैं– कहते हैं, “इन चरवाहों को भय है कि ऐसे आश्रयस्थलों की स्थापना में सरकारी धन पानी की तरह बहेगा और उनसे ऊंटों के संरक्षण का कोई मकसद भी हल नहीं होगा। ऊंट एक विशालकाय पशु है, जिसको रखने के लिए बड़ी जगह की जरूरत होती है– उन्हें बाड़ों में बंद करना मूर्खता होगी।” 

सितम्बर 2021 में, विस्तारित लॉकडाउन के बाद जैसे ही स्कूल खुले, राठौर की संस्था एलपीपीएस ने पाली जिले के देसुरी तहसील के गुडा जोबा गांव के सरकारी हायर सेकेंडरी स्कूल में छात्रों के लिए ऊंट के कच्चे दूध पहुंचाने का काम शुरू कर दिया। यह गैर सरकारी संस्था अपने मिले अनुदान के आधार पर प्रत्येक दिन स्कूली बच्चों को ऊंट का दूध पहुंचाती है। राठौर ने न्यूजक्लिक से कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि यह काम अगले कुछ ही महीने तक जारी रख पाएंगे।”


स्कूल के प्रिसिंपल धनेश पुरोहित ने कहा, “अभी तो एक दिन के अंतर पर छात्र-छात्राओं को पढ़ने के लिए बुलाया जा रहा है ताकि उनको स्कूल में ठीक से मैनेज किया जा सके एवं रेलमपेल की नौबत न आए जिससे कि कोरोना संक्रमण का जोखिम कम से कम रहे। इन छात्रों को स्कूल में दूध दिया जाता है और इसके चलते हमने पाया है कि उनकी उपस्थिति में लगभग 15 फीसदी की बढोतरी हुई है। हालांकि दो छात्रों ने कहा है कि उन्हें ऊंट का दूध अच्छा नहीं लगता और उन्होंने दूध नहीं लिया। लेकिन अन्य बच्चे इसको चाव से पीते हैं और वे स्कूलों में दूध बंटने की बात को और बच्चों में फैला सकते हैं, तथा उन्हें भी स्कूल आने के लिए उत्साहित कर सकते हैं।”

एलपीपीसी के निदेशक राठौर ने कहा,“अगर मवेशी की तरफ से स्थानीय मानवजाति को दी जाने वाली महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी सेवाओं को माना जाए और उनकी कद्र की जाए तो ऊंट की चरवाही आगे भी मुफीद रहेगी। ऊंट का गोबर एक प्राकृतिक खाद है; अपनी घूमंतू यात्रा में ऊंट जहां कहीं भी सुस्ताने के लिए बैठते हैं, वहां के स्थानीय किसानों को अपना यह धन (गोबर) छोड़ जाते हैं। फिर, कुछ बीज भी ऐसे होते हैं, जो जुगाली करने वालों के पाचन तंत्र से गुजरे बिना अंकुरित नहीं होते हैं और ऐसी प्रजातियों को फैलाने में ऊंट मदद करते हैं।”

ऊंटों को खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरिया), जल (सल्वाडोरा ओलियोइड्स), मीठी जल (सल्वाडोरा पर्सिका), बबूल (बबूल अरेबिका), कुमटिया (बबूल सेनेगल), ओरबजिया (बबूल ल्यूकोफ्लोइया), बोर (ज़िज़ीफस न्यूमुलेरिया), नीम (अज़र्डिराच्टा) और मूल रूप से थार में उगने वाले पौधे खिलाए जाते हैं। चूंकि ऊंट तेजी से चलते हुए हरेक पेड़ की कुछ पत्तियां ही नोच कर चबा पाता है, इस क्रम में वह इनकी छंटाई भी करता है और जंगली प्रजातियों के विकास को प्रोत्साहित करता है। इस प्रकार, ऊंट संरक्षण जंगली रेगिस्तानी क्षेत्र की वनस्पतियों के संरक्षण से भी जुड़ा विषय है।

दिक्कत यह है कि ऊंट की चरवाही-रायका की तरह, मानवीय जीवन के लंबे इतिहास एवं परम्परा से अंतर्गुम्फित है– पर सरकार नीतियां बनाने के समय कभी-कभार ही उनसे राय लेती है। राजस्थान ऊंट (वध न किए जाने एवं अस्थायी आव्रजन एवं निर्यात पर रोक) अधिनियम, 2015 ऊंट को राज्य-पशु घोषित करता है और अपने ऊंटों को राज्य की सीमा से बाहर ले जाने से रोकने के लिए चरवाहों पर पाबंदी लगाता है। इसके पहले, नर ऊंटों को अन्य प्रदेश के व्यापारियों के हाथ बेचा जाता था, लेकिन उपरोक्त कानून बन जाने के बाद इसकी बिक्री रुक गई है। तिलबाड़ा एवं पुष्कर में लगने वाले पशु मेले में देश के कोने-कोने के लोग आते थे, पर उनमें ऊंटों के खरीदार सहसा रुक गए हैं, कम हो गए हैं। इसके चलते ऊंटों के दाम में भी भारी गिरावट आई है। आज से पांच साल पहले पांच साल का तंदुरुस्त एक ऊंट 70,000 रुपये में बिकता था, वहीं अब उसका दाम घट कर मात्र 3,000 रुपये रह गया है।

चरवाहों के कठिन समय के साथ, ऊंटों की तादाद भी घट गई है। मवेशियों की गणना के डेटा के अनुसार, 1990 के दशक की तुलना में ऊंटों की तादाद में 70 फीसदी की कमी आई है। हाल ही में, 2019 में हुई गणना के मुताबिक देश में 2,13,000 लाख ऊंट हैं, जबकि 1992 में यह तादाद 7.5 लाख थी। देश के 85 फीसदी से अधिक ऊंट अकेले राजस्थान में हैं। 

इसलिए ऊंट के चरवाहे सरकार से ऊंट अधिनियम,2015 की समीक्षा किए जाने एवं उनमें आवश्यक बदलाव लाने के लिए आवेदन करते रहे हैं। उनके ऐसे ही कितने प्रयासों के बाद कृषि मंत्र कटारिया कानून में संशोधन करने के लिए राजी हुए हैं। हालांकि इस समय, ऊंट-चरवाहे चाहते हैं कि उनके समुदाय के नेताओं के साथ बिना राय-मशविरा किए कानून में कोई संशोधन न किया जाए। इन चरवाहों ने 2017 से ही इस बारे में नीति का एक खाका खींच कर रखा है। इस बारे में विभिन्न जगहों पर विचार-विमर्श एवं समन्वय के लिए मिलते रहे हैं।

ऊंट चरवाहों के मसौदे में कुछ सुझाव दिए गए हैं:  चरागाह क्षेत्र को सुरक्षित किया जाए, उसे स्थापित किया जाए एवं उसका बेहतर रख-रखाव किया जाए; ऊंट के दूध के मूल्यसंवर्धन में निवेश किया जाए; ऊंट के उत्पादों का उपयोग एवं उनका प्रदर्शन करने के लिए पुरात्तत्व के स्थलों एवं अन्य होटलों को प्रोत्साहित किया जाए। 

ऊंटशाला की स्थापना करने में राज्यकोष का व्यय करने की बजाए, प्रदेश का शिक्षा विभाग ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में ऊंट के दूध की आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है, जहां ऊंट चरवाहे इसके दूध बेच सकते हैं। ऊंट का दूध अपने चिकित्सकीय गुणवत्ता के लिए जाना जाता है– चूंकि यह पशु लंबी-लंबी दूरी तक घूमता-फिरता रहता है और उसका भोजन मुख्य रूप से जंगली पौधों की पत्तियां ही होती हैं, इसलिए उसके दूध के संघटक थान पर खाने वाले मादा मवेशियों के दूध से भिन्न होते हैं।

खिम सिंह, जिनका चार सदस्यीय परिवार पाली जिले के सदरी में एलपीपीएस की डेयरी के पास ही रहता है, ने न्यूजक्लिक को बताया, “हम इस दूध का पिछले कुछ महीनों से सेवन कर रहे हैं। यह तड़के आ जाता है, और मुझे ताजा दूध मिल जाता है। शायद इस दूध का ही कोई करामात है कि मेरा बेटा अब दमे का मरीज नहीं रहा। हम अब तंदुरुस्त हैं और घर के इतने समीप ऊंट डेयरी का होना बड़ी बात है।”

ऑटिस्टिक बच्चों के माता-पिता को भी ऊंट के दूध की बहुत तलाश रहती है। इस दूध के लगातार सेवन से ऐसे बच्चों की आंखों के कंटेक्ट बढ़ाने में मदद मिली है। इससे उन्हें नींद बेहतर आती है और वे शांत रहते हैं। मुंबई में रहनेवाली नेहा कुमारी के बच्चे को रोजाना ऊंट का दूध चाहिए, इसलिए उन्होंने लॉकडाउन में भी इसकी आपूर्ति जारी रखने के लिए रेलवे से अपील की थी। 

ब्लड सुगर घटाने तथा टीबी की रोकथाम के लिए भी ऊंट के दूध का उपयोग होता है। केन्या में ऊंट के दूध को ‘उजला सोना’ कहा जाता है, जिसमें विटामिन सी एवं आयरन की मात्रा किसी इनाम से कम नहीं है; राजस्थान में भी, जहां ताजा फल एवं शाक-सब्जियां का मिलना कठिन है, वहां ऊंट का दूध विटामिन सी की कमी की क्षतिपूर्ति करने और रक्ताल्पता (एनिमिया) को दूर करने में मदद करता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे 2015-16 से जाहिर होता है कि देश में 53 फीसदी महिलाएं खून की कमी की शिकार थीं।

यह खुशी की बात है कि कृषि मंत्री कटारिया ऊंट चरवाहों की दशा सुधारने के लिए कदम उठाने पर विचार कर रहे हैं। ऊंट संरक्षण का मसला राज्य के विभिन्न विभागों के बीच समन्वय बनाने की मांग करता है। पर्यटन, जैवविविधता, पर्यावरण एवं वन विभागों, शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग टीबी के मरीजों को घर-घर दूध उपलब्ध कराने की एक व्यवस्था बनाने के लिए परस्पर समन्वय कर सकते हैं। आंगनबाड़ियों में भी रोजाना दूध की आपूर्ति की जा सकती है ताकि गर्भवती स्त्रियों एवं दूध पिलाने वाली माताओं एवं छोटे शिशु तक यह आसानी से मिल सके, जो उनके लिए एक टॉनिक की तरह ही है। 

सुखाड़ की परिस्थितियों में पशुओं की अनोखी अनुकूलता को देखते हुए अफ्रीका एवं एशिया में, ऊंट को तादाद बढ़ी है। (पेज-9 से राज्य की नीति मसौदे के ग्राफ का उपयोग करते हुए)। भारत में, जंगल की जमीनों को ऊंटों के लिए प्रतिबंधित करने की वजह से ऊंट पालकों पर दबाव बढ़ता जा रहा है, जबकि इसका दूसरे मकसदों के लिए उपयोग करने की छूट दी गई है। इस वजह से भी ऊंटों की संख्या घटी है। 

पंजाब से थार मरुस्थल क्षेत्र में पानी लाने वाली इंदिरा गांधी नहर, जो 600 किमी दूर है, ने प्रमुख ऊंट प्रजनन क्षेत्रों को प्रभावित किया है और चरवाहों के पारंपरिक प्रवास पथों को काट दिया है। इसलिए सरकार को ऊंट चरवाहों से राय-विचार करना चाहिए ताकि ऊंटों एवं अन्य मवेशियों के लिए घास के मैदान सुरक्षित किए जा सकें। 

दूध के अलावा, ऊंट के बाल एवं गोबर का भी अनेक उपयोगी उत्पाद बनाने में इस्तेमाल हो सकता है। परम्परागत रूप से, राज्य में मेघवाल समुदाय ऊंटों के बाल से धागा बुनते रहे हैं-अब यह रिवायत दुर्लभ हो गई है। ऊंट के गोबर में ऊंच फाइबर होता है, जिसका उपयोग कागज बनाने में किया जा सकता है। राज्य सरकार विनिर्माण एवं विपणन के अवसरों की संभावनाओं को खंगाल कर इन चीजों को व्यावहारिक गतिविधियों में बदल सकती है। 

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Rajasthan: Camelshalas for ‘Unwanted’ Camels a bad Idea, Say Herders

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest