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रफ़ाल घोटाला : ‘एक कील के अभाव में पूरा राज्य गंवा दिया’

एक नौसिखिया और विफल क्रोनी कॉरपोरेट को धंधा देने के लिए 32,000 करोड़ रुपये के 70 प्रतिशत का आकर्षक ऑफ़सेट सर्विस अनुबंध दे दिया। मोदी सरकार ने ऐसे कई घटनाक्रमों की झड़ी लगा दी है जो सैन्य तैयारी, रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों की रीढ़ की हड्डी को तोड़ने के साथ-साथ देश की सुरक्षा को भी चोट पहुंचा सकते हैं।
सांकेतिक तस्वीर

रफ़ाल घोटाला सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा इकाइयों को कमजोर करने का मोदी सरकार की नीति का एक बड़ा पहलू है, जिसमें ऐसे नवरत्न जैसे कि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड या हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड भी शामिल हैं। यह देश की सुरक्षा को खतरे में डालने और खोखला करने की प्रक्रिया है। अपने हवाई बेड़े की घटती स्क्वाड्रन ताकत से चिंतित, भारतीय वायु सेना (IAF) को 126 लड़ाकू जेट चाहिए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लड़ाकू जेट की संख्या को मनमाने ढंग से घटाकर 36 कर दिया गया था। 10 अप्रैल, 2015 को फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रैंकोइस ओलांद के बगल में खड़े होकर उन्होंने नए सौदे की घोषणा की थी। एक तरह से, उन्होंने किसी भी बाहरी खतरे से निबटने के लिए 108 फाइटर जेट्स के स्वदेशी उत्पादन, इसके रखरखाव और सर्विसिंग के काम से पीछा छुड़ा कर और उसे निजी हाथों में सौंप कर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को लूट लिया। फाइटर जेट्स की संख्या को कम करके, मोदी सरकार ने छह स्क्वाड्रन रखने वाली भारतीय वायुसेना को लूट लिया।

संख्या में कमी का मतलब है कि भारतीय वायु सेना जिसे 42 स्क्वाड्रन की आवश्यकता थी, न केवल 31 के साथ स्क्वाड्रन की ताकत अपर्याप्त रहेगी, बल्कि यह कि वायु सेना की ताकत में और कमी आने की संभावना है। आइए देखते हैं कैसे?

देश की रक्षा के लिए न्यूनतम विमानों की संख्या को बनाए रखने के बजाय, उन्हें और कम किया जा रहा है। अस्सी जगुआर लड़ाकू विमानों को 180 हनीवेल इंजन (Honeywell engines), 160 के लिए 80 जगुआर प्लस 20 स्पेयर इंजन खरीदकर उन्नत किया जाना था। हालांकि, 2.4 अरब डॉलर के हनीवेल द्वारा दिए गए मूल्य, रक्षा विश्लेषक अजय शुक्ला के अनुसार, भारतीय वायुसेना के लिए बहुत अधिक माना जाता है। यह 2013 में 13.3 मिलियन डॉलर प्रति इंजन की लागत इंजन के लिए उद्धृत मूल्य से लगभग दोगुना है, जिसे तब 6 मिलियन डॉलर से कम पर उद्धृत किया गया था। दरअसल, हनीवेल ने जगुआर एयरफ्रेम, एयरो विश्लेषण, उड़ान परीक्षण और प्रमाणन के लिए इंजन को एकीकृत करने के लिए 1.6 बिलियन डॉलर की कीमत की पेश्कश की थी। जो कि HAL द्वारा 300 मिलियन डॉलर के मूल्य से पांच गुना अधिक था। जगुआर के लिए हनीवेल के साथ इस टकराव का मतलब है कि जगुआर को अपग्रेड करने में देरी और, इसलिए, जगुआर को बेड़े से हटाने की संभावना, जो आईएएफ की स्क्वाड्रन ताकत को प्रभावित करेगी।

भारतीय वायुसेना की ताकत में कमी तेज़ी से बढ़ेगी क्योंकि एचएएल समय पर अपग्रेड मिराज 2000 प्रदान करने में असमर्थ रहा है। अब तक एचएएल को 21 रिफर्बिश्ड मिराज (Refurbished Mirage) को दे देना चाहिए थी, लेकिन वह केवल सात ही मुहैया करा पाई। IAF ने इसके लिए HAL को दोषी ठहराया है। इसका तथ्य यह है कि डसॉल्ट (मिराज का निर्माता) है जिसने घोषणा की है कि एचएएल को आपूर्ति करने के लिए उसके पास मिराज 2000 की किट नहीं है। इसका कारण यह है कि डसॉल्ट ने कई साल पहले मिराज 2000 श्रृंखला के अपने उत्पादन को बंद कर दिया था, और इसलिए इसके लिए एचएएल को दोष देना निरर्थक है। न्यूज़क्लिक के रक्षा विशेषज्ञ डी रघुनंदन ने बताया कि जब फ्रांस में मिराज उत्पादन को समाप्त किया जा रहा था, तब उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार और मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को एचएएल द्वारा अपनी असेंबली लाइन खरीदने की पेशकश की थी। लेकिन तब ऐसा नहीं किया गया।

इसका कम या ज्यादा परिणाम यह है कि साढ़े चार साल में, एक 'शक्तिशाली और निर्णायक' सरकार जिसका नेतृत्व एक सर्व-शक्तिशाली प्रधानमंत्री ने किया, उसने इसे उलटने के बजाय, उलटे उसने न केवल लड़ाकू जेट की आपूर्ति में देरी सुनिश्चित की बल्कि वास्तव में इसने देश की सुरक्षा के प्रमुख क्षेत्रों को खोखला करने में अपने खराब  शासन के माध्यम से योगदान दिया है।

डर यह है कि मोदी सरकार के रफ़ाल सौदे और लड़ाकू जेट की आवश्यकता को 126 से घटाकर 36 करने का संयुक्त वजन, और जगुआर के लिए इंजनों की खरीद में देरी और डसॉल्ट से किट आपूर्ति की कमी की वजह से, आईएएफ स्क्वाड्रन की ताकत अगले कुछ वर्षों में 31 तक कम हो सकती है।

इससे भी अधिक विवादास्पद यह है कि एमएमआरसीए (मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) 2012 के सौदे को रद्द करते हुए, केवल 36 के लिए सौदा तय करना और फिर 100 प्लस फाइटर जेट के लिए एक और दौर का टेंडर जारी करना, इसकी वजह से नई डील को अंतिम रूप देने में तीन साल की देरी हो गयी है शायद  आम चुनावों के कारण ऐसा हुआ है।

एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि मेक इन इंडिया ’प्रारूप में स्थानीय सामग्री कितनी होनी चाहिए। अधिकारी 45 प्रतिशत स्थानीय सामग्री की ओर झुकाव कर रहे हैं, यह MMRCA 2012 के सौदे  से 70 प्रतिशत से कम है। लेकिन रफ़ाल घोटाले ने उन्हें विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं के लिए इस नए स्वीटनर के तहत भागने से रोकने के लिए हो सकता है, जो कि विशाल सैन्य कंपनी है। शासन करने के लिए इतना कुछ दांव पर।

उल्लेखनीय बात यह भी है कि मोदी सरकार डसाल्ट के लाभ के लिए काम कर रही है और कंपनी को खुश रखने के लिए अपने खुद के रास्ते से पलट  गई है। इसका कोई मतलब नहीं है, क्योंकि इस तरह के सौदों में खरीदार के पास बेहतर सौदे और भुगतान की शर्तों को पूरा करने के लिए हमेशा अपर हैंड होता है। इसके बजाय, मोदी सरकार जो "राष्ट्रीय गौरव" की जुगाली करते बाज नहीं आती है, पहले से ही 64,000 करोड़ रुपये की कुल लागत का 50 प्रतिशत (€ 3.9 बिलियन) डसॉल्ट को भुगतान कर चुकी है। यानी मोदी सरकार ने डसॉल्ट को बिना फाइटर जेट की डिलीवरी के और बिना किसी बैंक गारंटी के बोनस दे दिया है। यह ऐसे समय में हो रहा है जब एचएएल को द्वारा दिए गए उत्पादों और सेवाओं के लिए आईएएएफ द्वारा 14,500 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया गया है और भुगतान करने के लिए अनुबंधित किया गया है। इसके बजाय, मोदी सरकार ने भारतीय वायुसेना के पूंजीगत बजट में से 39,000 करोड़ रुपये के बज से 34,000 करोड़ रुपये डसॉल्ट को तुरंत दे दिए थे।

दिग्गज पत्रकार और द हिंदू ग्रुप के अध्यक्ष एन राम द्वारा डसॉल्ट की बाबत उदारता के एक और कार्य पर प्रकाश डाला गया है। इससे पता चलता है कि डसॉल्ट ने 13 भारत-विशिष्ट संवर्द्धन (आईएसई) के लिए € 1.3 बिलियन का शुल्क लिया, जिसने प्रत्येक फाइटर जेट की लागत को बढ़ा दिया क्योंकि एमएमआरसीए 2012 के तहत इस लागत को 126 के बजाय 36 तक फैलाया गया था। अब डसॉल्ट 36 जेट बेचकर महज तीन साल में विकास की सारी लागत वसूल सकता है, जबकि MMRCA 2012 के तहत 10 साल का सौदा 126 जेट के लिए  हुआ था।

इसके अलावा, आईएसई की विकास लागत एक बार वाला गैर-आवर्ती भुगतान है। जिसका अर्थ है कि उसके बाद की खरीद ने भविष्य की खरीद को सस्ता कर दिया होगा। लेकिन मोदी सरकार ने आगे रफ़ाल नहीं खरीदने का फैसला किया था। मोदी सरकार द्वारा डसॉल्ट के लिए दिखाई गई उदारता का एक अन्य उल्लेखनीय कार्य यह है कि न्यूजक्लिक के रक्षा विशेषज्ञ डी रघुनंदन के अनुसार आईएसई, जो भारत की संपत्ति होना चाहिए, डसॉल्ट की संपत्ति होगी, जो खुद इसका उपयोग अपने मुनाफे के लिए करेगा और अन्य खरीदारों को इसे बेच भी सकता है इसलिए सभी भारतीय जनता को इसकी विकास की लागत के लिए टैक्स के रूप में  सब्सिडी देने के लिए धन्यवाद।

एचएएल की स्थिति यह है कि 108 जेट के निर्माण के लिए अनुबंध को लूटने के काम से मोदी सरकार ने इसके खिलाफ हमला शुरू किया है। सबसे पहले, सरकार ने घोषणा की कि वह अब सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को धन नहीं देगी और उन्हें मुद्रा बाजार से धन जुटाना होगा। देखें कि यह एचएएल के लिए कैसे काम करता है।

सबसे पहले, मोदी सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि 11,699 करोड़ रुपये की अधिशेष वाली एक नकदी-समृद्ध कंपनी और जिसने दिसंबर 2017 तक 68,461 करोड़ रुपये के ऑर्डर बुक किए हुए थे, को कैसे खत्म किया जाये। उन्होंने एचएएल को सरकार को लाभांश का ज्यादा भुगतान बढ़ाने के लिए मजबूर किया और उन्होंने पिछले चार साल में 4000 करोड़ रुपये का भुगतान सरकार को किया। फिर सरकार ने उन्हें 1,200 रुपये प्रति शेयर के बढ़े हुए मूल्य पर 10 प्रतिशत सरकारी शेयर खरीदने के लिए मजबूर किया। इस प्रकार, एचएएल ने 6,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया। तब उन्होंने एचएएल को एक प्रारंभिक सार्वजनिक शेयर लाने के लिए मजबूर किया और उसके शेयरों की कीमत 1,215-1,240 रुपये के बीच रखी गयी। मौजूदा कीमत 2018 की शुरुआत में 775 रुपये यानी मूल से 40 प्रतिशत कम है।

16 मार्च, 2018 को मनीकंट्रोल.कॉम, एचएएल संबंधित आईपीओ के जोखिमों और चिंताओं को सूचीबद्ध करते हुए कहता है :

"चूंकि रक्षा अनुबंध हमेशा शुरुवात में पूरी तरह से वित्त पोषित नहीं होते हैं और इसलिए कभी भी समाप्त किए  जा सकते हैं, शुरुआत के समय में ऐसे अनुबंधों को फंड उपलब्ध कराने के लिए एचएएल की अक्षमता की वजह से अनुबंध की समाप्ति पर या सामग्री पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है"

यह चेतावनी सरकार के रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक इकाइयों के 100 प्रतिशत स्वामित्व को बनाए रखने के पक्ष में एक मजबूत तर्क है क्योंकि अन्य कंपनियों के विपरीत, सरकार ही इसकी एक मात्र खरीदार है और इसलिए, खतरे के परिदृश्य के आधार पर, आदेशों को जारी रखा जा सकता है और या फिर वापस भी लिया जा सकता है। यह सैन्य क्षेत्र की अंतर्निहित प्रकृति है। उदाहरण के लिए, पड़ोसियों देशों के साथ युद्ध की आशंका सफल राजनैतिक-कूटनीतिक विचार के कारण घट सकती है। पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने उद्योगपति अनिल अंबानी के साथ अपने सार्वजनिक भाषण में कहा था कि केवल सार्वजनिक क्षेत्र ही सुरक्षा परिदृश्य में बदलाव के कारण निष्क्रिय क्षमता का वहन कर सकता है। उन्होंने जो नहीं कहा, वह इस तथ्य में निहित है कि लाभ कमाने के लिए एक निजी खिलाड़ी चाहिए और जो बेकार क्षमता को स्वीकार नहीं करेगा और कुछ भी नहीं करने के लिए लाभ हानि के लिए मुआवजे की मांग करेगा। ध्यान देने वाली बात यह है कि कदम दर कदम डीपीएसयू, जैसे एचएएल और अन्य को नीचे खींचा जा रहा है, इसके लिए वे इसी हठधर्मिता से प्रेरित है कि सैन्य उत्पादन के लिए निजी क्षेत्र ही आगे का रास्ता है।

यह हठधर्मिता सर्वोच्च नेता के करीब क्रोनी कंपनियों को रिश्वत के लिए आगे बढ़ाती है। नए रफ़ाल सौदे में ऐसा ही हुआ है।

यह नर्सरी की कविता की तरह है, जिसमें कहा गया है कि एक कील के अभाव में जूता खो दिया या जूता नहीं बन पाया। इस उदाहरण में, ऐसा लगता है कि एक नौसिखिया और असफल उद्योगपति को काम देने के लिए उसे 32,000 करोड़ रुपये का 70 प्रतिशत आकर्षक ऑफ़सेट सर्विसिंग अनुबंध दे दिया है। अब इसकी वजह से अधिग्रहण में देरी से भारतीय वायुसेना की स्क्वाड्रन ताकत में कमी आएगी। स्वीकृत अपग्रेडेशन को पूरा करने के लिए धन की कमी, एचएएल को वित्तीय रूप से बर्बाद करना - ये सभी कारक सैन्य तैयारी, सार्वजनिक रक्षा क्षेत्र और देश की सुरक्षा की रीढ़ को खोखला कर सकते हैं।

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