NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
युद्ध को ख़ारिज करना ही काफ़ी नहीं, नस्लवाद  को भी भंग करना ज़रूरी है
शांतिप्रियता, न्याय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सिद्धांतों पर आधारित गुट निरपेक्ष आंदोलन को पुनर्जीवित करने से, नस्लवादी युद्धों पर रोक लगेगी जो भविष्य में वैश्विक राजनीति को शांति की ओर ले जाने में दोबारा से संतुलन बनाने में मदद कर सकता है।
क्लौडिया वेब
09 Jun 2022
Translated by महेश कुमार
rascim
Image Courtesy: BBC

युद्ध और नस्लवाद हमेशा हिंसक रहे हैं और दुखद रूप से अविभाज्य रहे हैं। सदियों से, दुनिया में सबसे विनाशकारी और क्रूर युद्ध, नस्लीय श्रेष्ठता की विनाशकारी धारणाओं और जातीय मतभेदों से उपजे हैं।

यूक्रेन पर रूस का आक्रमण घृणित और गंभीर रूप से चिंताजनक मसला है। यह एक अकारण, अनुचित आक्रोश और अंतरराष्ट्रीय कानून का जघन्य उल्लंघन है जिसके दीर्घकालिक और दुखद परिणाम होंगे। यूक्रेन में रूसी आक्रमण, सैन्य बमबारी और सैनिकों की तैनाती तुरंत समाप्त होनी चाहिए।

युद्ध और सैन्य टकराव से कभी कोई अच्छा परिणाम नहीं निकल सकता है। ग्लोबट्रॉटर के पत्रकार विजय प्रसाद ने फरवरी में पीपुल्स फोरम में कहा था, "गरीबों के लिए युद्ध कभी अच्छा नहीं होता है। श्रमिकों के लिए युद्ध कभी अच्छा नहीं होता है। युद्ध अपने आप में एक अपराध है।" अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक राजनयिक समाधान खोजने के अपने प्रयासों को दोगुना करने की जरूरत है जो शांति सुनिश्चित कर सके और यूक्रेन और युद्ध से पीड़ित अन्य देशों में लोगों के जीवन की रक्षा कर सके। 

नस्लवाद और युद्ध 

यूक्रेन को बड़ा समर्थन मिल रहा है, विशेष रूप से पश्चिमी देशों की तरफ से जो अपने आप में एक आईना दिखाता है कि कैसे कुछ संघर्षों, युद्धों और सामूहिक पीड़ा की घटनाओं को दूसरों की तुलना में नस्लवाद के चश्मे से देखा जाता है जो उन्हे अधिक महत्वपूर्ण और सहानुभूति योग्य बना देता है। पत्रकारों के पास कई ऐसे कारण है जो उन्हे आश्चर्यचकित करते हैं कि यूक्रेन के पीड़ित होने की भयावह छवियां, एक यूरोपीय देश की बहुसंख्यक श्वेत आबादी से नज़र आ रही हैं। एनबीसी न्यूज लंदन के संवाददाता केली कोबीला ने इस चिंता को दजर किया था, जिसमें उन्हौने कहा था: "स्पष्ट रूप से कहें तो, ये सीरिया से आए शरणार्थी नहीं हैं; ये पड़ोसी यूक्रेन के शरणार्थी हैं... ये ईसाई हैं; और ये सफेद लोग हैं। वे हमारे समान हैं।" नस्लवाद के इस स्पष्ट संदर्भ को प्रतिध्वनित करते हुए, यूक्रेन के पूर्व उप मुख्य अभियोजक डेविड सकवारेलिडेज़ ने बीबीसी को बताया: "मेरे लिए यह बहुत ही भावुक मसला है क्योंकि मैं नीली आँखों और गोरे बालों वाले यूरोपीय लोगों को मरते देख रहा हूँ।"

यदि हम गैर-श्वेत शरणार्थियों, शरण चाहने वालों और युद्ध के पीड़ितों का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली अमानवीय भाषा के साथ इसकी तुलना करते हैं - जैसे कि पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन द्वारा उन्हे "झुंड" के रूप में परिभाषित किया था – इस में नस्लवाद की बहुत ही चिंताजनक अंतर्निहित तस्वीर उभरकर सामने आती है, जिसे दुनिया भर में मीडिया, नेताओं और जनता की संकटों पर रिपोर्ट, चर्चा और प्रतिक्रिया के जरिए पेश की जाती है। गैर-श्वेत, गैर-यूरोपीय लोगों की पीड़ा को कम करने का काम करती है। हमें यूक्रेन में लोगों के अनुचित आघात का उतना ही जोरदार विरोध करना चाहिए जितना कि हम फिलिस्तीन, सीरिया, इराक, अफगानिस्तान और युद्ध की बुराइयों से पीड़ित अन्य देशों में संघर्ष के पीड़ितों की पीड़ा के बारे में करते हैं।

मीडिया संगठनों और यूके सरकार को यह मानने की जरूरत है कि संघर्ष का हर रंगमंच हमारी एकजुटता और हमारी करुणा दोनों के योग्य है। इसलिए यूके सरकार को यूक्रेन से आने वाले विस्थापित लोगों, शरणार्थियों और शरण चाहने वालों के साथ-साथ दुनिया भर में संघर्ष के अन्य सभी आयामों के लिए सुरक्षित मार्ग और शरण प्रदान करनी चाहिए। यूके सरकार का चल रहा पाखंड घृणित रवांडा अपतटीय प्रसंस्करण योजना और 2022 के शरणार्थी-विरोधी राष्ट्रीयता और सीमा अधिनियम के साथ देखने से स्पष्ट है, जो ब्रिटेन की शरण प्रणाली में भारी बदलाव का प्रावधान करता है। इन नीतियों को तत्काल समाप्त किया जाना चाहिए।

गुटनिरपेक्षता की लंबी परंपरा

2 मार्च, 2022 को, संयुक्त राष्ट्र ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा करने वाले एक प्रस्ताव पर मतदान किया था। 193 सदस्य देशों में से 141 ने इसका समर्थन किया था, जिसमें सिर्फ पांच देशों - रूस, बेलारूस, उत्तर कोरिया, इरिट्रिया और सीरिया ने इसके खिलाफ मतदान किया था। यह समझने के लिए कि क्यों 35 राष्ट्र, जो वैश्विक दक्षिण के पूर्व उपनिवेश रहे हैं, प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहे, गुटनिरपेक्षता की लंबी परंपरा पर विचार करना महत्वपूर्ण है जिसके आधार पर ये राष्ट्र काम कर रहे हैं।

1955 के बांडुंग सम्मेलन को मानव इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण बैठकों में से एक माना जाता है, क्योंकि यह पूर्व में उपनिवेशित लोगों की एक बेहद प्रेरक वैश्विक सभा थी और पैन-अफ्रीकीवाद और साम्राज्यवाद विरोधी एकजुटता का एक मजबूत मंच था। सम्मेलन ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को लोकप्रिय बनाने में भी मदद की थी, जो शीत युद्ध के दौरान दुनिया के तेजी से ध्रुवीकरण को संतुलित करने का एक प्रयास था, जिससे दो प्रमुख शक्तियों ने ब्लॉकों का गठन किया था और बाकी दुनिया को अपनी कक्षाओं में खींचने के एक नीति की शुरूवात की थी। .

इन ब्लॉकों में से एक सोवियत समर्थक, वारसॉ संधि के तहत एकजुट कम्युनिस्ट ब्लॉक था, और दूसरा अमेरिकी समर्थक, पूंजीवादी देशों का समूह था, जिनमें से कई नाटो के सदस्य थे। 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच छद्म युद्धों के दौरान लाखों नागरिक मारे गए थे, और परमाणु विनाश का खतरा हमेशा पूरे ग्रह पर तलवार की तरह लटका रहता था। 

गुटनिरपेक्षता हमें एक सुरक्षित, अधिक शांतिपूर्ण भविष्य की ओर इशारा करती है। 1961 में, 1955 के बांडुंग सम्मेलन में सहमत सिद्धांतों पर आधारित, गुटनिरपेक्ष आंदोलन को औपचारिक रूप से बेलग्रेड में शुरू किया गया था, जो उस वक़्त यूगोस्लाविया का हिस्सा था। आज, गुटनिरपेक्ष आंदोलन में 120 देश शामिल हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के लगभग दो-तिहाई सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो दुनिया की 55 प्रतिशत आबादी का घर हैं। घाना के पहले राष्ट्रपति और गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता क्वामे नकरुमाह ने प्रसिद्ध रूप से कहा था कि, "हम न तो पूर्व और न ही पश्चिम की तरफ देखते हैं; हम भविष्य की तरफ देखते हैं।"

जबकि गुटनिरपेक्ष आंदोलन शीत युद्ध की भूराजनीति के दौरान विकसित हुआ था, और इसकी स्थापना की गई थी और इस मान्यता पर आज भी यह कायम है कि युद्ध से कोई अच्छा परिणाम नहीं निकल सकता है और यह कि हिंसक संघर्ष, उपनिवेशवाद और नस्लवाद हमेशा आपस में करीब से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए, जिन 35 देशों ने 2 मार्च को मतदान से परहेज किया, उनमें से 17 अफ्रीकी राष्ट्र थे जो सदियों से उपनिवेशवाद की हिंसा का सामना कर रहे थे। परहेज रूस के आक्रमण के समर्थन से बहुत दूर था। यह इन देशों का शांतिवाद का दावा था क्योंकि इन देशों ने सदियों से औपनिवेशिक युद्ध के घृणित नस्लवादी परिणामों को झेला था। 

दुनिया भर में, ब्रिटिश राष्ट्र के हाथों भयानक हत्या और हिंसा के उदाहरणों को साम्राज्य की हमारी वर्तमान स्मृति से मिटा दिया गया है। पूर्व औपनिवेशिक देशों के सामने अब समय आ गया है कि वे उन देशों, समुदायों और व्यक्तियों के ऐतिहासिक ऋण के प्रति माफी मांगें और उन्हे गंभीरता से लें, जिन्होंने उनकी क्रूरता को सहन किया था। शांतिवाद, न्याय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सिद्धांतों से निर्देशित एक पुनर्जीवित गुटनिरपेक्ष आंदोलन, वैश्विक राजनीति के पैमाने को नस्लवादी युद्धों से दूर और शांति के भविष्य की ओर पुनर्संतुलन में मदद कर सकता है।

क्लौडिया वेब ब्रिटेन की संसद की सदस्य हैं जो लीसेस्टर पूर्व का प्रतिनिधित्व करती हैं। आप उन्हे उनके फेसबुक और ट्विटर @ClaudiaWebbe पर फॉलो कर सकते हैं।

स्रोत: यह लेख मॉर्निंग स्टार और ग्लोबट्रॉटर में प्रकाशित हो चुका है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें: 

Rejecting War is Not Enough—Racism Curdles Peace

activism
africa
Africa/Eritrea
Africa/Ghana
Africa/Rwanda
Europe
Europe/Belarus
Europe/Russia
Europe/Ukraine
Europe/United Kingdom
History
Human Rights
identity politics
Immigration
Law
Media
Middle East
Middle East/Afghanistan
Middle East/Iraq
Middle East/Israel
Middle East/Syria
opinion
politics
social justice
Time-Sensitive
United nations
War

Related Stories

नीतीश कुमार ज़ुबानी जंग से कुछ हासिल नहीं कर पाते,  इसलिए भाजपा से अलग होना तय था

आरएसएस पर मेरी किताब झूठ और नफ़रत के ख़िलाफ़ समुदायों को एकजुट करने का प्रयास करती है—देवानुरु महादेव

म्यांमार में ख़ूनी सैन्य क्रूरता, यूक्रेन जंग से ठिठुरेगा यूरोप, श्रीलंका में गोटाबाया की वापसी?

गलत सूचना, एजेंडापूर्ण डिबेट और पक्षपातपूर्ण विचार लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं: CJI

निकट भविष्य में यूक्रेन शांति वार्ता की संभावना?

क्या यूक्रेन युद्ध निजी सुरक्षा कंपनियों के लिए व्यापार के अवसर में बदल जाएगा?

गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़ एक साल से भी कम समय में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में तक़रीबन 37 फ़ीसदी की बढ़ोतरी

हत्यारों, आतंकियों का भाजपा से कनेक्शन!, ज़ुबैर के बहाने मीडिया पर हमला ज़ारी

‘गेंहूँ आपूर्ति युद्ध’ में रूस ने मारी बाजी

फ़ैक्ट चेकर पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर को एक दिन की हिरासत, मीडिया संस्थाओं और विपक्ष ने जताया विरोध


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    दलित छात्र इंद्र मेघवाल  को याद करते हुए: “याद रखो एक बच्चे की हत्या... सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन”
    14 Aug 2022
    दलित छात्र इंद्र मेघवाल  को याद करते हुए— “याद रखो एक बच्चे की हत्या/ एक औरत की मौत/ एक आदमी का गोलियों से चिथड़ा तन/  किसी शासन का ही नहीं/ सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन”
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    शर्म: नाम— इंद्र मेघवाल, जात— दलित, कुसूर— पानी का मटका छूना, सज़ा— मौत!
    14 Aug 2022
    राजस्थान से एक बेहद शर्मनाक ख़बर सामने आई है। आरोप है कि यहां एक गांव के निजी स्कूल में दलित छात्र को पानी का मटका छूने पर उसके अध्यापक ने इतना पीटा कि इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। इसे लेकर लोगों…
  • भाषा
    दिग्गज शेयर निवेशक राकेश झुनझुनवाला का 62 साल की उम्र में निधन
    14 Aug 2022
    वह अपने पीछे पत्नी और तीन बच्चों को छोड़ गए हैं। वह कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उन्हें गुर्दे को लेकर कुछ परेशानी थी। अपने आखिरी सार्वजनिक कार्यक्रम में वह व्हीलचेयर पर आए थे।
  • महेश कुमार
    अमृतकाल’ में बढ़ रहे हैं दलितों-आदिवासियों के ख़िलाफ़ हमले
    14 Aug 2022
    संसद में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक़, उत्तर प्रदेश और बिहार में दलितों का उत्पीड़न सबसे अधिक हुआ है जबकि आदिवासियों के ख़िलाफ़ अपराध के सबसे ज़्यादा मामले मध्य प्रदेश और राजस्थान में दर्ज किए गए…
  • सुभाष गाताडे
    आज़ादी@75: क्या भारत की न्यायपालिका के अंदर विचारधारात्मक खिसकाव हक़ीक़त बन चुका है ?
    14 Aug 2022
    ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जब न्यायाधीशों के जेंडर, जातीय या सांप्रदायिक पूर्वाग्रह सामने आए हैं। फिर यह सवाल भी उठता रहा है कि ऐसी मान्यताओं के आधार पर अगर वह न्याय के सिंहासन पर बैठेंगे तो वह जो…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें