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RTI कार्यकर्त्ताओं के मुताबिक मोदी सरकार संशोधन कर कानून को कमज़ोर करने की फिराक़ में

RTI कार्यकर्ताओं ने माँग की है कि बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार भारत सरकार की पूर्व विधायी परामर्श नीति के अनुसार आरटीआई संशोधन विधेयक सार्वजनिक करे।
RTI

मोदी सरकार सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम 2005 में संशोधन करने की कोशिश कर रही है जिसने सार्वजनिक प्राधिकरणों को उत्तरदायी बनाए रखने के लिए लाखों लोगों को अधिकार दिया है। इस संशोधन को लेकर आरटीआई कार्यकर्ताओं ने चिंता जताई है कि प्रस्तावित संशोधन क़ानून को कमजोर कर देगा।

25 मई को द नेशनल कैंपेन फॉर पीपुल्स राइट टू इनफॉर्मेशन (एनसीपीआरआई) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार द्वारा प्रस्तावित आरटीआई अधिनियम 2005 में "प्रतिकूल" संशोधन के संबंध में चिंता व्यक्त करते हुए लिखा।

इस अधिनियम को कमज़ोर न करने के लिए मोदी सरकार से आग्रह करते हुए एनसीपीआरआई से जुड़े कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि सरकार संसद में पेश होने से पहले आरटीआई संशोधन विधेयक के मसौदे को समीक्षा और चर्चा के लिए सार्वजनिक करे।

मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए एनसीपीआरआई ने प्रस्तावित संशोधनों में सबसे ज़्यादा चिंता इस बात को लेकर ज़ाहिर की है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें नियमों के ज़रिए सूचना आयुक्तों के वेतन का फैसला करेगी। यह ऐसा क़दम है जो आयुक्तों के कार्यों में स्वायत्ता और आज़ादी से समझौता करना है।

ये आरटीआई अधिनियम नागरिकों को सवाल पूछने और सार्वजनिक अधिकारियों से जानकारी लेने की अनुमति देता है। सूचना आयोग अंतिम प्राधिकार है जो सूचना की मांग पर फैसला लेता है। सूचना के अधिकार का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत वर्णित मौलिक अधिकार में है।"

एनसीपीआरआई के पत्र में कहा गया, "ये आरटीआई कानून वर्तमान में सभी सूचना आयोगों के प्रमुख और केंद्रीय सूचना आयोग के आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के स्तर पर जबकि राज्य सूचना आयुक्तों को राज्य के राज्य के मुख्य सचिव के स्तर पर दिया जाता है।"

"आरटीआई अधिनियम के तहत आयुक्तों को दिया गया दर्जा उन्हें अपने कार्यों को स्वायत्ततापूर्वक करने के लिए सशक्त बनाना है और इस क़ानून के प्रावधानों का अनुपालन के लिए उच्चतम कार्यालयों की भी आवश्यकता है। सूचना आयुक्तों के वेतन का फैसला करने के लिए केंद्रीय और राज्य सरकारों को सशक्त बनाना सूचना आयोगों की आज़ादी को पूरी तरह नष्ट कर देगा।”

देश में सूचना आयोग अव्यवस्थित स्थिति में हैं। मुख्य सूचना आयुक्त सहित आयुक्तों के पद कई राज्य के सूचना आयोगों में खाली पड़े हैं।

भारत सरकार के कार्मिक तथा प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा जारी संशोधन विधेयक में मसौदे के नियमों को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है।

प्रस्तावित संशोधन में कई ऐसे अन्य मुद्दे हैं जिससे सरकार से जानकारी मांगने की प्रक्रिया में जटिलता आएगी। इन मुद्दों को पहले भी आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा उठाया गया है।

लेकिन संशोधन विधेयक को सार्वजनिक नहीं किया गया है और जनता से अभी तक कोई टिप्पणी और सुझाव नहीं मांगा गया है।

"महत्वपूर्ण कानूनों को इस तरह बदलने का यह विधायी तरीका लोगों के जनतांत्रिक जानने के अधिकार तथा विधायी प्रक्रिया भाग लेने को नज़रअंदाज़ करता है साथ ही ये प्रस्तावित विधेयक के प्रावधानों की सार्वजनिक समीक्षा को रोकता है।"

अरुणा रॉय, अंजली भारद्वाज, निखिल डे, वेंकटेश नायक, शैलेश गांधी और शेखर सिंह समेत कई आरटीआई कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि मोदी सरकार भारत सरकार के पूर्व विधायी परामर्श नीति को ध्यान में रखते हुए संशोधन विधेयक सार्वजनिक करे।

एनसीपीआरआई ने बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार को याद दिलाया, "साल 2014 में भारत सरकार द्वारा एक पूर्व विधायी परामर्श नीति अपनाई गई थी, जिसमें यह आवश्यक है कि सभी मसौदे (अधीनस्थ विधान सहित) सार्वजनिक टिप्पणियां आमंत्रित करने के लिए 30 दिनों तक सार्वजनिक किया जाए और टिप्पणियों का सारांश कैबिनेट की मंज़ूरी से पहले संबंधित संबंधित मंत्रालय की वेबसाइट पर डाला जाए।"

पत्र में कहा गया है, "कानून बनाने की प्रक्रिया में सार्वजनिक परामर्श की आवश्यकता और महत्व को दुनिया भर में लोकतांत्रिक सरकारों द्वारा व्यापक रूप से अपनाई जाती है।"

हर साल क़रीब छह मिलियन से से ज़्यादा आरटीआई आवेदन भेजे जाते हैं। एनसीपीआरआई के अनुसार वैश्विक स्तर पर "व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला पारदर्शी विधान"आरटीआई अधिनियम है। "सिस्टम में भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए क़ानून का इस्तेमाल किया गया है।"

एनसीपीआरआई ने कहा, "हम आपको यह सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ता से आग्रह करते हैं कि आरटीआई अधिनियम 2005 को किसी भी तरह से कमज़ोर न हो।"

"संसद के समक्ष पेश करने से पहले परिवर्तनों का प्रस्ताव देने के कारणों के साथ प्रस्तावित आरटीआई संशोधन विधेयक का मज़मून व्यापक चर्चा और सार्वजनिक बहस के लिए तुरंत सार्वजनिक किया जाना चाहिए। प्रस्तावित कानून पर सार्वजनिक टिप्पणियां और सुझावों को आमंत्रित करने के लिए एक प्रभावी सहभागिता सलाहकार प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए।"

सूचना के अधिकार के महत्व का अंदाज़ा देश में आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमलें और उनकी हत्याओं की बढ़ती संख्या के आधार पर लगाया जा सकता है। यह सार्वजनिक अधिकारियों को उत्तरदायी बनाकर रखता है। वास्तव में गुजरात जहां बीजेपी पिछले दो दशक से सत्ता में है और महाराष्ट्र जहां बीजेपी पिछले डेढ़ दशक से सत्ता पर क़ाबिज है,आरटीआई कार्यकर्ताओं पर सबसे ज़्यादा हमले हुए हैं।

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