सीवीसी रिपोर्ट का एक हिस्सा आलोक वर्मा के हक में, कुछ की जांच ज़रूरी, कोर्ट ने जवाब मांगा
सर्वोच्च न्यायालय ने आज, शुक्रवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा को उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की जांच रिपोर्ट पर जवाब देने के लिए कहा है। वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप एजेंसी के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने लगाए हैं।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय कौल और न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ की पीठ ने कहा कि रिपोर्ट के कुछ भाग वर्मा के लिए सम्मानजनक हैं, लेकिन कुछ भाग में ऐसा नहीं है।
पीठ ने कहा कि कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिसकी जांच की जानी जरूरी है।
प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने कहा कि सीवीसी रिपोर्ट को वरिष्ठ वकील फली नरीमन को सीलबंद लिफाफे में दिया जाए और मामले की अगली सुनवाई के दिन 20 नवंबर से पहले इसका जवाब सीलबंद लिफाफे में पेश किया जाए।
वर्मा की तरफ से पेश नरीमन ने कहा कि वे जल्द से जल्द रिपोर्ट का जवाब अदालत में पेश करना चाहेंगे। नरीमन ने संकेत दिया कि वे सोमवार को रिपोर्ट का जवाब दे सकते हैं।
दरअसल पिछले दिनों अलोक वर्मा ने सीबीआई डायरेक्टर के पद से हटाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। राकेश अस्थाना और अलोक वर्मा के विवाद के चलते सीवीसी ने अलोक वर्मा को डायरेक्टर के पद से हटाकर उन्हें छुट्टी पर भेज दिया था। जबकि सीवीसी के पास किसी को हटाने व छुट्टी पर भेजने का अधिकार नहीं होता उसको केवल जांच करने का अधिकार है।
अलोक वर्मा ने राकेश अस्थाना पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था जिस पर जांच चल रही थी। गैरतलब है की जांच कर रहे अधिकारियों में से कई अधिकारियों का तबादला कर दिया गया। विवाद के चलते राकेश अस्थाना को भी छुट्टी पर भेज दिया गया।
आलोक वर्मा की नियुक्ति सीबीआई निदेशक के रूप में दो साल के लिए हुई थी और उनका कार्यकाल इस साल दिसंबर में खत्म हो रहा था।
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जानकारों का साफ मानना है कि शीर्ष स्तर पर यह खुला युद्ध है और पर्दे के पीछे इन कठपुतलियों को नचाने वाले राजनीतिक गलियारों में मौजूद हैं। इस प्रकरण को भी मोदी सरकार की नीति के उस हिस्से के तौर पर भी देखा जा रहा है जिसमें सभी प्रमुख संस्थानों को तबाह करने की कोशिश की जा रही है। ये एक खुला आरोप है, जिसपर विपक्ष और कई राजनीतिक जानकार सहमत हैं।
(कुछ इनपुट आईएएनएस)
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