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संस्थागत भ्रष्टाचार का नव-उदार मॉडल

राजधानी दिल्ली के दो बड़े अस्पताल मैक्स और फोर्टिस से सबसे पहले मरीज़ों को लेकर नैतिक मानदंडों के घोर उल्लंघन की ख़बर आई। मरीज़ों की मौत के बाद भी परिजनों को लाखों के बिल थमाए गए और रिश्तेदारों से बदसलूकी की गई।
डॉक्टर

स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र हाल के दिनों मे लगातार सुर्खियों में बना रहा। राजधानी दिल्ली के दो बड़े अस्पताल मैक्स और फोर्टिस से सबसे पहले मरीज़ों को लेकर नैतिक मानदंडों के घोर उल्लंघन की ख़बर आई। मरीज़ों की मौत के बाद भी परिजनों को लाखों के बिल थमाए गए और रिश्तेदारों से बदसलूकी की गई। कुछ दिन पहले नेशनल प्राइसिंग अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने प्राइवेट अस्पतालों के ऑडिट के आधार पर एक रिपोर्ट प्रकाशित किया कि किस तरह प्राइवेट अस्पतालों द्वारा दवाओं और अन्य चिकित्सीय वस्तुओं की कीमतों में असामान्य वृद्धि कर करोड़ों लूटा जा रहा है। इसी बीच केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य सेवा जुड़े 'मोदीकेयरकी घोषणा की गई। इस योजना के तहत दिल्ली में स्वास्थ्य सेवा को आउटसोर्स करने का प्रावधान है।

 

 

ये घटनाएं देश की कोई अकेली नहीं हैं बल्कि ये भारत के स्वास्थ्य सेवा की अस्वस्थता को उजागर करती है। निजी अस्पतालों में बढ़ते भ्रष्टाचार के सबूत और बीजेपी सरकार की बीमा आधारित स्वास्थ्य सेवा को बढ़ावा देने के जुनून के बीच संपर्क वर्तमान समय में बेहद ही महत्वपूर्ण है। सरकार द्वारा उठाए गए आक्रामक नवउदार नीतियों के प्रभाव का पता लगाने के दौरान सामान्य भ्रष्टाचार तथा विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा में भ्रष्टाचार के पारंपरिक रूप से पहचाने जाने गए तरीके से परे देखने की ज़रूरत है। अपने मूल में नव-उदार नीतियों का मतलब सरकारी संस्थानों से निजी उद्यमों में शक्ति हस्तांतरण होता है। भ्रष्टाचार को 'निजी हित के लाभ के लिए सरकारी शक्ति के अवैध इस्तेमालके रूप में परिभाषित किया गया है और नवउदारवाद एक भ्रष्ट व्यवस्था का प्रतीक है। हम हर दिन ऐसा देखते हैं कि निजी उद्यमों के भलाई को ध्यान में रखते हुए सरकार सार्वजनिक सेवाओं को नज़रअंदाज़ कर देती है।

देश में नवउदारवादी आर्थिक नीतियां और वैश्विक आर्थिक और शासन प्रणाली के साथ एकीकरण स्वास्थ्य क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों में भ्रष्टाचार को संस्थागत बनाने में काम करता है। सैद्धांतिक क्षेत्र में मांग की जाती है कि सरकार की भूमिका को ऐसे तरीके से दोबारा परिभाषित करने की ज़रूरत है जो निजी हितों को लाभ पहुंचाते हैं। वैश्विक स्तर पर वैश्विक शासन के पुनर्गठन के परिणामस्वरूप पूर्ववर्ती सरकार संचालित प्रक्रियाएं उन्हें स्थानांतरित की जाती है जहां सरकारी संरचना में निजी निगमोंफाउंडेशन और मैनेजमेंट कंसल्टेंसी कंपनियों को जगह मुहैया कराई जाती है। इस प्रकार यूएन सिस्टम का हिस्सा डब्ल्यूएचओ बिल गेट्स फाउंडेशन और मैककिन्से प्रबंधन परामर्श फर्म जैसे निजी फाउंडेशनों की तुलना में बहुत कम शक्तिशाली है। यह वही है जो विश्व स्तर पर नीतियों को संचालित करता है और भारत में भी तेजी से बढ़ रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम निजी क्षेत्रों का सरकार के नियामक संरचनाओं पर प्रभुत्व भी देखते हैं जो ऐसे विनियमन का विषय हैं।

 

चूंकि ये प्रक्रियाएं परिवर्तनकारी सार्वजनिक नीति द्वारा कार्य करती है तो उनके प्रभावों को शायद ही कभी 'भ्रष्टाचारके रूप में पहचाना जाता है। इस तरह'मोदीकेयरको एक नई नीति के पहल के रूप में देखा जाता है न कि सरकार द्वारा निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा सौंपने के लिए एक योजनाबद्ध प्रयास के रूप में और इस तरह निजी क्षेत्रों को लाभकारी बनाने के लिए बड़े अवसर प्रदान करता है। इस तरह की पहल को सरकारी निर्णयन निर्माण के रूप में स्पष्ट रूप से पहचान करने की ज़रूरत है जो निजी हितों के पक्ष में कार्य करते हैं। नीति बदलावजो कि राष्ट्रीय स्तर तथा वैश्विक स्तर पर निजी हितों समर्थन करते हैंको भ्रष्टाचार के मूल श्रोत के रूप में स्पष्ट तरीके से पहचान करने की आवश्यकता है जो बाद में स्थानीय स्तर पर भ्रष्ट प्रथाओं में तब्दील हो जाते हैं। ये नीति बदलाव निजी उद्यमों के संचालन और शक्ति के पैमाने को व्यापक रूप से विस्तारित करते हैंऔर इस प्रकार इसने भ्रष्ट प्रथाओं के नए रूप का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।

 

सरकार और स्वास्थ्य सेवा की भूमिका में वैचारिक बदलाव

बीजेपी के 'स्वास्थ्य बीमामॉडल और उसकी प्रमुख योजना 'मोदीकेयरस्वास्थ्य सेवा के वैश्विक नव-उदार मॉडल से जुड़ी है जिसे 'यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज' (यूएचसी)के रूप में पेश किया जाता है। यूएचसी सरकार की भूमिका में बदलाव को प्रोत्साहित करता है अर्थात स्वास्थ्य सेवा के प्रदाता से स्वास्थ्य सेवा के प्रबंधक तथा नियामक में परिवर्तित करता है। ऐसे मॉडल में स्वास्थ्य सेवा को निजी हाथों से आउटसोर्स किया जाएगाजैसा कि 'मोदीकेयरऐसा करने का वचन देता है।

1990 के दशक के अंत तक अधिकांश विकासशील देशों के पास पारंपरिक कमज़ोर स्वास्थ्य प्रणालियां थीं भारत में 1990 की दशक के शुरूआत में नव-उदार सुधारों के बाद स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सार्वजनिक सेवाएं व्यवस्थित रूप से धन से वंचित थीं। भारत की तरह दुनिया भर में आख़िरकार यह स्वीकार किया गया कि स्वास्थ्य तंत्र को बेहतर बनाने के लिए तत्काल उपाय करना जरूरी है। इस स्थिति को सुधारने के लिए सार्वजनिक प्रणालियों के पुनर्निर्माण और सुदृढ़ीकरण को प्राथमिकता देने के प्रयास किए जा सकते हैं। बजाय इसके सरकार की भूमिका सेवाओं के एक प्रदाता के बदले स्वास्थ्य सेवा के एक 'प्रबंधकया 'नियामकके रूप में बदल दी गई।

 

विनियामकीय कब्जा (REGULATORY CAPTURE)

चूंकि सरकारों की भूमिका एक 'नियामककी सीमा तक सीमित की जा रही हैइसलिए सार्वजनिक नियामक एजेंसियों के सामने एक बड़ा खतरा है जिसे 'रेगुलेटरी कैप्चरके रूप में जाना जाता है। यह एक ऐसी घटना है जहां नियामकीय एजेंसियों को जन हित के लिए उद्योग को रेगुलेट करने के लिए गठित किया जाता है जिस पर उद्योग द्वारा कब्जा कर लिया जाता है। परिणामस्वरूपरेगुलेटर उद्योगों को ऐसे तरीके से विनियमित करना बंद कर देते हैं जो आम लोगों की तुलना में विनियमित उद्योग को लाभ पहुंचाते हैं।

विनियामक कब्जा विभिन्न तरीकों से घटित होता है। रेगुलेटरी सिस्टम पर उनके द्वारा कब्जा जमा लिया जाता है जिन्हें माना जाता है कि उन्हें विनियमित किया जाना चाहिए क्योंकि वे नामित 'विशेषज्ञहैं जो सिस्टम को समझते हैं। भारत में स्वास्थ्य सेवा में बड़े कॉर्पोरेट दिग्गज देवी शेट्टीनरेश त्रेहान हैं। ये विशेषज्ञ हैं जो नीति लिख रहे हैं। इस तरह के विशेषज्ञों की अक्सर दोहरी वफादारी होती हैअर्थात उन लोगों के हितों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें विनियमित किया जा रहा है। 'हित के टकरावके ऐसे मुद्दे 'परिक्रामी मार्गप्रथाओं द्वारा आगे बढ़ाए जाते हैंजहां नियामक निकायों में ऐसे लोग शामिल होते हैं जिनके संगठन के लिए पूर्ववर्ती और हालिया रोक थे जो विनियमन का विषय हैं। इस प्रकार उदाहरण स्वरूप स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के पूर्व सचिव नरेश दयाल 30 सितंबर2009 को सेवानिवृत्त हुए और जल्द ही एक ग़ैर-सरकारी निदेशक के रूप में ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन कंज़्यूमर हेल्थ केयर को ज्वाइन कर लिया।

विचारों को बढ़ावा देने के माध्यम से कैप्चर की घटनाएं हुई और 1990 के बाद के भारत में विनियमन हटाने सहित नवउदार सुधारों के गुणों का सरकार द्वारा बढ़ावा दिया जाता है। 1990 के बाद से भारत में किए गए सुधारों ने निजी गतिविधि और अल्प विनियमन के दायरे का विस्तार किया है और राज्य और बड़े कारोबारियों के बीच संबंधों को मज़बूत किया है। रेगुलेटरी कैप्चर को अब "नीति निर्माताओंविनियामक अधिकारियोंकॉर्पोरेट और बेहद अत्याधुनिक औद्योगिक लॉबी समूहों के एक परस्पर गतिशील संबंधके रूप में वर्णित किया गया है।

सार्वजनिक वित्त पोषित बीमा योजनाओं में आउटसोर्स सेवा

सरकार के विचार में बदलाव निजी क्षेत्रों द्वारा लाभ अर्जित करने के लिए संस्थागत रास्ता तैयार करने में भारत सरकार पर भी लागू होता है। साल 2009 में भारत सरकार ने आंध्र प्रदेश के राजीव गांधी आरोग्यश्री योजना से प्रेरित होकर राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाईनामक योजना की शुरूआत मरीज़ों के जेब से अधिक ख़र्च से भायवह प्रभाव की रक्षा के लिए की गई। आरएसबीवाई को पूर्ववर्ती तथा वर्तमान सरकार द्वारा एक प्रमुख उपलब्धि के रूप में गिनाया गया। यह ऐसा मॉडल है जिसे अब 'मॉदीकेयरके ज़रिए अगले स्तर तक ले जाने के लिए प्रयास किया जा रहा है।

बेहतर स्वास्थ्य प्रणालियां पिरामिड की तरह होती हैसबसे ज्यादा मरीज़ों का इलाज प्राथमिक स्तर पर की जा सकती हैं जहां लोग रहते हैं और काम करते है। कुछ मरीज़ों को माध्यमिक स्तर जैसे कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में रेफर करने की आवश्यकता होगीऔर कुछ को तृतीयक अस्पतालों में विशेष इलाज की आवश्यकता होगी। बेहतर प्राथमिक और माध्यमिक स्तर का स्वास्थ्य केंद्र यह सुनिश्चित करता है कि कम संख्या में मरीज़ों को अधिक महंगे विशेष अस्पतालों में महंगे इलाज के लिए जाने की ज़रूरत होती है। भारत में स्वास्थ्य बीमा प्रणाली ने इस पिरामिड को उलट दिया है और प्राथमिक सेवा केंद्र खाली पड़े हैं।

इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि ये सामाजिक स्वास्थ्य बीमा योजनाएं निजी प्रदाताओं के साथ साझेदारी के माध्यम से बड़े पैमाने पर चलाई जाती हैं। ऐसे में कई राज्यों में सरकार के साथ धोखाधड़ी के मामले सामने आ चुके हैं और दोषी पाए गए हैं। कई रिपोर्टों से खुलासा हुआ है कि इन सरकारी योजनाओं के तहत कई निजी सुविधा केंद्रों ने ग़ैर ज़रूरी प्रक्रियाओं का सहारा लिया और लाभान्वित हुए। उदहारण स्वरूप दिल दहलाने वाली एक घटना सामने आई कि 22 वर्षीय एक महिला का बिना कारण ऑपरेशन कर यूटेरस निकाल दिया गया।

निष्कर्ष

हालांकि भ्रष्टाचार की पहचान करना अपेक्षाकृत आसान हैउदाहरण स्वरूप कोई सरकारी अधिकारी निजी अस्पताल का समर्थन करने के लिए रिश्वत लेता है,यद्यपि निजी उद्यमों के लाभ के लिए सरकार में निहित शक्ति के दुरुपयोग की मौलिक घटनाएं अभी भी अज्ञात हैं। उदाहरण स्वरूप स्वास्थ्य सेवाओं के आउटसोर्सिंग को बढ़ावा देने के लिए नीति में बदलाव पर प्रणाली का व्यापक प्रभाव है और निजी हाथों में सार्वजनिक परिसंपत्तियों का बड़ा स्थानांतरण शामिल है। फिर भी हम शायद ही कभी भ्रष्टाचार के किसी कृत्य के रूप में इसे पहचानते हैं। यद्यपि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने लगातार दावा किया है कि वह भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के लिए प्रतिबद्ध हैजो आर्थिक मॉडल जिसे यह जुमलेबाजी के जरिए प्रोमोट करती है वह केवल भ्रष्टाचार के अभूतपूर्व स्तर को बढ़ावा देने के लिए तैयार किया गया है। इसमें स्वास्थ्य क्षेत्र के भ्रष्टाचार की घटना शामिल है जो लगभग रोज़मर्रा की घटना हो गई है।

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