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श्रीलंका में हमलों के विरोध में दिल्ली में बनाई गई मानव श्रृंखला

दिल्ली में यूनाइटेड अगेंस्ट हेट द्वारा श्रीलंका के मृतकों और घायलों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए मानव श्रृंखला बनाई गयी जिसमें जमीयत उलेमा हिन्द, नेशनल काउन्सिल फ़ॉर चर्चेज़ इन इंडिया, जमाते इस्लामी समेत अनेक संगठन और तमाम अन्य बुद्धिजीवी, लेखक-पत्रकार और छात्र शामिल हुए।
दिल्ली में मानव श्रृंखला

लगभग दो दशकों तक सिंहली, तमिल और बौद्ध अराजकता से त्रस्त रहे और एक अलग पृथक तमिल राष्ट्र की स्थापना के उद्द्देश्य से स्थापित लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (एलटीटीई) के आतंक से मुक्ति के लगभग एक दशक बाद जब श्रीलंका एक शांत, समृद्ध और ख़ूबसूरत देश के रूप में अपनी नई पहचान गढ़ने के प्रयास में लगा है तो ऐसे माहौल में रविवार को ईस्टर के दिन हुए सिलसिलेवार आठ बम धमाकों ने श्रीलंका समेत पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। श्रीलंका में ईस्टर के उत्सव वाले दिन पहला विस्फोट स्थानीय समयानुसार सुबह पौने 9 बजे प्रार्थना सभा के दौरान कोलंबो के सेंट एंथनी चर्च में हुआ। इसके साथ ही पश्चिमी तटीय शहर नेगोम्बो के सेंट सेबेस्टियन चर्च और बट्टिकलोवा के एक चर्च में धमाके हुए। बाक़ी 3 और विस्फोट पांच सितारा होटलों- शंगरीला, द सिनामोन ग्रांड और द किंग्सबरी में हुए। इस भयानक वीभत्स आतंकवादी हमले में अब तक तक़रीबन 359 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और बड़ी संख्या में घायल हैं।

श्रीलंका में आखिरी सबसे बड़ी आतंकवादी घटना साल 2006 में हुई थी जिसे लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम ने अंजाम दिया था और श्रीलंका के इतिहास में इसे दिगमपटाया नरसंहार के नाम से जाना जाता है। आतंकियों ने श्रीलंकाई सेना को निशाना बनाकर एक ट्रक को सेना की 15 गाड़ियों के काफिले में घुसा दिया था जिसमें तक़रीबन 120 लोग हलाक हुए थे। उसके बाद साल 2009 में 10 मार्च को पैग़ंबर मोहम्मद साहेब की श्रद्धा में निकाले जाने वाले जुलूस पर आत्मघाती हमला हुआ और तक़रीबन 18 लोग हलाक और पचास की संख्या में लोग घायल हुए। उसके बाद रविवार को ईस्टर के दिन होने वाला ये आतंकवादी हमला सबसे ज़्यादा भीषण है। भीषण आतंकी हमलों के बाद दुनिया भर के तमाम देशों ने श्रीलंका के साथ एकजुटता दिखाई है और शोक संदेश प्रसारित करते हुए आतंकवाद जैसे नासूर की निंदा की है। श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है। सिरिसेना ने कहा, ‘मैं इस अप्रत्याशित घटना से सदमे में हूं।’ प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने इसे कायराना हमला क़रार दिया है और कहा है वो अपने देश के नागरिकों के साथ हर तरह से खड़े हैं।  आर्कबिशप मिशेल औपेटिट ने ट्वीट किया, ‘उस दिन इतनी नफरत क्यों, जब हम प्यार का जश्न मनाते हैं? ईस्टर के दिन… हम श्रीलंका में मारे गए हमारे भाईयों के साथ हैं।’

न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने अपने सन्देश में कहा है कि ‘न्यूजीलैंड सभी आतंकवादी कृत्यों की निंदा करता है और हमारी सरजमीं पर हुए हमले के बाद हमारा यह संकल्प और दृढ़ हो गया है।’ 

ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने कहा, ‘हमें यह सुनिश्चित करने के लिए एकसाथ आना चाहिए कि किसी को कभी भी अपने धर्म का पालन डर के साए में ना करना पड़े।’ 

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने श्रीलंका के अपने समकक्ष को भेजे शोक संदेश में कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मॉस्को साथ है।

इनके इलावा बड़ी संख्या में मुस्लिम देशों की तरफ़ से भी प्रतक्रिया आई है जहाँ एक तरफ़ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा, ‘हम श्रीलंका के साथ हैं।’ बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस हमले को ले कर अपनी चिंता ज़ाहिर की और पीड़ितों के लिए दुआएं प्रेषित की। वही दूसरी तरफ मुस्लिम दुनिया की राजनीति के नए नायक के तौर पर उभरते तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयब एर्दोआन ने हमलों की निंदा करते हुए इसे समूची मानवता पर हमला करार दिया है।  बहरीन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात ने अपने विदेश मंत्रालयों के जरिये बयान जारी कर हमले की निंदा की।

भारत में भी इन हमलों के बाद हर तरफ़ से प्रतिक्रिया आ रही है और हर मानवता प्रेमी श्रीलंका के पीड़ितों के साथ खड़ा संवेदना व्यक्त कर रहा है। लेकिन इसका एक दु:खद और स्याह पहलू भी है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूं तो इन बम धमाकों की कड़ी निंदा करते हैं और श्रीलंका के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को फोन करके हर संभव मदद देने का भरोसा भी देते हैं लेकिन दूसरी तरफ देश के भीतर इसका चुनावी लाभ उठाने की भी कोशिश करते हैं। जैसे पूर्व में उन्होंने पुलवामा और बालाकोट मामले में किया। उन्होंने राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में एक चुनावी रैली में श्रीलंका में आतंकवादी हमलों का जिक्र करते हुए अपने लिए वोट भी मांग लिए।

इतना ही नहीं श्रीलंका के आतंकवादी हमलों के बाद अपने देश में एक धर्म विशेष यानी मुसलामानों से घृणा रखने वाले तबके की प्रतिक्रिया पीड़ितों के प्रति संवेदना की आड़ में मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत के प्रचार प्रसार और पूर्वाग्रहों को हवा देने की मंशा से ऐसी आने लगी के मानो तीतर के हाथ बटेर लग गए। मुख्यधारा का प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक इंग्लिश और हिंदी मीडिया जो अब सरकार का प्रवक्ता बन कर गोदी मीडिया और अपने देश के अन्य अल्पसंख्यकों के विरुद्ध उग्र हिन्दू मीडिया बन चुका है ने, श्रीलंका सरकार की किसी भी आधिकारिक घोषणा के पूर्व ही इस आतंकी हमले के लिए इस्लामी आतंकवाद का नैरेटिव सेट करना शुरू कर दिया। अभी जब श्रीलंका स्वयं इस हमले के लिए अपनी तरफ़ से सुरक्षा व्यवस्था की चूक और तंत्र की नाकामी पर मंथन कर रहा है तो यहाँ अपने देश में न्यूज़ चैनलों के एंकरों ने अपने ही देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय का चरित्र हनन करते हुए उनकी घेराबंदी शुरू कर दी और आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए सम्प्रदायिक विभाजन और ध्रुवीकरण का माहौल बनाना शुरू कर दिया।

लेकिन इससे भी आगे बढ़ कर हमारी चिंता उस तबक़े की प्रतिक्रिया पर है जो बज़ाहिर तो संघी आतंकवाद और दहशत के ख़िलाफ़ मुखर हो कर लिखता है लेकिन मुसलमानों के ताल्लुक़ से उसकी सोच वही पूर्वाग्रही है जिसे संघ परिवार ने कई दशकों की लगातार मेहनत के बाद भारतीय समाज में स्थापित किया है। इस तबके में भारत का खाया पीया अघाया मध्यम वर्ग ज़्यादा है और इस वर्ग की सबसे बड़ी नकरात्मकता ये है के ये वर्ग अपने विवेक और पृष्ठभूमि से ज़्यादा वर्तमान माहौल और पूँजीवादी तंत्र द्वारा खड़े किये गए नैरेटिव से संचालित होता है।

सोशल मीडिया पर कुछ मुस्लिम नाम वाले लेखक भारतीय समाज में इस इस्लामोफोबिया को हवा दे रहे हैं जो निश्चित रूप से भारत जैसे धर्म निरपेक्ष सिद्धांतों पर आधारित देश के एक सफ़ल राष्ट्र बनने की राह में बहुत बड़ा रोड़ा है।  ये बात अब किसी से ढकी छुपी नहीं है के संघ ने बहुत ही चालाकी से मुस्लिम समाज में अपने विध्वंसक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपना रखे हैं और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच नाम का एक संगठन भी बना रखा है जिसमें मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवी से दिखने वाले प्रोफेसर लेखक और शायर तक जुड़े हुए हैं जो वास्तव में घोर अवसरवादी लालची और समाज में फ़ैलते नासूर हैं जिनसे सिर्फ़ मुसलमानों ही नहीं बल्कि इंसानियत को ख़तरा है। जो संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए ऐसी हिंसक घटनाओं का धार्मिक विभाजन कर एक पक्ष द्वारा की गई हिंसा को जायज़ ठहराते हैं और उनका तुलनात्मक विश्लेषण करते हुए मुसलमानों और दलितों के ख़िलाफ़ नफ़रत और द्वेष का माहौल तैयार करते हैं।

लेकिन ये सुखद है कि इस नफ़रत के ख़िलाफ भी देश में खड़े होने वालों की कमी नहीं है। मंगलवार को जमीयत उलेमा हिन्द के तत्वावधान में दिल्ली के कॉस्टिट्यूशन क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता में इन हमलों की निंदा की गयी और इस प्रेस वार्ता में मुस्लिम मजलिस मशावरत, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग, मजलिस उलेमा ए हिन्द, जमात ए इस्लामी हिन्द और ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउन्सिल के प्रतिनिधि मौजूद थे।

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मंगलवार की ही शाम पांच बजे दिल्ली के सैक्रेड हार्ट कैथ्रडल चर्च गोल डाकखाना के सामने यूनाइटेड अगेंस्ट हेट द्वारा श्रीलंका के मृतकों और घायलों के प्रति संवेदना व्यक्त करने के लिए मानव श्रृंखला बनाई गयी जिसमें जमीयत उलेमा हिन्द के राष्ट्रीय महासचिव महमीद मदनी, नेशनल काउन्सिल फ़ॉर चर्चेज़ इन इंडिया के कार्यकारी सचिव फादर अब्राहम मैथ्यू, दिल्ली विश्विद्यालय के प्रोफ़ेसर अपूर्वानंदजमात ए इस्लामी से नुसरत अली, फादर जॉन दयाल  इत्यादि सम्मिलित हुए और पीड़ितों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की।  

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आज श्रीलंका के साथ पूरी दुनिया खड़ी है और निश्चित रूप से ये हमला आतंकवाद से लड़ने को प्रतिबद्ध दुनिया के लिए एक चुनौती है।  साम्राज्यवादी और पूंजीवादी ताक़तें अपने कारोबारी हित साधने के लिए आतंकवाद जैसी गंभीर समस्या को एक सक्सेस टूल के तौर पर इस्तेमाल करती हैं श्रीलंका समुद्री व्यापार का एक अहम केंद्र है और आने वाले छह महीनों में घटने वाली अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और राजनीतिक घटनाएं इसका सबूत देंगी। ये लहू और लाशों का खेल धर्म का नहीं पूंजीवाद का है जिसनें धर्म का आवरण ओढ़ लिया है। श्रीलंका भारत का पड़ोसी कोस्टल क्षेत्र है और ये हमले भारत में भी असर डालेंगे।  हमें और आपको सावधान रहना होगा और एक भारतीय एक इंसान होने के नाते अपने नैतिक दायित्वों को भी समझना होगा।  

(लेखक स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता कर रहे हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

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