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सुप्रीम कोर्ट करेगा संशोधित नागरिकता कानून की संवैधानिक वैधता की जांच

सुप्रीम कोर्ट ने CAA पर केंद्र को नोटिस जारी किया और अगली सुनवाई की तारीख 22 जनवरी 2020 तय की है।
सुप्रीम कोर्ट

संशोधित नागरिकता कानून यानी Citizenship Amendment Act (CAA) को लेकर पूरे देश में घमासान है।

संसद बंद है लेकिन सड़क पर संघर्ष जारी है। ये पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा है और आज बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून की संवैधानिक वैधता की जांच करने का फैसला किया है, हालांकि उसने इस कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

इस कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आने वाले, गैरमुस्लिम शरणार्थियों हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई वर्ग को नागरिकता देने का प्रावधान है।

प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल), कांग्रेस नेता जयराम रमेश, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई की तारीख 22 जनवरी 2020 तय की।

उच्चतम न्यायालय ने संशोधित नागरिकता कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली मुख्य याचिका और कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग करने वाली अन्य याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया।

शीर्ष न्यायालय ने इस निवेदन पर गौर किया कि संशोधित नागरिकता कानून के बारे में नागरिकों के बीच भ्रम की स्थिति है।


पीठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की इस दलील से भी सहमत हुई कि आम जनता को इस कानून के उद्देश्यों और विवरण से अवगत कराया जाना चाहिए।

पीठ ने केन्द्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से कहा कि इस कानून के प्रावधानों के बारे में जनता को जागरूक बनाने के लिये आडियो-वीडियो माध्यम का इस्तेमाल करने पर विचार करें। वेणुगोपाल ने इस सुझाव से सहमति व्यक्त की और कहा कि सरकार इस संबंध में आवश्यक कदम उठायेगी।

इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कुछ याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने नये कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने का अनुरोध किया। अटार्नी जनरल ने इसका विरोध किया और कहा कि कम से कम चार ऐसे फैसले हैं जिनमें यह व्यवस्था दी गयी है कि कानून की अधिसूचना जारी होने के बाद उस पर रोक नहीं लगायी जा सकती। पीठ ने कहा, ‘‘हम इस पर रोक नहीं लगा रहे हैं।’’ पीठ ने कहा कि इस कानून पर रोक लगाने के बारे में सुनवाई की अगली तारीख 22 जनवरी को दलीलें दी जा सकती हैं।

एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि इस कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने का अनुरोध करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह अभी तक लागू नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि इस कानून के तहत अभी नियम बनाये जाने हैं।

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने भी इस कानून को चुनौती दी है। इस दल ने अपनी याचिका में कहा है कि यह कानून संविधान में प्रदत्त समता के मौलिक अधिकार का हनन करता है और इसका मकसद अवैध तरीके से भारत आये शरणार्थियों में से एक वर्ग को धर्म के आधार पर अलग करना है। इस याचिका में नागरिकता संशोधन कानून के क्रियान्वयन के साथ ही विदेशी नागरिक आदेश, 2015 और पासपोर्ट (आगमन के नियम) संशोधन विनियमन 2015 पर अंतिरम रोक लगाने का भी अनुरोध किया है।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस कानून को चुनौती देने वाली अपनी याचिका में कहा है कि क्या भारत में नागरिकता देने या इससे इंकार करते समय धर्म एक पहलू हो सकता है? याचिका में कहा गया है कि इसमें अनेक महत्वपूर्ण कानूनी सवाल न्यायालय के विचारार्थ उठाये गये हैं।

इसके अलावा, राजद के मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी, जमीयत उलेमा-ए-हिन्द, आल असम स्टूडेन्ट्स यूनियन, सिटीजन्स अगेन्स्ट हेट, रिहाई मंच, पीस पार्टी, अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा और कानून के छात्रों ने भी नागरिक संशोधन कानून को चुनौती दी है। 

संसद के शीतकालीन सत्र में नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दी गयी थी। इसके बाद 12 दिसंबर को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने इसे अपनी संस्तुति देकर कानून का रूप प्रदान कर दिया था।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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