यूपी: एसआरएन अस्पताल में कथित गैंगरेप पीड़िता की मौत के बाद पुलिस-प्रशासन कठघरे में क्यों है?
“हम बीते कई दिनों से लगातार इस केस में एफआईआर दर्ज करवाने को लेकर पुलिस के चक्कर काट रहे थे, बावजूद इसके पीड़िता के जीवित रहते कोई मुकदमा नहीं दर्ज नहीं हुआ, उसका बयान तक नहीं लिया गया। उलटा परिवार को धमकाया गया, दबाव बनाया गया। और अब जब पीड़िता ने दम तोड़ दिया तो मुकदमा तो दर्ज हो गया लेकिन इस बीच कई सारे सवाल रह गए।”
ये बयान इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और समाजवादी पार्टी नेता डॉक्टर ऋचा सिंह का है। ऋचा पिछले कई दिनों से प्रयागराज के स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल यानी एसआरएन की कथित गैंगरेप पीड़िता के न्याय के लिए शासन-प्रशासन से गुहार लगा रही थीं, सैकड़ों महिलाओं के साथ आईजी कार्यालय का घेराव कर धरना प्रदर्शन कर रही थीं। ऋचा ने इस पूरे मामले में प्रयागराज आईजी और प्रयागराज सीएमओ की भूमिका को संदिग्ध बताते हुए बिना जांच के मामले को रफा-दफा करने का आरोप लगाया।
पुलिस और अस्पताल प्रशासन मिलकर मामले को गुमराह कर रहे हैं!
न्यूज़क्लिक को ऋचा ने बताया कि शुरुआत से ही पुलिस और अस्पताल प्रशासन मिलकर इस मामले में लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। बलात्कार मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ताक पर रखकर स्वघोषित कमेटी गठित कर देना प्रशासन के मानसिक दिवालियापन और कानून के ज्ञान ना होने का पक्का सबूत है। पुलिस और अस्पताल प्रशासन मामले को रफा-दफा करने पर आमादा थे और अब पीड़िता की मौत के बाद उनकी मुराद पूरी हो गई है।”
मालूम हो कि पीड़ित लड़की को 29 मई को एसआरएन अस्पताल में भर्ती कराया गया था जिसके बाद 31 मई को उसका ऑपरेशन हुआ और इसी दौरान उसके साथ गैंगरेप की खबर सामने आई। सोशल मीडिया पर खबर वायरल होने के बाद 3 जून को सीएमओ और मेडिकल कॉलेज प्रशासन की ओर से पृथक जांच कमेटियां गठित की गईं। जिसके एक दिन बाद ही आई रिपोर्ट में दुष्कर्म के आरोपों को नकार दिया गया।
मामले में सीएमओ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई। पीड़ित लड़की का भाई महिला संगठन कार्यकर्ताओं के साथ आईजी कार्यालय के बाहर धरने पर बैठ गया। आईजी से मिलकर एफआईआर दर्ज कराने की मांग हुई।
8 जून- युवती ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया जिसके तुरंत बाद प्रशासन ने रिपोर्ट दर्ज कर ली। अब इस पूरे घटनाक्रम को लेकर अस्पताल प्रशासन के साथ पुलिस खुद भी सवालों के घेरे में है। अव्वल सवाल तो ये कि पीड़िता के लिखित बयान के बाद भी आखिरकार एफआईआर दर्ज करने में पुलिस ने छह दिन क्यों लग गए? और आखिर किस आधार पर बिना पुलिसिया जांच के अस्पताल प्रशासन को क्लीन चिट दे दी गई थी? अगर मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट ही कानूनन काफी थी मामला नहीं दर्ज करने के लिए तो पीड़िता की मौत के तुरंत बाद रिपोर्ट कैसे और क्यों दर्ज हो गई।
एफआईआर दर्ज न करना, सारे सबूत नष्ट कर देने का मौका देना है!
इस संबंध में डॉ. ऋचा सिंह कहती हैं, “इस तरह प्रयागराज पुलिस प्रशासन द्वारा रेप के आरोप में एफआईआर तक दर्ज न करना सिर्फ क़ानून का उल्लंघन भर नहीं है, ये अस्पताल के कर्मचारियों को सारे सबूत नष्ट कर देने का मौका देना भी है। पुलिस खुद ही कानून के शासन को धता बताते हुए , सुप्रीम कोर्ट के तमाम आदेशों और विशाखा गाइडलाइंस का उल्लंघन कर अपराधियों को संरक्षण दे रही है। महिला सुरक्षा के इतने संवेदनशील केस में आखिर पुलिस किस दबाव में काम कर रही है?”
ऋचा आगे बताती हैं बताती हैं कि क्योंकि आरोप इलाज़ में लापरवाही का नहीं है, मोलेस्टेशन का है इसलिए सीएमओ महोदय को न जांच का अधिकार है और न ही उनकी जांच की कोई कानूनी वैधता है। जांच करने का अधिकार पुलिस को है और आरोप सही हैं या गलत ये तय करना अदालत का काम है लेकिन यहां तो किसी की कोई जरूरत ही नहीं है।
पुलिस का क्या कहना है?
शुरुआत में पुलिस ने इस मामले को ज्यादा तवज्जों नहीं दी। पुलिस का कहना था कि परिवार की तरफ से एफआईआर दर्ज नहीं कराई गई, जबकि पीड़िता का भाई लगातार सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी आप बीती सुना रहा था। इस मामले में पुलिस ने अस्पताल प्रशासन को क्लीन चिट भी दे दी थी।
तीन जून को प्रयागराज आईजी रेंज ने एक ट्वीट कर जानकारी दी, “लड़की को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती किया गया। पांच डॉक्टरों के पैनल, जिनमें दो लेडी डॉक्टर भी थीं, ने उसका ऑपरेशन किया। ऑपरेशन के समय लेडी नर्स और वार्ड बॉय भी थे। लड़की अब पहले से बेहतर है। डॉक्टर्स पर गलत काम का आरोप निराधार है। फिर भी लेडी डॉक्टर्स के पैनल से जांच की जा रही है।”
पुलिस अब पीड़िता की मौत के बाद चार अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करने की बात कह रही है। प्रयागराज के एसएसपी सर्वश्रेष्ठ त्रिपाठी ने मीडिया को बताया कि सोशल मीडिया के जरिए इस घटना की जानकारी मिली थी। जांच कराई गई, चीफ मेडिकल ऑफिसर ने अपनी टीम लगाई। जांच कमेटी और लीगल ओपिनियन के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।
एमबीबीएस छात्रों ने कैंडल मार्च निकाला
उधर, मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के एमबीबीएस के छात्रों ने बलात्कार के आरोपों के खिलाफ एक कैंडल मार्च निकाला। स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय से मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के गेट तक निकाले गए मार्च में छात्रों ने एसआरएन में भर्ती महिला के साथ रेप की घटना को गलत बताया। एमबीबीएस छात्रों ने कहा कि इस तरह से डॉक्टर्स पर निराधार आरोप लगते रहे तो आने वाले दिनों में वे पूरी क्षमता के साथ काम करने में असमर्थ होंगे। इसके पूर्व एमबीबीएस छात्रों ने इस मामले में हाथों में काली पट्टी बांधकर भी विरोध जताया था।
कई अनसुलझे सवाल, जवाब एक भी नहीं!
गौरतलब है कि इस मामले में कई अनसुलझे सवाल हैं जिसके जवाब अभी प्रशासन की ओर से आने बाकी हैं। मसलन, आखिर युवती जब बोल पाने की हालत में भी नहीं थी तो ऐसे में बेवजह इतना संगीन आरोप क्यों लगाएगी। और फिर अगर कुछ हुआ ही नहीं था तो पुलिस ने युवती द्वारा लिखित पर्ची क्यों फाड़ दी। जाहिर है कि उगंली अस्पताल प्रशासन के साथ साथ पुलिस प्रशासन पर भी उठना लाजमी है।
मामले को दबाने की कोशिश
इस मामले को लाइम लाइट में लाने वाले कांग्रेस पार्टी की छात्र इकाई एनएसयूआई से जुड़े अक्षय यादव ने मीडिया को बताया था कि इस मामले में अस्पताल प्रशासन और पुलिस आपस में मिले हुए हैं और मामले को दबाने की कोशिश की जा रही है।
अक्षय यादव ने कहा था कि हंगामा होने के बाद अस्पताल प्रशासन ने ऑपरेशन थियेटर में पीड़िता के ऑपरेशन के दौरान दो महिला डॉक्टरों की मौजदूगी की बात कही है। यह पूरी तरह से झूठ है। अक्षय यादव ने यह भी बताया कि पुलिस ने बिना किसी जांच के ही इस अस्पताल के बयान के आधार पर ट्वीट कर दिया है, जिसमें अस्पताल प्रशासन को क्लीन चिट दे दी गई है।
यादव ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने पहले खुद ही एफआईआर दर्ज न कराने का दबाव बनाया और फिर खुद ही यह भी कहा कि परिवार की तरफ से एफआईआर दर्ज नहीं कराई गई। जबकि पीड़िता के भाई ने तीन जून को ही इस मामले में शिकायती पत्र कोतवाली थाने को दे दिया था।
ऋचा सिंह इस मामले को हाथरस की पुनरावृत्ति बताते हुए कहती हैं, उत्तर प्रदेश में बेटियों के साख खिलवाड़ हो रहा है, सड़कों पर कोई जवाबदेही नहीं है। मुख्यमंत्री का मिशन शक्ति ढ़ोग है।इस मामले में सिर्फ लड़की ने दम नहीं तोड़ा, न्याय ने दम तोड़ा है, बाटियों के सम्मान ने दम तोड़ा है। तथाकथित कलयुग में भगवान के दरवाज़े पर कानून ने सिसक-सिसक कर दम तोड़ा है।“
महिला सुरक्षा ‘रामभरोसे’
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में महिला सुरक्षा के मामले पर लगातार योगी सरकार विफल ही नज़र आती है। ऊपर से बीते कुछ समय में खस्ता कानून व्यवस्था और शासन-प्रशासन की पीड़ित को प्रताड़ित करने की कोशिश, बलात्कार और हत्या जैसे संवेदशील मामलों में एक अलग ही ट्रैंड सेट करता दिखाई पड़ रहा है।
एनसीआरबी के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले में अभी भी पहला स्थान उत्तर प्रदेश का ही है। साल 2019 में देश भर में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले कुल अपराधों में क़रीब 15 फ़ीसद अपराध यूपी में हुए हैं। हालांकि महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश का आंकड़ा राष्ट्रीय औसत से कम रहा है। साल 2019 में इस मामले में देश का कुल औसत 62.4 फ़ीसद दर्ज किया गया जबकि उत्तर प्रदेश में यह 55.4 फ़ीसद ही रहा है।
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