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युद्धोन्माद फैलाना बंद करो कि यूक्रेन बारूद के ढेर पर बैठा है

मॉर्निंग स्टार के संपादक बेन चाकों लिखते हैं सैन्य अस्थिरता बेहद जोखिम भरी होती है। डोंबास में नव-नाजियों, भाड़े के लड़ाकों और बंदूक का मनोरंजन पसंद करने वाले युद्ध पर्यटकों का जमावड़ा लगा हुआ है। यहां समझदारी यही है कि युद्ध के तनाव को कम किया जाए।
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फोटो: ओएससीई

यूक्रेन के मामले में युद्ध का डर बढ़ता जा रहा है। 

इस नाटक में जो मुख्य किरदार थे, वे अब बदले हुए नज़र आ रहे हैं। पहले दिसंबर में यूक्रेन के विदेश मंत्री ओलेक्सी रेज़निकोव ने चेतावनी देते हुए कहा था कि "रूस को ना उकसाने वाली रणनीति काम नहीं कर रही है और आगे भी नहीं करेगी।" उन्होंने दावा किया कि रूस ने 2008 में जॉर्जिया पर इसलिए हमला कर दिया था क्योंकि नाटो ने उसे अपने भीतर शामिल नहीं होने दिया था (हालांकि सच्चाई यह है कि जॉर्जिया ने वह युद्ध शुरू किया था, जब उसने दक्षिणी ओस्सेशिया पर हमला कर दिया था, लेकिन पत्रकारों और राजनेताओं को यह जानकारी अच्छी नहीं लगती है।)

दिसंबर में अमेरिका मामले को बढ़ाना नहीं चाहता था। राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि वे यूक्रेन में सैनिकों की तैनाती नहीं करेंगे और उन्होंने रूसी आक्रमण का सैन्य जवाब देने का विकल्प खारिज़ किया था।

ब्रिटेन में भी यही मत देखने को मिल रहा था, वहां रक्षा सचिव बेन वालेस ने कहा था कि ब्रिटिश सैनिक रूस से यूक्रेन के ऊपर संघर्ष नहीं करेंगे, क्योंकि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं है।

अगर रूस ने यूक्रेन के खिलाफ़ कार्रवाई की भी, तो उसका जवाब प्रतिबंध लगाकर दिया जाएगा। ध्यान रहे रूस ने किसी भी मौके पर यूक्रेन को धमकाया नहीं है।

पिछले सप्ताहांत तक ही रेज़निकोव यूक्रेन के सांसदों को भरोसा दिला रहे थे कि असल में रूसी सेना की कोई हरकत नहीं देखी गई है, और साल भर पहले जितना डर था, अब भी वही स्थिति बनी है। एक फौरी हमले से डर की कोई वज़ह नहीं है।  

बाइडेन के साथ फोन पर बात करने के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोल्दिमिर जेलेंस्की ने तो एक खुल्लेआम प्रेस कॉन्फ्रेंस तक कर दी, जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन को रूसी आक्रमण के बारे में बयानबाजी को कम करने को कहा गया, क्योंकि इससे अफरा-तफरी बढ़ती है, जो व्यापार के लिए खराब है। 

जब उनसे अमेरिका के उस दावे के बारे में पूछा गया, जिसमें कहा गया है कि अगले महीने रूस यूक्रेन पर हमला कर सकता है, तो उन्होंने सवाल टाल दिया। जबकि यूक्रेन के राष्ट्रपति होने के चलते उन्हें मैदान पर स्थिति अमेरिका की तुलना में ज़्यादा पता होगी। 

उन्होंने तो रूस के सैन्य जमावड़े को यूक्रेन से संबंधित होने की बात पर भी आशंका जताई। जेलेंस्की ने कहा कि हमारे पास ऐसा कोई तरीका नहीं है, जिससे कहा जा सके कि यह कोई नियमित होने वाला सैन्य बदलाव नहीं है। 

क्या ब्रिटेन और अमेरिका ने जेलेंस्की की बातों पर ध्यान दिया? उन्होंने तो इनकी तरफ कान तक नहीं किए। 

रविवार सुबह बोरिस जॉनसन कह रहे थे कि रूसी ख़तरे को विफल करने के लिए "ज़मीन, समुद्र और हवा" से पूर्वी यूरोप में फौज़ें भेजी जाएंगी। 

बाइडेन ने कई हज़ार अतिरिक्त सैनिकों को यूरोप में तैनात करने के लिए तैयार कर रखा है। बता दें यूरोप में अमेरिका के दसों हज़ार सैनिक तैनात हैं, नाटो के पोलैंड और सभी तीन बाल्टिक राज्यों में सैन्य अड्डे मौजूद हैं।

जितनी तेजी से यूक्रेन दावा कर रहा है कि उन्हें युद्ध होने का डर नहीं है, अमेरिका और ब्रिटेन उससे ज़्यादा तेजी से युद्ध के लिए तैयार होने की घोषणा कर रहे हैं।

क्या इसका मतलब यह हुआ कि हम यहां "शैडो बॉक्सिंग मैच" देख रहे हैं? रूस अपनी पश्चिमी सीमा के पास सैनिकों की तैनाती करकता है और बेलारूस के साथ सैन्य अभ्यास करता है, ताकि अमेरिका के सामने पिछले महीने रखी गई मांगों पर दबाव बढ़ाया जा सके (जैसे- अपने क्षेत्र के बाहर न्यूक्लियर हथियारों की तैनाती ना करना आदि)।

इस बीच अमेरिका अपने दीर्घकाल के उद्देश्यों के लिए रूस के डर को नित बढ़ावा दे रहा है। इन दीर्घकालीन लक्ष्यों में नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन शामिल है, जिसके बारे में अमेरिका का कहना है कि इससे यूरोप की रूसी गैस पर निर्भरता बढ़ती है, जिससे एक सुरक्षा खतरा पैदा होता है। (ध्यान रहे इस पाइपलाइन के खारिज होने से यूरोप को कहीं और से गैस खरीदनी होगी, वह भी तब जब अमेरिका अपनी शैल गैस निर्यात को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है)।

यूक्रेन भी नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन रोकने के लिए आतुर है, क्योंकि इससे उसे अपने क्षेत्र से गुजरने वाली रूसी गैस पर मिलने वाली परिवहन शुल्क का नुकसान होगा। यूक्रेन की सरकारी ऊर्जा कंपनी नाफटोगाज़ का अनुमान है कि इससे सालाना 3 बिलियन डॉलर का नुकसान होगा। 

यह चीज बताती है कि क्यों जेलेंस्की ने शनिवार को युद्ध के डर को कम बताते हुए भी नॉर्ड स्ट्रीम 2 पर प्रतिबंध लगाने की वकालत की, भले ही रूस हमला करे या ना करे। 

अगर यह सही है, तो यहां यूक्रेन का डर दिखाई दे रहा है। यूक्रेन को लग रहा है कि पूरी स्थिति हाथ से निकलती जा रही है। शुरुआत में यह नीति अपनाई गई थी कि रूस का डर दिखाकर पाइपलाइन को बंद करवाया जाएगा और उन्नत हथियारों तक पहुंच बनाई जाएगी। लेकिन यह पूरी प्रक्रिया इतनी दूर तक बढ़ गई है कि इससे वाकई में युद्ध शुरू हो सकता है, जो ना केवल पूरे यूरोप, बल्कि सभी यूक्रेन के नागरिकों के लिए भी तबाही भरा साबित होगा। लेकिन अगर दोनों ही पक्ष युद्ध नहीं चाहते, तो फिर डर किस बात का है? 

यूक्रेन और पश्चिमी देशों द्वारा प्रदर्शित किया जा रहा कि यह सैन्य दिखावा बेहद ख़तरनाक है। इससे युद्ध होने की संभावना बढ़ जाती है। 

सभी पारंपरिक वज़हों के चलते यह सही है- एक तरफ द्वारा भयादोहन के लिए उठाए गए कदम, दूसरी तरफ को युद्ध के लिए उकसावा लग सकता है। खासतौर पर ब्रिटेन हाल में अपनी सीमा पर हवाई और समुद्री तैनाती के ज़रिए रूस पर अंकुश लगाता रहा है। 

मुख्य शीत युद्ध के दौरान एक से ज़्यादा बार ऐसा हुआ, जब गलतफहमी के चलते दुनिया परमाणु टकराव के कगार पर आ गई। इन टकरावों को उस दौरान पहले मोर्चे पर तैनात साहसी और शांत लोगों के चलते रोकने में सफलता मिली। 

लेकिन आज ब्रिटेन की युद्धोन्मादी संसद में शायद ही कोई यह जोख़िम ले। 

लेकिन यूक्रेन के लिए यहां ख़तरे कई गुना ज़्यादा हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि डोंबास में युद्ध का मतलब सामान्य तरीके से "युद्ध शुरू होना" नहीं होगा। कहा जा सकता है कि वहां पहले से ही युद्ध चल रहा है। 

युद्ध की प्रवृत्ति को देखते हुए कहा जा सकता है कि नए युद्ध पर फिर मॉस्को, कीव या वाशिंगटन किसी का नियंत्रण नहीं होगा। अलगाववादी और स्वशासित पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ डोनेत्सक और लुगांस्क को रूस का समर्थन प्राप्त है, लेकिन उनके सुरक्षाबल, रूसी सेना का हिस्सा नहीं हैं।

फिर दूसरी तरफ तो स्थिति और भी ज़्यादा जटिल है। ब्रिटिश मीडिया खासतौर पर डेली मेल, यूक्रेन में डोंबास में युद्ध के मोर्चे पर स्वयंसेवी नायकों को लेकर उन्मादित है। यहां तक ब्रिटेन की पूर्व सैनिकों के इंटरव्यू तक चलाए जा रहे हैं, जिन्हें एक "समझौते" के तहत यूक्रेन में लड़ाई के लिए भेजा जा सकता है (भाड़े के सैनिक)। 

वहीं डोंबास में कीव की फौज़ें नियमित सैनिक नहीं हैं। 2014 में हुए तख्ता पलट में दक्षिणपंथी ताकतों ने पैदल सैनिक के तौर पर काम किया था। इसी से यह विवाद पैदा हुआ, तबसे यही फौज़ें मोर्चे पर हैं।

इनमें सबसे कुख्यात एजोव बटालियन है, जो 2014 में निर्मित एक नवनाजी ईकाई है। इसके संस्थापक एंड्रिय बिलेत्सकी एक नाजीवादी हैं, जिन्होंने यूक्रेन में "श्वेत नस्लों" के धर्मयुद्ध का आह्वान किया था। इस धर्मयुद्ध का आह्वान "यहूदी नेतृत्व" के खिलाफ़ किया गया था। यूक्रेन के गृहमंत्रालय ने उस साल अर्द्धसैनिक बटालियन के गठन की अनुमति दी थी। एजोव उन्हीं में से एक है। एक दूसरी आइडार बटालियन भी उसी साल बनाई गई थी। इसका भी अति-दक्षिणपंथी संबंध है।

इन ईकाईयों को सम्मान देने के लिए यूक्रेन में नाज़ी समर्थक स्टेपन बांडेरा के इतिहास को दोबारा लिखा गया। उनके द्वारा बनाई गई यूक्रेन की विप्लव सेना, जिसने यहूदियों के नरसंहार में नाजियों की मदद की थी, उसे सोवियत विरोधी देशभक्त के तौर पर पेश किया गया। 

द मॉर्निंग स्टार पर कई बार 2014 के तख़्तापलट के फासीवादी तत्व को बढ़ा चढ़ाकर बताने का आरोप लगता है। क्योंकि कीव की सरकार फासीवादी नहीं है। लेकिन बांडेरा जैसे असल फासीवादियों को सकारात्मक प्रकाश में रखना कहीं ज्यादा ख़तरनाक है। 

2014 की शरद तक एमनेस्टी इंटरनेशनल यूक्रेन सरकार को चेतावनी दे रही थी कि उसने वहां "अपहरण, गैरकानूनी हिरासत, डकैती, वसूली और आइडार बटालियन की एक समिति द्वारा मौत की सजा" जैसे युद्ध अपराधों को दर्ज किया था। रिपोर्ट के मुताबिक़ डोंबास में एक अलगाववादी लड़ाके की मांग को श्वेत राष्ट्रवादी अर्द्धसैनिक बलों द्वारा लड़ाके का सिर एक डिब्बे में बंद कर दिया गया। 

इसके बावजूद उस सितंबर में एजोव बटालियन को यूक्रेन के नेशनल गार्ड में शामिल कर लिया गया। क्या ब्रिटिश स्वयंसेवी या भाड़े के सैनिक इन लोगों के साथ जा रहे हैं? इतना तय है कि इन लोगों ने अतीत में विदेशियों को भर्ती करने की कोशिश की है। 

"होप नॉट हेट" ने 2018 में चेतावनी देते हुए कहा था कि एजोव बटालियन एक मिशएंथ्रोपिक डिवीज़न नाम के ब्रिटिश संगठन के साथ मिलकर अति दक्षिणपंथी ब्रिटिश सामाजिक कार्यकर्ताओं को यूक्रेन में लड़ाई के लिए भर्ती कर रही है। 

इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि मेल पर जिस शख़्स का इंटरव्यू चलाया गया था, वह एजोव बटालियन या किसी दक्षिणपंथी समूह में शामिल हुआ हो।

उसे मारिउपोल के पास तैनात बताया गया, जो एजोव के मुख्यालय के पास है। लेकिन मेल ने यह जानकारी नहीं दी कि किसी यूनिट के साथ यह शख्स काम कर रहा है।  

यूक्रेन के कम्यूनिस्ट नेता पेट्रो सिमोंको का कहना है कि विदेशी लड़ाकों ने यूक्रेन सेना के साथ करार किया है, ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ एजोव जैसी यूनिटें ही उन्हें भर्ती कर रही हैं।

उन्होंने मुझे बताया, "2014 के तख्ता पलट के बाद यूक्रेन दुनियाभर के नव नाजियों का गढ़ बन गया। डोंबास में ही कई देशों से आए लड़ाके स्वयंसेवकों के तौर पर रह रहे हैं। इसमें ब्रिटेन से आए लड़ाके भी हैं।" वह आगे कहते हैं, "वैचारिक नाजियों के अलावा यहां इंसानी सफारी भी हो रही है, जिसके तहत डोंबास में होने वाले युद्ध को अति रोमांच के तौर पर देखने के लिए यह लोग आते हैं।"

"फिर यहां निजी सैनिक कंपनियां भी हैं- इटली के लेटेरा-43 से आए निर्देशक और लड़ाके, हालो ट्रस्ट, ग्रेस्टोन, फिर अमेरिका की "एकेडेमी (जिसे 2009 के पहले ब्लैकवाटर के तौर पर जाना जाता था) से आए लड़ाके और अन्य। यहां नाटो देशों- ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा और अन्य से भी कई आधिकारिक प्रशिक्षक आए हैं।

ब्रिटेन से अतिवादियों के साथ लड़ने के लिए युद्धक्षेत्र में जाने वालों के लिए होने वाले ख़तरे को तो छोड़ देते हैं, वहां से लौटकर आने वाले लड़कों से अलग ख़तरा होता है। हमने देखा कि लीबिया में नाटो के युद्ध से लौटे एक लड़ाके ने मैंचेस्टर एरेना में 2017 में 22 लोगों को मार दिया था। 

यूक्रेन में डोंबास सीमा पेशेवर सैनिकों, नवनाजी अर्द्धसैनिक बलों, गोलबारी पसंद करने वाले मनोरंजन के लिए पहुंचे लोगों, युद्ध पर्यटकों, सलाहकारों से भरी पड़ी है। फिर हाल में युद्ध के डर के चलते वहां पश्चिमी देशों की सेना सीधे पहुंच रही है। 

इस बारूद के ढेर में आग लगाने में ज़्यादा मेहनत नहीं करनी होगी। इसलिए इस संकट से निपटने का सही तरीका सिर्फ़ आपसी टसल को कम करना है। सरकार पर यूक्रेन में सैनिकों की तैनाती को वापस लेने और सेना में भारी हथियारों के साथ स्वयंसेवियों की भर्ती को रोकने का दबाव बनाना होगा।

अच्छी बात यह है कि मिंस्क शांति प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने के लिए रूस और यूक्रेन में बातचीत हो रही है। साफ़ तौर अब यूक्रेन तनाव कम करने के पक्ष में है। अब वक़्त आ गया है कि ब्रिटेन और अमेरिका को वहां से हटाया जाए।

बेन चाको द्वारा लिखित यह लेख पहले मॉर्निंग स्टार में छापा गया था।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

https://peoplesdispatch.org/2022/01/31/stop-the-war-posturing-ukraine-is-a-tinderbox/

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