इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के फीस में 400 % की बढ़ोतरी, छात्रों का फूटा गुस्सा
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के ऑक्सफोर्ड का रुतबा हासिल करने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स गुस्से में हैं और बवाल हो रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने करीब दो हफ्ते पहले बीए, बीएस-सी, बीकॉम, एमए, एमएससी, एमकॉम, एलएलबी, एलएलएम सरीखे सभी पाठ्यक्रमों की फीस में करीब 400 फीसदी की बढ़ोतरी की है। इसका असर उन स्टूडेंट्स पर पड़ेगा, जो सत्र 2022-23 के विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने आएंगे।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 31 अगस्त को 400 फीसदी तक फीस बढ़ाई गई तो स्टूडेंट्स में आक्रोश बढ़ गया। मनमाने तरीके से थोपे गए भारी-भरकम फीस के विरोध में तभी से स्टूडेंट्स आंदोलन चला रहे हैं। विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स पिछले एक हफ्ते से धरने पर बैठे हैं।
19 सितंबर को आंदोलन उस वक्त तेज हो गया जब बड़ी तादाद में स्टूडेंट्स फ़ीस बढ़ोतरी का विरोध में जुलूस की शक्ल में नारेबाज़ी करते हुए कुलपति दफ्तर पर पहुंचे। वो इतने गुस्से में थे कि उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन की कोई बात नहीं सुनी। आंदोलनकारी स्टूडेंट्स का साफ-साफ कहना था कि फीस में बढ़ोतरी बिना शर्त वापस ली जाए। ग्रेजुएट मास मीडिया के अंतिम वर्ष का स्टूडेंट आयुष प्रियदर्शी कुलपति के तिमंजिले दफ्तर में इमारत के सबसे ऊपर चढ़ गया। उनके पास रसोई गैस सिलेंडर और लाइटर भी था। उसने आत्मदाह की चेतावनी दी और विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ नारे भी लगाए।
काफी जद्दोजहद के बाद मौके पर मौजूद सुरक्षा बलों ने स्टूडेंट्स को सुरक्षित उतार लिया। कुलपति ऑफिस की छत पर चढ़े छात्र आयुष का कहना है, "पिछले 15 दिनों से हम छात्र फीस वृद्धि के विरोध में आमरण अनशन कर रहे हैं। लेकिन, विश्वविद्यालय कुलपति हमारी बातों को अनदेखा कर रही हैं। फीस वृद्धि तत्काल वापस नहीं हुई तो जान दे देंगे।"
दूसरी ओर, उसी समय कुलपति दफ्तर के बाहर प्रदर्शन कर रहे कई स्टूडेंट्स ने अपने ऊपर मिट्टी का तेल और पेट्रोल छिड़ककर आत्मदाह करने की कोशिश की तो मौके पर मौजूद सुरक्षाबलों इनकी कोशिशें विफल कर दी। कुलपति दफ्तर पर नारेबाज़ी कर रहे स्टूडेंट्स को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने वॉटर कैनन से पानी की बौछार कराई। साथ ही हलका बल प्रयोग भी किया। आत्मदाह के प्रयास के दौरान पुलिस के साथ हुई झड़प के दौरान धक्का-मुक्की में कई छात्र बेहोश हो गए। स्टूडेंट्स को एंबुलेंस से इलाज के लिए अस्पताल भेजा गया। बड़ी संख्या में मौजूद स्टूडेंट्स ने पुलिस से मुकाबला करते हुए अपने साथियों को छुड़ा लिया।
आत्महत्या की कोशिश करने वाले छात्र आदर्श भदौरिया का आरोप है कि पुलिस उसके परिवार वको प्रताड़ित कर रही है। आदर्श कहते हैं "फीस बढ़ोतरी के विरोध में चल रहे आंदोलन में सक्रिय हुआ है, पुलिस लगातार उसके गांव जा रही है। परिवार वालों को धमकी दी जा रही है। परिवार वालों पर दबाव बनाया जा रहा है कि उसे आंदोलन से वापस बुला लिया जाए, नहीं तो पूरे परिवार को जेल भेज दिया जाएगा।"
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव की बहाली को लेकर फाफी दिनों से धरना दे रहे स्टूडेंट्स लीडर अजय यादव सम्राट ने एक वीडियो जारी कर प्रशासन और विश्वविद्यालय प्रशासन से आग्रह किया है किया है कि फर्जी मामलों में भले ही उसे जेल भेज दिया जाए और मॉर्कशीट व डिग्री रोक ली जाए लेकिन घर वालों को तंग न किया जाए। सम्राट ने कहा, "इलाहाबाद विश्वविद्यालय धमका रहा है कि अनशन खत्म करा दो अन्यथा सारी डिग्री रद कर दी जाएगी। पुलिस भी गैंगस्टर लगाने की धमकी दे रही है। मेरे ऊपर पचास से ज्यादा मुकदमे लादे गए हैं। तीस मर्तबा जेल जा चुका हूं। जब तक फीस वृद्धि को खत्म नहीं होगी, आंदोलन जारी रहेगा। प्रयागराज विकास प्राधिकरण और पुलिस की टीम ने हमारे घर की वीडियोग्राफी कराई है। मेरे बुजुर्ग पिता को धमकी दी जा रही है कि अपने बेटे को यूनिवर्सिटी से घर बुला लो, वरना बुलडोजर चल जाएगा। मेरा परिवार सहमा हुआ है। हम छात्र हित की आवाज उठा रहे हैं, जो कार्रवाई करनी है, वह मेरे ऊपर की जाए।"
विश्वविद्यालय ने दी सफाई
विश्वविद्यालय ने अधिकारिक ट्वीटर पर देश के कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ली जाने वाली फीस की तुलना करते हुए एक मैसेज जारी किया गया है। ट्वीट के मुताबिक़, "इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ग्रेजुएशन में दाखिला लेने वाले स्टूडेंट्स की मौजूदा सालाना फीस 975 रुपये है, जिसे बढ़कर अब 3901 रुपये कर दिया गया है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से फीस की तुलना की जाए तो वहां हर ग्रेजुएशन के हर स्टूडेंट्स को सालाना 3420 रुपये अदा करने पड़ते हैं। हालांकि हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन कोर्स के लिए हर स्टूडेंट्स से 10 हज़ार, कश्मीर सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 5700 रुपये और केरल में करीबन नौ हजार रुपये फीस वसूली जाती है।"
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ट्यूशन फीस के साथ ही कई दूसरे मदों जैसे परीक्षा शुल्क, बिल्डिंग मेंटेनेंस, पुअर ब्वायज़ फंड, स्पोर्ट्स, लाइब्रेरी, आई कार्ड, मार्कशीट के शुल्क मिलाकर सालाना कुल 975 रुपये लिए जाते थे। प्रैक्टिकल के लिए लैब की फीस 145 रुपये अलग से देनी होती थी। ग्रेजुएशन यानी बीए, बीएस-सी और बी-कॉम के स्टूडेंट्स को अब 975 रुपये के बदले सालाना 3901 रुपये देने होंगे। प्रैक्टिकल फीस को 145 रुपये से बढ़ाकर 250 रुपये कर दिया गया है। इसी तरह एमएससी की फीस 1561 रुपये से बढ़ाकर 4901 कर दी गई है। एमएससी की फीस 1861 से बढ़कर 5401, एमकॉम की 1561 से बढ़कर 4901, तीन साल के एलएलबी की फीस 1275 से 4651, एलएलएम की फीस 1561 से बढ़कर 4901 और पीएचडी की सालाना फीस 501 से बढ़ाकर 15300 रुपये सालाना हो जाएगी। पीएचडी की फीस करीब तीस गुना तक बढ़ जाएगी।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में ग्रेजुएशन करने वाले स्टूडेंट्स को 9125 रुपये सालाना फीस देनी पड़ती है। अगर स्टूडेंट्स हॉस्टल में रह रहे हैं तो उन्हें 11,275 रुपये शुल्क देना पड़ता है। पोस्ट ग्रेजुएशन में स्टूडेंट्स को 9680 रुपये देने पड़ते हैं। साल 2005-2006 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्याय में पढ़ने वाले ग्रेजुएशन के स्टूडेंट्स को 4000 रुपये और पोस्ट ग्रेजुएशन के स्टूडेंट्स को 5000 रुपये जमा करने पड़ते थे।
फीस के मुद्दे पर सियासत
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पब्लिक रिलेशन अधिकारी जया कपूर चड्ढा मीडिया से कहती हैं, "साल 1922 से यहां शिक्षण शुल्क सिर्फ 12 रुपय है। इसमें कुछ अन्य शुल्क मिलाकर सिर्फ 975 रुपये सालाना लिया जाता है। ऐसे में विश्वविद्यालय को अपना खर्च चला पाना कठिन हो गया था। बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाएं देने लिए शुल्क वृद्धि के अलावा हमारे पास कोई उपाय नहीं है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने दूसरे विश्वविद्यालयों में फीस स्ट्रक्चर का अध्ययन करने के बाद स्टूडेंट्स हितों को समझा गया। दूसरे केंद्रीय विश्वविद्यालयों की तरह ही यहां फीस बढ़ाई गई है।"
पीआरओ जया के मुतूबिक, "फीस बढ़ोतरी को लेकर जो भी स्टूडेंट्स आंदोलन कर रहे हैं वो दूसरी चीजों में संलिप्त हैं। ज्यादातर सस्पेंडेड स्टूडेंट्स आंदोलन के जरिए विश्वविद्यालय में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। यहां के कई पुराने स्टूडेंट्स भी शामिल हैं, जो सिर्फ राजनीति चमकाने के लिए आंदोलन को हवा दे रहे हैं। ये वो स्टूडेंट्स हैं जिन पर कई बार सख्त एक्शन हो चुके हैं। विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर (कुलानुशासक) प्रो. हर्ष कुमार ने फीस बढ़ोतरी का विरोध कर रहे 15 स्टूडेंट्स के खिलाफ कर्नलगंज थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई है। वहीं, 100 अज्ञात लोग नामजद हैं।''
इलाहाबाद की कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव विभिन्न कोर्सेज में हुई शुल्क वृद्धि को जायज बताती हैं। वह कहती हैं, "बिजली के बिल बढ़ गए हैं। कम शुल्क में दूसरी सुविधाएं जुटा पाना आसान नहीं रह गया था। बेहतर शिक्षा और इंफ्रास्टक्चर न होने के कारण उच्च शिक्षा संस्थान ख़राब हो रहे हैं। निजी संस्थान हम पर भारी पड़ते जा रहे हैं। वो ज्यादा शुल्क लेते हैं। उनके मुकाबले तो हमारी फीस कतई ज्यादा नहीं है। गौर करने की बात है जि जिन संस्थानों ने कम फीस ली, वे समय के साथ गर्त में मिल गए।"
कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव ने स्टूडेंट्स और उनके पैरेंट्स को समझाने के लिए एक खुला पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने शुल्क वृद्धि को वाजिब बताया है। पत्र में कहा है, "पिछले कई दशकों से प्रति छात्र प्रति वर्ष फीस 975 रुपये थी। इसे अगर आप 12 महीनों में बांटते हैं तो यह 81 रुपये प्रति माह हो जाती है। विश्वविद्यालय ने सालाना फीस को बढ़ाकर 4151 रुपये कर दिया है। यदि इसे 12 महीनों में बांटा जाए है तो यह सिर्फ 333 रुपये प्रति माह हो जाता है। कई बार विचार-विमर्श और निर्णय के बाद वित्त समिति, शैक्षणिक परिषद और कार्यकारी परिषद कठिन प्रक्रिया से गुजरी है।"
पत्र में कहा गया है, "अफवाह फैलाई जा रही है कि 400 गुना वृद्धि हुई है जो सही नहीं है। 30 से 40 स्टूडेंट्स झूठ फैला रहे हैं और वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शैक्षणिक माहौल को खराब करने की कोशिश में जुटे हैं। स्टूडेंट्स की शिकायत निराधार है। तिल से पहाड़ बनाया जा रहा है और शिक्षा के एक बड़े केंद्र को नष्ट किया जा रहा है। कुछ स्वार्थी तत्व फीस के मुद्दे पर सियासत कर रहे हैं। स्टूडेंट्स को गुमराह करने और गलत सूचना फैलाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है।"
"स्टूडेंट्स को खुद से जांचना होगा कि कौन से शिक्षण संस्थान 333 रुपये प्रति माह के कम फीस पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहे हैं। फीस केवल पिछले दशकों में हुई मंहगाई से निपटने के लिए बढ़ाई गई है। वह भी इसलिए क्योंकि अज्ञात कारणों से इसे हर साल देश में मंहगाई की दर के अनुसार नहीं बढ़ाया गया था। मैं केवल सही तथ्यों को रिकॉर्ड में रखना चाहती हूं और अनुरोध करती हूं कि पहले का यह पश्चिम का ऑक्सफोर्ड अद्वितीय है, अब यह अपने अधिकांश विभागों में विश्व स्तर के संकाय में समृद्ध है। इसे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना और इसकी गरिमा बनाए रखना जारी रखें।"
गरीब स्टूडेंट्स पर पड़ेगा असर
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में करीब 35 हज़ार स्टूडेंट्स पढ़ते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में देश भर छात्र सिर्फ इसीलिए दाखिला लेने आते थे कि यहां फीस का खर्च दूसरे विश्वविद्यालयों से कम था। इस विश्वविद्यालय में अस्सी फीसदी स्टूडेंट्स आंचलिक परिवेश के होते हैं, जिनके लिए बढ़ी हुई फ़ीस दे पाना आसान न हीं है। फीसद में भारी बढ़ोतरी किए जाने से बाद बहुत से स्टूडेंट्स पढ़ाई छोड़ देंगे और अपने घर लौटने के लिए बाध्य होंगे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्टूडेंट्स संगीता शर्मा कहती हैं, " विश्वविद्यालय को कमाई का जरिया नहीं बनाया जाना चाहिए। चार सौ गुना फीस बढ़ोतरी का सबसे ज्यादा असर उन छात्राओं पर पड़ेगा जो किसी तरह से इलाहाबाद में रहकर पढ़ाई कर रही थीं। वैसे भी सामान्य तौर पर पढ़ाई के मामले में बेटियों को कम प्राथमिकता दी जाती है। हमें लगता है कि फीस बढ़ोतरी के बाद तमाम लड़कियों की पढ़ाई छूट जाएगी। गरीब तबके के लोग भार-भरकम फीस नहीं दो पाएंगे और अपनी बेटियों को घर में ही रोक लेंगे। ऐसी स्थिति में सिर्फ आर्थिक रूप से संपन्न घरों की लड़कियां ही इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मोटी फीस देकर पढ़ पाएंगी। कोविड महामारी के दौर में बहुत से स्टूडेंट्स ऑनलाइन पढ़ाई के लिए मोबाइल फोन नहीं खरीद पाए थे। अचानक हुई फीस वृद्धि के बाद वो अपनी शिक्षा आखिर कैसे जारी रख पाएंगे?"
एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष और छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है, "इलाहाबाद विश्वविद्याय कोई मॉल तो है नहीं कि आप यहां आचार, मट्ठा बेच रहे हैं। विश्वविद्यालय से जो स्टूडेंट्स पढ़कर निकलते हैं, वही आगे चल कर अधिकारी बनते हैं। अगर आप इसे धनउगाही की नजर से देखेंगे, तो अपने लक्ष्य से भटक जाएंगे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की हॉस्टल फीस पूरे देश में सबसे महंगी है। कुलपति मैडम का लड़का तो बाहर की यूनिवर्सिटी में पढ़ता है, यहां गरीब घर के लड़के आते हैं। वह तो आ ही नहीं पाएंगे।"
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फीस में बढ़ोतरी और स्टूडेंट्स आंदोलन पर कोई भी टीचर जुबान खोलने के लिए तैयार नहीं है। हालांकि ‘आफ द रिकार्ड’ एक प्रोफे़सर ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, "पिछले चार दशक से फीस बढ़ाने की कोशिश हुईस लेकिन स्टूडेंट्स के कड़े विरोध के चलते विश्वविद्यालय प्रशासन कामयाब नहीं हो सका। सरकार ने विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया है कि सभी फंड का इंतज़ाम उन्हें खुद करना होगा। विश्वविद्यालयों का सरकार पर जरूर कम होगी, लेकिन गरीब स्टूडेंट्स की मुश्किलें जरूर बढ़ जाएंगी। आर्थिक आधार पर नियम बनाया जाना चाहिए, ताकि गरीब तबके के स्टूडेंट्स पढ़ाई छोड़ने के लिए विवश न हो सकें।"
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स आंदोलन को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख मायावती, शिवपाल सिंह यादव, राष्ट्रीय लोकदल समेत कई संगठनों ने समर्थन दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि बढ़ाई गई फीस उन स्टूडेंट्स से वसूला जाना चाहिए जो समर्थ हैं। जिन स्टूडेंट्स की माली हालत ठीक नहीं है, उनकी पूरी फीस माफ़ होनी चाहिए।
नामचीन हस्तियों से रहा है नाता
साल 1866 में तत्कालीन संयुक्त प्रांत के गवर्नर विलियम म्योर के नाम पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। पहले इसका नाम म्योर कॉलेज हुआ करता था, जो आगे चलकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ। कालांतर में इसे पूर्वांचल का 'ऑक्सफोर्ड' कहा जाने लगा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय जहां गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने के लिए मशहूर हुआ, वहीं इसकी भव्य इमारत आकर्षण का केंद्र बनी। इस विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए पहली मर्तबा प्रवेश परीक्षा साल 1889 में हुई। नामचीन विश्वविद्यालयों में से एक इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने देश को कई बड़ी हस्तियां भी दी है। इन हस्तियों में विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बने। इसी विश्वविद्यालय से अध्ययन करने के बाद सूर्य बहादुर थापा नेपाल के प्रधानमंत्री बने।
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के एलुमनाई की लिस्ट में कई राज्यों के मुख्यमंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और प्रशासनिक पदों पर पहुंचने वाले स्टूडेंट्स की संख्या भी बहुतायत में है। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी व दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे मदन लाल खुराना, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके विजय बहुगुणा और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे डॉक्टर अर्जुन सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी।
थम नहीं रहा स्टूडेंट्स आंदोलन
इलाहाबाद विश्वविद्याय में शुल्क वृद्धि को लेकर स्टूडेंट्स का आंदोलन लगातार उग्र होता जा रहा है। शुल्क वृद्धि का विरोध तो तभी से शुरू हो गया था जब यहां इसकी सुगबुगाहट शुरू हुई थी। एक नजर डालने पर पता चलता है कि स्टूडेंट्स आंदोलन के फिलहाल थमने के आसार नहीं हैं।
06 सितंबरः फीस वृद्धि के विरोध में स्टूडेंट्स आयुष प्रियदर्शी, अभिषेक यादव, राहुल सरोज, मनजीत पटेल और गौरव गौड़ आमरण अनशन पर बैठे।
07 सितंबरः इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिसर में हजारों स्टूडेंट्स ने पैदल मार्च किया और जमकर नारेबाजी की।
08 सितंबरः फीस वृद्धि के विरोध में स्टूडेंट्स लीडर ने बैठक कर निर्णय लिया कि यदि फीस में कमी नहीं की गई तो वो सामूहिक रूप अपनी जान की आहूति देंगे।
09 सितंबरः एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष और छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष अखिलेश यादव के नेतृत्व में स्टूडेंट्स ने अधिष्ठाता छात्र कल्याण को दो घंटे तक बंधक बनाया।
10 सितंबरः अनशनरत छात्र गौरव गौड़ की हालत बिगड़ी। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। फिर स्टूडेंट्स ने आक्रोश मार्च निकालने की रणनीति बनाई।
11 सितंबरः विश्वविद्यालय परिसर में सैकड़ों स्टूडेंट्स ने आक्रोश मार्च निकाला। अनशनरत छात्र मनजीत और राहुल सरोज की हालत बिगड़ी और दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया गया।
13 सितंबरः सपा प्रमुख अखिलेश यादव, राष्ट्रीय लोक दल और छात्र संगठन ने समर्थन दिया।
14 सितंबरः आम आदमी पार्टी का समर्थन भी मिला।
15 सितंबर - स्टूडेंट्स ने मशाल जुलूस निकाला।
16 सितंबरः प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर स्टूडेंट्स का समर्थन दिया। शिवपाल के पार्टी के कार्यकर्ताओं ने समर्थन दिया। अनुराग यादव नामक छात्र की हालत बिगड़ी।
17 सितंबरः स्टूडेंट्स लीडर्स ने बैठक कर अगली रणनीति बनाई।
18 सितंबरः स्टूडेंट्स ने भैंस के आगे बीन बजाया और विरोध प्रदर्शन किया। स्टूडेंट्स ने गधा लेकर प्रदर्शन किया।
19 सितंबरः स्टूडेंट आदर्श भदौरिया ने मिट्टी का तेल छिड़ककर आत्मदाह का प्रयास किया।
20 सितंबरः स्टूडेंट्स ने उग्र प्रदर्शन किया। एक छात्र ने मिट्टी का तेल पी लिया और दूसरे ने कुलपति दफ्तर के छत पर चढ़कर कूदने का प्रयास किया।
21 सितंबरः कुलपति दफ्तर के बाहर स्टूडेंट्स ने वीसी का प्रतीकात्मक पुतला दहन किया।
22 सितंबरः छात्रसंघ के गेट का ताला तोड़ा। चीफ प्राक्टर प्रो. हर्ष कुमार के साथ स्टूडेंट्स की हाथापाई।
23 सितंबरः स्टूडेंट्स ने फीस वृद्धि के खिलाफ सामुहिक मुंडन किया और पिंडदान किया। अखिलेश यादव ने विधानसभा में यह मुद्दा उठाया।
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