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कीटनाशक प्रदूषण के जोखिम की ज़द में विश्व के 64% कृषि क्षेत्र

जिन क्षेत्रों को ज़्यादा ख़तरा है, उनमें 34% क्षेत्र उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा, उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों का 19% निम्न और निम्न मध्यम आय वाले देशों में हैं। जबकि पांच प्रतिशत उन क्षेत्रों से सम्बन्धित हैं जहाँ पानी की ज़्यादा कमी है।
कीटनाशक प्रदूषण के जोखिम की ज़द में विश्व के 64% कृषि क्षेत्र
प्रतीकात्मक फ़ोटो: साभार: पिनटेरेस्ट

कीटनाशक न सिर्फ़ स्वास्थ्य से जुड़ी समस्यायें पैदा करते हैं बल्कि ये पर्यावरण के लिए भी ख़तरा हैं। नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित एक अध्ययन का मानना है कि खेतीबाड़ी में कीटनाशकों के इस्तेमाल के चलते प्रदूषण का ख़तरा बढ़ गया है। इस अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया की तक़रीबन 64% कृषि क्षेत्र कीटनाशक प्रदूषण के चलते ख़तरे में हैं और उस भूमि का 31% क्षेत्र ज़्यादा जोखिम की ज़द में है। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा आयोजित इस अध्ययन में 168 देशों को शामिल किया गया था।

ख़ास तौर पर एशिया में इस प्रदूषण के उच्च जोखिम वाले सबसे ज़्यादा कृषि क्षेत्र है। चीन, जापान, मलेशिया, फ़िलीपींस जैसे एशियाई देश, जिनमें से कुछ देश खाद्य कटोरे माने जाते हैं और एक बड़ी आबादी का पेट भरते हैं, वे कीटनाशक प्रदूषण के उच्च जोखिम वाले देशों में शामिल हैं।

द नेचर के इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में 34% उच्च जैव विविधता से जुड़े हुए क्षेत्र हैं। इसके अलावा, उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों का 19% निम्न और निम्न मध्यम आय वाले देशों में है, जबकि पांच प्रतिशत उन क्षेत्रों से सम्बन्धित हैं, जहाँ पानी की ज़्यादा कमी है।

इस अध्ययन में 168 देशों को शामिल किया गया है और कीटनाशक प्रदूषण के जोखिम का सामना कर रहे देशों को चिह्नित करते हुए एक वैश्विक मानचित्र तैयार किया गया है।

फ़ोटो: साभार: डाउन टू अर्थ

इस अध्ययन के अग्रणी लेखक और सिडनी विश्वविद्यालय में एक रिसर्च एसोसिएट फ़ियोना तांग को उद्धृत करते हुए कहा गया है, “हमारे अध्ययन से पता चला है कि दुनिया की 64% कृषि योग्य भूमि पर कीटनाशक प्रदूषण का ख़तरा है। यह इसलिए अहम है क्योंकि इस व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया है कि कीटनाशक प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।”

कृषि क्षेत्रों में इस्तेमाल किये जाने वाले कीटनाशक सतह और भू-जल दोनों में मिल जाते हैं जिससे जल निकाय प्रदूषित हो जाते हैं। इसका लगातार होता इस्तेमाल जल निकायों से मिलने वाले पानी की उपयोगिता को कम कर देता है।

इस अध्ययन में इस बात की चेतावनी दी गयी है कि कीटनाशकों के बेहद इस्तेमाल से पारिस्थितिक तंत्र असंतुलित हो सकता है और वे जल स्रोत तबाह हो सकते हैं जिन पर मनुष्यों और अन्य जानवरों का अस्तित्व निर्भर है।

“स्कूल ऑफ़ सिविल इंजीनियरिंग और सिडनी इंस्टीट्यूट ऑफ़ एग्रीकल्चर में एक एसोसिएट प्रोफ़ेसर और इस अध्ययन के लेखकों में से एक फेडेरिको मैगी का कहना है, “हालांकि, ओशिनिया के कृषि क्षेत्र कीटनाशक प्रदूषण के सबसे कम जोखिम वाले क्षेत्र हैं, जबकि ऑस्ट्रेलिया का मर्रे-डार्लिंग बेसिन इस लिहाज़ से एक उच्च जोखिम वाला क्षेत्र माना जाता है। दोनों क्षेत्र पानी की कमी की समस्याओं से जूझ रहे हैं और दोनों ही उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्र हैं।”

वैश्विक आबादी में वृद्धि और इसकी वजह से होने वाली वैश्विक खाद्य मांग में होने वाली बढ़ोत्तरी के चलते वैश्विक स्तर पर कीटनाशक के इस्तेमाल के बढ़ने की संभावना है। यह ग्लोबल वार्मिंग और मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन से भी जुड़ा हुआ है। ग्लोबल वार्मिंग में हो रही बढ़ोत्तरी के साथ कीटों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने जा रही है और इससे कृषि क्षेत्रों पर इन कीटों के हमले भी बढ़ने जा रहे हैं। कीटों के इस बढ़ते हमले से निपटने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा कीटनाशकों के इस्तेमाल किये जाने की संभावना है।

इस अध्ययन के लेखकों ने एक ज़्यादा स्थायी कृषि मॉडल को लेकर एक ऐसी वैश्विक रणनीति का आह्वान किया है, जो कि कीटनाशक के इस्तेमाल को रोक पाये और उन्होंने खाद्य अपव्यय पर लगाम लगाने की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे

Study Says 64% of World’s Farmland at Risk of Pesticide Pollution

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