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चले चलो कि वो मंज़िल अभी नहीं आई...

फ़ैज़ ने एक नहीं ऐसी तमाम नज़्में-ग़ज़लें कहीं हैं जो हमारे हुक्मरां, हमारे शासक को परेशान करती हैं, चुनौती देती हैं, सवाल पूछती हैं। ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं उन्हीं की ऐसी ही एक नज़्म ‘सुब्ह-ए-आज़ादी’
Faiz Ahamad faiz

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ यह वह नाम है जो इन दिनों उनके मुंह पर भी है जिनका इल्म-ओ-अदब से कभी वास्ता नहीं रहा। हिन्दुस्तान, पाकिस्तान समेत तमाम दुनिया के इस महबूब शायर की एक नज़्म हमारे देश में प्रतिरोध की आवाज़ बनी हुई है। वो नज़्म है ....हम देखेंगे, जो इन दिनों नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हर आंदोलनकारी की ज़ुबान पर है। कुछ लोगों को इससे एतराज़ है और वो इसकी जांच भी कर रहे हैं कि यह नज़्म क्या हिन्दू विरोधी हैचलो इसी बहाने उन्हें कुछ पढ़ने-समझने का मौका मिलेगा।

हमारे फ़ैज़ ने ऐसी एक नहीं तमाम नज़्में-ग़ज़लें कहीं हैं जो हमारे हुक्मरां, हमारे शासक को परेशान करती हैं, चुनौती देती हैं, सवाल पूछती हैं। सन् 1947 में आज़ादी के तुरंत बाद उन्होंने बंटवारे और नए बने मुल्क़ पाकिस्तान का हाल देखकर पूछा था कि वो इंतज़ार था जिसकाये वो सहर तो नहीं...। इतवार की कविता में पढ़ते हैं उन्हीं की यही नज़्म :

सुब्ह-ए-आज़ादी

 ये दाग़-दाग़ उज़ालाये शब गज़ीदा सहर

वो इंतज़ार था जिसकाये वो सहर तो नहीं

 

ये वो सहर तो नहीं कि जिसकी आरज़ू लेकर

चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहीं

फ़लक के दश्त में तारों की आखिरी मंज़िल

कहीं तो होगा शब-ए-सुस्त मौज का साहिल

कहीं तो जाके रुकेगा सफ़ीना-ए-ग़म-ए-दिल

 

जवाँ लहू की पुर-असरार शाहराहों में

चले जो यार तो दामन पे कितने दाग़ पड़े

पुकारती रहीं बाहेंबदन बुलाते रहे

बहुत अज़ीज़ थी लेकिन रुखे-सहर की लगन

 

बहुत करीं था हसीना-ए-नूर का दामन

सुबुक सुबुक थी तमन्नादबी-दबी थी थकन

सुना है हो भी चुका है फ़िराके ज़ुल्मत-ओ-नूर

सुना है हो भी चुका है विसाले-मंज़िल-ओ-गाम

 

बदल चुका है बहुत अहले दर्द का दस्तूर

निशाते-वस्ल हलाल-ओ-अज़ाबे-हिज़्र हराम

जिगर की आगनज़र की उमंगदिल की जलन

किसी पे चारे हिज़्राँ का कुछ असर ही नहीं

कहाँ से आई निग़ारे-सबा किधर को गयी

अभी चिराग़े-सरे-रह को कुछ खबर ही नहीं

 

अभी गरानी-ए-शब में कमी नहीं आई

निज़ाते-दीदा-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई

चले चलो कि वो मंज़िल अभी नहीं आई

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