NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
शिक्षा
समाज
भारत
राजनीति
तीन-भाषा फार्मूले का चौतरफ़ा विरोध, सरकार ने मसौदे में संशोधन किया
तीन भाषा फार्मूले के तहत कक्षा आठ तक 3 भाषाएं पढ़ाने की बात हो रही है,जिसमें क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के अलावा बच्चों को हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने की सिफारिश की गई है।
मुकुंद झा
03 Jun 2019
Education
फोटो साभार: NDTV

दक्षिणी राज्यों और कई अन्य गैर हिंदी भाषी राज्यों से विरोध के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एचआरडी) ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) मसौदे में सुधार किया है।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रहे प्रकाश जावड़ेकर ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के लिए के. कस्तूरीरंगन समिति गठित की थी। समिति की रिपोर्ट शुक्रवार को जारी हुई। इसमें त्री-भाषा के फार्मूले को लागू करने का सुझाव दिया गया है। इस त्री यानी तीन भाषा फार्मूले के तहत कक्षा आठ तक 3 भाषाएं पढ़ाने की बात हो रही है,जिसमें क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के अलावा बच्चों को हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने की सिफारिश की गई है। हालांकि समिति ने सुझाव दिया है कि हिंदीभाषी राज्यों में हिंदी और अंग्रेजी के साथ देश के अन्य हिस्सों की 'आधुनिक भारतीय भाषाओं' में से किसी एक को पढ़ाया जाए। लेकिन, समिति ने यह साफ नहीं किया कि आधुनिक भारतीय भाषा से उसका क्या अभिप्राय है। तमिल को केंद्र सरकार ने क्लासिकल भाषा का दर्जा दिया हुआ है।

एनईपी आलोचकों का कहना है कि त्रिभाषा फार्मूले के जरिये गैर हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपी जा रही है। ये देश की विविधता को खत्म करने की साज़िश है।

अब इस विवादित पैराग्राफ का शीर्षक 'त्रिभाषा फार्मूला में लचीलापन' दिया गया है। इसमें कहा गया है कि छात्र जो तीन भाषाओं में से एक या दो में बदलाव करना चाहते हैं, वे ऐसा कक्षा 6 या 7 में कर सकते हैं।

यह संशोधन नीति के मसौदे में किया गया है और 30 जून तक जनता के सुझावों के लिए मंत्रालय की वेबसाइट पर रखा गया है। मसौदा नीति में यह भी कहा गया है कि तीन भाषा फार्मूला देश भर में लागू करने की जरूरत है। ऐसा बहुभाषी देश में बहुभाषा संचार क्षमताओं के लिए जरूरी है।

इसमें कहा गया, "इसे कुछ राज्यों,विशेष रूप से हिंदी-भाषी राज्यों में बेहतर तरीके से लागू किया जाना चाहिए। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकीकरण के लिए है, हिंदी-भाषी क्षेत्रों के स्कूलों को देश के अन्य हिस्सों की भाषाओं को सिखाना चाहिए।"

सरकार द्वार किये गए इस संशोधन के बाद भी विरोध कम नहीं हुआ है,नई शिक्षा नीति के तीन भाषा फॉर्मूले को लेकर कई राज्य जो हिंदी भाषी नहीं हैं वो इसका विरोध कर रहे हैं। खासकर तमिलनाडु सहित दक्षिण भारत में हिंदी का विरोध शुरू हो गया है। इसको लेकर माहौल काफी गर्म है,इसी कारण केंद्र सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा और उसने अपने निर्णय में सुधार किया है लेकिन अभी विरोध कर रहे लोगों का कहना है की नई शिक्षा नीति के मसौदे से लोग नाराज हैं। इसको लेकर लोग  सोशल मीडिया पर भी लोग अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। 

ट्विटर पर #StopHindiImposition काफी लंबे समय तक ट्रेंड कर रहा था। 

इस विरोध को देखते हुए तमिलनाडु सरकार ने शनिवार को ही कहा कि वो 2 भाषाओं की नीति का पालन करेंगे और राज्य में सिर्फ़ तमिल और अंग्रेजी ही लागू होगी। डीएमके नेता कनीमोई ने कहा कि हम किसी भाषा के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन हिंदी थोपने का विरोध करेंगे। डीएमके ने कहा कि तमिलनाडु में 1968 से सिर्फ दो भाषा का फॉर्मूला है, जिसमें छात्रों को विद्यालय में अंग्रेजी और तमिल पढ़ाया जाता है।

वहीं अभिनेता और नेता कमल हासन ने कहा कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जा सकता है। टीटीवी दिनाकरन ने कहा है कि केंद्र को ये नीति नहीं लानी चाहिए, इससे विविधता ख़त्म होगी। उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले से हम दूसरे दर्जे के नागरिक बन जाएंगे।

दक्षिण भारत में हिंदी का विरोध पहले भी हुआ है इसमें सबसे आक्रमक और उग्रता से तमिलनाडु में विरोध का एक लंबा इतिहास रहा है। राज्य में पहली बार ये विरोध 1937 में हुआ था। इसके बाद 1946 से 1950 के बीच कई प्रदर्शन हुए जिनके केंद्र में हिंदी ही थी। तब से लेकर अब तक राज्य में न जाने कितने ही हिंदी विरोधी प्रदर्शन हुए हैं। वहीं, नई शिक्षा नीति में हिंदी की वकालत किए जाने के ख़िलाफ़ तमिलनाडु के लोग सोशल मीडिया पर विरोध शुरू कर चुके हैं।

सरकार बचाव की मुद्रा में

इस पूरे विवाद को लेकर सरकार बचाव की मुद्रा में है। इस नीति का बचाव करने के लिए कई केंद्रीय मंत्रियों सहित कई अन्य भाजपा नेताओं को आगे लाया गया, लेकिन उसके कई नेता ऐसे बयान दे रहे हैं जिससे सरकार की मुशिकले और बढ़ रही हैं। ऐसा ही एक बयान कर्नाटक से इस बार चुनकर आये भाजपा के सांसद तेजस्वी सूर्य ने दिया। उन्होंने हिंदी भाषा का विरोध करने वालों को देश का विरोधी बता दिया। लेकिन पार्टी ने इसे उनका निजी बयान बताकर डेमेज कंट्रोल की कोशिश की।

शिक्षा नीति के मसौदे पर आक्रोश को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार को कहा कि इस मुद्दे पर अंतिम फैसला लिए जाने से पहले राज्य सरकारों से परामर्श लिया जाएगा। जयशंकर की प्रतिक्रिया इस मुद्दे पर टि्वटर यूजर के एक सवाल के जवाब में आयी है।

जयशंकर ने ट्वीट किया "एचआरडी मंत्री को सौंपी गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति महज एक मसौदा रिपोर्ट है। आम जनता से प्रतिक्रिया ली जाएगी। राज्य सरकारों से परामर्श किया जाएगा। इसके बाद ही इस मसौदा रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाएगा। भारत सरकार सभी भाषाओं का सम्मान करती है। कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी।”

उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने रविवार को सभी घटकों से आग्रह किया है कि वे जल्दबाजी में प्रतिक्रिया व्यक्त करने के बदले पूरी रिपोर्ट को पढ़ें।

नए सिरे से मसौदा पेश करने की मांग 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में हिंदी पढ़ाने की सिफारिश को लेकर उठ रहे विवादों के बीच मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने कहा कि इस तरह जोर-जबरदस्ती से हिंदी को थोपने से "भाषायी वर्चस्व " की भावना को बढ़ावा मिलेगा। यह देश की एकता के लिए नुकसानदायक होगा।

माकपा ने बयान में कहा, "माकपा का पोलित ब्यूरो स्कूली शिक्षा में प्राथमिक स्तर पर तीन भाषा फार्मूले को लागू करने का विरोध करता है।"

पार्टी ने कहा कि यह "विरोध किसी विशेष भाषा के लिए नहीं है बल्कि सभी भारतीय भाषाओं के विकास और उनके पनपने देने का अवसर सुनिश्चित करने के लिए है।"

माकपा ने कहा,"मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार को वर्तमान मसौदे को वापस लेना चाहिए और विवाद को शांत करने के लिए नए सिरे से मसौदा पेश करना चाहिए।"

पार्टी ने बयान में कहा कि उसका मानना है कि इस तरह चीजें थोपने से सिर्फ भाषायी वर्चस्व बढ़ेगा। यह देश  की एकता के लिए हानिकारक होगा।

बांग्ला शिक्षक, लेखकों ने भी विरोध जताया

पश्चिम बंगाल के शिक्षा जगत से जुड़े लोगों और लेखकों ने रविवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे का विरोध किया। इन लोगों ने कहा कि किसी भी भाषा को थोपने के प्रयास का चौतरफा विरोध किया जाएगा।

रविंद्र भारती विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व विख्यात भाषाविद् पवित्र सरकार ने कहा कि के.कस्तूरीरंगन समिति का हिंदी को अनिवार्य बनाने का सुझाव प्राथमिक स्कूल के बच्चों पर और अधिक दबाव डालेगा।

आंदोलन की चेतावनी

एसएफआई ने स्कूली शिक्षा के प्राथमिक स्तर से तीन भाषा के फार्मूले को लागू करने के विचार का विरोध किया। एसएफआई ने कहा कि वो किसी भी भाषा के समर्थक या विरोधी के रूप में खड़े नहीं हैं क्योंकि हमने भारत के बहु-भाषाई स्वरूप का हमेशा बना कर रखा है और इस पर हमें गर्व भी है। हम चाहते हैं कि सरकार भारत की भाषाई विविधता का सम्मान करे इसके लिए प्रत्येक क्षेत्रीय भाषा के संरक्षण और देखभाल के लिए आगे बढ़े। क्षेत्रीय भाषाओं पर हिंदी को थोपे जाने से हमारे राष्ट्र और यहां तक कि हिंदी की भाषा पर कोई आंच नहीं आएगी।

एसएफआई ने कहा है कि ये फर्मूला एकता में अनेकता के सिद्धांत के खिलाफ है और सरकार इस निर्णय को वापस ले। किसी के साथ किसी भी तरह के असमान व्यवहार के बिना बहु-भाषा संस्कृति को बनाए रखे। किसी एक भाषा को थोपने की अगर कोशिश की गई तो इसके खिलाफ पूरे देश में आंदोलन होगा।

Higher education
hindi imposition
education policy
HRD minister
MHRD
ramesh pokhriyal
nishank
Modi’s Cabinet
BJP

Trending

अर्नब प्रकरण पर चुप्पी क्यों?
'ज़मीन हमारी माँ है और यह लड़ाई उसके लिए है'
मध्यप्रदेश: महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध का लगातार बढ़ता ग्राफ़, बीस दिन में बलात्कार की पांच घटनाएं!
सांप्रदायिक दंगों के ज़रिये किसान आंदोलन से ध्यान भटकाने की कोशिश
शहरों को रहने लायक बनाने के लिए शहरीकरण पर राष्ट्रीय आयोग गठित करने की ज़रूरत
26 जनवरी परेड: एक तरफ़ जवान और एक तरफ़ किसान

Related Stories

सांप्रदायिक दंगों के ज़रिये किसान आंदोलन से ध्यान भटकाने की कोशिश
रूबी सरकार
सांप्रदायिक दंगों के ज़रिये किसान आंदोलन से ध्यान भटकाने की कोशिश
21 January 2021
केंद्र की नेशनल डेमोक्रेटिक एलायन्स के अगुवा भारतीय जनता पार्टी के लिए किसान आंदोलन गले की फांस बन चुकी है। केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ
सुप्रीम कोर्ट
डॉ. राजू पाण्डेय
सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर बार बार उठते सवाल
21 January 2021
क्या न्याय इतना व्यक्तिनिष्ठ और इतना असहाय हो सकता है कि उसकी समीक्षा और आलोचना करना अनिवार्य बन जाए? 
Dragon Fruit
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
गुजरात : ड्रैगन फ़्रूट का नाम बदल ‘कमलम’ करने का प्रस्ताव, एनसीपी ने कहा वह दिन दूर नहीं जब बीजेपी देश को ‘कमलस्तान’ बोले
21 January 2021
मुंबई:  राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(एनसीपी) ने ड्रैगन फ्रूट का नाम ‘कमलम’ करने के गुजरात सरकार के फैसले के बाद बुधवार को भाजपा पर निशाना साधते हुए

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • बिलासपुर: एक और आश्रय गृह की महिला ने कर्मचारियों पर शारीरिक, मानसिक उत्पीड़न के लगाए आरोप
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिलासपुर: एक और आश्रय गृह की महिला ने कर्मचारियों पर शारीरिक, मानसिक उत्पीड़न के लगाए आरोप
    21 Jan 2021
    सरकारी अधिकारी ने बताया कि आश्रय स्थल को बंद कर दिया गया है और यहां रहने वाली महिलाओं को उनके घरों में या अन्य सरकारी आश्रय स्थलों में भेज दिया गया है।
  • राष्ट्रपति बाइडेन
    पीपल्स डिस्पैच
    राष्ट्रपति बाइडेन ने पहले ही दिन ट्रंप के कुछ महत्वपूर्ण  फ़ैसलों को पलटा
    21 Jan 2021
    उम्मीदों के विपरीत बाइडेन ने ईरान परमाणु समझौते में फिर से शामिल होने या यमन के युद्ध में अमेरिकी भूमिका को समाप्त करने की घोषणा नहीं की।
  • cartoon click
    आज का कार्टून
    ‘अर्नबगेट’ : कांग्रेस हुई हमलावर; बुरे फँसे अर्नब
    21 Jan 2021
    ‘‘गोपनीय जानकारी लीक करना एक आपराधिक कृत्य है। सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी जानकारी लीक करना राष्ट्र विरोधी कृत्य और राष्ट्रद्रोह है। इस तरह की राष्ट्र विरोधी गतिविधियों की जांच ज़रूरी है।’’
  • 'ज़मीन हमारी माँ है और यह लड़ाई उसके लिए है'
    न्यूज़क्लिक टीम
    'ज़मीन हमारी माँ है और यह लड़ाई उसके लिए है'
    21 Jan 2021
    90 वर्ष की आदिवासी महिला किसान झिला बाई महाराष्ट्र से शाहजहांपुर बॉर्डर आंदोलन में हिस्सा लेने 15 जनवरी को आयी थी. आखिर क्यों तय किया उन्होंने इस उम्र में इतना लम्बा सफ़र? आइये सुनते हैं
  • महेंद्र सिंह टिकैत और ऐतिहासिक बोट क्लब आंदोलन की याद दिलाते प्रदर्शनकारी किसान
    तारिक़ अनवर
    महेंद्र सिंह टिकैत और ऐतिहासिक बोट क्लब आंदोलन की याद दिलाते प्रदर्शनकारी किसान
    21 Jan 2021
    तीन दशक पहले अक्टूबर 1988 में सिसौली (मुजफ़्फ़रनगर में टिकैत के घर) से किये गये एक आह्वान पर पश्चिमी उत्तरप्रदेश के विभिन्न गांवों के तक़रीबन 5 लाख किसानों ने अपनी 35-सूत्री मांग-पत्रों को लेकर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें