NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
त्वरित टिप्पणी :  सुप्रीम कोर्ट ने अपनी 'ग़लती' सुधारी
एससी-एसटी मामले में सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फैसला दलितों के अधिकारों की ही रक्षा नहीं करता, बल्कि यह भी बताता है कि दलितों को जो अधिकार बहुत लम्बे संघर्ष के बाद मिले हैं उसे खत्म करने वाली शक्तियां कितनी शिद्दत से अपने काम में जुटी हुई हैं और उस पर सजग रहना कितना जरूरी है। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।
प्रेम कुमार
01 Oct 2019
dalit protest
फाइल फोटो : साभार 

दलितों की चिंता गैरवाजिब नहीं थी। 2 अप्रैल 2018 का राष्ट्रव्यापी आंदोलन बेवजह नहीं था। आंदोलन के दौरान उभरा आक्रोश मुनासिब था। इस दौरान हुई हिंसा के लिए केवल दलित-आदिवासी जिम्मेदार नहीं थे। यह बात अब सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फैसले से साबित हो गयी है। सभ्य भाषा में कहें तो सुप्रीम कोर्ट ने अपनी भूल सुधार ली है। 20 मार्च 2018 का दो जजों की बेंच का आदेश अब रद्द हो गया है जिसने दलितों-आदिवासियों को बेचैन कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने डेढ़ साल बाद जो गलती सुधारी है उस गलती को केंद्र सरकार ने पिछले साल ही देशव्यापी आंदोलन के बाद समझ लिया था। आम चुनाव के दबाव में ही सही, लेकिन केंद्र ने तब एससी-एसटी एक्ट में संशोधन लाकर कानून को पहले जैसी स्थिति में ला दिया था। इससे पहले सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी डाल दी थी।

सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद अब एससी-एसटी एक्ट 1989 के मामले में
    • सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी के लिए सक्षम अथॉरिटी की मंजूरी जरूरी नहीं होगी
    • बाक़ी आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए भी एसएसपी रैंक के अधिकारी की मंजूरी वाली बाध्यता खत्म
    • तत्काल गिरफ्तारी का प्रावधान जारी रहेगा
    • अग्रिम ज़मानत का प्रावधान नहीं होगा

सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले के बाद स्थिति यह हो गयी थी कि एक दलित की शिकायत पर गैर दलित पर मुकदमा चलाना मुश्किल हो गया था। गिरफ्तारी रोकने के लिए कई चरण बन गये थे। ऐसे में दलितों पर अत्याचार रोकने वाला कानून न सिर्फ बेमकसद हो गया था, बल्कि उल्टे दलितों के खिलाफ हो गया था। इसके विपरीत अगर दलितों के खिलाफ शिकायत हो, तो उनकी गिरफ्तारी रोकने के लिए कोई बचाव न तब था, न अब है। यानी ऐसी शिकायतों के मामले में दलितों के साथ भी सामान्य लोगों की तरह कानूनी प्रावधान है।

सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में जो आदेश दिए थे उसके केंद्र में थी एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग की घटनाएं। इसका मकसद गैरदलितों को बेवजह उत्पीड़न से बचाना था। सर्वोच्च अदालत झूठी शिकायतों से परेशान नज़र आयी। मगर, 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान महसूस किया कि झूठी शिकायतों का शिकार तो कोई भी हो सकता है। दलितों के खिलाफ भी झूठी शिकायतें हो सकती हैं। ऐसे में बचाव सिर्फ गैरदलितों के लिए क्यों? इस तरह के मामलों में कानून के तहत दंड ही उपयुक्त प्रावधान है।

जब सुप्रीम कोर्ट 2018 में एससी-एसटी एक्ट की कथित खामियों को दूर कर रहा था तो उसने इस बात की अनदेखी की कि 2016 में इस कानून के तहत उत्पीड़न के 1 लाख 67 हज़ार से ज्यादा मामले अदालत पहुंचे। इनमें से केवल 10 प्रतिशत मामलों में ही ट्रायल हुए। और, इनमें भी महज एक चौथाई मामलों में सज़ा हुई। अगर आदिवासियों के मामलों की बात करें तो केवल 12 फीसदी मामलों में सज़ा हो सकी।
सज़ा नहीं मिल पाना या कानून से बच निकलना भी दलितों-आदिवासियों की कमी के तौर पर देखा गया। झूठे मामलों पर विचार करते हुए इस पक्ष की अनदेखी कर दी गयी कि मामला दर्ज करने से लेकर सुनवाई होने तक के दौर में वंचित तबका किस तरह से परेशान होता है और न्यायिक व्यवस्था तक खुद को व्यक्त करने में उन्हें किन मुश्किलात का सामना करना पड़ता है।

एससी-एसटी मामले में सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फैसला दलितों के अधिकारों की ही रक्षा नहीं करता, बल्कि यह भी बताता है कि दलितों को जो अधिकार बहुत लम्बे संघर्ष के बाद मिले हैं उसे खत्म करने वाली शक्तियां कितनी शिद्दत से अपने काम में जुटी हुई हैं और उस पर सजग रहना कितना जरूरी है। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।

यह भी स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट का हर फैसला अब सर माथे पर रखकर स्वीकार किया जाए, यह जरूरी नहीं है। ज़िन्दा कौम निस्तेज नहीं हो सकती- दलित समुदाय ने यह साबित कर दिखाया है। हां, यह भी स्पष्ट करने की जरूरत है कि इसे अस्वीकार करने का तरीका भी संवैधानिक हो ताकि अव्यवस्था न फैले और न्याय व्यवस्था के प्रति सम्मान बना रहे।

चर्चा करने का यह सही अवसर है कि कई मामले ऐसे हैं जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने एक सख्त रवैया अपना रखा है। मसलन, जस्टिस लोया की संदेहास्पद परिस्थितियों में मौत के मामले पर अब और याचिकाएं स्वीकार नहीं करने का फैसला। दुनिया की कोई भी अदालत ऐसा फैसला कैसे ले सकती है! सुप्रीम कोर्ट को इस पर भी विचार करना चाहिए।

ऐसे मामले जिनमें अदालत के फैसले पर अमल नहीं किया जाता और अमल कराने के लिए दोबारा फैसला देना पड़ता है, उस पर भी अदालतों को अपना रुख पीड़ितों के हक में सख्त करना होगा। उदाहरण के लिए बिलकिस बानो के मामले में गुजरात सरकार ने मुआवजा देने के आदेश को समय रहते नहीं माना। अब मुआवज़े में सुधार कर दोबारा आदेश जारी किया गया है। मगर, सवाल ये है कि आदेश को नहीं मानने वाली सरकार को क्या सबक मिला?

एक और बात महत्वपूर्ण लगती है। न्यायिक क्षेत्र में कई प्रचलित व्यवहार हैं जो हास्पास्पद हैं। उदाहरण के लिए अग्रिम ज़मानत लेने का प्रावधान तो है, मगर ऐसा करते हुए अभियुक्त को जेल जाने के डर से पुलिस से छिपना पड़ता है। पुलिस को भी इस लुका-छिपी के खेल में परेशान होना पड़ता है। आखिर क्यों? अगर अग्रिम ज़मानत का प्रावधान है तो उस पर फैसला होने तक गिरफ्तारी नहीं होने या फिर कोई और निश्चित व्यवस्था को क्यों नहीं अपनाया जा सकता है?

वास्तव में ऐसे सवालों को उठाने का मौका दलितों के उस आंदोलन ने ही दिया है जिसने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों को राह दिखलायी है। दलित आंदोलन सही मायने में 2 अप्रैल 2018 को सफल नहीं हुआ था, वह 01 अक्टूबर 2019 को सफल हुआ है- गांधीजी के जन्म की 150वीं जयंती की पूर्वबेला में। गांधीजी को इस अवसर पर याद करना इसलिए भी जरूरी है कि दलितों को सामाजिक और शैक्षणिक अधिकार के साथ-साथ राजनीतिक अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ने वाले वे देश के अग्रणी नेता रहे हैं। दलितों के मसीहा डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने भी उनके संघर्ष का सम्मान किया था। वंचित तबके को देश की मुख्य धारा में जोड़े रहने की कवायद में सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला उन ऐतिहासिक संघर्ष की पृष्ठभूमि में नज़ीर बना रहेगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

Supreme Court
SC/ST/OBC
Dalit movement
modi sarkar
SC/ST Act
Dalit atrocities

Trending

किसान आंदोलन : सरकार का प्रस्ताव किया ख़ारिज़, 26 जनवरी को रिंग रोड पर होगा ट्रैक्टर मार्च
मध्यप्रदेश: महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध का लगातार बढ़ता ग्राफ़, बीस दिन में बलात्कार की पांच घटनाएं!
क्या राष्ट्रपति बाइडेन बदलेंगे अमेरिका की विदेश नीति?
परंजॉय के लेख पढ़िए, तब आप कहेंगे कि मुक़दमा तो अडानी ग्रुप पर होना चाहिए!
श्रम संहिताओं के क्रियान्वयन पर रोक की मांग, ट्रैक्टर परेड और अन्य
ग्राउंड रिपोर्ट: "अगर सरकार 2024 तक कृषि क़ानूनों को निलंबित कर देती है तो हमें कोई समस्या नहीं है।"

Related Stories

सीवर कर्मी की मौत का मामला
भाषा
सीवर कर्मी की मौत का मामला: आयोग ने मुआवजे के बारे में दिल्ली सरकार से रिपोर्ट तलब की
21 January 2021
नयी दिल्ली: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) ने दिल्ली सरकार को शहर में सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मरने वाले सफाई कर्मिय
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट
न्यूज़क्लिक टीम
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बावजूद सवाल बरक़रार
21 January 2021
सुप्रीम कोर्ट
डॉ. राजू पाण्डेय
सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर बार बार उठते सवाल
21 January 2021
क्या न्याय इतना व्यक्तिनिष्ठ और इतना असहाय हो सकता है कि उसकी समीक्षा और आलोचना करना अनिवार्य बन जाए? 

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • किसान आंदोलन
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    किसान आंदोलन : सरकार का प्रस्ताव किया ख़ारिज़, 26 जनवरी को रिंग रोड पर होगा ट्रैक्टर मार्च
    21 Jan 2021
    “हमारी केवल एक ही मांग है जिसके लिए हम आंदोलन कर रहे हैं वो है तीनों कानूनों की वापसी। इससे कम कुछ मंज़ूर नहीं, कल की वार्ता में हम यह सरकार को बता देंगे।”
  • भारतीय सीरम संस्थान के परिसर में आग लगी, पांच जले हुए शव मिले
    भाषा
    भारतीय सीरम संस्थान के परिसर में आग लगी, पांच जले हुए शव मिले
    21 Jan 2021
    सूत्रों ने कहा कि जिस भवन में आग लगी वह सीरम केन्द्र के निर्माणाधीन स्थल का हिस्सा है और कोविशील्ड निर्माण इकाई से एक किमी दूर है, इसलिए आग लगने से कोविशील्ड टीके के निर्माण पर कोई असर नहीं पड़ा है।
  • क्या राष्ट्रपति बाइडेन बदलेंगे अमेरिका की विदेश नीति?
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राष्ट्रपति बाइडेन बदलेंगे अमेरिका की विदेश नीति?
    21 Jan 2021
    अमेरिका के नए राष्ट्रपति के रूप में जो बाइडेन ने 20 जनवरी को शपथ ली। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या बाइडेन के आने के बाद पश्चिमी एशिया के मद्देनज़र अमेरिका की विदेश नीति में कुछ बदलाव आयेंगे? इस…
  • झारखंड और बिहार में वाम दलों की अगुवाई में कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए जारी है दमदार संघर्ष!
    अनिल अंशुमन
    झारखंड और बिहार में वाम दलों की अगुवाई में कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए जारी है दमदार संघर्ष!
    21 Jan 2021
    काले कृषि क़ानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर 21 जनवरी को झारखंड की राजधानी रांची में भाकपा माले व अन्य वामपंथी दल, किसान संगठन व सामाजिक जन संगठनों द्वारा राजभवन के समक्ष 10 दिवसीय प्रतिवाद विशाल…
  • SFI
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली : विश्वविद्यालयों को खोलने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे छात्रों को पुलिस ने हिरासत में  लिया
    21 Jan 2021
    दस महीने से अधिक समय तक कैंपस बंद रख कर छात्रों के प्रति सरकार की अनदेखी के खिलाफ एसएफआई का  शिक्षा मंत्रालय के बाहर विरोध प्रदर्शन था, जहां से प्रदर्शनकारियो को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें