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बाजार तत्ववाद और टैक्सस ग्रिड का फेल होना

'भारत का राजनीतिक सत्ता प्रतिष्ठान, चाहे यूपीए सत्ता में हो या भाजपा-एनडीए, ऊर्जा अर्थशास्त्र के एनरॉन फ़ार्मूले पर ही चलता आया है। यह फ़ार्मूला है, इंटीग्रेटेड ग्रिड को टुकड़े-टुकड़े करने का और बिजली क्षेत्र में ‘ओपन एक्सेस’ की वकालत करने का।'
बाजार तत्ववाद और टैक्सस ग्रिड का फेल होना
Image Courtesy: HuffPost

टैक्सास ग्रिड के फेल होने की मार दसियों लाख लोगों को झेलनी पड़ी। शून्य से नीचे के तापमान पर बिजली और घरों-दफ्तरों आदि को गर्म करने के साधन के अभाव में उन्हें कई दिन गुजारने पड़े। इससे दर्जनों की संख्या में लोगों के मरने या घायल होने की स्थिति तो पैदा हुई ही, इसके अलावा पूरे राज्य में भारी आर्थिक तबाही भी हुई। बिजली गुल होने से हुए ब्लैकआउट के  दो हफ्ते गुजर जाने के बाद भी, जन-जीवन सामान्य नहीं हो पाया था। इसकी वजह यह है कि शून्य से नीचे का प्रभावी ताप रहने के चलते, पाइप लाइनें जम गयीं तथा पाइप फट गए। इससे लोगों को पीने का सुरक्षित पानी नहीं मिल पा रहा है और उनके घरों का भी काफी नुकसान हुआ है। म्यूनिसिपल जल आपूर्ति ठप्प हो जाने के चलते, 1.30 करोड़ टैक्सासवासियों से कहा गया है कि पीने के लिए पानी उबलने का सहारा लें।

टैक्सास, एक ऐसा राज्य है जो ऊर्जा की आपूर्ति के लिहाज से बहुत साधन संपन्न है। यहां खनिज तेल भी भरपूर है और अक्षय ऊर्जा के साधन भी भरपूर हैं। जाहिर है कि ऐसे राज्य से तो यही अपेक्षा की जाती थी कि वह सर्दियों के तूफान का मुकाबला करने के लिहाज से भी बेहतरीन स्थिति में होगा। इस प्रांत का सर्दियों के तूफान के संकट के सामने इतना खराब प्रदर्शन करना, टैक्सास की नीतिगत विफलताओं की ही आंखें खोलने वाली कहानी है, न कि महज एक प्राकृतिक आपदा का किस्सा।

90 के दशक में और 2000 के दशक के शुरूआती सालों में, टैक्सास ने बिजली के मामले में घोर विनियंत्रण की नीति अपनायी थी। यह हुआ था ह्यूस्टन आधारित उस भीमकाय बिजली कंपनी, एनरॉन के बुरे प्रभाव में, जिसका बाद में दीवाला ही निकल गया। इसी प्रकार की विनियमन की नीतियां 90 के ही दशक में कैलीफोर्निया ने भी अपनायी थीं, जिनके नतीजे के तौर पर एनरॉन ने वहां के बिजली बाजार पर अपना शिकंजा कस लिया था और 2000-01 में बिजली की स्पॉट कीमतों में बहुत ही तेजी से बढ़ोतरी हुई थी। इससे कैलीफोर्निया की दो बड़ी बिजली उपयोगिताएं बैठ गयी थीं। अब टैक्सास में कई बिजली कंपनियों के सिर पर ऐसा ही दीवालिया होने का खतरा मंडरा रहा है।

हालांकि, कैलीफोर्निया के बड़े धक्के के कुछ ही बाद में, फर्जीवाड़े तथा वित्तीय गड़बड़ी की अनेकानेक करतूतों में फंसकर एनरॉन खुद बैठ गयी, लेकिन उसके नुकसानदेह प्रभाव दूसरी-दूसरी जगहों पर बने रहे। भारत में उसके साथ स्वतंत्र बिजली उत्पदकों (आइआइपी) का दौर शुरू हुआ। महाराष्टï्र में डभोल परियोजना ने, जो आइआइपी की फ्लैगशिप परियोजना थी, एनरॉन द्वारा भारत में ‘सस्ते’ ईंधन के तौर पर लादी जा रही, लेकिन वास्तव में बहुत महंगी पड़ रही द्रवीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) से बिजली बनाने के जरिए, महाराष्ट्र सरकार का करीब-करीब दीवाला ही निकाल दिया।

भारत में एनरॉन की परियोजना को शुरूआत में नरसिंह राव की सरकार का समर्थन मिला, जिसमें मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। बाद में, 1996 में वाजपेयी की तेरह दिन की सरकार ने एनरॉन से बिजली खरीद के लिए संप्रभु गारंटी दे दी। आगे चलकर, सरकार को डभोल परियोजना का अधिग्रहण ही करना पड़ा। इसका नतीजा यह हुआ कि विदेशी परिसंपत्तियों को ‘हड़पने’ के आरोपों के सिलसिले में भारत को अंतर्राष्ट्रीय आर्बिटे्रेशन मुकद्दमों का सामना करना पड़ा। डभोल परियोजना की उनकी हिस्सा पूंजी के लिए जीई तथा बेशटेल की ‘क्षतिपूर्ति’ करने में, विदेशी बैंकों की बैक अप गारंटियों का भुगतान करने में और जाहिर है कि डभोल परियोजना के लिए भारतीय बैंकों द्वरा दिए गए ऋणों के डुबाऊ परिसंपत्तियां बन जाने के रूप में, भारत की और महाराष्टï्र की सरकारों को, अरबों डालर का नुकसान सहना पड़ा।

बहरहाल, टैक्सास के अपने बिजली क्षेत्र को विनियंत्रित करने से, इस राज्य में ब्लैक आउटों की और टैक्सास ग्रिड के करीब बैठ जाने की नौबत क्यों आ गयी? टैक्सास में और दुनिया के ज्यादातर दूसरे हिस्सों में भी इससे पहले तक, नियंत्रित इजारेदारियों द्वारा इंटीग्रेटेड बिजली ग्रिड संचालित किए जाने पर आधारित जो व्यवस्था चली आ रही थी, उसे टैक्सास में ध्वस्त कर दिया गया। इस मामले में टैक्सास, अमरीका में भी सबसे आगे तक चला गया। याद रहे कि बिजली क्षेत्र के लिए इसी नीतिगत दर्शन को--जिसे अनबंडलिंग तथा ओपन एक्सेस का नाम दिया जाता है--भारत समेत, दूसरे भी अनेक देशों में आगे बढ़ाया जा रहा है। बिजली के क्षेत्र में अनेकानेक खिलाड़ी--उत्पादक, वितरक, बिजली व्यापारी आदि--लाने के इस अभियान के पीछे तर्क या विचारधारा यही है कि इस तरह तथाकथित बिजली‘बाजार’ पैदा किया जाना है और बिजली को इस बाजार में उसी तरह से खरीदा-बेचा जाने वाला माल बनाना है, जैसे कि अन्य किसी भी माल को खरीदा-बेचा जा सकता है। इस ‘दर्शन’ के भारतीय पैरोकारों में से एक ने तो इसे बिजली को उसी तरह से एक माल में तब्दील करना कहा था, जैसे मिसाल के तौर पर कोई साबुन। बहरहाल,न्यूयार्क टाइम्स में एक लेख (22 फरवरी) में क्रूगमैन ने बताया है कि क्यों बिजली, जो किलोवाट ऑवर की इकाई से मापी जाती है, दूसरे किसी माल जैसी नहीं होती है। उन्होंने मिसाल के तौर पर अवाकाडो से बिजली की भिन्नता समझाई है।

बिजली एक बुनियादी जरूरत की चीज तो है ही, इसके अलावा अवाकाडो या साबुन जैसे किसी अन्य माल से भिन्न, बिजली को जमा कर के नहीं रखा जा सकता है। बिजली के मामले में तो यह सुनिश्चित करना होता है कि मांग और आपूर्ति में हमेशा संतुलन बना रहे। अगर यह संतुलन बना नहीं रहेगा तो ग्रिड ही बैठ जाएगा और उसके बाद उसे दोबारा पटरी पर लाने के लिए बहुत भारी मेहनत करनी पड़ेेगी। मिसाल के तौर पर टैक्सास ग्रिड भी सत्यानाशी तरीके से बैठने से सिर्फ 4 मिनट 37 सैकेंड के करीब  दूर रह गया था। ऐसा इसलिए हुआ था कि सर्दी के तूफान और गिरते तापमान के चलते, बड़ी संख्या में बिजलीघर बंद हो गए थे और यह तब हुआ जब, घरों आदि को गर्म रखने के लिए बिजली की मांग तेजी से बढ़ रही थी। ग्रिड के पास कोई ऐसे सुरक्षित बिजलीघर थे ही नहीं, जिनसे ठीक ऐसे किसी संकट के समय में मदद मिल सकती। इसका नतीजा यह हुआ कि टैक्सास ग्रिड के संचालक, इलैक्ट्रिक रिलायबिलिटी काउंसिल ऑफ टैक्सास--ईआरसीओटी--को क्रमिक ब्लैकआउटों का सहारा लेना पड़ा।

 लेकिन, इस तरह उसने ग्रिड को तो पूरी तरह से बैठने से बचा लिया, लेकिन इसके चलते 40 लाख से ज्यादा परिवारों का कई दिन तक बिना बिजली के गुजारा करना पड़ा। इसके अलावा, बिजली के अभाव में कई गैस पंपिग स्टेशनों ने काम करना बंद कर दिया और इसके चलते बिजलीघरों के लिए गैस की आपूर्ति में और कटौतियां हो गयीं। इसके चलते बिजली उत्पादन और गिर गया। इसने बिजली के संकट को और बढ़ा दिया।
टैक्सास, बहुत मामलों में सबसे अलग ही चलने वाला राज्य है और इस अपवादीपन की अपनी विचारधारा के चलते, यह ऐसा इकलौता राज्य है जिसे अमरीका के बड़े ग्रिडों में से किसी के भी साथ जुडऩा मंजूर नहीं हुआ है। इसलिए, अपने ग्रिड के बैठने के खतरे को टालने के लिए, पड़ौसी राज्यों से अतिरिक्त बिजली हासिल करने का, उसके पास कोई सहारा ही नहीं था।

बढ़ती मांग के इस प्रपाती असर और बिजली उत्पादन में भारी गिरावट के योग के चलते, न सिर्फ लोगों को कई दिनों तक क्रमिक ब्लैकआउट झेलने पड़े थे बल्कि दर्जनों मौतें तथा लोगों के घायल होने की वारदातें हुई थीं और बहुत बड़े पैमाने पर संपत्तियों का नुकसान हुआ था। इसकी मार पानी की आपूर्ति, खाद्य आपूर्ति तथा अत्यावश्यक स्वास्थ्य सेवाओं पर भी पड़ी थी, जिसमें कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण की मुहिम भी शामिल थी।

सर्दी के तूफान में टैक्सास के बिजलीघर और गैस-आपूर्ति के इंतजाम फेल क्यों हो गए? आखिरकार, उत्तरी अमरीका, कनाडा, उत्तरी योरप में सर्दियों में तापमान अक्सर ही काफी नीचेे चला जाता है। 2011 में तथा 2014 में ज्यादा ठंड का सामना करने में मुश्किल सामने आने के रूप में, टैक्सास को पहले ही चेतावनियां मिल चुकी थीं। विशेषज्ञों ने तभी यह ध्यान दिलाया था कि सर्दी के ऐसे तूफानों का सामना करने के लिए, यहां बिजली उत्पादन तथा गैस-आपूर्ति उपकरणों का सर्दीकरण करने की जरूरत थी।

तब इन चेतावनियों को क्यों अनदेखा कर दिया गया? यहीं विनियंत्रण की भूमिका आ जाती है। बाजार तत्ववादियों की दलील हमेशा यही होती है कि अगर समुचित बाजार प्रोत्साहन स्थापित कर दिए जाते हैं, तो उनसे सारी समस्याएं खुद ब खुद हल हो जाएंगी। लेकिन, सचाई बताती है कि ऐसा नहीं होता है। उल्टे चूंकि ऐसी व्यवस्था में प्रोत्साहन इसके लिए होता है कि बिजली की तंगी हो तो दाम बढ़ जाएं और जब दाम कम हों तो बिजली की आपूर्ति कम कर दी जाए, यह वास्तव में इसके लिए उलट-प्रोत्साहन ही पैदा करता है कि बिजली की तंगी पैदा कर के, कीमतें बढ़ायी जाएं। इसी तरह तो एनरॉन के बिजली बाजार पर नियंत्रण ने, 2000-01 में कैलीफोर्निया में पूरी बिजली व्यवस्था को बैठाया था।

टैक्सास के मामले में, पब्लिक यूटिलिटीज़ कमीशन (पीयूसी) तथा ग्रिड संचालक, ईआरसीओटी द्वारा बिजली की दरें बढ़ाकर, 9,000 डालर प्रति मेगावाट ऑवर के शीर्ष स्तर पर कर दिए जाने--जोकि बिजली के सामान्य दाम से 300-400 गुना ज्यादा है--के बावजूद, बिजलीघर अतिरिक्त बिजली मुहैया कराने की स्थिति में ही नहीं थे। उनके उपकरण जम गए थे और ऐसी ही स्थिति गैस आपूर्तिकर्ताओं के उपकरणों की थी। और तो और, टैक्सास में बिजली की आपूर्ति कर रहे चार नाभिकीय बिजलीघरों में से भी एक, तापमान ज्यादा नीचे चले जाने के कारण उपकरणों के फेल हो जाने के चलते, ट्रिप कर गया था।

तार्किक आकलन से यह साफ हो जाता है कि बाजार, इस तरह की समस्याओं का समाधान नहीं निकाल सकते हैं। जब तक नियमन के जरिए गैस तथा बिजली उपयोगिताओं को, ग्रिड की सामूहिक विफलता से बचाव के लिए रक्षात्मक उपाय करने के लिए मजबूर नहीं किया जाता है, इस तंत्र में शामिल हरेक इकाई अपने ही मुनाफे अधिकतम करने में लगी रहेगी और सामूहिक विफलता से बचाव के उपायों में निवेश करने से दूर ही रहेगी।

जिस तरह, हम बाजार प्रोत्साहन स्थापित करने के जरिए ट्रैफिक की सुरक्षितता में सुधार नहीं कर सकते हैं, उसी तरह से बाजार के नियमों के सहारे ऊर्जा आपूर्ति की विश्वसनीयता भी सुनिश्चित नहीं की जा सकती है। राजमार्गों पर लोगों की सुरक्षितता सुनिश्चित करने के लिए तो ट्रैफिक के कड़े कानून बनाने होते हैं और उनका पालन सुनिश्चित करने के लिए पुलिसिंग करनी होती है। उसी तरह से बिजली ग्रिड की सुरक्षितता सुनिश्चित करने के लिए कड़े नियमों की और उनका पालन सुनिश्चित करने की व्यवस्था की जरूरत होती है।

चूंकि टैक्सास के संकट के दौरान, बिजली के दाम, 22 डालर प्रति मेगावाट ऑवर के अपने सामान्य स्तर से बढक़र,  9,000 डालर प्रति मेगावाट ऑवर के स्तर तक पहुंच गए थे, टैक्सास के सर्दी से जम रहे होने के उन पांच दिनों में, बिजली कंपनियों तथा बिजली व्यापारियों ने कुल 45 अरब डालर के, एकदम फालतू मुनाफे बटोरे थे। इनमें शेयर बाजार, वॉल स्ट्रीट के बड़े खिलाड़ी भी शामिल हैं, जिन्होंने टैक्सास के बिजली खरीद के सौदों में अपने दांव लगाकर, करोड़ों डालर बटोरे थे।

दूसरी ओर, बिजली की परिवर्तनीय दरों के 9,000 डालर प्रति मेगावाट ऑवर तक पहुंचा दिए जाने के चलते, बहुत से उपभोक्ताओं के बिजली बिलों में कमरतोड़ बढ़ोतरी हो गयी। टैक्सास के 20-25 फीसद उपभोक्ताओं का, अपने बिजली आपूर्तिकर्ताओं के साथ, परिवर्तनीय दाम पर बिजली आपूर्ति का कांट्रैक्ट है। टैक्सास ग्रिड के लगभग बैठने के दौरान उन्हें रुक-रुककर जो बिजली मिली थी, उसके चंद दिनों के खर्चे में ही उनकी जीवन भर की बचत निकल जाने वाली है। हालांकि, टैक्सास के बिजली नियामक, पीयूसी ने कहा है कि ईआरसीटोटी ने जो जरूरी था उससे 33 घंंटे ज्यादा बिजली के दाम का अधिकतम स्तर पर बने रहने दिया था और इस तरह उपभोक्ताओं का 16 अरब डालर का ऐसा नुकसान किया था, जिससे बचा जा सकता था, फिर भी उसने उपभोक्ताओं को कोई भी राहत देने से इंकार दिया।

वैकल्पिक सत्य की जिस मुक्त दुनिया में अब हम प्रवेश कर रहे हैं, उसमें बाजार तत्ववाद के पैरोकारों द्वारा इसकी भी कोशिश की गयी थी कि सर्दी के तूफान के दौरान ग्रीन पावर की अविश्वसनीयता पर ही इस संकट का दोष डाल दिया जाए। बहरहाल, जैसाकि ईआरसीओटी के अधिकारियों ने साफ कर दिया है, क्रमिक ब्लैकआउट का सहारा लेना पडऩे की मुख्य वजह, टैक्सास के प्राकृतिक गैस आपूर्तिकर्ताओं से जुड़ी थी। टैक्सास फ्रीज के दौरान, अनुमानत: 45 गीगावाट के बिजलीघरों ने, जो मुख्यत: प्राकृतिक गैस पर चलते हैं, बिजली देना बंद कर दिया था। यह ईआरसीओटी की सर्दियों की बिजली उत्पादन क्षमता के आधे से ज्यादा होता है।

इस तथ्य के सामने आने के बावजूद, टैक्सास के रिपब्लिकन सत्ता प्रतिष्ठान में पैठी गैस तथा तेल लॉबी ने, इन ब्लैकआउटों के लिए पवन तथा सौर ऊर्जा को दोष देना बंद नहीं किया है। जैसाकि अप्टोन सिंक्लेअर ने कहा था, ‘किसी भी व्यक्ति को कुछ समझाना तब मुश्किल होता है, जब उसकी तनख्वाह न समझने पर ही टिकी हुई हो।’ तनख्वाह या इस मामले में, चुनावी फंड!

मीडिया में एक आम धारणा यह है कि टैक्सास में, विनियंत्रण के चलते ही बिजली की दरें इतनी कम हो गयी थीं। यह दावा भी सही नहीं है। अगर 85 फीसद टैक्सासवासी उपभोक्ता विनियमित बिजली व्यवस्था के अंतर्गत आ चुके थे, तो 15 फीसद अब भी नियंत्रित परंपरागत बिजली उपयोगिताओं के ही दायरे में बने हुए थे। वॉल स्ट्रीट जर्नल (24 फरवरी) के अनुसार, टैक्सास की परंपरागत बिजली उपयोगिताओं के उपभोक्ताओं के मुकाबले, ‘विनियंत्रित रिहाइशी उपभोक्ताओं ने 2004 से, अपनी बिजली के लिए 28 अरब डालर ज्यादा का भुगतान किया था।’

भारत के लोग और दुनिया के अन्य हिस्सों के भी लोग, पहले की कैलीफोर्निया की और अब की टैक्सास की विफलताओं से काफी कुछ सीख सकते हैं। भारत का राजनीतिक सत्ता प्रतिष्ठान, चाहे यूपीए सत्ता में हो या भाजपा-एनडीए, ऊर्जा अर्थशास्त्र के एनरॉन फ़ार्मूले पर ही चलता आया है। यह फ़ार्मूला है, इंटीग्रेटेड ग्रिड को टुकड़े-टुकड़े करने का और बिजली क्षेत्र में ‘ओपन एक्सेस’ की वकालत करने का। इस सिद्घांत के अनुसार, बिजली व्यापारियों की एक नयी प्रजाति, जो न बिजली पैदा करेंगे, न उसका वितरण करेंग और बिजली का पारेषण करेंगे, हमारे फायदे के लिए कहीं कुशलता के साथ बिजली की खरीद-बिक्री का काम करेगी। यह ऐसी परीकथा है, जिसके जरिए लोगों को जाल फंसाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन, टैक्सास में ऐसे बिजली बाजार के वास्तविक आचरण की सचाई यह है कि उपभोक्ताओं को, विनियंत्रित बाजार में अपनी बिजली के लिए कहीं ज्यादा कीमत अदा करनी पड़ी है और संकट के समय में तो विनियंत्रित बिजली के लिए उनके ऐसे कांट्रैक्टों ने, जिन्हें वे कभी समझ ही नहीं पाए थे, इन उपभोक्ताओं को कंगाल ही कर दिया है।

टैक्सास के बिजली बाजार का यह डिजाइन रचने वाले अर्थशास्त्री, हारवर्ड केनेडी स्कूल के विलियम होगान ने, टैक्सास की बिजली की आफत पर मीडिया से एक साक्षात्कार में कहा कि, टैक्सास के बिजली बाजार ने अपनी डिजाइन के ही हिसाब से आचरण किया था। जैसाकि अर्थशास्त्री और टैक्सास में यूनिवॢसटी ऑफ ऑस्टिन के प्रोफेसर, जेम्स गालब्रिथ ने लिखा (प्रोजैक्ट सिंडीकेट: 22 फरवरी) यह वाकई सच है: टैक्सास को डिजाइन से जमाया गया था! टैक्सास के बाजार तत्ववादियों के दुर्भाग्य से बिजली प्रकृति के नियमों से चलती है न कि बाजार के नियमों से!

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Texas Grid Failure: Electricity Obeys Laws of Physics, not the Market

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