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चीन और ईरान के बीच समझौता खेल परिवर्तक है 

बीजिंग लगातार वैश्विक मंच पर एक चुनौतीपूर्ण परंतु अवसरपूर्ण स्थिति की ओर कदम बढ़ा रहा है।
चीन और ईरान के बीच समझौता खेल परिवर्तक है 

पार्ट III: इसके आधिकरिक शुरुआत की समय-तालिका तय नहीं की गई है

पिछले शनिवार को चीन-ईरान के संयुक्त-बयान ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के साथ-साथ इजरायल से लेकर भारत के क्षेत्रीय विश्लेषकों के बीच तेज हलचलें पैदा कर दी हैं। इजराइल इस बात को लेकर चिंतित है कि चीन और ईरान के बीच में सुरक्षा सहयोग होने जा रहा है। भारतीय पूर्वी ईरान में अपने चाबहार बंदरगाह परियोजना के भाग्य को लेकर विचारमग्न हैं, जो इसके “क्षेत्रीय संपर्क” के अभिन्न अंग के तौर पर है।

लेकिन असली समस्या इसके विवरण में निहित है। और मुद्दा यह है कि बीजिंग और तेहरान ने जिस अंतिम दस्तावेज पर समझौता किया है, उसका अभी तक खुलासा नहीं हो सका है। देखने में आ रहा है कि इसको लेकर दोनों ही पक्ष शांत बने हुए हैं। निश्चित ही, तेहरान में सभी की निगाहें अभी भी राष्ट्रपति जो बिडेन के होंठों को पढ़ने में व्यस्त हैं कि कैसे वे अगले महीने आईएईए निरीक्षकों को ईरान से निकाल बाहर किये जाने से पहले बाकी के बचे हुए महत्वपूर्ण हफ़्तों में जेसीपीओए के बारे में तय करते हैं।

मंगलवार को विदेश पार्षद एवं विदेश मंत्री वांग यी द्वारा मीडिया को दिए अपने बयान में क्षेत्रीय दौरे से निकलकर आने वाले निष्कर्षों की समीक्षा के दौरान, ईरान के साथ हुए समझौते का जिक्र तक नहीं किया गया। इस बारे में वांग का कहना था कि “अपेक्षित लक्ष्यों को हासिल कर लिया गया है” और इस बात पर जोर दिया कि बीजिंग के दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह रहा कि पश्चिम एशिया में शांति और सुरक्षा हासिल करने के लिए चीन की पंच सूत्रीय पहलकदमी को लेकर किये गए प्रोजेक्शन को क्षेत्रीय राष्ट्रों की क्षमता को विकसित करने के माध्यम से हासिल करना है। इसके लिए क्षेत्रीय राष्ट्रों को “बाहरी दबावों और दखलंदाजियों के प्रति अभेद्द्य बनाने, क्षेत्रीय वास्तविकताओं के मुताबिक अपनी स्वतंत्र राह को तलाशने” और सबसे महत्वपूर्ण “बड़ी-ताकतों की प्रतिद्वंदिता तले जीने को मजबूर रहने से खुद को मुक्त करने और क्षेत्रीय संघर्षों और मतभेदों को इस क्षेत्र के मालिक के तौर पर हल कर सकें” को इस लक्ष्य में शामिल किया गया है। 

वांग ने जिन देशों का दौरान किया, उनमें शामिल सऊदी अरब, तुर्की, ईरान, यूएई और बहरीन और (साथ ही ओमान की कामकाजी यात्रा) से अपील की है कि वे आपस में एक दूसरे के बुनियादी हितों को तरजीह दें। भविष्य के लिए वांग ने निम्नलिखित क्षेत्रों में “वास्तविक सहयोग” की जरूरत को सूचीबद्ध किया है”:-

  • क्षेत्रीय देशों की राष्ट्रीय विकास की योजनाओं के मुताबिक बेल्ट एंड रोड पहल के संयोजन का काम;
  • क्षेत्रीय स्तर पर चीन के कोविड-19 टीके के निर्यात एवं वितरण के साथ-साथ “पारस्परिक स्वास्थ्य कोड को मान्यता देने” के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय तंत्र को निर्मित करने का काम; 
  • फिलिस्तीन के मसले पर द्वि-राष्ट्र समाधान के लक्ष्य को हासिल करना; 
  • क्षेत्रीय विवादों का राजनीतिक समाधान तलाशना;
  • ईरानी परमाणु मुद्दे के समाधान के लिए जेसीपीओए को दोबारा से शुरू करने के लिए “एक रोड मैप और समय-सारिणी” तैयार करना;
  • चीन-अरब सुधार एवं विकास मंच के साथ-साथ मध्य पूर्व सुरक्षा मंच को बढ़ावा देना; 
  • 5जी, बिग डेटा एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उच्च एवं नई प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आपसी सहयोग;
  • चीन-अरब देशों के बीच “समुदायों का नए युग में साझे भविष्य के साथ” विकास करने और मानवाधिकार के मुद्दों के राजनीतिकरण का विरोध करना शामिल है।  

इतना तो तय है कि बीजिंग खुद को जेसीपीओए में आये गतिरोध को भंग करने के लिए एक समाधानकर्ता के तौर पर स्थापित करना चाहता है। वांग के तेहरान आगमन की पूर्व संध्या के अवसर पर, अमेरिकी विशेष राजनयिक रॉबर्ट मालेय ने चीनी उप विदेश मंत्री मा झाओझू के साथ फोन पर बात की थी, जिसमें चीन की ओर से आश्वस्त किया गया था कि बीजिंग जेसीपीओए को एक बार फिर से पटरी पर लाने के मामले में अपनी “रचनात्मक भूमिका को निभाता रहेगा।”

कुलमिलाकर कहें तो चीन-ईरान संधि असल में एक नए मैट्रिक्स में गहराई से गुंथा हुआ है, जिसमें बीजिंग, फारस की खाड़ी और ईरान के अरब राष्ट्रों के साथ बना लेने की उम्मीद रखता है। यह संधि क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता के मामले में एक नए आख्यान के हिस्से के तौर पर है।

इतने बड़े पैमाने पर आर्थिक लेन-देन के लिए भुगतान की प्रकृति के बारे में अभी कुछ पता नहीं चल सका है, जिसमें सैकड़ों-अरबों डॉलर में लेन-देन की प्रकिया को चीन-ईरान के बीच हुए समझौते में परिकल्पित किया गया है। चीन इस प्रकार के लेनदेन में अमेरिकी डॉलर को इस्तेमाल में लाने के जोखिम को लेकर सहज स्थिति में नहीं रह सकता है।

दरअसल चीनी विशेषज्ञों ने हाल के दिनों में इस बात का उल्लेख किया है कि बीजिंग को 2008 के वित्तीय संकट के बाद से अमेरिकी डॉलर और पश्चिमी देशों द्वारा नियंत्रित भुगतान प्रणाली पर अति-निर्भरता में छिपे भारी जोखिम का अहसास है। इतना ही नहीं बल्कि हाल ही में अमेरिका द्वारा अपनी खुद की अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए बड़े पैमाने पर मात्रात्मक सहजता ने भी इस प्रकार की चिंताओं को बढ़ाने में मदद पहुँचाई है।

इसके अलावा, वुहान यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में फाइनेंस एंड सिक्योरिटीज इंस्टीट्यूट के निदेशक और एक चोटी के चीनी विशेषज्ञ, डोंग डेंगजिन ने हाल ही में ग्लोबल टाइम्स अख़बार से बातचीत में कहा है कि “वाशिंगटन स्विफ्ट (SWIFT) का दुरूपयोग कर किसी भी देश के खिलाफ अपनी मनमानी करता आ रहा है, जिसके चलते वैश्विक स्तर पर असंतोष व्याप्त है। अगर चीन और रूस इस डॉलर के आधिपत्य को चुनौती देने के लिए मिलकर काम करते हैं, तो ऐसे देशों की झड़ी लग सकती है जो इस आह्वान के साथ सुर मिलाने के साथ-साथ नई प्रणाली से जुड़ने के लिए सहज तैयार होंगे।”

चूँकि भुगतान प्रणाली व्यापारिक प्रणाली से जुडी हुई है, ऐसे में डोंग का सुझाव है कि नई भुगतान प्रणाली में युआन को समाशोधन मुद्रा के तौर पर इस्तेमाल में लाया जा सकता है। डोंग के मुताबिक “शुरुआत करने के लिए इस प्रणाली को एक परीक्षण के तौर पर मध्य एशियाई देशों और बेल्ट एंड रोड पहल के रास्ते में पड़ने वाले देशों और क्षेत्रों पर लागू करके देखा जा सकता है। जैसे-जैसे इसके प्रभाव में विस्तार होगा, यह प्रणाली यूरोप और आसियान (ASEAN) में मौजूद अन्य देशों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल साबित हो सकती है।”

हाल के महीनों में कई अन्य रिपोर्टों में भी चर्चा के तहत चीन और ईरान के बीच गैर-डॉलर भुगतान प्रणाली के बारे में बातें की गई हैं। अब यह देखना शेष है कि, इस प्रकार की खुली अवज्ञा को अमेरिका कितना और अधिक हजम करने की स्थिति में है। फिलहाल, चीन कम से कम अमेरिका के साथ किसी प्रकार के टकराव में जाने का इच्छुक नहीं है। ईरान के लिए भी एक रणनीतिक संपत्ति के तौर पर तेल और गैस के निर्यात को स्थानीय मुद्राओं में भुगतान को संभव बना पाने के लिए भरोसे की उम्मीद के आधार पर छलांग लगाने की आवश्यकता पड़ेगी। हाल के वर्षों में चीन द्वारा सऊदी अरब से भी तेल के व्यापार के मामले में डॉलर की परिधि से बाहर निकलने का आग्रह किया जाता रहा है।

कहने का तात्पर्य यह है कि चीन, पश्चिम एशिया में इसके परीक्षण की फ़िराक में है। विभिन्न खबरों के मुताबिक, पिछले वर्ष जनवरी में पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना का डिजिटल करेंसी इंस्टीट्यूट और सेंट्रल बैंक ऑफ़ द यूनाइटेड अरब अमीरात, तथाकथित मल्टीपल सीबीडीसी (एम-सीबीडीसी) ब्रिज में शामिल हो गए, जो फंड ट्रांसफर की सुविधा के लिए एक सीमा-पार भुगतान की परियोजना है। इसमें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निपटान एवं पूंजीगत बाजार में लेनदेन को अपने क्षेत्राधिकार में बनाए रखना संभव है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि डिजिटल युआन को, जिसे चीन के घरेलू बाजार में डिजिटल करेंसी/इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट (डीसीईपी) प्रोजेक्ट के तौर पर चिन्हित किया गया है, में भी अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने की क्षमता है। अभी की स्थिति में देखें तो चीन के सीमा-पार की सीआईपीएस भुगतान प्रणाली में दोनों साझीदार शामिल हैं, और चीनी-अमेरिकी बढ़ते तनाव के बीच स्विफ्ट प्रणाली से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम है। बेल्जियम-स्थित स्विफ्ट प्रणाली के बजाय चीन, जितना अधिक सीआईपीएस को इस्तेमाल में लाएगा, उतना ही संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए चीन के वैश्विक भुगतान के आंकड़े को उद्घाटित कर पाना कठिन होते जाने वाला है। कुछ अमेरिकी विश्लेषकों ने इस कदम की आलोचना “चीन की घरेलू और वैश्विक स्तर पर डिजिटल अधिनायकवाद की ओर बढ़ते कदम” के तौर पर की है। 

वैश्विक पटल पर धुमकेतू के समान चीन के उदय के पीछे बीजिंग की लंबे समय से यह चाहत रही है कि उसकी भौतिक मुद्रा, रेनमिनबी (युआन), उसकी आर्थिक सफलता के सहारे उपर उठेगी और एक दिन डॉलर के प्रभुत्व वाली वित्तीय प्रणाली से परे हटाने के लिए मजबूर करेगी। चीन लगातार एक चुनौतीपूर्ण किन्तु मौके की ताड़ वाली स्थिति की ओर बढ़ रहा है।

चीन की बेल्ट एंड रोड पहल, डिजिटल युआन के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए एक परिपक्व प्रवेश बिंदु बन कर सामने आया है। चीन बीआरआई में भाग लेने वाले देशों से डिजिटल युआन को स्वीकार करने, कर्ज चुकाने और प्वाइंट-ऑफ-सेल टर्मिनल जैसे अधिसंरचनात्मक परियोजनाओं को स्थापित करने और लेनदेन पर कम शुल्क का भुगतान करने की पहल करने के लिए कह सकता है। चीन के राजकीय विदेशी मुद्रा विनिमय प्रशासन के अनुसार, “राष्ट्रीय बेल्ट एंड रोड विकास रणनीति के साथ सक्रिय रूप से सहयोग करने” के बारे में फैसला लिया गया है।

अपेक्षाकृत सस्ती एवं शीघ्र भुगतान प्रणाली होने के अलावा, यह अमेरिकी प्रतिबंधों के खिलाफ एक सुरक्षा-घेरा खड़ा करने का भी काम करता है। एक काल्पनिक स्थिति में यदि देखें तो, ईरान अपने लिए एक सक्षम डिजिटल मुद्रा प्रणाली को स्थापित कर सकता है ताकि अमेरिका के लिए सीमा-पार के व्यापार और निवेश में होने वाले स्थानान्तरण, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते और दो देशों के बीच में होने वाले विदेशी मुद्रा के लेनदेन को पकड़ पाना संभव नहीं रह जाने वाला है। 

इतना ही नहीं, यह प्रभावी तौर पर बेहद शक्तिशाली अमेरिकी मुद्रा को दरकिनार कर अमेरिकी प्रतिबंधों को बे-असर करने में सक्षम है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि “जैसा कि बताया जा रहा है, यदि इसे लागू कर दिया जाता है तो (चीन-ईरान) साझेदारी, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच में बिगड़ते संबंधों में नए और संभवतया खतरनाक उछाल बिंदु को पैदा करने में सक्षम है... किसी भी कंपनी के लिए जो ईरान के साथ व्यापार में शामिल होती है,  अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग प्रणाली तक पहुँच को खत्म करने के खतरे सहित अमेरिकी प्रतिबंधों की बहाली ने ईरान के विदेशी व्यापार और निवेश को बुरी तरह से आतंकित कर, ईरानी अर्थव्यवस्था का गला घोंटने में सफल रहा है।”

आख़िरकार यह कैसे संभव है कि वाशिंगटन एक ऐसे मौके पर जब जो बिडेन प्रशासन के मुताबिक “अमेरिका की वापसी हो गई है”, इस प्रकार की रणनीतिक अवहेलना को स्वीकार कर सकता है? अमेरिकी विदेश विभाग ने संकल्प लिया है कि “उन चीनी कंपनियों पर लागत थोपी जायेगी जो ईरान को मदद पहुंचाएंगे।” इन परिस्थितियों के मद्देनजर, इस बात का अंदाजा लगाना पूरी तरह से संभव है कि चीन-ईरान समझौते को शुरू करने को लेकर किसी प्रकार की आधिकारिक समय-तालिका निर्धारित नहीं की गई है। “सभ्यता के राष्ट्रों” में से होने के नाते, चीन और ईरान के पास अपनी खुद की समय और स्थान की अवधारणाएं हो सकती हैं। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

The China-Iran Pact is a Game Changer

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